गुरुवार, 24 मार्च 2011

बाबा रामदेव के शिष्यों का धरना हो गया फ्लॉप


भारतीय संस्कृति के पुरातन योग को पुन: प्रतिष्ठापित करने वाले प्रख्यात योग गुरू बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार के खिलाफ और विदेशों में जमा कालाधन भारत लाने के लिए छेड़े गए अभियान का देशभर में चाहे जितना हल्ला हो, अजमेर में तो उसे कोई सफलता मिलती दिखाई दे नहीं रही। बाबा रामदेव की प्रेरणा से गठित पतंजली योग समिति एवं भारत स्वाभिमान की ओर से हाल ही इस सिलसिले में धरना देने की तैयारी करने के लिए आयोजित एक बैठक केवल इसी कारण असफल हो गई क्यों कि उसमें बुलाए गए शहर के प्रतिष्ठित नागरिक आए ही नहीं। पूत के पग पालने में ही दिख गए थे। दो दिन बाद कलेक्ट्रेट पर आयोजित धरना भी पूरी तरह से फ्लॉप हो गया। जितना बड़ा बाबा रामदेव का नाम है, जितनी बड़ी वे आंधी नजर आ रहे हैं और जितना उनको समर्थन मिलता दिखाई देता है, उसके मुकाबले तो धरना वाकई फ्लॉप था। कुल मिला कर वर्तमान काल में सर्वाधिक दैदीप्यमान सूर्य की भांति चमक रहे बाबा रामदेव का नाम अजमेर में तो डूबो ही दिया गया, फिर भले ही उसके चाहे जो कारण हों।
दरअसल पतंजली योग समिति एवं भारत स्वाभिमान की स्थानीय इकाई की जिम्मेदारी जिन लोगों के हाथों में है, उनकी शहर पर कोई पकड़ नहीं है। वे सज्जन तो बहुत हैं, मगर उनकी यही सज्जनता अभियान में बाधक बन रही है। ऐसे धरने-प्रदर्शनों का मैनेजमेंट करने के लिए चतुर लोगों की जरूरत होती है, जो कि उनके पास हैं नहीं। चूंकि बाबा रामदेव का उद्भव आर्य समाज से हुआ है, इस कारण कुछ आर्य समाजी जरूर उनके साथ हैं, लेकिन समान विचारधारा के हिंदूवादी संगठन और कम से कम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सर्वाधिक हल्ला मचाने वाली भाजपा उनको कोई सहयोग नहीं कर रही। इक्का-दुक्का भाजपाई जरूर नजर आ रहे थे। हालांकि अब तो शहर भाजपा की कमान प्रमुख आर्य समाजी पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत के हाथ में है, इसके बावजूद उन्होंने पार्टी की लक्ष्मण रेखा को पार करना मुनासिब नहीं समझा। हालांकि पिछले दिनों जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत अजमेर थे, तब मीडिया से बातचीत में संघ के एक पदाधिकारी ने कहा था कि संघ बाबा रामदेव के अभियान का समर्थन करता है, इसके बावजूद संघ व भाजपा के कार्यकर्ताओं ने धरने में कोई रुचि नहीं ली। संघ व भाजपा का यह रवैया साफ दर्शाता है कि ऊपर से भले ही भ्रष्टाचार के खिलाफ वे बाबा रामदेव के अभियान का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर उस अभियान के जोर पकडऩे पर बाबा रामदेव के मजबूत होने पर आने वाली दिक्कत के प्रति भी सतर्क हैं। वे जानते हैं कि अगर बाबा रामदेव ने अपने ऐलान के मुताबिक अलग राजनीतिक दल बनाया तो सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को ही होगा, क्यों कि बाबा रामदेव के साथ जाने वाले अधिसंख्य मतदाता हिंदूवादी मानसिकता के होंगे। वैसे भी सीधी-सीधी बात है, अगर भाजपा को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना होगा तो वह अपने बैनर का ही इस्तेमाल करेगी न, बाबा रामदेव के शिष्यों को अनुसरण क्यों करेगी। उनका अनुसरण करने पर क्रेडिट उनके खाते में ही जाएगी, भाजपा को क्या मिलेगा-कद्दू? भाजपा के पास खुद अपनी तगड़ी ताकत है। वह जिस दिन चाहेगी, मुखर हो जाएगी और उसका राजनीतिक लाभ भी खुद ही उठाएगी। बहरहाल, धरने की असफलता से बाबा रामदेव के अनुयाइयों को संभव है आइना दिखाई दे गया होगा। भविष्य में ऐसा आयोजन करने से पहले उन्हें बड़ी भारी मशक्कत करनी होगी।

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