गुरुवार, 20 जनवरी 2011

पुरानी दुश्मनी है शाहनी व मटाई के बीच

पीसीसी सदस्य नरेन शहानी भगत व शहर कांग्रेस अभाव अभियोग प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष अशोक मटाई के बीच विवाद एक बार फिर से हरा हो गया है। उनके बीच की राजनीतिक दुश्मनी लगभग वैसी ही शक्ल अख्तियार कर शाश्वत होती जा रही है, जैसी कि डॉ. राजकुमार जयपाल व ललित भाटी के बीच मानी जाती है।
कवंडसपुरा स्थित बीयर बार में गत दिनों कथित रूप से हुई एक युवक की हत्या के मामले में मटाई ने तो साफ तौर पर आरोप लगाया है कि भगत से पुरानी दुश्मनी होने के कारण वे उनके और उनके भाई संजय मटाई के खिलाफ षड्यंत्र रच कर बदनाम कर रहे हैं। हालांकि भगत का कहना है कि मटाई के आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और उनकी मटाई से कोई द्वेषता नहीं है, मगर सच्चाई कुछ और ही है। हो सकता है कि ताजा मामले से उनका संबंध न हो, अत: मटाई द्वारा इसे व्यक्तिगत द्वेषता से जोड़ कर पेश किए जाने के कारण वे मटाई के साथ व्यक्तिगत व राजनीतिक द्वेषता से इंकार कर रहे हैं, मगर सच्चाई यही है कि दोनों के संबंध कई सालों से खराब हैं। और यही वजह है कि मटाई सदैव भगत के पीछे ही पड़े रहते हैं। यदि ये कहा कि उनका एक सूत्री कार्यक्रम ही भगत की टांग खींचना रहता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी
बताते हैं कि दुश्मनी काफी पुरानी है। तभी तो जब नानकराम जगतराय की टिकट काट कर भगत को दी गई थी, तब मटाई नानकराम के साथ हो गए और उन्हीं के चक्कर में आ कर ही नानकराम ने निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ा और करीब छह हजार वोटों का झटका देकर भगत को करीब ढ़ाई हजार वोटों से हरवा दिया। तब से राजनीतिक दुश्मनी परवान चढ़ गई। पिछले विधानसभा चुनाव में तो मटाई ने भगत के खिलाफ मुहिम ही छेड़ दी, जिसका नतीजा ये निकाला कि उनकी टिकट कटवा कर डॉ. श्रीगोपाल बाहेती चुनाव लड़ लिए। अब जबकि भगत यूआईटी चेयरमैन के लिए ट्राई कर रहे हैं तो मटाई ही उन्हें नियुक्त न किए जाने की मुहिम छेड़े हुए हैं।
रहा सवाल ताजा मामले का तो मटाई का यह दावा है कि चाकूबाजी की घटना उसके भाई की बीयर बार नहीं हुई। सच्चाई क्या है यह तो पुलिस अनुसंधान में ही सामने आएगा, मगर इससे वे कैसे इंकार कर सकते हैं कि घनी आबादी में शराब का ठेका व बीयर बार होने के कारण इलाके की शांति व्यवस्था भंग हो रखी है। हो सकता है कि आज जब मटाई के भाई पर आंच आ रही है इस कारण भगत मटाई की पुरानी हरकत का बदला लेने के लिए रुचि ले कर सक्रिय हो गए हों, मगर वे अकेले तो हैं नहीं, उसी इलाके में उनकी होटल है और उसी इलाके के सारे लोग भी बीयर बार के खिलाफ हैं। अब जब कि मटाई चारों ओर से घिर गए हैं तो वे इसे राजनीतिक रंग देकर पुलिस व प्रशासन का ध्यान बांटने की कोशिश कर रहे हैं।
बहुत देर कर दी सुरजीत की सहेलियों ने
इधर शहर महिला कांग्रेस की कार्यकारिणी ने पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सुरजीत कपूर को हटाने के विरोध में सामूहिक इस्तीफा दिया और उधर नई अध्यक्ष के रूप में सबा खान काबिज हो गईं। महज एक दिन का ही फासला रहा इन दोनों घटनाओं में। ऐसा प्रतीत होता है कि सुरजीत कपूर और उनकी सहेलियों को नई नियुक्ति होने का आभास हो चुका था, इस कारण आखिरी दाव खेला, मगर वह हवा में घूमे लट्ठ की माफिक बेकार चला गया।
असल में सुरजीत ने पहले तो वकील दिनेश राठौड़ से हुई सुलह बाद उसके हाथों माफी का पत्र लिखवाया, मगर उसका प्रदेश अध्यक्ष विजय लक्ष्मी विश्नोई पर कोई असर नहीं पड़ा। इसके बाद भी सुरजीत ने दबाव तो खूब बनाया, लेकिन विश्नोई नहीं मानीं। इसकी वजह ये थी कि जब उन्होंने सुरजीत को वकील राठौड़ के मामले में मुकदमा दर्ज होने पर हटाया था तो साथ यह भी कहा कि सुरजीत के खिलाफ लगातार शिकायतें आती रहीं थीं। भले ही सुरजीत ज्वलंत मुद्दे की वजह से बाहर निकाली गईं, लेकिन पुरानी शिकायतों के रहते विजय लक्ष्मी को उनकी बहाली करने में जोर आ रहा था। इसकी एक वजह ये भी रही कि सुरजीत अध्यक्ष पद पर रहते इतना फास्ट दौड़ रही थीं और उनके हौसले इतने बुलंद हो चुके थे कि नगर निगम चुनाव में एक पूरी लॉबी को ही नाराज कर बैठीं। उस लॉबी ने पूरी ताकत लगा दी कि किसी भी प्रकार सुरजीत फिर से काबिज न हो जाए। और उसे कामयाबी मिल गई। रहा सवाल आखिरी दाव का तो उसे चलने में सुरजीत ने काफी वक्त जाया कर दिया। वस्तुत: राजनीति में काम झटके से होते हैं, न कि हलाल से। हकीकत तो यह है कि हलाल भी हलाल की तरह नहीं बल्कि झटके के साथ ही होता है। अगर वकील राठौड़ से सुलह के तुरंत बाद सुरजीत की सहेलियां हल्ला बोलतीं तो कदाचित कामयाबी मिल भी सकती थी, मगर उन्होंने देर कर दी।
हालांकि नई अध्यक्ष नियुक्त हुईं सबा खान एक नया और साफ-सुथरा चेहरा हैं, मगर उनके साथ भी एक किंतु ये जुड़ गया है कि वे कांग्रेस के अग्रिम संगठनों में अल्पसंख्यक वर्ग से चौथी अध्यक्ष हैं। जाहिर तौर उनके खिलाफ शुरू से ही मुहिम छिड़ सकती है। रही कार्यकारिणी की बात तो पुरानी कार्यकारिणी ने सामूहिक इस्तीफा दे कर सबा खान का काम आसान कर दिया है। अब वे अपनी पसंद की महिलाओं को जोड़ कर नई टीम गठित कर सकती हैं। देखना ये है कि सुरजीत ने महिला कांग्रेस को हल्ला ब्रिगेड की तरह जितनी ख्याति दिलाई थी, उतनी वे दिला पाती हैं या नहीं।

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