गुरुवार, 23 जुलाई 2015

मेयर के दावेदारों में एक और नाम शामिल

आगामी अगस्त माह में होने वाले अजमेर नगर निगम चुनाव के लिए एक ओर जहां कांग्रेस में मेयर की दावेदारी का अता-पता नहीं है, वहीं भाजपा में एक और दावेदार का नाम कानाफूसी की गिरफ्त में आ गया है। वो नाम है सीताराम शर्मा का।
सबको पता है कि वे शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के खासमखास हैं। अति विश्वसनीय। चर्चा ये चल पड़ी है कि उन्हें वार्ड तीन से चुनाव लड़ाने का मानस बनाया गया है। हालांकि प्रारंभिक तौर पर कहीं ये चर्चा नहीं की जाएगी कि वे मेयर पद के दावेदार हैं, मगर वे तुरप का आखिरी पत्ता हो सकते हैं। असल में उनका नाम इस कारण चर्चा में आया है कि मौजूदा दावेदारों को लेकर कुछ संशय बना हुआ है। यद्यपि यह तय सा है कि अगर भाजपा का बोर्ड बनता है तो देवनानी के हनुमान पूर्व मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ही मेयर के पद के सबसे प्रबल दावेदार होंगे, चूंकि उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी वरदहस्त प्राप्त है। मगर एक किंतु ये ही है कि चूंकि वे ओबीसी से हैं, इस कारण सामान्य वर्ग के दावेदार व पार्षद विरोध भी कर सकते हैं। दूसरे प्रबल दावेदार पूर्व नगर परिषद सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत पर राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र सिंह यादव व महिला व बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल का हाथ है, मगर संघ शायद तैयार न हो। तीसरे संभावित दावेदार नीरज जैन हैं, जिन पर जरूरत पडऩे पर ऐन वक्त पर देवनानी हाथ रख सकते हैं। रहा सवाल यादव के ही खास पार्षद जे. के. शर्मा का तो उनकी संभावना तब ही बनेगी, जबकि गहलोत व शेखावत को लेकर खींचतान मचेगी। उनको बाद में सभी साथ देने को तैयार भी हो सकते हैं। बात अगर सोमरत्न आर्य की करें तो वे भी खींचतान की स्थिति में जुगाड़ तंत्र का उपयोग कर मेयर पद हथिया सकते हैं।
चंद सवाल ये भी हैं। यह जानते हुए भी कि दोनों में से ही कोई एक मेयर बनेगा, क्या गहलोत व शेखावत दोनों चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि ऐसे में एक तो मात्र पार्षद बन कर रहना होगा? कयास ये है कि अगर ऐसी स्थिति आई तो जो मात्र पार्षद रह जाएगा, वह इस्तीफा दे देगा। एक हवाई सवाल ये भी की काउंट करके चलना चाहिए कि क्या वाकई दोनों चुनाव लड़ेंगे भी?
अब बात करते हैं, सीताराम शर्मा की। ऐसी कयासबाजी लगाई जा रही है कि देवनानी ने उनको ब्लैक हॉर्स के रूप में रख रखा है। अगर गहलोत व जैन को लेकर कोई दिक्कत हुई तो वे ये पत्ता खेल जाएंगे। इसमें सुविधा ये भी है कि वे सर्वाधिक आज्ञाकारी हैं। इंच मात्र भी इधर से उधर नहीं होने वाले। जहां कहा जाएगा बैठ तो बैठ जाएंगे और जहां कहा जाएगा खड़ा हो तो खड़े हो जाएंगे। वैसे भी जो दावेदार न हो, उसे अगर मेयर बना दिया जाए तो वह इतना अभिभूत हो जाता है कि अपने आका का हर हुक्म सिर माथे रख कर चलता है। यूं गहलोत व जैन हैं तो देवनानी के ही मगर थोड़ा बहुत अपना खुद का भी वजूद रखते हैं। उनका अपना तंत्र भी है। हूबहू वही करेंगे, जो देवनानी चाहते हैं, इसमें तनिक संशय है। उसमें भी गहलोत में तो ये भी काबिलियत है कि अगर भाजपा में टोटा पड़ा तो वे कांग्रेसी पार्षद भी जुटा सकते हैं। यदि ऐसी स्थिति आई तो केवल देवनानी की हर आज्ञा मानना संभव नहीं होगा। सब कुछ एडजस्ट करके चलना होगा।
बात अब दूसरे समीकरण की। श्रीमती भदेल भी मौका तलाशेंगी कि उनकी पसंद का मेयर बने। उनके पास एक ही पत्ता है- सुरेन्द्र सिंह शेखावत। अगर उनको लेकर दिक्कत आई तो वे जे. के. शर्मा पर राजी हो जाएंगी। उनके पास एक चाल और भी बचेगी। उसे यूं समझते हैं। हालांकि निर्दलीय पार्षद ज्ञान सारस्वत समझौते के तहत देवनानी कोटे से टिकट लेंगे, मगर उनके ही पक्के हो कर रहेंगे, इस बारे में क्या कहा जा सकता है? अगर गहलोत व शेखावत के बनने में बाधा आई तो वे ज्ञान को समर्थन देकर खेल  अपने पक्ष में करने से नहीं चूकेंगी। हांलाकि अभी ये दूर की कौड़ी ही लगती है, मगर फैंकुओं को भला कौन रोक सकता है। वैसे भी राजनीति शतरंज का वो खेल है, जिसमें सब कुछ संभव है। इस कारण चतुर खिलाड़ी हर संभावना  को ध्यान में रख कर खेलता है। बहरहाल, अब देखते हैं कि चकरी घूम कर किस पर आ कर टिकती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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