गुरुवार, 27 जनवरी 2011

भाजपा पार्षद पढऩे गए नमाज, गले पड़ गए रोजे

सामुदायिक भवनों के व्यावसायिक दुरुपयोग के खिलाफ जैसे ही नगर निगम महापौर कमल बाकोलिया नजरे टेढ़ी की हैं, भाजपा पार्षद उबल पड़े हैं। वे एकजुट हो कर गए तो थे महापौर पर दबाव बनाने, मगर उसमें कामयाब होने की बजाय उलटे दलाली का आरोप लेकर लौटे।
अजयनगर स्थित डीजे गार्डन को सील किए जाने के बाद जैसे ही पार्वती उद्यान का नंबर आया वहां के निवासी लामबंद हो गए। नगर निगम चुनाव में उस इलाके के दो वार्ड गंवा चुकी और विपक्ष में होने के बाद भी लंबे समय से चुप भाजपा को भी अपनी हैसियत व अपने परंपरागत वोट बैंक का ख्याल आया। और आव देखा न ताव, केवल ये एजेंडा ले कर बाकोलिया पर चढ़ गए कि उन्होंने यह कार्यवाही शुरू करने से पहले उनको विश्वास में क्यों नहीं लिया। वे यह तो कहने की स्थिति में थे कि नहीं कि सामुदायिक भवन को सील कैसे कर दिया, लेकिन चूंकि तकलीफ हुई तो बहाना बनाया विश्वास में न लेने का। असल में इसमें विश्वास में लेने जैसा कुछ था ही नहीं। यदि सामुदायिक भवनों का दुरुपयोग हो रहा था तो वह गैर कानूनी ही था। इस मामले में कार्यवाही जायज ही थी। इसमें किसी को जानकारी देने या फिर विश्वास में लेने जैसी कोई बात थी ही नहीं। सीधी कार्यवाही की ही दरकार थी। और यही वजह रही कि बाकोलिया ने भी बड़ी ही चतुराई से जवाब दिया कि चोरी होने पर सामने खड़े चोर को पहले पकड़ें या पुलिस को बुलाने जाएं। इस जवाब पर भाजपा पार्षदों की बोलती बंद हो गई।
यहां तक भी ठीक था कि वे अपनी बात रखने के लिए ज्ञापन देने गए थे और ज्ञापन दे भी दिया, मगर तकलीफ तब ज्यादा हुई, जब वहां पहले से मौजूद कांग्रेसी पार्षद भी उनके सामने हो गए। इस भिड़ंत में कांग्रेसियों ने जम कर खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने तो जो आरोप लगाए, उससे भाजपाइयों की हालत रोजे गले पडऩे जैसी हो गई। कांग्रेस पार्षद नौरत गुर्जर ने तो खुल्लम खुल्ला आरोप लगाया कि सामुदायिक भवनों के मामले में भाजपा से जुड़े लोगों व पार्षदों ने दलाली खाई है। इसी कारण सामुदायिक भवनों के मामले में कार्यवाही करने पर पैरवी करने आ गए हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा कि भाजपाइयों ने अब तक जो दलाली खाई है, उसकी वसूली होनी चाहिए।
बहरहाल, भाजपा के इस दबाव से बाकोलिया और सख्त हो गए हैं। कांग्रेस पार्षदों का भी कहना है कि मिशन अनुपम के तहत जो सामुदायिक भवन या पार्क दे रखे हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए और उन्हें किराये पर देने की नीति बनाई जाए। अब देखना ये है कि इस मामले में मुंह की खाए भाजपाई अगला कदम क्या उठाते हंै।

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