मंगलवार, 13 मार्च 2012

रैली को हरी झंडी शबा खान ने दिखाई या माथुर ने?


अजमेर। चिकित्सा विभाग द्वारा कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए बीते मंगलवार को निकाली गई स्कूली बच्चों की रैली को लेकर एक विरोधाभास उत्पन्न हो गया है। एक ओर सूचना और जनसंपर्क महकमे की ओर से जारी प्रेस नोट में बताया गया है कि चिकित्सा विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. वी. के. माथुर ने राजकीय महात्मा गांधी स्कूल से लगभग 200 छात्र-छात्राओं की बेटी बचाओ अभियान रैली को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया। दूसरी ओर विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति में लिखा है कि रैली को शहर महिला कांग्रेस अध्यक्ष शबा खान ने हरी झंडी दिखाई। दो अलग-अलग माध्यमों से जारी समाचारों के कारण अखबारों में भी अलग-अलग खबरें लगी हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वास्तव में हरी झंडी दिखाई किसने?
दिलचस्प बात एक ओर है। वो ये कि सूचना व जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी समाचार में शबा खान की मौजूदगी एक महिला समाज सेविका के रूप में दर्शाई गई है, जबकि चिकित्सा महकमे की ओर से जारी फोटो में शबा खान ही झंडी दिखा रही हैं। अर्थात महकमे ने अपनी ओर से तो अलग खबर जारी की और सूचना व जनसंपर्क विभाग को गलत सूचना दी। अव्वल तो यदि चिकित्सा महकमे को अपनी ओर से खबर जारी करनी थी तो उसे सूचना व जनसंपर्क विभाग को अलग खबर जारी करने को नहीं कहना था अथवा अपनी खबर भेज कर उसे सभी समाचार पत्रों को भेजने का आग्रह करना था। असल में व्यवस्था भी यही है। चिकित्सा महकमे के पास अपना अलग पीआरओ नहीं है और उसे जनसंपर्क विभाग के जरिए की अपनी सूचनाएं जारी करवानी चाहिए। मगर असावधानी बरते जाने के कारण सरकारी माध्यमों से जारी खबरों में विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो गई।
उससे अहम सवाल ये है कि जब यह रैली आयोजित ही चिकित्सा महकमे ने की गई थी तो उसमें एक राजनीतिक दल के पदाधिकारी से हरी झंडी क्यों दिखवाई गई? वे कोई जनप्रतिनिधि भी नहीं हैं। यानि कि महकमा शबा शान के प्रभाव में है अथवा मकहमे के अधिकारी कांग्रेस राज के कारण कांग्रेसियों की मिजाजपुर्सी करने में लगे हुए हैं। इस महकमे पर पूर्व में भी राजनीतिक प्रभाव में रहने के आरोप लग चुके हैं। अफसोस कि शबा शान को खुश करने के लिए डॉ. माथुर ने अपने पद की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा। इस मामले में सूचना व जनसंपर्क विभाग पूरी सावधानी बरतता है। अगर किसी सरकारी कार्यक्रम में राजनीतिक पदाधिकारी मौजूद होते हैं तो अव्वल तो उनका नाम देने से परहेज रखता है। अगर पदाधिकारी महत्वपूर्ण हो तो वह उनके राजनीतिक पद की बजाय केवल नाम का ही उल्लेख करता है ताकि सरकारी विभाग पर राजनीतिकरण करने का आरोप न लगे। खैर, ताजा विरोधाभास के बाद उम्मीद की जानी चाहिए चिकित्सा महकमा इस प्रकार राजनीति में सम्मिलित होने से बचेगा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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