गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

जब शिवचरण माथुर कुली को तलाश रहे थे

राजनीति का अजब खेल है। वह आदमी को कभी अर्श पर बैठा देती है, तो कभी फर्श पर लेटा देती है। वक्त बदलते ही आदमी के नाचीज होने में देर नहीं लगती। इसके अनेकानेक उदाहरण हैं। इसका ख्याल मुझे अरसे से रहा, मगर एक घटना से इसका फलसफा मुझे ठीक से समझ आया। हुआ यूं कि कोई 41 साल पहले मैं नागौर में रहता था। पत्रकारिता का शैशव काल। एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को कवर करने गया। उनके इर्द गिर्द सुरक्षा धेरे को देख दंग रह गया। कितने नेता व कार्यकर्ता उनकी मिजाज पुर्सी में लगे थे। स्वागत करने वालों में होड मची थी। कितने प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी तैनात थे। चाक चौबंद थे। अहसास हुआ कि मुख्यमंत्री कितना बडा आदमी होता है। खैर, बाद में मैं माइग्रेट हो कर अजमेर आ गया। यहां दैनिक न्याय में काम करता था। रोज रात को काम से फारिग हो कर कुछ पत्रकार साथियों के साथ रेलवे स्टैशन पर चाय पीने जाया करते था। एक बार मेरे साथ स्वर्गीय श्री सुनिल शर्मा व स्वर्गीय श्री राजू मोहन सिंह थे। हम प्लेट फार्म पर टहल रहे थे। एक टेन आई। यकायक देखा कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर जैसे दिखने वाले कोई सज्जन दोनों हाथों में अटैचियां उठाए उतरे और कुली को तलाशने लगे। सहसा यकीन नहीं हुआ। थोडा नजदीक जा कर देखा तो पाया कि वे माथुर साहब ही थे। चूंकि तब वे मुख्यमंत्री नहीं थे, इस कारण पुलिस के लवाजमे की उम्मीद तो बेमानी थी, मगर कोई कार्यकर्ता भी उन्हें रिसीव करने नहीं आया था। उस दौर में पूर्व जिला प्रमुख सत्यकिशोर सक्सैना उनके करीबी हुआ करते थे। कदाचित माथुर साहब गोपनीय यात्रा पर आए थे, इसलिए अपने अजीज सक्सैना साहब को भी सूचित नहीं किया। हम उनसे इसलिए नहीं मिले कि वे जिस स्थिति में पहचाने गए हैं, तो उन्हें असहज महसूस होगा। हम तो वहां से चले गए, हो सकता है कि बाद में उन्हें कोई लेने आया हो। खैर, माथुर साहब को देख कर यकायक 41 साल पहले का मंजर फिल्म की माफिक मस्तिष्क में घूमने लगा। ख्याल आया कि राजनीति भी क्या चीज है, खास को भी आम बना देती है। जब तक आदमी पद पर रहता है, उसके साथ कई चीजें होती हैं और पद से हटने पर बहुत कुछ खो जाता है।

अजमेर में पैसा पानी की तरह बह जाता है

अजमेर का पानी से गहरा नाता रहा है। यह एक कटु सत्य है कि पानी की कमी के चलते अजमेर राजधानी बनने से रह गया। एक ओर भारी बरसात के कारण पानी निचली बस्तियों में तबाही मचा देता है, तो दूसरी ओर जीवनदायिनी बीसलपुर परियोजना के पानी से अजमेर की प्यास अभी तक नहीं बुझ पायी है।

वैसे एक बात है। तीर्थराज पुश्कर व दरगाह ख्वाजा साहब को अपने आंचल में समेटे अजमेर की अंतर राश्टीय क्षितिज पर खास पहचान है। इसी कारण विकास के लिए कई बार केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से विषेश राषि आती रही है, मगर दुर्भाग्य से पैसा पानी की तरह बह जाता है। 

आपको ख्याल होगा कि 786वें उर्स में बडी संख्या में जायरीन की आवक के मद्देनजर वीवीआईपी के लिए नागफणी से अंदर कोट तक संपर्क सडक बनाई गई थी। हालांकि उसकी जरूरत नहीं पडी। बाद में उसका उपयोग ही नहीं किया गया। चट्टानें गिरने से सडक की दुर्दषा होती रही। पहाडी पर अनेक अतिक्रमण हो गए। कुल जमा इस सडक पर लगाया गया पैसा बेकार चला गया।

इसी प्रकार दरगाह से सेंट फ्रांसिस तक सीवरेज लाइन डाली गई, मगर उसका उपयोग हो ही नहीं पाया। बाद में पूरे नगर के लिए सीवरेज लाइन डाली गई, मगर उसकी जो हालत है, वह किसी से छिपी नहीं है। 

भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय षिवचरण माथुर ने तारागढ के आसपास की पहाडी पर हैलीकॉप्टर से बीज बिखेरने की पहल की, ताकि नाग पहाड पर हरियाली हो, मगर उसका फॉलोअप नहीं हुआ। ऐसे में इसी प्रकार बरसाती पानी के व्यर्थ बह जाने को रोकने के लिए पुश्कर घाटी में जापान के सहयोग से छोटे छोटे एनीकट बनाए गए, मगर बाद में रखरखाव न होने के कारण पैसा पानी की तरह बह गया। सीवरेज टीटमेंट प्लांट की हालत किसी से छिपी नहीं है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से अजमेर वासियों को बहुत उम्मीदें थीं, मगर आज जब वह प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है, उसमें पैसा पानी की तरह बहाए जाने के आरोप लगाए जाने लगे हैं। बहुप्रतीक्षित एलिवेटेड रोड बन तो गई, लेकिन उसमें रही खामियों पर चर्चा करते हुए सिर्फ अफसोस ही किया जा सकता है। अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेष जैन ने पर्यटकों को लुभाने के लिए पुश्कर घाटी पर सांझी छत बनाई। 

बहुत बेहतरीन कन्सैप्ट था, मगर बाद में उसकी किसी ने सुध नहीं ली, नतीजतन वहां बंदरों की पंचायत लगती है।

ऐसे ही अनेक उदाहरण मुंह चिढा रहे हैं।