शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

देवनानी एक तरफ, भाजपा दूसरी तरफ


एक लंबे अरसे से शहर के भाजपा विधायक द्वय प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल में बंटी भाजपा अब शनै: शनै: देवनानी बनाम एंटी देवनानी होती जा रही है। अर्थात एक तरफ पूरी भाजपा है तो दूसरी ओर देवनानी। हालांकि जब शहर भाजपा अध्यक्ष का विवाद आया था तो निर्गुट अध्यक्ष के रूप में पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत को विराजमान किया गया था और दोनों गुटों के पदाधिकारियों को स्थान दिया गया था, मगर ताजा स्थिति ये है कि सक्रिय पदाधिकारियों की एक बड़ी लॉबी पूरी तरह से देवनानी के खिलाफ चल रही है, जो कि हर वक्त उन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। माना जाता है कि इस लॉबी को प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत का वरदहस्त है। विधायक श्रीमती अनिता भदेल स्वाभाविक रूप से इस लॉबी में शामिल हैं ही।
दो भागों में बंटी पार्टी की हालत ये है कि पार्टी बैनर पर आए दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में यह लॉबी अलग ही चलती है और देवनानी अपने बलबूते पर अलग। यदि किसी कार्यक्रम में संयुक्त रूप से मौजूद भी रहते हैं तो भी इनकी खींचतान साफ देखी जा सकती है। यूं तो इस फूट के अनेकानेक उदाहरण मौजूद हैं, मगर सबसे ताजा प्रकरण अजमेर बंद से एक दिन पूर्व का है। तब भाजपा की ओर से कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन कर केन्द्र सरकार का पुतला फूंका गया तो देवनानी साफ तौर अलग थलग दिखाई दिए। दैनिक भास्कर में तो बाकायदा इस घटना का ब्यौरा तक दिया गया है। उसमें लिखा है कि कलेक्ट्रेट पर विधायक देवनानी पुलिस से उलझते नजर आए। देवनानी ने कलेक्ट्रेट के बंद मुख्यद्वार को खोलने का प्रयास करते हुए यातायात उपअधीक्षक जयसिंह राठौड़ व सिविल लाइन थाना प्रभारी रविंद्र सिंह से धक्का मुक्की हो गई। देवनानी चाहते थे कि वह कार्यकर्ताओं के साथ कलेक्ट्रेट के भीतर प्रवेश करें। जैसे तैसे कर देवनानी ने मुख्य द्वार को खुलवा लिया लेकिन उनके साथ कोई भी कार्यकर्ता भीतर नहीं गया। इसी बीच मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर खड़े शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत ने सभी कार्यकर्ताओं को अपने पास बुला लिया और देवनानी अलग थलग नजर आए। बंद वाले दिन भी देवनानी अपने समर्थकों के साथ अलग ही चल रहे थे।
इसका परिणाम ये है कि एक ही मुद्दे पर भाजपा की अधिकृत विज्ञप्ति अलग जारी होती है और देवनानी की अलग। हालांकि भाजपा की विज्ञप्ति में देवनानी का नाम भी जोड़ा जाता है, मगर उसके बावजूद देवनानी अलग से विज्ञप्ति जारी कर देते हैं। इनकी प्रतिस्पद्र्धा भी लगातार बढ़ती जा रही है। कई तटस्थ नेता इस स्थिति का तमाशबीन की तरह मजा ले रहे हैं।
पार्टी की ताजा स्थिति के चलते यह संदेह होता है कि क्या देवनानी विरोधी लॉबी उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव का टिकट लेने भी देगी? और टिकट ले आए तो जीतने भी देगी? तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि टिकट तो पिछली बार भी कट ही गया था, वो तो वे अकेले अपने दम पर टिकट ले कर आए थे। चुनाव के दौरान भी भाजपा का पूरा एक बड़ा गुट उनके खिलाफ था। सिंधी-वैश्यवाद के चलते वैश्य समाज के भाजपा नेता भी कारसेवा कर रहे थे। उसके बावजूद वे जीत गए। हालांकि इस जीत में ऐन वक्त पर संघ के महानगर प्रमुख सुनील जैन का खुल कर सामने आने और सिंधी समाज की एकजुटता की भी भूमिका रही थी। बहरहाल, अकेला यही तथ्य उनके पक्ष में जाता है कि वे विपरीत परिस्थिति में भी जीत कर आ गए। कदाचित यही तथ्य उनके आत्मविश्वास का कारण है। इसके अतिरिक्त विपक्षी विधायक के नाते पूरी सक्रियता और सार्वजनिक छवि बेदाग होना भी उनके पक्ष में जाता है। मगर ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार हालात पहले से भी ज्यादा विपरीत हैं। उसे देवनानी कैसे फेस करते हैं, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
-तेजवानी गिरधर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें