बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

क्या यही है कांग्रेस राज की कड़ी से कड़ी?

ऐसा प्रतीत होता है कि कड़ी से कड़ी जोड़ कर विकास करने के नाम पर वोट मांगने वाली कांग्रेस के राज में अजमेर निगम व स्वायत्तशासन निदेशालय बीच ही तालमेल नहीं है। एक ओर अजमेर नगर निगम सफाई का नया ठेका करने की कवायद में जुटा था, निविदा की शर्तें तय कर ली थीं और निविदाएं जारी की ही जानी थीं कि दूसरी ओर निदेशालय ने कुछ बड़े शहरों के साथ अजमेर के लिए भी निविदाएं मांग लीं। अफसोसनाक बात ये है कि निगम के अधिकारियों को भी तब पता लगा जब कि इस बाबत एक विज्ञापन अखबारों में छपा। इस पर अधिकारी असमंजस में पड़ गए। उन्होंने निदेशालय से पता किया तो मालूम पड़ा कि उनके स्तर पर जो निविदाएं मांगी गई हैं, उनमें अजमेर का नाम भी शामिल है। तब जा कर अजमेर के अधिकारियों ने नए प्रस्तावित ठेके की फाइल को बंद कर दिया।
सवाल ये उठता है कि क्या निगम व निदेशालय के अधिकारियों के बीच तालमेल नहीं है? तभी तो एक ओर निगम अपने स्तर पर तैयारी कर रहा था और दूसरी निदेशालय ने अपने स्तर पर निविदाएं मांग भी लीं। साफ है कि जयपुर के अधिकारियों ने अजमेर के अधिकारियों को हवा तक न लगने दी। इससे भी बड़ा सवाल ये कि जयपुर के अधिकारियों को वहीं बैठे-बैठे कैसे पता लग गया कि अजमेर में सफाई के लिए कितने संसाधनों की जरूरत है? निगम के सीईओ सी. आर. मीणा के बयान से तो यह भी खुलासा हो रहा है कि जयपुर के अफसरों को वाकई नहीं पता कि अजमेर में वार्डवार कितना कचरा उठाए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा है कि वे शहर के वार्डों में कचरे के आकलन की रिपोर्ट बनवा रहे हैं। अर्थात यह साफ है कि अभी न तो निदेशालय को पता है कि प्रतिदिन कहां कितना कचरा उठवाना है और न ही निविदाएं भरने वाले ठेकेदारों को। ऐसे में स्वीकृत निविदा का क्या हश्र होना है, इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
पूर्व मेयर धमेन्द्र गहलोत सही ही तो कह रहे हैं कि जयपुर बैठे-बैठे कैसे आकलन किया जा सकता है कि अजमेर की गलियां कितनी संकरी हैं और उनसे कचरा उठाने में क्या-क्या परेशानी आती है। उन्होंने तो अपने कार्यकाल में ऐसी कोशिश का विरोध भी किया था। मौजूदा मेयर कमल बाकोलिया भी कह रहे हैं कि सफाई ठेका छोडऩे से पहले अजमेर की भौगोलिक स्थिति समझ ली जाएगी, जिसकी कि रिपोर्ट तैयार की जा रही है। मगर उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि अजमेर की रिपोर्ट को जाने बिना ही निविदाएं कैसे आमंत्रित कर ली गईं। उनके पास इस बात का भी कोई जवाब नहीं होगा कि क्या कड़ी से कड़ी जोड़ कर विकास करना इसी चिडिय़ा का नाम है।
बहरहाल, ठेका अजमेर में छूटे या जयपुर में, सफाई तो अजमेर में होनी ही है, सो होगी, मगर बंदरबांट पर तो निदेशालय ने हाथ मार लिया है। अपने पुराने मेयर गहलोत ने तो अजमेर का हक नहीं मारने दिया, मगर नए मेयर बाकोलिया इसमें फिसड्डी रह गए। भइया, जब कड़ी से कड़ी जुड़ी होगी तो हर कड़ी अपना अलग हिस्सा लेगी ही।

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