रविवार, 26 जुलाई 2015

भाजपा दावेदारों ने निकाला तोड़

नगर निगम चुनाव में भाजपा ने दावेदारों पर मानसिक दबाव बनाने के लिए जो तीन अन्य दावेदारों के नाम भी आवेदन के साथ देने का नियम बनाया है, उसका दावेदारों ने तोड़ निकाल लिया है। पता लगा है कि तेज तर्रार दावेदारों ने पार्टी को वे तीन नाम सुझाए हैं, जो असल में दावेदार हैं ही नहीं, या बहुत कमजोर दावेदार हैं, या फिर उनको टिकट मिलना कत्तई असंभव है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे वास्तविक दावेदारों पर अपनी मुहर तो नहीं लगाना चाहते। हालांकि पार्टी के बड़े नेताओं को तो पता होगा ही कि कौन-कौन दमदार दावेदार हैं, मगर वे क्यूं अपनी ओर से उन दमदार पर अपनी राय जाहिर करें।
एक और चालाकी भी की जा रही है। वो ये कि एक ही लॉबी के कुछ दावेदार पूल भी कर रहे हैं। एक-दूसरे के नाम अन्य तीन दावेदारों की सूची में दर्शा रहे हैं। ताकि गिनती की जाए तो उनके नाम ही प्रमुख दावेदारों की सूची में हों। हकीकत में सच बात ये है कि हर दावेदार को पता है कि वह कितने पानी में है, दिखावे के लिए खम ठोक कर ऐसे खड़ा होता है कि मानो उसका टिकट फायनल हो।
वैसे ये है सब बेमानी। पार्टी के नेताओं को पहले से पता होता है कि असल में कौन-कौन असल दावेदार है। उनके सामने तो दिक्कत ये होती है कि जो मजबूत हैं, उनमें से नाम किसका तय किया जाए। फोकट दावेदारी करने वालों के लिए तो कोई जगह होती ही नहीं। उससे भी बड़ा सच ये है कि दोनों विधानसभा क्षेत्रों के विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल पहले से ही लगभग तय कर चुके हैं कि किसे-किसे टिकट देना चाहिए। आखिर इतने दिन से मॉनिटरिंग कर रहे हैं। जहां तय करने में दिक्कत है, वहां जरूर दो या तीन नाम दिमाग में रखे हैं। आखिरी वक्त में हेरफेर कर लेंगे। उससे भी कड़वा सच ये है कि प्रत्याशी तय करने की हो भले ही पूरी प्रक्रिया, मगर टिकट उन्हें ही मिलेगा, जिन पर देवनानी व भदेल हाथ रखेंगे। अब तक का इतिहास तो यही बताता है। पिछले अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की कितनी चलती थी, सबको पता है। वे केवल अपनी इज्जत बचाए हुए थे, बाकी तय सब कुछ देवनानी व भदेल ही किया करते थे। आपको याद होगा, शिवशंकर हेड़ा का अध्यक्षीय कार्यकाल। सारे टिकट दोनों विधायकों ने तय किए, हेड़ा शायद ही किसी अपनी पसंद के दावेदार को टिकट दिलवा पाए। कमोबेश वैसा ही इस बार होने की संभावना है। मौजूदा अध्यक्ष अरविंद यादव भले ही अभी खुश हो लें कि उनकी अध्यक्षता में पूरी प्रक्रिया हो रही है, मगर हिस्से में उनके चंद टिकट ही आने हैं। उन्हें भी पहले से पता है कि दोनों विधायक चाहते क्या हैं? तो उसी हिसाब से अपनी राय रखने वाले हैं। उनकी राय वहीं अहमियत रखेगी, जहां विवाद खड़ा हो जाएगा। या फिर देवनानी व भदेल के कुछ जिताऊ व पसंद के दावेदार एक दूसरे के विधानसभा क्षेत्र में लटक रहे होंगे। यानि कि समझौते में दो-तीन टिकट एक दूसरे की पसंद के देने होंगे। इस दरहकीकत को अगर आप समझ लें तो यह आसानी से समझ सकते हैं कि पार्टी ने दावेदारों से जो तीन अन्य दावेदारों नाम मांगे हैं, वे क्या मायने रखते हैं। ऐसे में यह बात कितनी हास्यास्पद हो जाएगी कि पार्टी तीन दावेदारों के नाम लिखने की औपचारिकता इसलिए करवा रही है ताकि टिकिट न मिलने पर कोई कार्यकर्ता यह नहीं कह सके कि मुझसे पूछे बिना अन्य को टिकिट दे दिया गया। इसी को राजनीति कहते हैं। नौटंकी पूरी करनी होती है, मगर टिकट उसे ही मिलता है, जिसके बारे में निर्णायक पहले से तय कर चुके होते हैं।
एक बात और मजेदार है। वो ये कि आवेदक से यह भी लिखवाया गया है कि अधिकृत प्रत्याशी का चुनाव में विरोध नहीं किया जाएगा। अब बताओ, उसके ऐसे लिखे हुए का क्या मतलब है? उसने कोई फस्र्ट क्लास मजिस्ट्रेट के सामने तो शपथ पत्र दिया नहीं है कि वह इस लिखे हुए की पालना करने को बाध्य हो? लिख कर देने के बाद भी अगर वह निर्दलीय चुनाव लड़ता है तो लड़ेगा। आप भले ही पार्टी से बाहर कर देना। वो तो आप बिना लिखवाए हुए भी करने के लिए अधिकृत हैं। मगर कहते हैं न कि दिखावे की दुनिया भी चल रही है, जबकि होता वही है जो हकीकत की दुनिया चाहती है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें