शुक्रवार, 31 मई 2013

जेल में पीसीओ की जरूरत कहां है, मोबाइल जो उपलब्ध है

पूर्व जेल अधीक्षक प्रीता भार्गव के सामने मोबाइल पड़े हैं
राज्य के जेल मंत्री रामकिशोर सैनी ने कहा कि जल्द ही अजमेर, जोधपुर और जयपुर सेंट्रल जेलों की तरह राज्य की सभी जेलों में पीसीओ लगेंगे। उनकी घोषणा पर कानाफूसी है कि जेलों में पीसीओ की जरूरत ही कहां है। जब जेल में कैदियों को आसानी से मोबाइल फोन उपलब्ध हो जाते हैं तो वे काहे को पीसीओ से बात करेंगे। प्रदेश की जेलों में अब तक कई बार की गई आकस्मिक तलाशी में हर बार वहां मोबाइल फोन छुपाए हुए मिले हैं। खुद पुलिस का मानना है कि इन्हीं मोबाइल के जरिए कई खूंखार कैदी अपनी गेंगे चला रहे हैं। मोबाइल तो कुछ भी नहीं है, जेलों में कारतूस, हथियार तक कैदियों के पास पाए गए हैं।
स्वयं जेल राज्य मंत्री रामकिशोर सैनी ने भी एक बार स्वीकार किया थ कि जेल में कैदी मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं और उस पर अंकुश के लिए प्रदेश की प्रमुख जेलों में जैमर लगाए जाएंगे, मगर आज तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पाई है। जेल मंत्री का जेलों में जैमर लगवाए जाने की बात से स्पष्ट है कि वे अपराधियों के पास मोबाइल पहुंचने को रोकने में नाकाम रहने को स्वयं स्वीकार कर रहे थे।
आपको याद होगा कि सजायाफ्ता बंदी के परिजन से रिश्वत लेने के मामले में अजमेर जेल के तत्कालीन जेलर जगमोहन सिंह को सजा सुनाते हुए न्यायाधीश कमल कुमार बागची ने जेल में व्याप्त अनियमितताओं पर टिप्पणी की कि अजमेर सेंट्रल जेल का नाम बदल कर केन्द्रीय अपराध षड्यंत्रालय रख दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। न्यायाधीश ने इस सिलसिले में संदर्भ देते हुए कहा कि समाचार पत्रों में यह तक उल्लेख आया है कि जेल में मोबाइल, कारतूस व हथियार बरामद हुए हैं और हत्या की सजा काट रहे मुल्जिम ने अजमेर जेल से साजिश रच कर जयपुर में व्यापारी पर जानलेवा हमला करवाया। जेल प्रशासन के लिए इससे शर्मनाक टिप्पणी हो नहीं सकती थी। आपको ये भी याद होगा कि जयपुर के टायर व्यवसायी हरमन सिंह पर गोली चलाने की सुपारी अजमेर जेल से ही ली गई। जेल में आरोपी आतिश गर्ग ने मोबाइल से ही पूरी वारदात की मॉनीटरिंग की। जब उसे पता लगा कि उसकी हरकत उजागर हो गई है तो उसने अपना मोबाइल जलाने की कोशिश की, जिसे जेल अधिकारियों ने बरामद भी किया। इससे पहले जेल में कैदियों ने जब मोबाइल के जरिए फेसबुक पर फोटो लगाए तो भी यह मुद्दा उठा था कि लाख दावों के बाद भी जेल में अपराधियों के मोबाइल का उपयोग करने पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकी है। सवाल उठता है कि क्या जब भी जांच के दौरान किसी कैदी के पास मोबाइल मिला है तो उस मामले में इस बात की जांच की गई है कि आखिर किस जेल कर्मचारी की लापरवाही या मिलीभगत से मोबाइल कैदी तक पहुंचा है? क्या ऐसे कर्मचारियों को कभी दंडित किया गया है?

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