कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के शहर जिलाध्यक्ष पद पर मुबारक खान की नियुक्ति पर हो रहे विवाद से मुबारक की प्रतिष्ठा पर असर पड़े न पड़े, उनके भाई इंसाफ अली व भाभी शिक्षा राज्य मंत्री श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ पर जरूर पड़ रहा है। जहां तक मुबारक का सवाल है, वे तो अब तक निर्विवाद थे ही, इंसाफ व नसीम भी अल्पसंख्यकों में निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित थे। अगर कहीं विरोध था भी तो वह मुखर नहीं था। किसी ने न तो अब तक हिम्मत जुटाई थी और न ही किसी को विवाद करने का मौका मिला था। लेकिन मुबारक के नियुक्त होते ही यह उजागर हो गया है कि कांग्रेस में कई अल्पसंख्यक उनके खिलाफ हैं।
असल में जहां तक मुबारक की नियुक्ति का सवाल है तो यह साफ जाहिर है कि वे अपने भाई-भाभी के दम पर ही अध्यक्ष बन कर आए हैं। ऐसे में विरोध हो रहा है तो यह केवल उनका ही नहीं, बल्कि नसीम व इंसाफ का भी कहलाएगा। अगर वे अपने बूते ही बन कर आए हैं तो भी यही माना जाएगा कि वे भाई-भाभी की सिफारिश पर बने हैं। उनका विरोध करने वाले साफ तौर पर कह रहे हैं कि मुबारक की नियुक्ति व्यक्तिगत संबंधों को तरजीह देकर की गई है। यह उन कार्यकर्ताओं के साथ कुठाराघात है, जो बरसों से कांग्रेस के अल्पसंख्यक वर्ग के साथ सच्चे सिपाही की तरह काम कर रहे हैं।
शहर कांग्रेस उत्तर ब्लाक ए के अध्यक्ष आरिफ हुसैन, शहर कांग्रेस के सचिव मुख्तार अहमद नवाब, एनएसयूआई अध्यक्ष वाजिद खान, युवक कांग्रेस उत्तर विधानसभा अध्यक्ष सैयद अहसान यासिर चिश्ती, अल्पसंख्यक विभाग के संयोजक एसएम अकबर, सैयद गुलाम मोइनुद्दीन, गुलाम हुसैन तथा जहीर कुरैशी ने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, केंद्रीय संचार राज्यमंत्री सचिन पायलट तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान को शिकायत की है और विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमरान किदवई आरोप लगाया कि इस तरह नियुक्ति देकर वे पार्टी को कमजोर करने की कार्रवाई कर रहे हैं। उन्होंने किदवई को पद से हटाने की मांग के साथ ही मुबारक की नियुक्ति को भी निरस्त करने की मांग की है। उनका कहना है कि मुबारक देहात से जुड़े रहे हैं, इनके भाई इंसाफ अली देहात कांग्रेस में उपाध्यक्ष हैं और भाभी नसीम अख्तर इंसाफ शिक्षा राज्यमंत्री हैं। ऐसे में मुबारक को शहर में नियुक्ति दे दी गई, जबकि संगठन से जुड़े कई कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर दी गई है।
अव्वल तो मुबारक को यह पद हासिल करने की जरूरत ही नहीं थी। उनकी चवन्नी पहले से ही चल रही थी। यह पद पा कर अनावश्यक रूप से विवाद में आ गए। हालांकि वे केवल अपने भाई-भाभी की वजह से राजनीति में वजूद नहीं रखते, अपितु खुद भी लंबे समय से सक्रिय राजनीति में हैं, मगर इस नियुक्ति से खुद तो विवाद में आए ही, अपने निर्विवाद भाई-भाभी पर भी एक बारगी भाई-भतीजावाद का आरोप लगवा बैठे। रहा सवाल इस पद पर नियुक्ति का तो यह तो वे ही जान सकते हैं कि इसके पीछे का गणित और भावी रणनीति क्या है?
बहरहाल, अब जब कि नियुक्ति हो गई है तो उस पर कायम रहना भी जरूरी है, क्योंकि उनकी नियुक्ति का विरोध हो रहा है और उसे उनके भाई-भाभी से भी जोड़ा जा रहा है। यानि कि उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ गई है। जाहिर सी बात है कि अब वे भी मुबारक को पद पर कायम रखवाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे। खुद मुबारक को भी अपना दमखम दिखाना होगा। नियुक्ति का विरोध होते ही उनके स्वागत में जनसेवा समिति की ओर से आयोजित समारोह को इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा सकता है। वैसे एक बात तो है मुबारक की नियुक्ति पर विरोध के बहाने से ही सही, इंसाफ अली व नसीम अखतर को तो यह तो पता लग गया कि कौन-कौन उनके खिलाफ हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
असल में जहां तक मुबारक की नियुक्ति का सवाल है तो यह साफ जाहिर है कि वे अपने भाई-भाभी के दम पर ही अध्यक्ष बन कर आए हैं। ऐसे में विरोध हो रहा है तो यह केवल उनका ही नहीं, बल्कि नसीम व इंसाफ का भी कहलाएगा। अगर वे अपने बूते ही बन कर आए हैं तो भी यही माना जाएगा कि वे भाई-भाभी की सिफारिश पर बने हैं। उनका विरोध करने वाले साफ तौर पर कह रहे हैं कि मुबारक की नियुक्ति व्यक्तिगत संबंधों को तरजीह देकर की गई है। यह उन कार्यकर्ताओं के साथ कुठाराघात है, जो बरसों से कांग्रेस के अल्पसंख्यक वर्ग के साथ सच्चे सिपाही की तरह काम कर रहे हैं।
शहर कांग्रेस उत्तर ब्लाक ए के अध्यक्ष आरिफ हुसैन, शहर कांग्रेस के सचिव मुख्तार अहमद नवाब, एनएसयूआई अध्यक्ष वाजिद खान, युवक कांग्रेस उत्तर विधानसभा अध्यक्ष सैयद अहसान यासिर चिश्ती, अल्पसंख्यक विभाग के संयोजक एसएम अकबर, सैयद गुलाम मोइनुद्दीन, गुलाम हुसैन तथा जहीर कुरैशी ने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, केंद्रीय संचार राज्यमंत्री सचिन पायलट तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चंद्रभान को शिकायत की है और विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमरान किदवई आरोप लगाया कि इस तरह नियुक्ति देकर वे पार्टी को कमजोर करने की कार्रवाई कर रहे हैं। उन्होंने किदवई को पद से हटाने की मांग के साथ ही मुबारक की नियुक्ति को भी निरस्त करने की मांग की है। उनका कहना है कि मुबारक देहात से जुड़े रहे हैं, इनके भाई इंसाफ अली देहात कांग्रेस में उपाध्यक्ष हैं और भाभी नसीम अख्तर इंसाफ शिक्षा राज्यमंत्री हैं। ऐसे में मुबारक को शहर में नियुक्ति दे दी गई, जबकि संगठन से जुड़े कई कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर दी गई है।
अव्वल तो मुबारक को यह पद हासिल करने की जरूरत ही नहीं थी। उनकी चवन्नी पहले से ही चल रही थी। यह पद पा कर अनावश्यक रूप से विवाद में आ गए। हालांकि वे केवल अपने भाई-भाभी की वजह से राजनीति में वजूद नहीं रखते, अपितु खुद भी लंबे समय से सक्रिय राजनीति में हैं, मगर इस नियुक्ति से खुद तो विवाद में आए ही, अपने निर्विवाद भाई-भाभी पर भी एक बारगी भाई-भतीजावाद का आरोप लगवा बैठे। रहा सवाल इस पद पर नियुक्ति का तो यह तो वे ही जान सकते हैं कि इसके पीछे का गणित और भावी रणनीति क्या है?
बहरहाल, अब जब कि नियुक्ति हो गई है तो उस पर कायम रहना भी जरूरी है, क्योंकि उनकी नियुक्ति का विरोध हो रहा है और उसे उनके भाई-भाभी से भी जोड़ा जा रहा है। यानि कि उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ गई है। जाहिर सी बात है कि अब वे भी मुबारक को पद पर कायम रखवाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे। खुद मुबारक को भी अपना दमखम दिखाना होगा। नियुक्ति का विरोध होते ही उनके स्वागत में जनसेवा समिति की ओर से आयोजित समारोह को इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा सकता है। वैसे एक बात तो है मुबारक की नियुक्ति पर विरोध के बहाने से ही सही, इंसाफ अली व नसीम अखतर को तो यह तो पता लग गया कि कौन-कौन उनके खिलाफ हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
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