शनिवार, 8 मार्च 2014

उन डॉ. बाहेती का आज कोई नामलेवा नहीं

डॉ. श्रीगोपाल बाहेती से आप सुपरिचित हैं। वे एक बार पुष्कर से कांग्रेस विधायक और अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहे हैं। लंबे समय तक शहर कांग्रेस के महामंत्री व कार्यकारी अध्यक्ष रहने के बाद अध्यक्ष भी बने। दुर्भाग्य से पिछले दोनों विधानसभा चुनावों में अजमेर उत्तर से हार गए। अब जबकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, यकायक वे दिन याद आ जाते हैं, जब पिछली बार अजमेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ाने के लिए उन्हें ही सर्वाधिक उपयुक्त दावेदार माना जा रहा था।
कांग्रेस के दो दिग्गजों सांसद सचिन पायलट व पूर्व सांसद विष्णु मोदी में से किसी एक के चुनाव लडऩे की चर्चाओं के बीच शहर कांग्रेस ने डॉ. बाहेती को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया था। शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि डॉ. बाहेती अजमेर के जनप्रिय नेता हैं, कांग्रेस कार्यकर्ताओं का भी उनसे लगाव है। स्थानीय कांग्रेसी होने के नाते उन्हें लोकसभा का टिकट मिलना चाहिए। जयपाल ने प्रस्ताव प्रदेश कांग्रेस कमेटी व कांगे्रस हाईकमान को भेजा था। जिले के दो विधायकों, पुष्कर की श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ व किशनगढ़ के नाथूराम सिनोदिया भी डॉ. बाहेती की पैरवी की थी। तब केकड़ी के रघु शर्मा व नसीराबाद के महेन्द्र सिंह गुर्जर पूर्व सांसद विष्णु मोदी के साथ थे। यहां उल्लेखनीय है कि किशनगढ़ विधायक सिनोदिया देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष भी थे। उन्होंने निजी तौर पर बाहेती की ही तरफदारी की। इस प्रकार शहर व देहात जिला कांग्रेस का समर्थन बाहेती को मिल जाने के बाद कांग्रेस हाईकमान के सामने यह चुनौती हो गई थी वह कैसे स्थानीय इकाई की मंशा को नजरअंदाज कर सचिन पायलट या विष्णु मोदी को टिकट दे। बाहेती के समर्थन में कुछ नेता तो बाकायदा एकजुट हो कर दिल्ली कूच कर गए थे, मगर अशोक गहलोत के इशारे पर आधे रास्ते से ही लौट आए थे। बाद में हाईकमान ने सचिन का नाम ही फाइनल किया और उसका परिणाम ये रहा कि स्थानीय इकाई नाराज हो गई। एक बार तो तत्कालीन अध्यक्ष जसराज जयपाल गुट के अधिसंख्य नेताओं ने सामूहिक इस्तीफा देने की धमकी तक दे थी। हालांकि बावजूद इसके सचिन जीत गए, मगर जयपाल लॉबी की सचिन से दूरी पूरे पांच साल रही। वजह ये भी थी सचिन ने मौका मिलते ही महेन्द्र सिंह रलावता को अध्यक्ष बना दिया था। अब जा कर जयपाल लॉबी कुछ नरम पड़ी है।
खैर, बात डॉ. बाहेती की चल रही थी। अब जब कि सचिन यहां के मौजूदा सांसद हैं, केन्द्रीय राज्य मंत्री भी हैं, हाल ही प्रदेश कांग्रेस की कमान भी उन्हें सौंपी गई है, स्थानीय इकाई ने एकस्वर से सचिन को ही टिकट देने की मांग की है, डॉ. बाहेती का कोई नामलेवा नहीं है। किसी में हिम्मत भी नहीं है कि सचिन के रहते उनका नाम ले। कहने की जरूरत नहीं है कि वे अशोक गहलोत के खासमखास हैं और उन्हीं की बदौलत लंबे समय तक प्रभावशाली भूमिका में भी रहे, मगर अब जब कि गहलोत विधानसभा चुनाव हारने के बाद हाशिये पर हैं। ऐसे में भला बाहेती का नाम कौन ले सकता है?
-तेजवानी गिरधर

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