गुरुवार, 8 सितंबर 2011

कांग्रेस की फूट पड़ रही है मेयर पर भारी

नगर निगम की नवगठित समितियों पर हुआ विवाद
अजमेर। कुछ तो अजमेर नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया में राजनीतिक सूझबूझ की कमी है और कुछ शहर कांग्रेस की फूट उन पर भारी पड़ रही है। तकरीबन दस साल बाद नियुक्त नए शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता भी कोई समाधान नहीं निकाल पाए हैं, जबकि वे इसी प्रयास में लगे हैं कि कैसे बाकोलिया को मजबूत किया जाए।
असल में हुआ ये कि बाकोलिया ने जैसे ही लंबे अंतराल के बाद नगर निगम की विभिन्न कमेटियों का गठन किया तो, उस पर विवाद हो गया। बवाल भी इतना ज्यादा हुआ है कि बाकोलिया से संभाले नहीं संभल रहा है। गर निगम में बहुमत वाली भाजपा के पार्षद ही विरोध करते अथवा समितियों में रहने को राजी नहीं होते तो बात समझ में आ सकती थी, मगर यहां तो अल्पमत वाली कांग्रेस के पार्षद ही कब्जे में नहीं आ रहे। उन्होंने न केवल पार्टी हाईकमान और सरकार के स्तर पर विरोध दर्ज करवाया है, अपितु सार्वजनिक रूप से भी बाकोलिया के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ पार्षद मोहनलाल शर्मा ने तो विभिन्न कमेटियों के सदस्य पद से बाकायदा इस्तीफा दे दिया है, जबकि कई पार्षदों ने कमेटी अध्यक्षों और सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा कर रखी है। इनमें विजय नागौरा, श्रवण टोनी, सुरेश भड़ाना, नौरत गुर्जर, मुबारक अली चीता, सोनल मौर्य, ललित गुर्जर, सुनीता केन, जिया देवी, कमल बैरवा आदि शामिल हैं।
शर्मा ने तो इस्तीके साथ सीधे मेयर पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि उनकी ईमानदारी और वफादारी पर संदेह किया गया है। शर्मा ने लिखा है कि आपने अपनी सेना में ईमानदार और कुशल सेनापतियों की टीम तैयार की है। इसमें मुझे भी कुछ कमेटियों में सदस्य नियुक्ति किया गया है। आपने कमेटियों में योग्यतानुसार पद देने की बात कही है। शायद मुझ में ईमानदारी और वफादारी की कमी थी। इस वजह से मुझे सदस्य बनाया गया है। यह बात सही की 55 पार्षदों को संतुष्ट नहीं कर सकते हैं। इसलिए आप मुझ से अधिक योग्य पार्षद को सदस्य बनाकर मुझे पद से मुक्त करें। स्पष्ट है कि शर्मा को तकलीफ ये है कि न तो उनकी वरिष्ठता का सम्मान किया गया और न ही उनकी सक्रियता को कोई तवज्जो दी गई। समझा जाता है कि नगर निगम के कांग्रेस व भाजपा के मिला कर कुल 55 में से 45 पार्षद बाकोलिया का विरोध कर रहे हैं। यदि ये सभी इस्तीफा दे देते हैं तो इन कमेटियों के कोई मायने ही नहीं रह जाएंगे।
असल में कांग्रेस में अंतर्कलह तो लंबे समय से है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस स्वायत्तशासी संस्था पर बीस साल तक भाजपा का कब्जा बना हुआ है। यहां तक कि ताजा निगम चुनाव में भी भाजपा के पार्षद ज्यादा जीत कर आए। इत्तफाक से पहली बार सीधे हुए मेयर के चुनाव में केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के प्रभाव और भाजपा प्रत्याशी डॉ. प्रियशील हाड़ा के कमजोर होने के कारण बाकोलिया जीत गए। हालांकि बाकोलिया ने जीत कर कांग्रेस की इज्जत तो बचा ली, मगर अपनी पार्टी ही उनके साथ नहीं है। हालांकि यह सही है कि खुद बाकोलिया में भी नेतृत्व क्षमता का अभाव है, लेकिन पार्टी भी उनका पूरी तरह से साथ नहीं दे रही है। लगता तो ये भी है कि सरकार के स्तर पर भी बाकोलिया को कोई तवज्जो नहीं मिल रही। तभी तो माधव नगर कॉलोनी का जमीन आवंटन रद्द करने की कार्यवाही तक सरकार ने मेयर को विश्वास में लिए बिना सीधे प्रशासन के जरिए कार्यवाही करवाई। इस मामले में पहले से विरोध में चल रहे कांग्रेसियों ने यह कह कर बाकोलिया का साथ नहीं दिया कि वे सरकार के आदेश के खिलाफ कैसे जा सकते हैं।
दरअसल बाकोलिया के केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट का पल्लू थामने से पायलट विरोधी लॉबी स्वत: ही उनके भी खिलाफ हो गई। हालांकि पायलट ने काफी जद्दोजहद के बाद अपनी पसंद के महेन्द्र सिंह रलावता को शहर अध्यक्ष तो बनवा लिया, जो कि बाकोलिया के शुभचिंतक और सलाहकार हैं, मगर वे खुद अपनी जाजम ही ठीक से नहीं बिछा पाए हैं। वर्षों से काबिज कांग्रेसी नेता अपदस्थ होने के बाद सुर में सुर नहीं मिला रहे। बाकोलिया की बदकिस्मती ये रही कि उन्होंने भी ऐसे वक्त में कमेटियों का गठन कर दिया, जबकि शहर कांग्रेस का पुनर्गठन ही नहीं हो पाया है। जाहिर तौर पर कांग्रेस की गुटबाजी उन्हें भारी पड़ा।
बहरहाल, मेयर बाकोलिया के प्रति नाराजगी हाईकमान तक पहुंच चुकी है, मगर वह भी असमंजस में है कि क्या समाधान निकाला जाए। अनुशासनात्मक कार्यवाही इसलिए नहीं की जा सकती कि बोर्ड में कांग्रेस पहले से ही कमजोर स्थिति में है।
अब बात करें कमेटियों के वजूद के बारे में तो इसका फैसला सरकार की इच्छा पर निर्भर रहेगा। नगर निगम एक्ट में सात कमेटियां गठित करने का प्रस्ताव है। निगम चाहे तो नियम के तहत नौ कमेटियां गठित कर सकता है। कमेटियां कम और पार्षद अधिक होने की वजह से मेयर ने 16 कमेटियों का गठन का प्रस्ताव सरकार को भेजा। मेयर ने प्रस्ताव में सदस्यों के नाम के साथ नियमों का अनुमोदन भी करने आग्रह किया है। यदि सरकार सिर्फ नियमों का अनुमोदन करती है तो मेयर को कमेटी में रखे सदस्यों का अनुमोदन साधारण सभा में करना होगा। बोर्ड में कांग्रेस अल्पमत में होने के कारण उनका अनुमोदन ही नहीं हो पाएगा। यदि सरकार नियम के साथ सदस्यों के नाम का अनुमोदन कर देती है तो मेयर को प्रस्ताव साधारण सभा में नहीं रखना पड़ेगा। तब जा कर कमेटियां वजूद में आ पाएंगी। देखते हैं कि सरकार विवाद खत्म करने के लिए क्या रास्ता निकालती है।

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