शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

ख्वाजा साहब ने की भारत में सूफी मत की शुरुआत

सुपरिचित इतिहासविद् व पत्रकार श्री शिव शर्मा ने दरगाह शरीफ व ख्वाजा साहब के जीवन और सूफी मत पर गहन अध्ययन किया है। कुछ साल पहले उन्होंने सूफी मत विषय पर एक आलेख भेजा था। वह अजमेरनामा में प्रकाशित किया गया था। इन दिनों ख्वाजा साहब का उर्स चल रहा है। प्रसंगवश आप भी पढियेः- अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर रोज हजारों की तादाद में उनके अकीदतमंद तशरीफ लाते हैं। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती किसी एक समाज और जाति के न होकर हर जाति और समुदाय के बीच शांति और एकता के दूत के रूप में माने जाते हैं। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के चाहने वाले उनको हिंदल वली व गरीब नवाज जैसे नामों से भी पुकारते हैं। मान्यता के अनुसार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान में 536 हिजऱी संवत् अर्थात 1141 ईस्वी पूर्व पर्शिया के सीस्तान में हुआ। रिवायतों में कहा गया है कि ईरान के चश्त शहर से चिश्तिया शब्द निकला है।

चिश्तिया जिसे (सूफी) तरीका भी कहा जाता है, उसकी शुरुआत अबू इसहाक ने की थी। लेकिन भारत में इस तरीके की शुरुआत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में आकर अजमेर को अपनी कर्मस्थली बनाया। कहा जाता है पीर, मुरीदी का सिलसिला ख्वाजा साहब के जमाने से ही आगे बढ़ा। बताया जाता है कि रजब की 6 तारीख 633 हिजरी 1233 ईस्वी को आपका विसाल हुआ। ख्वाजा साहब के पोते ख्वाजा हुसैन चिश्ती अजमेरी ने सज्जादानशीन व मुतवल्ली का सिलसिला जारी रखा। बताया जाता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन साहब के तकरीबन एक हज़ार खलीफ़ा और लाखों मुरीद थे। कई पंथो के सूफ़ी भी इनसे आकर मिलते और चिश्तिया तरीके से जुड़ जाते और शांति का एकता का संदेश देते। उनके मुरीदों में कुतबुद्दीन बख्तियार काकी, बाबा फरीद, निज़ामुद्दीन औलिया, हजऱत अहमद अलाउद्दीन, साबिर कलियरी, अमीर खुसरो नसीरुद्दीन चिराग दहलवी, बन्दे नवाज़, अशरफ जहांगीर सिम्नानी और अता हुसैन फ़ानी जैसी हस्तियां थीं।

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