बुधवार, 1 दिसंबर 2010

यानि गौ रक्षा का नारा केवल चुनावी मुद्दा है

जिले के बिजयनगर में श्रीविजय गौशाला में गायों के कुपोषण से मरने पर गौ रक्षा की सबसे बड़ी पैराकार भाजपा की चुप्पी जाहिर करती है कि वह हिंदुओं के वोट हासिल करने मात्र के लिए गाय को माता का दर्जा देती है। एक ओर गायों के कटने के लिए जाने के खिलाफ समय-समय पर आंदोलन और प्रदर्शन करने वाली पार्टी के देहात जिलाध्यक्ष नवीन शर्मा का बयान से तो इसकी पुष्टि ही होती है। उन्होंने इसे केवल दुर्भाग्यपूर्ण बता कर प्रबंध समिति को गायों की उचित देखभाल की सीख दे कर इतिश्री कर ली है। सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार गायों को मरने देने के लिए गौशाला में उन्हें कैद करके रखना गायों को काटे जाने से कमतर अपराध है? क्या गायों को वध करने के लिए ले जाने वालों पर छापा मार कर गायों को बचाना केवल नाटक मात्र है?
वैसे अंदरखाने की बात ये है कि भाजपा का यह रवैया खुद के घिरने जाने की वजह से है। गौ शाला प्रबंध समिति के मंत्री व भाजपा नेता धर्मीचंद खटोड़ बिजयनगर पालिका के अध्यक्ष भी हैं। इस प्रकार उन पर तो दोहरी जिम्मेदारी थी। इसके बावजूद गौ शाला में गायों की रक्षा पर ध्यान नहीं दिया गया। यानि कि दिया तले ही अंधेरा है। जो गौ रक्षा का नारा चिल्ला-चिल्ला कर देते हैं, उन्हीं की छत्रछाया में गायों की केवल इसी कारण मौत हो रही है, क्योंकि उनके खाने और रखरखाव की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। पहली बात तो ऐसी प्रबंध समिति का वजूद ही नहीं होना चाहिए जो गायों की परवरिश न कर सके। और अगर समिति के पास संसाधनों का अभाव था तो पालिकाध्यक्ष के नाते तो खटोड़ की जिम्मेदारी बनती ही थी कि वे कोई न कोई इंतजाम करते। हालात की गंभीरता और घोर लापरवाही का अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि पालिकाध्यक्ष पद के कांगे्रस प्रत्याशी राधेश्याम खंडेलवाल ने जब पूर्व में गौशाला में कुप्रबंध का मुद्दा उठाया तो उन्होंने एक राजनीतिक साजिश करार दिया था।
इस पूरे प्रकरण से यह साफ सा है जिस भाजपा के नाम पर हिंदूवादी लोगों के वोट हासिल कर पालिकाध्यक्ष बने खटोड़ का उसी भाजपा के सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है। असल में मौजूदा प्रकरण में अकेले खटोड़ ही जिम्मेदार नहीं हैं, अपितु मामले को केवल दुर्भाग्यपूर्ण बता कर पल्लू झाडऩे वाले देहात जिला भाजपा अध्यक्ष नवीन शर्मा के लिए भी यह बेहद शर्मनाक है। होना तो यह चाहिए था कि खुद खटोड़ को ही शर्म आती और वे नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए दोनों पदों से इस्तीफा दे देते। अगर वे ऐसा नहीं करते तो पार्टी को उन पर दबाव बना कर इस्तीफा दिलवाना चाहिए। गायों की खातिर एक पालिकाध्यक्ष यदि शहीद भी हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है, कम से कम यह संदेश तो जाएगा कि पार्टी को गायों के प्रति वाकई पूरी संवेदना है।

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