उनके निधन से पत्रकारिता और फोटोग्राफी क्षेत्र में शोक की लहर है। उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिवार को इस कठिन समय में सहनशक्ति दें। बेशक पत्रकार जगत व स्वयंसेवी संस्थाओं ने उनका सहयोग किया, मगर आजीविका के लिए उन्होंने जो कडा संघर्ष किया, उसकी पीढा सिर्फ वे ही जानते होंगे। ऐसे कलाधर्मी का निधन फोटो जर्नलिस्म में करियर तलाशने वालों के लिए एक सबक है। ऐसे कलासेवी के परिवार को संबल देने के लिए पत्रकार संगठनों व सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
सोमवार, 13 जनवरी 2025
बेहतरीन फोटो जर्नलिस्ट महेश मूलचंदानी नटराज नहीं रहे
उपेक्षा की शिकार सोनीजी की नसियां
इतनी विपरीत परिस्थियों के बाद भी यहां हजारों देशी व विदेशी पर्यटक आते हैं और यहां की विश्व स्तरीय बेजोड़ स्वर्ण कारीगरी, चित्रकारी, बेल्जियम व ठीकरी कांच के काम की बारीकी और सुंदरता देख कर दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। अधिकतर पर्यटकों का कहना रहता है कि हमें इस जगह की जानकारी किसी ने दी थी, इसे न देखते तो अजमेर आना सफल नहीं होता। हम अब अपने मिलने वालों को इस जगह को देखने भेजेंगे। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि बहुत से अजमेर वासियों ने ही इसे नहीं देखा है। पर्यटन विभाग को इस स्थान के विकास और पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए उचित कदम उठाना चाहिए।
ज्ञातव्य है कि लाल पत्थरों से बनी ऊंचे शिखरों वाली यह इमारत जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का मंदिर है। इसका निर्माण राय बहादुर सेठ मूलचंद सोनी ने 1864-65 में करवाया। सन् 1885 में इसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा स्थापित करवाई। यह दो मंजिला इमारत सुंदर रंगों से पुती हुई है। इसके प्रांगण में 26 मीटर ऊंचा धवल मानस्तम्भ दर्शनीय है। पीछे की ओर पर्यटकों के लिए बने दो मंजिला भवन में जैन तीर्थंकरों के कल्याणक, तेरह द्वीप, सुमेरू पर्वत, भगवान की जन्म स्थली - अयोध्या नगरी आदि की सुंदर रचना शोभायमान है। यह संपूर्ण रचना स्वर्णखचित वर्काे से ढकी है। इसे ‘स्वर्ण नगरी‘ भी कहते है। यहॉं दीवारों व छत पर की गई पच्चीकारी व कॉंच का कार्य भी दर्शनीय है। इसे लाल मंदिर, सोने का मंदिर व कांच का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
-तेजवानी गिरधर 7742067000