बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

ये वीआईपी जनगणना होती क्या है?

पुष्कर की कांग्रेस विधायक और अजमेर की निवासी श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के पति इंसाफ अली ने घर आए जनगणना प्रगणक को भगाया तो बड़ी खबर बन गई। अखबारों में मुद्दा बना तो नगर निगम के सीईओ सी. आर. मीणा तक को सफाई देनी पड़ गई।
असल में देखा जाए तो इंसाफ अली ने प्रगणक को भगा कर क्या गलत कर दिया? नगर निगम में कांग्रेस का मेयर होने के बावजूद अगर भाजपा की जिला प्रमुख व दोनों भाजपा विधायकों को, यहां तक कि अफसरों तक तो जनगणना में वीआईपी ट्रीटमेंट देंगे और पिछले तीस साल से पंचशील में रह रही पुष्कर की कांग्रेस विधायक को नजरअंदाज करेंगे तो भला इसे कैसे बर्दाश्त किया जाएगा? माना कि जनगणना राष्ट्रीय कार्यक्रम है और उसमें भाग लेना हर नागरिक का कर्तव्य है और जनप्रतिनिधियों की तो उससे भी बड़ी जिम्मेदारी है, मगर इसका मतलब ये भी तो नहीं कि कुछ को तो आप वीआईपी मानेंगे और कुछ को आप भेड़-बकरियों की तरह गिनेंगे। विशेष रूप से तब जब कि केन्द्र और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, निगम में मेयर कांग्रेस का है और शहरी सीमा में कांग्रेस की विधायक एक ही हैं। केवल उस इकलौती विधायक को ही नजरअंदाज करेंगे तो गुस्सा आएगा ही। माना कि विधायक महोदया श्रीमती इंसाफ को तो अपनी मर्यादा का ख्याल रखना है, विशेष रूप से विधानसभा सत्र के चलने के दौरान, इस कारण सार्वजनिक रूप से गुस्से का इजहार नहीं कर सकतीं, मगर उनके पति जनाब इंसाफ अली तो इसे मुद्दा बना ही सकते हैं। वे निगम प्रशासन के रवैये पर भी सवाल खड़ा कर सकते हैं। अधिकारी अगर विपक्षी दलों के नेताओं को तो राजी रखने के लिए उन्हें ज्यादा तवज्जो देंगे और कांग्रेसी नेताओं को इस कारण नजरअंदाज कर देंगे कि वे तो अपनी सरकार के होते हुए विरोध नहीं दर्ज करवा नहीं सकते, तो ऐसे में प्रगणक को भगा कर ही ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। उन्होंने तो एक कदम आगे बढ़ कर इसे अधिकारियों का भाजपा पे्रम तक करार दे दिया। यह रवैया मेयर कमल बाकोलिया को भी इशारा है कि कहीं वे केवल हंगामा करने वालों भाजपाइयों को ही याद न रखें। हम कांग्रेसी हैं तो इसका मतलब ये भी नहीं कि चुप ही रहेंगे।
बहरहाल, गुस्से का इजहार हो गया और अखबारों में छप भी गया। निगम के सीईओ सी.आर. मीणा को भी गलती का अहसास हो गया है। ज्यादा अहसास इस वजह से हुआ कि मामूली सी लापरवाही ने उन्हें भाजपा के खेमे में ला खड़ा कर दिया। आखिरकार उन्हें मानना ही पड़ा कि गलती से श्रीमती इंसाफ को वीआईपी जनगणना में शामिल नहीं किया गया, मगर सवाल ये उठता है कि ये वीआईपी जनगणना क्या होती है? जनगणना तो जनगणना है। उसमें कैटेगिरी का तो कोई प्रावधान ही नहीं है। जनगणना की प्रक्रिया में ये तो कहीं नहीं लिखा गया कि पहले वीआईपी की जनगणना की जाएगी। या फिर अलग से की जाएगी। जनगणना इस बात की भी नहीं हो रही कि कितने आम लोग हैं और कितने खास। ऐसा भी नहीं कि वीआईपी का जनगणना फार्म अलग से छपवाया गया हो। अलबत्ता निगम के प्रथम नागरिक होने के नाते सिंबोलिक रूप से मेयर कमल बाकोलिया से जनगणना शुरू की जाए, यह तो फिर भी समझ में आ जाता, मगर सारे जनप्रतिनिधियों व अफसरों को भी वीआईपी मान कर जनगणना करना हमारी मानसिकता को उजागर करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जनगणना जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम में वीआईपी को खुश करने का फंडा निकाल लिया गया। इस मानसिकता को क्या नाम दिया जाए, अपुन को तो समझ में नहीं आता, आप ही नामकरण कर दीजिएगा।

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