मंगलवार, 25 सितंबर 2012

स्कूलों पर तालाबंदी : अराजकता का आगाज


पिछले कुछ माह से जिस प्रकार गांवों में शिक्षकों की कमी अथवा शिक्षकों की अनुपस्थिति को लेकर आए दिन तालाबंदी की घटनाएं हो रही हैं, वह सीधे-सीधे अराजकता का नमूना है। बेशक समस्या अपनी जगह है, मगर धरातल का सच ये है कि गांवों में इस प्रकार की घटनाएं या तो असामाजिक तत्वों की करतूत हैं या फिर स्थानीय गंदी राजनीति का परिणाम। कहीं न कहीं यह अन्ना व बाबा रामदेव द्वारा जगाई गई अलख का बिगड़ा हुआ रूप भी है, जो कि शहरों से चल कर गांवों की ओर पहुंचने लगा है।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की तालाबंदी इन दिनों ही हो रही हो। पिछले कई वर्षों से, चाहे कांग्रेस सरकार हो या भाजपा सरकार, शिक्षकों की कमी के चलते तालाबंदियां होती रही हैं। एक ओर जहां सरकार की अपनी मजबूरियां हैं, वहीं शिक्षकों की गांवों में नहीं जाने की प्रवृत्ति भी इसकी वजह है। राजनीतिक अप्रोच से कई शिक्षक शहरी क्षेत्रों में ही रह रहे हैं। विशेष रूप से दूरदराज के गांवों की हालत ज्यादा खराब है। या तो वहां पर्याप्त शिक्षक नियुक्त ही नहीं हैं, या फिर शिक्षक आए दिन गोत मारते हैं। इस कारण जाहिर तौर पर बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पाती। इसी कारण आखिरकार तंग आ कर ग्रामीण तालाबंदी करते हैं। मगर पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। अब तो मानों ये फैशन सा होने लगा है। छोटी-मोटी बात पर ही तालाबंदी की जाने लगी है। इसका लाभ असामाजिक तत्व भी उठा रहे हैं। अब जब कि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है तो प्रशासन व सरकार को होश आया है। अतिरिक्त कलेक्टर मोहम्मद हनीफ ने तो बाकायदा आदेश दे दिया है कि स्कूलों में नाजायज तौर पर तालाबंदी कराने वाले असामाजिक तत्वों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी। मोहम्मद हनीफ ने स्वीकार किया है कि निश्चित रूप से स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, लेकिन उसका तत्काल समाधान संभव नहीं होगा। आने वाले समय में जैसे ही शिक्षक प्राप्त होंगे ऐसी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति तत्काल की जाएगी। उनके इस आदेश से स्पष्ट है कि फिलहाल कोई समाधान नहीं है। यह बात ग्रामीणों को भी समझनी होगी। अगर वाकई कोई बड़ी भारी गड़बड़ी हो रही है तो विरोध होना ही चाहिए, ताकि प्रशासन की आंख खुले, मगर तालाबंदी करके बच्चों की पढ़ाई का और नुकसान नहीं करना चाहिए। ग्रामीणों को यह भी समझना होगा कि अगर हम अपने बच्चों को अभी से इस प्रकार की प्रवृत्ति की ओर ले जाएंगे तो उनमें अराजकता के अवगुण विकसित होंगे, जो कि भविष्य के लिए ठीक नहीं है। बेशक शिक्षा हमारा अधिकार है, सरकार का अहम दायित्व भी, मगर इसके साथ ही हमारे कर्तव्य भी हैं। अगर वाकई सरकार के पास फिलहाल संसाधन नहीं हैं तो उपलब्ध संसाधनों के साथ सहयोग करना चाहिए। महज राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस प्रकार की हरकतें करना ठीक नहीं है। हम भी जानते हैं कि पिछले दिनों शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में हो रहे विलंब के कारण स्कूलों में शिक्षक नहीं लगाए जा सके। संभव है कि नियुक्तियां होने पर कुछ समाधान हो। तब तक सब्र करना ही चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

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