मंगलवार, 11 मार्च 2025

जब विमोचन समारोह बन गया अजमेर पर चिंतन का यज्ञ

अजमेर के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि अदद एक पुस्तक का विमोचन समारोह अजमेर की बहबूदी पर चिंतन का यज्ञ बन गया, जिसमें अपनी आहूति देने को भिन्न राजनीतिक विचारधारों के दिग्गज प्रतिनिधि एक मंच पर आ गए। यह न केवल राजनीतिकों, बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों व गणमान्य नागरिकों एक संगम बना, अपितु इसमें अजमेर के विकास के लिए समवेत स्वरों में प्रतिबद्धता भी जाहिर की गई।

वीडियो तकरीबन 14 साल पुराना है, मगर रोचक है। देखने केलिए यह लिंक क्लिक कीजिएः-

https://youtu.be/zeiBMI2b39g 

तकरीबन 11 साल पहले दिसंबर माह की 17 तारीख का वाकया आपसे साझा करने का मन हो गया। बुधवार, 17 दिसंबर 2010 की

सुबह क्षितिज पर उभरी सूर्य रश्मियों की ऊष्मा से मिली गर्मजोशी का यह मंजर बना था अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक के विमोचन समारोह में। पहली बार एक ही मंच पर अजमेर में कांग्रेस के दिग्गज केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट व भाजपा के भीष्म पितापह पूर्व सांसद औंकारसिंह लखावत को मधुर कानाफूसी करते देख सहसा किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि विरोधी राजनीतिक विचारधारा के दो दिग्गज अजमेर के विकास की खातिर अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताएं त्याग कर एक हो सकते हैं। मंच पर मौजूद प्रखर वक्ता पूर्व उप मंत्री ललित भाटी व धारा प्रवाह बोलने में माहिर पूर्व सांसद प्रो. रासासिंह रावत संकेत दे रहे थे कि उनमें भले ही वैचारिक भिन्नता है, मगर अजमेर के लिए उनमें कोई मनभेद नहीं है।

जिह्वा पर सरस्वती को विराजमान रखने वाले लखावत ने जिस खूबसूरती से अजयमेरु नगरी के गौरव व महत्ता का बखान किया, उससे समारोह में मौजूद सभी श्रोता गद्गद् हो गए। उन्होंने खुद उत्तर देते सवाल उठाए कि अगर अजमेर खास नहीं होता तो क्यों सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा इसी पावन धरती पर आदि यज्ञ करते? इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए दुनिया में मक्का के बाद सर्वाधिक श्रद्धा के केन्द्र ख्वाजा गरीब नवाज ने सुदूर ईरान देश से हिंदुस्तान में आ कर सूफी मत का प्रचार-प्रसार करने के लिए पाक सरजमीं अजमेर को ही क्यों चुना? उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अजमेर की विकास यात्रा का भागीदारी बनने में कोई भी राजनीतिक विचारधारा बाधक नहीं बन सकती। लखावत के बौद्धिक और भावपूर्ण उद्बोधन से मुख्य अतिथि पायलट भी अभिभूत हो गए और उनके मुख से निकला कि कोई भी शहर इस कारण खूबसूरत नहीं होता कि वहां ऊंची-ऊंची इमारतें हैं या सारी भौतिक सुविधाएं हैं, अपितु वह सुंदर बनता है वहां रहने वाले लोगों के भाईचारे और स्नेह से। पायलट ने केन्द्रीय मंत्री के नाते अजमेर को उसका पुराना गौरव दिलाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। मुख्य वक्ता की भूमिका निभा रहे भाटी ने उन सभी बिंदुओं पर प्रकाश डाला, जिन पर ध्यान दे कर अजमेर को और अधिक गौरव दिलाया जा सकता है।

समारोह में मौजूद सभी गणमान्य नागरिक इस बात से बेहद प्रसन्न थे कि अजमेर और केवल अजमेर के लिए चिंतन का यह आगाज विकास यात्रा के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

सचिन पायलट की सदाशयता समारोह में यकायक तब झलकी, जब उन्होंने सामने श्रोताओं की पहली पंक्ति में बैठे पूर्व भाजपा सांसद प्रो. रासासिंह रावत को मंच पर आदर सहित आमंत्रित कर अपने पास बैठा लिया। वे पूरे समारोह के दौरान उनसे अजमेर के विकास के बारे में लंबी गुफ्तगू करते रहे। साफ झलक रहा था कि नई पीढ़ी का सांसद पांच बार सांसद रहे पुरानी पीढ़ी के प्रो. रावत को अपेक्षित सम्मान देने के लोक व्यवहार को भलीभांति जानता है। उन्होंने साबित कर दिया कि वरिष्ठता के आगे राजनीतिक प्रतिबद्धता गौण हो जाती है। पायलट के ऐसे सहज व्यवहार को देख कर पानी की कमी के कारण पिछड़े अजमेर के वासियों की आंख में पानी तैरता दिखाई दिया।

लब्बोलुआब, वह दिन सांप्रदायिक सौहार्द्र की धरा अजमेर में पल-बढ़ रहे लोगों के बीच अजमेर की खातिर सारे मतभेद भुला कर एकाकार होने का श्रीगणेश कर गया।

दुर्भाग्य से हमारे बीच अब प्रो रावत व श्री भाटी नहीं हैं। आज जब अजमेर स्मार्ट सिटी बनने की दिषा में कदम रख चुका है, उम्मीद की जानी चाहिए विकास के सवाल पर हमारे राजनेताओं में कोई मतैक्य नहीं होगा। 


रविवार, 9 मार्च 2025

राजीव दत्ता के अभिनंदन के निहितार्थ

राजस्थान कुश्ती संघ के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर अजमेर में खेल एवं व्यापार संघों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला के विशेषाधिकारी राजीव दत्ता का जोरदार अभिनंदन किया। शहर भर में बडे बडे हॉडिंग्स लगाए गए। उन्हें देख कर सभी अचंभित थे। आखिर अजमेर से उनका क्या कनैक्शन हो सकता है? अभिनंदन की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अजमेर दक्षिण की विधायक श्रीमती अनिता भदेल द्वारा भी स्वागत किया गया। अभिनंदन समारोह में अजमेर जिला केमिस्ट एसोसिएशन की खास भूमिका रही। यह ठीक है कि दत्ता के अजमेर से राजनीतिक एजेंडे की कल्पना बेमानी और वाहियात लगती है, मगर इतना तय है कि उनका अजमेर आगमन कुछ न कुछ निष्पत्ति लाएगा ही। इस अर्थ प्रधान युग में कोई यूं ही तो किसी का इतना बडा अभिनंदन नहीं किया करता।


सुनिल पारवानी अजमेर में क्यों भेजे गये हैं?

गत 3 मार्च को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव डॉ सुनिल पारवानी के फेसबुक अकाउंट पर शाया एक पोस्ट से यह जानकारी सामने आई कि उन्हें अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का कोऑर्डिनेटर बनाया गया है। चूंकि अब तक इस नियुक्ति का आधिकारिक साक्ष्य कहीं नजर नहीं आया है, इस कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं में कौतुहल है। बेशक, उस पोस्ट पर अनेकों ने उन्हें बधाई दी है, मगर सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं आने की वजह से कुछ असमंजस होता है। लेकिन खुद उनके अकाउंट पर दी गई जानकारी पर अविश्वास करने का कोई कारण भी नहीं है। बहरहाल, उपलब्ध जानकारी को आधार मान कर यह वीडियो बनाया है.-

दोस्तो, नमस्कार। राजस्थान प्रदेष कांग्रेस कमेटी के महासचिव डॉ सुनिल पारवानी को संगठन में अहम जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें अजमेर उत्तर विधानसभा क्षेत्र का कोऑर्डिनेटर बनाया गया है। इसके खास मायने समझे जा रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इस सिंधी बहुल सीट पर पिछले चार चुनावों में गैर सिंधी को टिकट दिए जाने के कारण सिंधी समुदाय में नाराजगी है। अधिसंख्य सिंधी मतदाता लामबंद हो कर भाजपा के पक्ष में चले जाते हैं और कांग्रेस हार जाती है। समझा जाता है कि पारवानी को सिंधी मतदाताओं को साधने के लिए यह अहम जिम्मेदारी दी गई है। आपको ख्याल में होगा कि इससे पहले भी उन्हें अजमेर का सह प्रभारी बनाया गया तो यही समझा गया कि उन्हें चुनाव से दो साल पहले इसी कारण यहां भेजा गया है, ताकि चुनाव के लिए जमीन तैयार कर सकें। कुछ लोग तो उन्हें अजमेर उत्तर का प्रबल दावेदार मानते थे। उन्होंने जब सिंधी समाज की कुछ बैठकें लीं तो यही माना गया कि वे चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि वे बैठकें स्थानीय सिंधी नेताओं ने पारवानी से नजदीकी जाहिर करने और अपना जनाधार दिखाने के लिए की थीं। अगर यह माना जाए कि उन्हें भावी विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए अभी से तैनात किया गया है तो कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी। उसकी वजह यह है कि कांग्रेस के पास फिलवक्त दमदार स्थानीय दावेदार नहीं है। पारवानी पहले भी अजमेर में काम कर चुके हैं और साधन संपन्न भी हैं। वे पूर्व प्रदेष कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के करीबी माने जाते हैं। उनका कद तब और बढ गया, जब उन्हें विधानसभा चुनाव से चंद दिन पहले राजस्थान सिंधी अकादमी को अध्यक्ष बनाया गया।

प्रसंगवष बता दें कि वे जयपुर की सिंधी बहुल सांगानेर सीट के भी दावेदार माने जाते हैं। पारवानी एस पी एल के अध्यक्ष रहे हैं। उनकी पहल पर एस पी एल की ओपनिंग सेरेमनी जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम पर हुई थी। जाहिर तौर जमीन पर पकड़ और लोकप्रियता के लिए इतने बडे आयोजन में भूमिका निभाई।

https://youtu-be/LzB9lr4gqh0

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

क्या ख्वाम-ख्वाह ही बने हैं अजमेर में खामेखां के तीन दरवाजे?

अजमेर में जलदाय महकमे के पूर्व अधीक्षण अभियंता, जो कि इन दिनों दिल्ली में रहते हैं, का अजमेर से खास स्नेह है। वे सुपरिचित हास्य-व्यंग्य लेखक हैं। हाल ही उन्होंने एक व्यंग्य लेख सोशल मीडिया पर जारी किया है। लेख बहुत दिलचस्प है, लिहाजा आप से साझा किए देते है।

अजमेर, सूफी संत ख्वाजा मोइनुध्दीन चिश्ती की दरगाह, तीर्थगुरू पुष्कर और जैनधर्म संबंधी सोनीजी की नसियां से ही मशहूर नहीं है. इसकी प्रसिध्दि का एक बडा कारण आनासागर की पाल, बारहदरी पर बने खामेखां के तीन दरवाजें भी है. इन्हें खामेखां नामक किसी मुगल सरदार ने बनवाया या यह ख्वाम-ख्वाह (फिजूल) ही बने हुए है ? यह बात प्रसिध्द इतिहासकारों कर्नल टाड, गौरी शंकर हीरा चंद ओझा आदि की चर्चा का विषय तो रहा ही है लेकिन बदली परिस्थितियों में इसे सीबीआई की जांच का विषय भी बनाया जा सकता है. लोगों का ध्यान बंटाने के लिए जब रसगुल्ला बंगाल का है या उडीसा का, पर बहस हो सकती है तो खामेखां के तीन दरवाजों पर बहस वाजिब ही है. 

बताते है कि जब पृथ्वीराज के नाना महाराजा अजयपाल ने अजमेर को बसाया था, पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली के साथ साथ इसे अपनी राजधानी बनाया था, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने इसे अपना मुकाम बनाया और अकबर जब औलाद की कामना में, सजदा करने यहां आया तब, इन दरवाजों का कही कोई हवाला नहीं है. चाहे तो आप आइने-अकबरी पढ लें या जहांगीर-नामा. यह भी हो सकता है कि जहांगीर-शाहजंहा के समय जब बारहदरी, चश्मेशाही, पीताम्बर की गाल इत्यादि बने तब इसका निर्माण हुआ हो. कुछ तो यहां तक कहते है कि इन दरवाजों की वजह से अजमेर,  सदा रजवाडों से मुक्त रेजिडेन्सी रहा है (यहां प्रशासक, कमिश्नर होता था). 

मदार गेट स्थित नगर परिषद के टाउन हाल में कभी प्रसिध्द क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा की तस्वीर टंगी होती थी जो यह दर्शाता है कि अजमेर का स्वतंत्रता आंदोलन में कितना महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इतना ही नही स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री, लौह पुरूष, सरदार पटेल ने इसे राजपुताने से अलग सी स्टेट के रूप में रखा. 1 नवम्बर 1956 को इसका विलय राजस्थान में हो गया. 

कुछ क्षेत्रों में चर्चा यह भी है कि यह दरवाजें तीन ही क्यों है, ज्यादा भी तो हो सकते थे ? क्या मुगलकाल में भी यह नारा बुलन्द था “दो या तीन बस !” इस हिसाब से तो यह अच्छा हुआ कि यह दरवाजें तब बन गए वरना बाद में तो यह नारा लगने लगा था “.....दो ही अच्छे” मतलब यह कि एक जाने का और एक आने का दरवाजा.  

कुछ जानकारों का अनुमान है कि अजमेर में तीन दरवाजें होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि यहां सदा से ही तीन का बडा महत्व रहा है.

https://www.youtube.com/watch?v=ORDPKhcqY5w


बुधवार, 5 मार्च 2025

अजमेर शहर को बडे रंगमंच की दरकार

अजमेर में हालांकि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जवाहर रंगमंच है, जिसकी सिटिंग केपिसिटी तकरीबन आठ साढे आठ सौ है, मगर वह ताजा जरूरतों के मुताबिक बहुत छोटा है। षहर को 1500 से 2000 सीटों वाले रंगमंच की सख्त दरकार है। असल में अरसे पहले जब वरिश्ठ वकील राजेष टंडन ने रंगमंच की मांग उठाई थी, उसके भी दस साल बाद वह पूरी हुई। जब जवाहर रंगमंच बन कर पूरा हुआ तो महसूस किया गया कि यह अपेक्षा से छोटा है, मगर फिर भी जैसे तैसे कार्यक्रम होने लगे। मगर छोटी-मोटी संस्थाओं के लिए वह सपना है। केवल संपन्न संस्थाएं ही उसमें कार्यक्रम का पा रही हैं। आजकल तो वह भी बंद है। उसका रिनोवेषन हो रहा है। इस कारण आठ सौ-हजार दर्षकों का कार्यक्रम करने वाली संस्थाएं परेषान हैं। उन्हें मजबूरी में कम दर्षक संख्या वाले स्थलों का विकल्प के रूप में चुनना पड रहा है। पिछले साल आचार संहिता के कारण जवाहर रंगमंच संस्थाओं के लिए उपलब्ध नहीं था, इस कारण उन्हें मेडिकल कॉलेज के हॉल में कार्यक्रम करना पडा। वह भी बहुत महंगा है। सीटें भी रंगमंच से कम हैं। इस बार फिर वही स्थिति है। माध्यमिक षिक्षा बोर्ड स्थित राजीव सभागार भी महंगा है। उसमें सीटें और भी कम हैं। हालांकि जीसीए का सभागार सीटों के लिहाज से ठीक-ठाक है, मगर साधन सुविधाएं कम हैं। सतगुरू ग्रुप का हॉल आधुनिक है, मगर षहर से इतनी दूर है कि कोई भी संस्था वहां कार्यक्रम करने का सोच भी नहीं सकती। सूचना केन्द्र में ओपन थियेटर में सिटिंग केपेसिटी कम है। पहले जरूर केपेसिटी ठीक-ठाक थी, मगर नया बनने के बाद केपेसिटी कम हो गई है। कुल जमा हालत ये है कि अच्छा व बडा कार्यक्रम करने के लिए अजमेर में जगह ही नहीं है। जो हैं, वे सामान्य संस्थाओं के बजट से बाहर। ऐसे में इस षहर को ऐसे बडे रंगमंच की सख्त जरूरत है, जिसमें सांस्कृतिक संस्थाएं रियायती दर पर कार्यक्रम कर सकें। उसके अभाव में अजमेर में सांस्कृतिक गतिविधियां कम होती जा रही हैं। अफसोसनाक है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर करोडों-अरबों के काम तो हुए, मगर बडा रंगमंच बनाने की न तो किसी राजनेता ने सोची न ही अफसरों ने।