बुधवार, 12 सितंबर 2012

लॉ कॉलेज की मान्यता : राजनीतिक दखल की जरूरत


अजमेर के लॉ कालेज में व्याख्याताओं के पद रिक्त होने से जहां कामकाज पर इसका असर पड़ रहा है, वहीं बीसीआई से अस्थाई मान्यता नहीं मिलने के कारण फिलहाल प्रथम वर्ष में प्रवेश भी नहीं हो सके हैं। अब कॉलेज के कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. डी. के. सिंह कह रहे हैं कि जैसे ही मान्यता मिल जाएगी प्रवेश प्रक्रिया को शुरू कर दिया जाएगा। कैसी विडंबना है? माना कि इसके लिए स्थानीय कॉलेज प्रशासन सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है और वह लगातार उच्चाधिकारियों व बीसीआई के संपर्क में है, मगर छात्रों को तो समाधान चाहिए। और इसी समाधार की खातिर वे आंदोलित हैं। इसी सिलसिले में पिछले दिनों उन्होंने सद्बुद्धि यज्ञ भी किया, मगर अभी तक समाधान नहीं निकल पाया है।
दरअसल बीसीआई ने शिक्षण सत्र 2011-12 के लिए अस्थाई मान्यता प्रदान की थी, लेकिन वर्तमान सत्र के लिए मान्यता के लिए सहमति प्रदान नहीं की है। यही वजह है कि प्रथम वर्ष के लिए प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ नहीं हो सकी है। कॉलेज प्रशासन ने छात्रों से फार्म तो भरवा लिए हैं, लेकिन मान्यता नहीं मिलने पर छात्रों से फीस जमा नहीं की जा रही है। ज्ञातव्य है कि राजकीय महाविद्यालय परिसर में संचालित विधि महाविद्यालय राज्य सरकार के आदेश पर वर्ष 2007-08 से स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है। विधि महाविद्यालय को प्रारंभ में 10 व्याख्याता,एक वरिष्ठ लिपिक व एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उपलब्ध कराया गया था। वर्तमान में महज तीन ही व्याख्याता काम कर रहे हैं। शिक्षकों के अभाव में शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है। विधि महाविद्यालय को गत सत्र 2011-12 के लिए बजट का आंवटन किया गया, लेकिन स्टाफ के अभाव में बजट का उपयोग नहीं हो सका। वर्तमान में विधि महाविद्यालय में पांच व्याख्याता नियुक्त हैं, जिनमें से एक व्याख्याता डॉ.आर एस पाराशर जयपुर सचिवालय में प्रतिनियुक्ति पर हैं। एक अन्य डॉ.सुनील कुमार पीडीएफ के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में हैं। ऐसी स्थिति में तीन व्याख्याता डॉ.डी के सिंह, डॉ.आर एन चौधरी व डॉ.सुमन मावर ही कार्यरत हैं। प्राचार्य का पद रिक्त होने पर कार्यवाहक प्राचार्य की जिम्मेदारी डॉ.डी के सिंह को सौंपी गई है। इस स्थिति से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कॉलेज कितना उपेक्षित है। और उसकी एक मात्र वजह है राजनीतिक दबाव का अभाव। यहां छात्र तो जागरूक हैं, जिन्हें कि होना भी चाहिए, मगर राजनीतिक नेता ठीक से रुचि नहीं ले रहे। वे आगामी चुनाव के मद्देनजर अपनी-अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में तो हिस्सा ले रहे हैं, खुद चुनाव लड़ाने के लिए नंबर बढ़ाने के लिए तो समय निकाल रहे हैं, मगर सार्वजनिक हित के काम पर ध्यान नहीं दे रहे। जरूरत है कि कांग्रेस व भाजपा के सभी जनप्रतिनिधि इस ओर गौर करें। तभी कोई समाधान निकल सकता है। वरना हमारा सरकारी तंत्र कैसा है, इसका अनुमान तो प्रशासनिक तंत्र की अब तक की कार्यवाही से लग रहा है। राजनेताओं को चाहिए कि वे जिस प्रकार सावित्री स्कूल के अधिग्रहण के लिए एकजुट हुए थे, ठीक उसी प्रकार इस मुद्दे पर भी एकजुट हों।
-तेजवानी गिरधर

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