गुरुवार, 20 सितंबर 2012

माफी मांगने से काम नहीं चलेगा रासासिंह जी

अजमेर बंद के दौरान कुछ युवा भाजपा कार्यकर्ताओं की ओर से कांग्रेस कार्यालय पर लगे बोर्ड और कांग्रेस कार्यालय सचिव गोपाल सिंह पर कालिख पोतने के मामले में भले ही शहर भाजपा अध्यक्ष रासासिंह रावत ने माफी मांग ली हो, मगर यह स्थिति शहर में पार्टी की जिस हालत की ओर इशारा कर रही है, उसे उन्हें गंभीरता से समझना होगा, वरना आगे चल कर उन्हें और भी ज्यादा परेशानी से गुजरना होगा।
असल में बंद के दौरान हुई घटना की जड़ में पार्टी की गुटबाजी है। एक गुट मुख्य धारा से अलग चल रहा है और उस पर रासासिंह रावत का कोई नियंत्रण नहीं है। सच तो ये है कि उसे अलग-थलग करने में स्वयं रासासिंह रावत की मौन स्वीकृति है। और उसी कारण वह अब उग्र होता जा रहा है। ये हालात पैदा ही इस कारण हुए हैं कि रासासिंह भले ही पार्टी के वरिष्ठतम नेता हों, मगर उनका अपना अलग से कोई वर्चस्व नहीं है। वे अध्यक्ष भी इस कारण नहीं बने हैं कि उनका कोई विकल्प नहीं था, बल्कि इस कारण क्यों कि दो धड़ों में बंटी पार्टी को तीसरे विकल्प के रूप में उन पर सहमति देनी पड़ी। वैसे यह उनका सौभाग्य है कि पार्टी के पिछले ज्ञात इतिहास में यह पहली कार्यकारिणी है, जो कि सबसे मजबूत है। इसमें शहर के सभी दिग्गज नेता उनके साथ जोड़े गए हैं। शहर के प्रथम नागरिक रहे धर्मेन्द्र गहलोत सरीखे व्यक्तित्व का कार्यकारिणी का महामंत्री बनने को राजी होना साबित करता है कि मौजूदा संगठन कितना मजबूत है। उससे भी अधिक सौभाग्य की बात ये है कि यह पहली कार्यकारिणी है, जो कि सर्वाधिक सक्रिय है। इससे पहले जयंती-पुण्यतिथी अथवा विरोध प्रदर्शन की औपचारिकताएं ही निभाई जाती थीं, जबकि अब शायद ही कोई ऐसा दिन बीतता हो, जबकि पार्टी कोई न कोई कार्यक्रम नहीं करती हो। मगर सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि लाख प्रयासों के बाद भी पार्टी की गुटबाजी खत्म होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। उसमें रासासिंह तटस्थ रहने की बजाय एक पक्ष का पलड़ा भारी होने के कारण उस ओर झुकते जा रहे हैं। यदि ये कहा जाए कि वे अब उसी के हाथों खेले रहे हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसका परिणाम ये है कि कमजोर किया गया गुट उग्र होता जा रहा है। यदि समय रहते उन्होंने सामंजस्य न बैठाया अथवा कोई रास्ता न निकाला तो कोई आश्चर्य नहीं उन्हीं के कार्यकाल में पार्टी सबसे खराब स्थिति में भी पहुंच जाए। विशेष रूप से आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह स्थिति ज्यादा घातक हो जाएगी।
माना कि यह उनकी सदाशयता है कि कुछ उग्र कार्यकर्ताओं के कृत्य के लिए उन्होंने माफी मांग ली, मगर साथ ही यह इस ओर भी इशारा करता है कि ऐसा करके उन्होंने उन कार्यकर्ताओं को पार्टी हाईकमान के सामने रेखांकित करने की भी कोशिश की है। दूसरे शब्दों में स्वीकार भी कर लिया है कि उनका उन कार्यकर्ताओं पर कोई जोर नहीं है, इसी कारण पार्टी के मुखिया होने के नाते माफी मांग ली। मगर इस प्रकार माफी मांग लेने मात्र से समस्या का समाधान नहीं होगा। यदि वे अपने संगठन को दुरुस्त नहीं रख पाएंगे तो पूर्व उप मंत्री ललित भाटी सरीखों को यह कहने का मौका मिलता ही रहेगा कि भारतीय संस्कृति की पैराकार पार्टी को अपने गिरेबां में झांकना ही होगा कि वह किस संस्कृति की ओर जा रही है।
-तेजवानी गिरधर

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