सोमवार, 22 अप्रैल 2013

पहले भी होती रही है राजस्व मंडल के विखंडन की साजिश


राजस्थान में राजस्व मामलों की सर्वोच्च अदालत राजस्थान राजस्व मंडल पर एक बार फिर विखंडन का खतरा मंडरा रहा है। इस पर राजस्व बार एसोसिएशन ने केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट को ज्ञापन सौंप कर विखंडन को रुकवाने की मांग की है। इस बार राज्य सरकार अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लिए एससी एसटी लैंड ट्रिब्यूनल का गठन करने जा रही है, जिससे राजस्व मंडल का एकीकृत स्वरूप प्रभावित होगा। दरअसल हाल ही में सरकार ने बजट में एससी एसटी लैंड ट्रिब्यूनल के गठन की घोषणा की है, इसके लिए राजस्व मंडल से सुझाव भी मांगे गए हैं। वकीलों का मानना है कि अगर ट्रिब्यूनल गठित होता है तो राजस्व मंडल का एकीकृत स्वरूप प्रभावित होगा, क्योंकि मंडल राजस्व मामलों की राज्य की सर्वोच्च अदालत है। उनका कहना है कि यदि सरकार एससी एसटी से जुड़े मुकदमों का त्वरित निस्तारण करना चाहती है तो राजस्व मंडल में ही अलग से स्पेशल बैंच गठित की जा सकती है।
वस्तुत: यह पहला मौका नहीं है कि मंडल के टुकड़े की साजिश की जा रही हो। इससे पहले भी अलग बैंचों का गठन करने के बहाने विखंडन की कोशिशें होती रही हैं। पिछली बार तो संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल का सदस्य बना कर इसका विखंडन करने का प्रस्ताव अमली रूप लेने जा रहा था। तब राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने यह कह कर अपना पिंड छुड़वाने की कोशिश कर रहे थे कि उनके पास  इस प्रकार के प्रस्ताव की कोई भी फाइल नहीं आई है। वे जानते हुए भी अनजान बन रहे थे। विवाद शुरू ही इस बात से हुआ कि राजस्व महकमे के शासन उप सचिव ने संभागीय आयुक्तों को राजस्व मंडल के सदस्य की शक्तियां प्रदत्त करने संबंधी पत्र मंडल के निबंधक को लिखा था। पत्र की भाषा से ही स्पष्ट था कि सरकार मंडल को संभाग स्तर पर बांटने का निर्णय कर चुकी थी, बस उसे विखंडन का नाम देने से बच रही थी। शासन उपसचिव के पत्र से ही स्पष्ट था कि गत 1 अप्रैल 2011 को अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में हुई बैठक में ही निर्णय कर यह निर्देश जारी कर दिए थे कि संभागीय आयुक्तों को मंडल सदस्य के अधिकार दे दिए जाएं। तभी तो शासन उपसचिव ने निबंधक को साफ तौर निर्णय की नोट शीट भेज कर आवश्यक कार्यवाही करके सूचना तुरंत राजस्व विभाग को देने के लिए कहा।
तब सवाल ये उठा था कि क्या राजस्व मंत्री की जानकारी में लाए बिना ही अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास की अध्यक्षता में निर्णय कर लिया गया? उससे भी बड़ा सवाल ये कि अगर अधिकारियों के स्तर पर निर्णय ले भी लिया था तो उसे कार्यान्वित किए जाने के लिए उनके अधीन विभाग के शासन उप सचिव ने राजस्व मंत्री को जानकारी दिए बिना ही मंडल के निबंधक को पत्र कैसे लिख दिया? माजरा साफ था कि या तो वाकई मंत्री महोदय को जानकारी दिए बिना ही पत्र व्यवहार चल रहा था, या फिर वे झूठ बोल रहे थे। इस मसले का एक पहलु ये भी था कि मंत्री महोदय इस भुलावे में थे कि पहले फाइल उनके पास आएगी, वे सीएस से बात करेंगे, फिर फाइल मुख्यमंत्री के पास जाएगी, कानून में संशोधन के लिए विधानसभा में रखा जाएगा और राज्यपाल की भी मंजूरी लेनी होगी।  यदि इस मामले में इतनी लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता तो शासन उप सचिव के पत्र में इतना स्पष्ट कैसे लिखा हुआ होता कि अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास के निर्देशों पर आवश्यक कार्यवाही की जाए? यानि कि मंत्री महोदय को ये गलतफहमी थी कि इसके लिए कानून पारित करना होगा, जबकि अधिकारी अपने स्तर पर व्यवस्था को अंजाम देने जा रहे थे।
इसका एक मतलब ये भी था कि अजमेर के वकील, बुद्धिजीवी व प्रबुद्ध नागरिक जिस व्यवस्था को विखंडन मान कर आंदोलित थे, सरकार की नजर में वह एक सामान्य प्रक्रिया मात्र थी। और यही वजह रही कि जैसे ही सरकार से ये पूछा गया कि क्या राजस्व मंडल का विखंडन किया जा रहा है तो वह साफ कह रही थी कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यानि कि बाकायदा विखंडन तो किया जा रहा था, मगर उसे विखंडन का नाम देने से बचा जा रहा था। इसी शाब्दिक चतुराई के बीच मामला उलझा था। यह तो गनीमत रही कि उस वक्त राजस्व बार के अतिरिक्त अजमेर फोरम भी सक्रिय हुआ और सभी राजनीतिक दलों से जुड़े वकीलों ने भी एकजुटता दिखाई, साथ ही अजमेर के सांसद व तत्कालीन केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट भी सक्रिय हुए, तब जा कर विखंडन रोका जा सका।
एक बार फिर मंडल के विखंडन की कोशिशें की जा रही हैं। ये भी ठीक उसी प्रकार की कोशिश है, जैसी पहले शाब्दिक जाल में लपेट कर की जा रही थी। अब देखना ये होगा कि बार का दबाव कितना काम करता है? पायलट क्या करते हैं?
यहां आपको बता दें कि आजादी और अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के बाद राज्य के लिए एक ही राजस्व मंडल की स्थापना नवंबर 1949 में की गई। पूर्व के अलग-अलग राजस्व मंडलों को सम्मिलित कर घोषणा की गई कि सभी प्रकार के राजस्व विवादों में राजस्व मंडल का फैसला सर्वोच्च होगा। खंडीय आयुक्त पद की समाप्ति के उपरांत समस्त अधीनस्थ राजस्व विभाग एवं राजस्व न्यायालय की देखरेख एवं संचालन का भार भी राजस्व मंडल पर ही रखा गया। इसके प्रथम अध्यक्ष बृजचंद शर्मा थे। इसका कार्यालय जयपुर के हवा महल के पिछले भाग में जलेबी चौक में स्थित टाउन हाल, जो कि पहले राजस्थान विधानसभा भवन था, में खोला गया। बाद में इसे राजकीय छात्रावास में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद एमआई रोड पर अजमेरी गेट के बाहर रामनिवास बाग के एक छोर के सामने यादगार भवन में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद इसे जयपुर रेलवे स्टेशन के पास खास कोठी में शिफ्ट किया गया। सन् 1958 में राव कमीशन की सिफारिश पर अजमेर में तोपदड़ा स्कूल के पीछे शिक्षा विभाग के कमरों में स्थानांतरित किया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1959 को जवाहर स्कूल के नए भवन में शिफ्ट किया गया। इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय ज्ञ् श्री मोहनलाल सुखाडिय़ा ने किया।
-तेजवानी गिरधर

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