यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सृष्टि की रचना के संदर्भ में ब्रह्मा जी का जो स्थान बताया गया है, वह इन कथाओं में स्पष्ट नहीं हो पाता। वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो रचनात्मकता की पूरी प्रक्रिया को इस तरह नहीं समझा जा सकता कि पहले से कोई स्थान या प्राणी मौजूद थे।
इस पर राजस्थान सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार व दार्शनिक श्री गोविंद देव व्यास ने बहुत सटीक व विहंगम दृश्टि डाली है। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि यदि आप गीता पढ़ें, उससे पहले लिखे हुए पुराण पढ़ें, यह सुस्पष्ट है कि इस पृथ्वी पर कई बार सृष्टि की रचना हुई। प्रलय आए। सृष्टि समाप्त हुई और बहुत पहले यदि पीपल के पत्ते पर पैर का अंगूठा लिए हुए भगवान कृष्ण को देखा हो तो वह प्रलय के समय की फोटो है। ऐसा पुराणों में अंकित है। यदि जल प्रलय होता है तो पृथ्वी का अधिकांश भाग जलमग्न हो जाता है। उस समय जीव नहीं होते हैं। हिंदू धर्म के कई मतावलंबियों के अनुसार सृष्टि की जब भी पुनः रचना हुई हैं, हर युग आए हैं, सत से कलयुग तक। भारतीय दर्शन के महान विद्वान ने कहा है कई चीजें अनिवरचनीय होती हैं, इन्हें मानव बुद्धि से समझा नहीं जा सकता। गीता में भगवान ने यही कहा है कि हे अर्जुन, पहले भी मेरे कई जन्म हुए और इसके बाद भी होंगे। कुछ तथ्य विश्वास के होते हैं। अविश्वास पर तो हम अपनों को भी नहीं मानते। कुछ लोग तो हमारे पूर्वजों के होने और नहीं होने या काल्पनिक होने पर भी सवाल उठाते हैं। हां, हमारे दर्शन की एक विधा यह भी कहती है की ब्रह्मा, विष्णु, महेश के या अन्य देवताओं के सांकेतिक अर्थ भी हैं। हमारे यहां तो यह भी कहा गया है कि एक ही बात को विद्वान अलग-अलग व्यक्त करते हैं। यह धरती युगों युगों से है। कितनी बार प्रलय के बाद सृष्टि की फिर रचना हुई है।
हिंदू फिलोसोफी के अनुसार, कल्प ब्रह्मांड के समय-चक्र cosmic time cycle की एक इकाई है, जिसे ब्रह्मा के एक दिन (जिसे ब्रह्मा का एक काल भी कहते हैं) के रूप में वर्णित किया गया है।
कल्प का विवरण
1. ब्रह्मा का एक दिन
ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहा जाता है।
एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं, और प्रत्येक मन्वंतर में 71 चतुर्युग (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग का चक्र) होते हैं।
ब्रह्मा का एक दिन = 4.32 अरब मानव वर्ष।
रचनाकार का नाम ब्रह्मा हो सकता है या कोई और यह धरती पुष्कर की हो सकती है या कहीं ओर। कहीं ना कहीं। कोई जीव पहली बार ही आया होगा और विषय विश्वास का है। शायद हमारे धर्म ने ईश्वर से विश्वास करना इसलिए सिखाया कि हम अपनों पर विश्वास कर सकें और फिर अन्य पर विश्वास कर सकें। यह मेरे बहुत निजी विचार हैं। तेजवानी साहब का विषयों को उठाना उन पर चर्चा करना निष्कर्ष निकालना या निकलवाना, यह स्तुत्य है।
श्री व्यास ने जिन बिंदुओं को रेखांकित किया है, उनमें महत्वपूर्ण बात यह है कि यह धरती युगों युगों से है। कितनी बार प्रलय के बाद सृष्टि की फिर रचना हुई है। ऐसे में संभव है, मौजूद सृष्टि की रचना ब्रह्माजी ने पुष्कर में की हो, जो कि पहले से मौजूद रहा हो।