गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में पोपाबाई का राज?

जहां कहीं भारी अव्यवस्था होती है, अराजकता होती है, उसके लिए आम तौर पर राजस्थान में एक शब्द का इस्तेमाल होता है- पोपाबाई का राज। ये पोपाबाई कौन थी, उनका राज इतिहास के किस कालखंड में था, इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, मगर ये कहावत बनी है तो जरूर इसके कोई मायने होंगे। बीते दिन संभाग के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में संभाग के सबसे आला अफसर हनुमान सहाय मीणा ने खुद जो हालात देखे, तो यही पाया कि वहां न तो भाजपा का राज है और न ही उनके प्रशासन का कोई डर, यानि कि वहां पोपाबाई का राज है।
जिस संभाग मुख्यालय पर दो-दो मंत्री रहते हों, एक राज्य स्तरीय प्राधिकरण अध्यक्ष का निवास हो, जिस जिले का जनप्रतिनिधि राज्य स्तरीय आयोग का अध्यक्ष और जहां से दो-दो संसदीय सचिव प्रतिनिधित्व करते हों, वहां अगर सबसे प्रमुख अस्पताल में लापरवाही का आलम हो तो यह वाकई शर्मनाक है। जिस जिले का कलेक्टर अपनी कार्यकुशलता और त्वरित निर्णय करने के कारण वाहवाही पा रहा हो, उसकी छत्रछाया में अगर अस्पताल के मासूम बच्चों वाले विभाग में जरूरी सुविधाएं न हों तो इससे ज्यादा अफसोसनाक बात क्या हो सकती है?
अस्पताल प्रशासन कितना बेखौफ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संभागीय आयुक्त अस्पताल का दौरा कर रहे हों और वहां बदइंतजामी पसरी रहे। यानि कि आम दिनों में तो और भी हालत खराब रहती होगी। कैसी विडंबना है कि जनप्रतिनिधि और आला अफसर तो ए.सी. का आनंद लेते हैं और मासूम बच्चों के लिए पंखे व कूलर तक ठीक नहीं हैं। शायद 37 डिग्री तापमान में खुद संभागीय आयुक्त पसीने से तरबतर हो गए, तभी उन्हें वहीं की नारकीय स्थिति का अहसास हुआ होगा।
यह ठीक है कि उन्होंने शिशु वार्ड के सभी पंखे व कूलर ठीक करने के निर्देश दिए और आठ एयर कंडीशनर खरीदने पर सहमति जताई, मगर सवाल ये उठता है कि क्या अस्पताल प्रबंधन को खुद को यह ख्याल नहीं आता कि इस प्रकार की व्यवस्था वह अपने स्तर पर करे? अगर फंड का अभाव था तो उसके लिए जिला प्रशासन व सरकार से आग्रह करे। साफ है कि अस्पताल प्रशासन पूरी तरह से लापरवाह है, उसकी नतीजा है कि वहां ड्यूटी देने वाला स्टाफ यूनिफॉर्म में नहीं आता और न ही सफाई ड्यूटीचार्ट ठीक से भरा जाता। न ही शिकायत दर्ज करवाने की उचित व्यवस्था है। ऐसे में आम मरीज को कैसी अव्यवस्थाओं को भोगना पड़ता होगा, इसकी जानकारी कहां इंद्राज होगी। और जब बदइंतजामी की जानकारी रिकार्ड पर ही नहीं होगी तो उसे ठीक भी कौन करेगा?
अस्पताल प्रशासन कैसे आंख मूंद कर वहां की व्यवस्थाओं का संचालन कर रहा है, इसका अंदाजा इसी बात लगाया जा सकता है कि सफाई ठेकेदार ने मनमानी कर रखी है। जब उसको सुविधा होती है, तभी सफाई होती है। कैसा विरोधाभास है, जिस देश में सफाई के लिए राष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा हो, महात्मा गांधी को याद करके हर दफ्तर में सफाई की नौटंकी की जा रही हो। उस पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हों। घर-घर से कचरा संग्रहित करने की कवायद की जा रही हो, उसी के सबसे बड़े संभागीय अस्पताल में गंदगी का आलम हो। अरे, कभी गली में सफाई से चूक हो जाए तो समझ में आता है, मगर जहां सफाई पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए, बच्चों के जिस विभाग में सेनिटेशन की सबसे ज्यादा अहमियत होती है, वहीं समय पर कचरा नहीं उठाया जाता। इसका सीधा सा अर्थ है कि आदर्शों की बातें सिर्फ दिखाने के लिए होती हैं, धरातल पर तो सब कुछ पोपाबाई पर छोड़ देते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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