सोमवार, 13 जनवरी 2025

बेहतरीन फोटो जर्नलिस्ट महेश मूलचंदानी नटराज नहीं रहे

अजमेर के सुपरिचित फोटो जर्नलिस्ट महेश मूलचंदानी, जिन्हें महेश नटराज के नाम से भी जाना जाता है, का निधन हो गया। उनकी पहचान एक उत्कृष्ट फोटो जर्नलिस्ट के रूप में थी, जिन्होंने अपने करियर में कई महत्वपूर्ण क्षणों को कैमरे में कैद किया। महेश मूलचंदानी नटराज ने फोटोग्राफी के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई और कई दशकों तक मीडिया जगत में सक्रिय रहे। शायद ही कोई ऐसा महत्वपूर्ण ईवेंट हो, जिसे उन्होंने कवर न किया हो। राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर चुके फोटो जर्नलिस्ट श्री दीपक शर्मा उन्हें आपना गुरू मानते थे और गुरू पूर्णिमा पर उनका अभिनंदन किया करते थे। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महेश नटराज फोटोग्राफी के कितने बारीक जानकार थे। वे लंबे समय तक नटराज स्टूडियो से जुडे रहे और श्री इन्द्र चेनानी उर्फ इन्द्र नटराज के मार्गदर्शन में काम करते रहे। बाद में स्वतंत्र रूप से फोटो जर्नलिस्म करने लगे। उन्होंने लगभग सभी अखबारों के लिए फोटो खींचे। जीवन के आखिरी कुछ सालों से अस्वस्थ थे, मगर लगातार सक्रिय बने रहे। चंद माह पहले ही उन्हें पेरेलेटिक अटैक आया था, उसके बाद भी मजबूत इच्छाशक्ति के दम पर उससे उबरने में कामयाब हो गए और फिर काम आरंभ कर दिया। सामाजिक कार्यक्रमों में भी बढ चढ कर हिस्सा लिया करते थे। वे अपने पीछे मां, पत्नी व तीन पुत्रियां छोड गए हैं।

उनके निधन से पत्रकारिता और फोटोग्राफी क्षेत्र में शोक की लहर है। उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और उनके परिवार को इस कठिन समय में सहनशक्ति दें। बेशक पत्रकार जगत व स्वयंसेवी संस्थाओं ने उनका सहयोग किया, मगर आजीविका के लिए उन्होंने जो कडा संघर्ष किया, उसकी पीढा सिर्फ वे ही जानते होंगे। ऐसे कलाधर्मी का निधन फोटो जर्नलिस्म में करियर तलाशने वालों के लिए एक सबक है। ऐसे कलासेवी के परिवार को संबल देने के लिए पत्रकार संगठनों व सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए।

उपेक्षा की शिकार सोनीजी की नसियां

अजमेर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में सोनीजी की नसियां का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। मगर ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व वाले इस धर्मस्थल को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने पर सरकार की ओर से कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। नसियां के प्रधान श्री प्रमोद सोनी ने बताया कि अजमेर के सभी धर्मस्थलों में सबसे ज्यादा उपेक्षा का शिकार अगर है तो वो है सोनीजी की नसियां। सरकार ने उसके आसपास मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं करा रखी हैं। रेंगता यातायात, टूटी फूटी सड़क, गंदी नालियों का बहता पानी, पार्किंग की समस्या और कोढ़ में खाज का काम करने वाला एलिवेटेड रोड, जिसने इस विश्व स्तरीय स्माराक को पूरी तरह छुपा लिया है। 

इतनी विपरीत परिस्थियों के बाद भी यहां हजारों देशी व विदेशी पर्यटक आते हैं और यहां की विश्व स्तरीय बेजोड़ स्वर्ण कारीगरी, चित्रकारी, बेल्जियम व ठीकरी कांच के काम की बारीकी और सुंदरता देख कर दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। अधिकतर पर्यटकों का कहना रहता है कि हमें इस जगह की जानकारी किसी ने दी थी, इसे न देखते तो अजमेर आना सफल नहीं होता। हम अब अपने मिलने वालों को इस जगह को देखने भेजेंगे। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि बहुत से अजमेर वासियों ने ही इसे नहीं देखा है। पर्यटन विभाग को इस स्थान के विकास और पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए उचित कदम उठाना चाहिए।

ज्ञातव्य है कि लाल पत्थरों से बनी ऊंचे शिखरों वाली यह इमारत जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का मंदिर है। इसका निर्माण राय बहादुर सेठ मूलचंद सोनी ने 1864-65 में करवाया। सन् 1885 में इसमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा स्थापित करवाई। यह दो मंजिला इमारत सुंदर रंगों से पुती हुई है। इसके प्रांगण में 26 मीटर ऊंचा धवल मानस्तम्भ दर्शनीय है। पीछे की ओर पर्यटकों के लिए बने दो मंजिला भवन में जैन तीर्थंकरों के कल्याणक, तेरह द्वीप, सुमेरू पर्वत, भगवान की जन्म स्थली - अयोध्या नगरी आदि की सुंदर रचना शोभायमान है। यह संपूर्ण रचना स्वर्णखचित वर्काे से ढकी है। इसे ‘स्वर्ण नगरी‘ भी कहते है। यहॉं दीवारों व छत पर की गई पच्चीकारी व कॉंच का कार्य भी दर्शनीय है। इसे लाल मंदिर, सोने का मंदिर व कांच का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

-तेजवानी गिरधर 7742067000