बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

ये बाकोलिया को भी है घेरने की कोशिश


वीआईपी जनगणना का मुद्दा जितना उछला है और कांग्रेसी नेता जितना चिल्लाए हैं, उससे प्रतीत तो यह हो रहा है कि कांग्रेस के नेता निगम में बैठे भाजपा मानसिकता के अधिकारियों पर निशाना बना रहे हैं, जबकि सच्चाई ये है कि ऐसा करके मेयर कमल बाकोलिया को भी घेरने की कोशिश की जा रही है।
कांग्रेसी नेता भले ही वे साफ तौर पर बाकोलिया पर हमला नहीं कर रहे, लेकिन उनके आरोप लगाने के ढ़ंग से यह सवाल तो उठ ही रहा है न कि मेयर बाकोलिया निगम में बैठे-बैठे क्या केवल कुर्सी तोड़ रहे हैं? जिस कुर्सी पर बैठे हैं, उसके नीचे हो क्या रहा है, उसका उन्हें होश ही नहीं। कांग्रेसियों के हितों का ध्यान ही नहीं रख सकते तो कुर्सी पर बैठने का मतलब ही क्या है? वे जीते तो कांग्रेस के बैनर पर और कांग्रेसी नेताओं की मदद से हैं, मगर उनकी ही प्रतिष्ठा का कोई ध्यान नहीं रख रहे। ऐसे में बुरा तो लगेगा ही। अधिकारी तो चलो अधिकारी हैं, राज के पूत हैं, जिसका राज आएगा, उसी के पूत हो जाएंगे, गलती होगी तो सीईओ मीणा की तरह माफी मांग लेंगे, मगर बाकोलिया तो कांग्रेसी हैं, कम से कम उन्हें तो ध्यान रखना ही होगा कि उनके रहते कांग्रेसी वीआईपीयों की अवमानना न हो।
कदाचित खुद बाकोलिया को भी यह अहसास हो गया है कि भले ही लापरवाही या बदमाशी निचले स्तर पर हुई है, मगर उनकी भी कोई तो जिम्मेदारी है ही। यही वजह है कि जैसे ही विधायक पति इंसाफ अली के बाद डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी, शहर कांग्रेस अध्यक्ष जसराज जयपाल, शहर महामंत्री महेश ओझा ने हल्ला मचाया तो उन्हें लगा कि मामला तूल पकड़ रहा है और अब उन तक भी आंच आ रही है। इस पर उन्हें यह कहना पड़ा कि सीईओ मीणा के गलती मान लेने के बाद इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।
बहरहाल, शिकायत भले ही जिला कलेक्टर से होती हुई मुख्यमंत्री तक जाए, मगर इंसाफ अली को तो धन्यवाद देना ही होगा कि उन्होंने मुद्दे की शुरुआत कर कम से कम रामचंद्र चौधरी, जसराज जयपाल सहित अन्य पूर्व विधायकों को तो उनके वीआईपी होने का अहसास करवा दिया, वरना वे तो भूल ही गए थे कि वे भी शहर के वीआईपी हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें