शनिवार, 22 जून 2013

मसूदा में कुमावत के दावे को नजरअंदाज करना आसान नहीं

राज्य सरकार में संसदीय सचिव ब्रह्मदेव कुमावत के विधानसभा क्षेत्र में इस बार भी कांग्रेस टिकट के लिए भारी खींचतान रहेगी। इस विधानसभा सीट के दावेदारी करने वालों में मौजूदा विधायक ब्रह्मदेव कुमावत, अजमेर डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी, पूर्व विधायक हाजी कयूम खान, पूर्व मंत्री सोहन सिंह, चांपानेरी के पूर्व सरपंच राकेश शर्मा, बडग़ांव के पूर्व सरपंच वंश प्रदीप सिंह, सिंगावल सरपंच सहदेव गुर्जर, मसूदा विधानसभा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष ओम प्रकाश तेली, वाजिद खान चीता, राजन कुमावत व गोविंद भड़क, सुवा लाल चाड, पंचायत समिति सदस्या प्रमिला, प्रवीण सिंह, पूर्व पंचायत समिति सदस्य विक्रमादित्य सिंह, अजीज चीता, दीपू काठात आदि शामिल हैं, मगर मुख्य खींचतान कुमावत, चौधरी और कयूम के बीच होती नजर आ रही है।
जहां तक कुमावत का सवाल है, वे स्वाभाविक रूप से मौजूदा विधायक होने के अतिरिक्त निर्दलीय रूप से जीत कर आने के बाद भी कांगे्रस सरकार बनाने में मदद करने की एवज में टिकट मांगेंगे। हालांकि उन्हें रामचंद्र चौधरी के कड़े विरोध के बाद भी संसदीय सचिव बना कर अहसान चुकाया जा चुका है। उन्हें निर्दलीय होने के बाद भी उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी अजमेर डेयरी अध्यक्ष चौधरी को 7 हजार 655 मतों से पराजित किया। उस चुनाव में कुमावत को 41973 व चौधरी को 34318 मत मिले थे। अर्थात वे इलाके में अपना व्यक्तिगत प्रभाव तो साबित कर ही चुके हैं। ऐसे में उनका टिकट काटना थोड़ा कठिन ही रहेगा। यहां यह बताना प्रासंगिक रहेगा कि कुमावत की जीत की एक वजह भाजपा में बगावत रही। तीसरे स्थान पर रहे भाजपा के नवीन शर्मा को 31080 वोट मिले, जबकि बागी ग्यारसीलाल ने 12 हजार 916 वोट काट दिए। अगर बागी को राजी करने में भाजपा सफल हो जाती तो शर्मा जीत सकते थे।
रहा सवाल चौधरी का तो पिछली बार हार जाने के कारण उनका दावा कमजोर हुआ है, मगर उन्हें पूर्व मंत्री हरेन्द्र मिर्धा लॉबी पूरा सपोर्ट करेगी।  इसके अतिरिक्त डेयरी अध्यक्ष होने के नाते उनका ग्राउंड पर अच्छा नेटवर्क है। वे पूर्व में देहात जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, इस कारण कार्यकर्ताओं से उनका सीधा संपर्क रहा है। बात करें अगर पूर्व विधायक हाजी कयूम खान की तो वे पहले विधायक काल के दौरान और बाद में भ्ी लगातार दस साल तक इलाके के संपर्क में रहे हैं। पिछले चुनाव में उन्हें पुष्कर से लडऩे का ऑफर था, मगर उन्होंने यह कह कर कि वे लड़ेंगे तो मसूदा से ही, उसे ठुकरा दिया था। बताते हैं कि उनके पास दिल्ली में तुरप का एक पत्ता है, वह उनकी काफी मदद कर सकता है।
बात अगर करें पर्यवेक्षक राजेश खेरा के सामने दावेदारी की तो ब्लॉक अध्यक्ष सरदारा काठात की सदारत में हालांकि अधिसंख्य सदस्यों ने यह प्रस्ताव रखा कि प्रत्याशी चयन के निर्णय का अधिकार अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन पायलट को दिया जाए, मगर कुछ सदस्यों ने उसका विरोध किया। कहने की जरूरत नहीं है कि चौधरी तो खुले आम पायलट के विरोधी हैं और वे तो लोकसभा चुनाव में उनकी बजाय किसी स्थानीय को टिकट देने की मांग कर चुके हैं।
इस इलाके के जातीय समीकरण पर भी नजर डाल लेते हैं। यहां तकरीबन दो लाख मतदाताओं में से मुसलमान 32 हजार, गूजर 30 हजार, जाट 24 हजार, अनुसूचित जाति 26 हजार, रावत 20 हजार, राजपूत 14 हजार, महाजन 15 हजार, ब्राह्मण 11 हजार व कुमावत 5 हजार हैं।
अब तक के विधायक
1957- नारायण सिंह, कांग्रेस
1962- नारायण सिंह, कांग्रेस
1967- नारायण सिंह, कांग्रेस
1972- नारायण सिंह, कांग्रेस
1977- नूरा काठात, सीपीआई
1980- सैयद मो. अय्याज, कांग्रेस
1985- सोहनसिंह, कांग्रेस
1990- किशन गोपाल कोगटा, भाजपा
1993- किशन गोपाल कोगटा, भाजपा
1998- हाजी कयूम खान, कांग्रेस
2003- विष्णु मोदी, भाजपा
2008- ब्रह्मदेव कुमावत

-तेजवानी गिरधर

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