गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

सिंगारियां के चक्कर में भाजपा के ब्राह्मण वोट न छिटक जाएं

केकड़ी क्षेत्र में भाजपा के कद्दावर राजपूत नेता पूर्व प्रधान भूपेंद्रसिंह शक्तावत के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा ने पलटवार करते हुए पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां को शामिल तो कर लिया है, मगर सवाल ये उठ रहा है कि उनके भाजपा में आने से अनुसूचित जाति के जितने वोटों का भाजपा को फायदा होगा, कहीं उससे अधिक ब्राह्मण वोटों का नुकसान न हो जाए? ज्ञातव्य है कि बाबू लाल सिंगारिया ने कांग्रेस विधायक रहते हुए अजमेर के तत्कालीन एसपी आलोक त्रिपाठी को कलैक्ट्रेट में भरी बैठक के दौरान थप्पड़ मारा था, जिससे पूरे प्रदेश के ब्राह्मण उनसे नाराज हो गए थे। यह नाराजगी इतनी थी कि जब भी वे चुनाव में टिकट के लिए सक्रिय होते थे, ब्राह्मण समुदाय उनका विरोध करने लगता था। एक मात्र यही वजह रही कि 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हार गए। दिलचस्प बात ये है कि ब्राह्मण एसपी को थप्पड़ मारने वाले इस पूर्व विधायक को एक ब्राह्मण विधायक केकड़ी के ही शत्रुघ्न गौतम ने अहम भूमिका निभाई है। ऐसे में गौतम अपने समाज को क्या जवाब देंगेïïï?
आपको जानकारी होगी कि 1998 की कांग्रेस लहर में सिंगारिया ने केकड़ी सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 2003 में वे भाजपा प्रत्याशी गोपाल लाल धोबी से चुनाव हारे। जब 2008 में केकड़ी सीट सामान्य हो गई तो कांग्रेस ने रघु शर्मा को टिकट दे दिया। इस पर सिंगारिया बागी बन कर खड़े हो गए, मगर शर्मा फिर भी जीत गए। उस चुनाव में सिंगारियां ने 22 हजार 123 वोट हासिल कर यह जता दिया कि उनकी इलाके में व्यक्तिगत पकड़ है। हाल ही संपन्न विधानसभा चुनाव में रघु शर्मा फिर से मैदान में आए तो सिंगारिया एनसीपी के टिकट पर खड़े हो गए और 17 हजार 500 मत हासिल शर्मा की हार का कारण प्रमुख कारण बने। विश्लेषण से पता लगता है कि उनकी न केवल सजातीय वोटों पर पकड़ है, अपितु सरवाड़ व केकड़ी में हुए सांप्रदायिक तनाव के कारण नाराज अल्पसंख्यकों में भी उन्होंने सेंध मार दी थी। हाल ही जब कांग्रेस ने भाजपा के भूपेन्द्र सिंह शक्तावत को तोड़ा और इससे भाजपा को राजपूत वोटों का नुकसान होता दिखाई दिया तो उसने सिंगारियां को अपने पक्ष में करके कांग्रेस को झटका दिया है।
सिंगारियां को पिछली बार लोकसभा चुनाव में तो बागी होने के बाद भी सचिन अपने लिए पार्टी में वापस ले आए, हालांकि पूर्व विधायक रघु शर्मा इससे सहमत नहीं थे। इस बार उनको कांग्रेस में वापस लिए जाने की संभावना नहीं थी, समझा जाता है कि इसी कारण उन्होंने भाजपा में जाना बेहतर समझा। कुछ लोग ये कयास लगा रहे हैं कि वे अशोक गहलोत के करीब हैं और कदाचित गहलोत की सचिन से नाइत्तफाकी के चलते उनके ही इशारे पर भाजपा में चले गए हैं। अब देखना ये भी होगा कि क्या उनके कहने पर उनके समर्थक भाजपा का उतना ही साथ देते हैं, जितना कि उनके स्वयं खड़े होने पर देते हैं। आशंका ये भी है कि कहीं सिंगारियां से नाराज ब्राह्मण भाजपा को नुकसान न पहुंचा दें।
-तेजवानी गिरधर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें