रविवार, 23 जून 2013

भगत के उलझने से गैर सिंधी दावेदारों का रहेगा दबाव

एसीबी द्वारा लैंड फॉर लैंड मामले में मुकदमा दर्ज करने के बाद यूआईटी अध्यक्ष नरेन शाहनी भगत का अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का दावा कमजोर हो सकता है और इसी कारण गैर सिंधी दावेदारों का दबाव बढ़ जाएगा।
पिछली बार कांग्रेस ने गैर सिंधी का प्रयोग करते हुए पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती को टिकट दिया, मगर सिंधी-गैर सिंधीवाद भड़कने के कारण वे हार गए। हालांकि हार का अंतर लगभग छह सौ वोट का ही रहा, मगर इससे लगने लगा कि कांग्रेस आगामी चुनाव में दुबारा गैर सिंधी को टिकट देने का खतरा शायद ही मोल ले। मगर भगत का दावा कमजोर होने की स्थिति में समीकरण कुछ बदल गए हैं। वे सिंधी दावेदारों से सबसे ज्यादा मजबूत माने जाते हैं। पार्टी उन्हें एक बार टिकट दे चुकी है, मगर वे पूर्व विधायक नानकराम जगतराय के बागी हो कर खड़े हो जाने के कारण हार गए। हार का अंतर चूंकि मात्र 2 हजार 240 था, इस कारण उनका दावा पिछली बार भी मजबूत था। इस बार उन्होंने अपनी तैयारी टिकट लेने के हिसाब से करना शुरू की, मगर एसीबी की चपेट में आ गए। उनके बाद यूं तो दावेदार कई हैं, मगर कांग्रेस उन पर विचार करने से पहले ये भी आंकेगी कि वे जीताऊ भी हैं या नहीं। सिंधी दावेदारों में डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी, युवा नेता नरेश राघानी, पूर्व पार्षद रमेश सेनानी, हरीश हिंगोरानी, पूर्व पार्षद हरीश मोतियानी आदि की गिनती होती है। कांग्रेस पार्षद रश्मि हिंगोरानी भी दावेदारों में शुमार हो सकती हैं, जो कि सिंधी होने के साथ-साथ महिला कोटे का लाभ लेना चाहेंगी। उनके अतिरिक्त पूर्व आईएएस अधिकारी एम. डी. कोरानी के पुत्र शशांक कोरानी दमदार हो सकते हैं और वे चाहें टिकट ला भी सकते हैं। इसकी वजह ये है कि जहां एम. डी. कोरानी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी हैं, वहीं शशांक कोरानी अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट के दोस्त हैं। मगर अभी उनका मानस स्पष्ट नहीं है।
यदि कांग्रेस को कोई उपयुक्त सिंधी दावेदार नहीं मिला तो फिर गैर सिंधी को आजमाया जा सकता है। उनमें सबसे प्रबल दावेदार मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले डॉ. बाहेती को माना जाता है। चूंकि उनकी हार का अंतर कोई खास नहीं रहा था, इस कारण वे फिर से दावेदारी करने की स्थिति में हैं। हालांकि पिछली हार के कारण काफी हतोत्साहित थे, मगर बदले हालात में उन्होंने जमीन पर अपने आप को मजबूत करना शुरू कर दिया है। पिछली बार हार की एक वजह उनका ओवर कॉन्फीडेंस था। इस बार वे संभल कर रहेंगे। वैसे उनको टिकट देने के लिए पायलट सहमत होंगे, इसमें थोड़ा संशय है। उनके अतिरिक्त शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता भी मजबूत दावेदार हैं। उनकी सीधी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक पकड़ है। वे पायलट खेमे के भी हैं। वे संगठन के अध्यक्ष पद पर काबिज तो हैं, मगर संगठन दो फाड़ की स्थिति में है, इस कारण उनका दावा कमजोर होता है। वैसे भी उनकी समाज के वोट इतने नहीं कि कांग्रेस उन पर जातीय समीकरण के तहत दाव खेल सके। शहर कांगे्रस के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग भी दावा कर सकते हैं। पिछली बार उन्होंने टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में परचा भरा था, मगर कांग्रेस आलाकमान के आग्रह पर परचा वापस ले लिया। इस बार फिर वे दावेदारी कर सकते हैं। उन्होंने भी जयपुर-दिल्ली तक अपने संपर्क सूत्र बना रखे हैं, मगर उनका खुलासा कम ही करते हैं। शहर जिला कांग्रेस कमेटी के महामंत्री सुकेश काकरिया व महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सबा खान भी दावेदारों में शुमार हैं।
-तेजवानी गिरधर

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