सोमवार, 22 अप्रैल 2013

सचिन पायलट से ये दूरी क्या गुल खिलाएगी?


एक ओर विधानसभा चुनाव की नजदीकी के चलते प्रदेश हाईकमान तैयारियां शुरू कर चुका है, दावेदार भी भीतर ही भीतर टिकट की जुगाड़ में लगे हुए हैं तो दूसरी ओर अजमेर में केंद्रीय राज्यमंत्री सचिन पायलट व शहर कांग्रेस के एक धड़े के नेताओं के बीच बनी दूरियां पाटी नहीं जा पा रहीं। अगर ये कहा जाए कि पाटने की कोशिश की भी नहीं जा रही, तो ज्यादा उचित होगा। गत दिवस जब पायलट अजमेर आए तो शहर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जसराज जयपाल, पूर्व विधायक डॉ. राज कुमार जयपाल, कुलदीप कपूर, विजय यादव तथा महेश ओझा समेत अन्य नेता उनके किसी भी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। इसे मीडिया ने भी रेखांकित किया। कहने की जरूरत नहीं है कि इस धड़े ने एक लंबे अरसे से पायलट से दूरी बना कर रखी है और वह उनके आभा मंडल से अप्रभावित होने को स्थापित कर चुका है।
असल में पायलट व इस धड़े के बीच दूरी की एक मात्र वजह है कि पायलट कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बेहद करीब हैं। वे इस गुट को कुछ अहमियत नहीं देते और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी पायलट व इस गुट के बीच चल रही नाइत्तफाकी को जानबूझ कर नजरअंदाज किए हुए हैं। सच तो ये है कि पायटल के कद के चलते चंद्रभान व गहलोत अजमेर के मामले में कम ही पड़ते हैं। तभी तो मजाक में ये कहा जाना लगा है कि अजमेर तो केन्द्र शासित प्रदेश है, जिस पर प्रदेश का कोई जोर नहीं। मगर सवाल ये है कि अब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। अगर इसी प्रकार गुटबाजी जारी रही तो अजमेर की दोनों सीटों के प्रत्याशियों को परेशानी पेश आएगी, चाहे वह किसी भी गुट का हो। भले ही पायलट अपने ही गुट के नेताओं को टिकट दिलवाएं, मगर उनका जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि पायलट विरोधी गुट कमजोर होने के कारण चुप भले ही बैठा हो, मगर धरातल पर आज भी उसकी अच्छी पकड़ है। सच तो ये है कि यह गुट लंबे अरसे तक शहर की कांग्रेस को चलाता रहा है, इस कारण इसकी जमीन पर गहरी पकड़ है। देखना ये होगा कि विधानसभा चुनाव और नजदीक आने पर कोई सुलह हो पाती है या नहीं? अगर यथास्थिति ही रहती है तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा एक बार फिर दोनों सीटों पर काबिज हो जाए।
-तेजवानी गिरधर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें