गुरुवार, 20 सितंबर 2012

आखिर बाहर आ गए आईपीएस अजय सिंह

एक लाख रुपए रिश्वत लेने के मामले में आरोपी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी व अजमेर में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर रहे डॉ. अजय सिंह को हाईकोर्ट की ओर से जमानत मिलने पर वे बाहर आ ही गए। उनके इस मामले में बच जाने की भी पूरी संभावना है। अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि उनके विरुद्ध दर्ज मामला काफी कमजोर है।
ज्ञातव्य है कि अजय सिंह पर एमएलएम कंपनी एमबीडी के एक पूर्व एजेंट से एक लाख रुपए रिश्वत लेने का आरोप है। मामले के अनुसार 21 जून को जयपुर से आए एंटी करप्शन ब्यूरो के दल ने रामगंज थाने में एएसआई प्रेम सिंह को शिकायतकर्ता भवानी सिंह से एक लाख रुपए रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया था। एसीबी के अनुसार रिश्वत की यह रकम प्रेम सिंह ने डॉ. अजय सिंह के कहने पर ली थी। इस बाबत प्रेम सिंह की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उसकी बातचीत अजय सिंह से कराई गई। जिस समय एसीबी ने रामगंज थाना में कार्रवाई की, अजय सिंह जयपुर में थे। अजय सिंह जयपुर से भरतपुर जाते हुए गिरफ्तार कर लिया गया। एसीबी के अनुसार डॉ. अजय सिंह ने एक मुकदमे में कार जब्त करने और मुल्जिम बनाने की धमकी देकर रिश्वत ली है। पिछले दिनों एसीबी ने भ्रष्टाचार निरोधक मामलों की विशेष अदालत में इस प्रकरण में चार्जशीट दायर की थी। एसीबी को अजय सिंह के खिलाफ अब तक अभियोजन संबंधी स्वीकृति नहीं मिली, इसलिए उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकी।
यहां गौर करने लायक बात ये है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि अजय सिंह के खिलाफ अभियोजन संबंधी मंजूरी अब तक नहीं मिली। बताया जाता है कि एक संपर्क सूत्र के कहने पर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के प्रभाव से मंजूरी अटका दी गई है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब पूरे प्रशासनिक तंत्र तो पता है कि किसी भी मामले में चार्जशीट पेश करने की नियत अवधि होती है, तो स्वीकृति अथवा अस्वीकृति के लिए नियत अवधि का नियम क्यों नहीं है? स्पष्ट है कि इस तरह की व्यवस्था की ही इसलिए गई है ताकि उसका जरूरत के हिसाब से उपयोग किया जा सके।
दरअसल उनका केस कमजोर इस कारण है कि वे स्वयं रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ नहीं पकड़े गए थे। रिश्वत तो प्रेम सिंह ने ली थी। अजय सिंह पर तो आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता भवानी सिंह से रिश्वत की रकम प्रेम सिंह के हाथों मंगवाई थी। इसे साबित करना आसान काम नहीं। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब शिकायतकर्ता भवानी सिंह ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत जो कलम बंद बयान दिए, उसमें उसने अजय सिंह का जिक्र तक नहीं किया।
अजयसिंह के बचने की संभावना इस कारण भी है कि प्रदेश की आईपीएस लाबी इस दाग को मिटाने में रुचि ले रही बताई। रिश्वत के मामले में वे संभवत: पहले आईपीएस हैं, इस कारण आईपीएस लाबी की इच्छा हो सकती है कि नौकरी में जो रिमार्क लगना था, वह लग गया, अब सजा जितनी कम से कम हो या सजा मिले ही नहीं तो बेहतर रहेगा, अन्यथा इस जवान आईपीएस की जिंदगी तबाह हो जाएगी।
चलते-चलते इस चर्चा के बारे में भी आपको फिर जानकारी देते चलें कि जिस मार्स बिल्ड होम एंड डवलपर्स की मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनी के मामले में यह रिश्वत खाई गई, उसके गेनर्स को नोंचने में कुछ पत्रकारों ने भी कसर बाकी नहीं रखी थी। वो इस बिना पर कि उनके नाम का जिक्र खबरों में बार-बार न आएं।
-तेजवानी गिरधर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें