गुरुवार, 27 मार्च 2014

ललित भाटी के मान जाने के मायने?

पूर्व उपमंत्री ललित भाटी आखिरकार मान गए। उनका सम्मान करते हुए स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व अजमेर संसदीय क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट उनके घर गए। अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि भले ही भाटी ने सचिन के नामांकन के दौरान अनुपस्थित हो कर अपनी नाराजगी दर्शायी हो, मगर उनकी प्रमुख सहयोगी महिला कांग्रेस नेत्री प्रमिला कौशिक की मौजूदगी इसका अहसास कराती है कि रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं।
असल में ललित भाटी साथ तो सचिन के ही थे, मगर अपेक्षित सम्मान न मिलने के कारण आखिरी दौर में छिटक गए। जाहिर तौर पर उनके भाई हेमंत भाटी को अजमेर दक्षिण का टिकट दिलवाए जाने के बाद उनकी दूरी और बढऩी ही थी। आपको याद होगा कि अजमेर जिले में कांग्रेस की हार के लिए उन्होंने सीधे तौर पर सचिन को ही जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद सुलह की संभावनाएं लगभग शून्य हो गई थीं। एक संभावना महज इस कारण बाकी रह गई थी कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपने भाई हेमंत का खुल कर कोई विरोध नहीं किया था।
ज्ञातव्य है कि 208 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से बगावत करने वाले ललित भाटी को पिछले लोकसभा चुनाव में सचिन काफी मान-मनुहार से वापस लाए थे। उसका सकारात्मक परिणाम ये रहा कि भाजपा को विधानसभा चुनाव में जो 19 हजार 306 मतों की बढ़त मिली थी, वह तो सिमटी ही, उलटा 2 हजार 157 वोटों से भाजपा और पिछड़ गई। रेखांकित की जाने वाली यह उपलब्धि कदाचित सचिन के ख्याल में रही। हालांकि हेमंत भाटी को कांग्रेस में लाए जाने के बाद कांग्रेस की कोली वोटों पर पकड़ बरकरार रही, मगर ललित भाटी के भी मान जाने से कांग्रेस को और मजबूती मिलेगी।
अब सवाल सिर्फ यही उठ रहा है कि सचिन ललित भाटी को मनाने में कामयाब कैसे हुए? स्वाभाविक सी बात है कि उन्हें उनके कद के अनुरूप अपेक्षित सम्मान फिर से दिए जाने के वादे पर सुलह हुई होगी। भाटी के लिए भी बेहतर यही था कि मुख्य धारा में ही बने रहें। भाजपा का साथ देने पर उनकी वहां कोई खास कद्र नहीं होती, क्योंकि वहां पहले से अजमेर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन बार जीती श्रीमती अनिता भदेल पहले से कब्जा जमाए बैठी हुई हैं। और कांग्रेस के समान विधारधारा वाली बसपा व सपा का राजस्थान में कोई वजूद बन नहीं पाया है। खैर, कांग्रेस के लिहाज से वे बेशक शाबाशी के पात्र हैं कि दलबदल के प्रचंड दौर में अन्य बड़े कांग्रेसी नेताओं की तरह उन्होंने धुर विरोधी विचारधारा वाली भाजपा में शामिल होने का निर्णय नहीं लिया। कुल मिला कर अजमेर डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी को छोड़ कर लगभग सभी प्रमुख नाराज कांग्रेसी नेताओं व कार्यकर्ताओं को राजी कर लेना सचिन की उपलब्धि है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही नाराज नेताओं को संगठन में कहीं न कहीं एडजस्ट कर लिया जाएगा।
-तेजवानी गिरधर

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