शनिवार, 30 नवंबर 2024

कौन होगा एडीए अध्यक्ष?

राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव में सफलता से उत्साहित भाजपा में सरकारी राजनीतिक नियुक्तियों की कवायद आरंभ हो गई है। कुछ नियुक्तियां बजट सत्र से पहले हो सकती हैं। कानाफूसी है कि अजमेर विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष के लिए दावेदारों ने एक्सरसाइज तेज कर दी है। समझा जाता है कि अजमेर में अनुसूचित जाति की एक विधायक श्रीमती अनिता भदेल व सिंधी समुदाय से दूसरे विधायक वासुदेव देवनानी के रहते सामान्य वर्ग के वेश्य, ब्राह्मण व राजपूत का तरजीह मिलेगी। वणिक वर्ग में पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिया का नाम सबसे उपर है। उन्होंने नागौर जिले के खींवसर विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने पूरी गंभीरता से एडी चोटी का जोर लगा दिया। सफलता के श्रेय उनके खाते में भी दर्ज हो गया है। उन्हें लंबे समय से राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाया है, इस कारण इस बार मौका मिल सकता है। वे साधन संपन्न भी हैं, जिसकी प्राधिकरण अध्यक्ष बनने में बहुत जरूरी है। दूसरे हैं पूर्व संघ महानगर प्रमुख सुनिल दत्त जैन। तीसरे हैं, प्रवीण जैन, जिन पर केन्द्रीय राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी का वरद हस्त है। कुछ लोग अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन का नाम भी ले रहे हैं। पिछला अधूरा कार्यकाल उन्हें आज तक सालता है। आरएसएस पदाधिकारियों से उनके अच्छे संबंध हैं। विकल्प के रूप में वे अपने पुत्र अमित जैन का नाम आगे कर सकते हैं। इसी प्रकार नगर निगम के पूर्व मेयर धमेन्द्र गहलोत भी प्रबल दावेदार है, मगर देवनानी से ताजा नाइत्तफाकी बाधा बन सकती है।

राजपूत वर्ग में अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का नाम चल रहा है, जो ताजा बदले समीकरण में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के नजदीक जा चुके हैं। ब्राह्मण समुदाय में भाजपा छोड चुके पार्षद ज्ञान सारस्वत की गिनती है, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में बगावत करने के कारण बडी बाधा बनी हुई है। संघ का एक धडा आगामी निगम चुनाव से पहले उनकी पार्टी में दमदार वापसी चाहता है। केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के करीबी जे के शर्मा भी लाइन में हैं, मगर वे पार्टी से निलंबित हैं। आरएसएस पृष्ठभूमि के वकील जगदीश राणा के नाम पर भी विचार चल रहा है। हालांकि किसी सिंधी के प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने की बहुत कम संभावना है, मगर कोई साधन संपन्नता के दम पर बाजी मार भी सकता है। अजमेरशहर भाजपा अध्यक्ष रमेश सोनी की लॉटरी लग सकती है। महिलाओं में डॉ कमला गोखरू व भारती श्रीवास्तव के नाम हैं। जो भी बने, मगर उसमें देवनानी की स्वीकृति जरूर ली जाएगी।

 

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

आजादी के बाद अजमेर के पहले कांग्रेस अध्यक्ष थे स्व श्री जीतमल लूनिया

अजमेर में 15 नवम्बर, 1905 को जन्मे श्री जीतमल लूनिया ने एम.ए. तक शिक्षा अर्जित की। वे सन् 1914 में इंदौर गए और स्वर्गीय श्री हरिभाऊ उपाध्याय के साथ मिल कर मालवा मयूर नामक मासिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। सन् 1916 में हिंदी साहित्य मंदिर की स्थापना की। सन् 1922 में उसका कार्यालय बनारस स्थानांतरित हो गया। इसके बाद स्व. श्री अर्जुन लाल सेठी के सुझाव पर सन् 1925 में अजमेर आ गए। यहां सस्ता साहित्य मंडल के नाम से प्रकाशन कार्य शुरू किया। उन्होंने अहसहयोग आंदोलन में भाग लिया और कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। सरकार ने उसे गैर कानूनी घोषित कर दिया और उन्हें एक साल तक कारावास में रखा गया। इसके बाद पत्नी श्रीमती सरदार बाई के साथ सत्याग्रह में भाग लिया और छह-छह माह तक कारावास भोगा। सन् 1933 में अजमेर सेवा भवन नामक संस्था की स्थापना की और अछूतोद्धार व राष्ट्रोत्थान के कामों में लग गए। सन् 1940 में फिर सत्याग्रह में भाग लिया और 1942 में फिर एक साल का कारावास भोगा। सन् 1947 में शहर कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और 15 अगस्त को देश की आजादी पर नया बाजार स्थित राजकीय संग्रहालय पर तिरंगा झंडा फहराया। वे 1948 में नगर परिषद के अध्यक्ष चुने गए। सन् 1970 में दिल्ली में स्वतंत्रता सेनानी प्रशस्ति एवं ताम्रपत्र से सम्मानित किए गए। सन् 1973 में शराबबंदी सत्याग्रह में भाग लिया और जेल गए।

अजमेर एट ए ग्लांस से साभार


नाम पहले भी बदले जाते रहे हैं

आज जब विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी के निर्देश पर खादिम टूरिस्ट बैंग्लो का नाम अजयमेरू के नाम पर कर दिया गया है, फॉय सागर का नाम वरूण सागर किया जा रहा है, किंग एडवर्ड मेमोरियल का नाम ऋषि दयानंद के नाम पर करने की कवायद हो रही है तो ख्याल आता है, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी कई स्थानों के नाम बदले हैं। 

आज जिसे हम तारागढ के रूप में जानते हैं, प्रारंभ में उसका नाम अजयमेरू दुर्ग था। सन् 1505 में मेवाड़ के राजकुमार पृथ्वीराज ने इस पर अधिकार किया तथा अपनी रानी ताराबाई के नाम से दुर्ग का नाम तारागढ़ रख दिया।

कुछ और उदाहरण लीजिए-

अजमेर के प्रबुद्ध नागरिक ऐतेजाद अहमद खान ने कुछ साल पहले फेसबुक पर एक फोटो शाया की थी, जो कि यह प्रमाणित करती है कि हम जिसे केसरगंज (Kesar) इलाके के नाम से जानते हैं, वह असल में (Qaiser) गंज है, जिसकी स्थापना 1883 में हुई थी। इसका अपभ्रंश होते हुए वह केसरगंज हो गया और ये ही आजकल प्रयोग में आ रहा है। 

शहर के अन्य कई स्थान भी पहले किसी और नाम से थे, जो कि बाद में बदल गए। इनकी बानगी देखिए- जिसे हम आज रामगंज कहते हैं, वह कभी रसूल गंज हुआ करता था। इसका प्रमाण ये है कि पुलिस चौकी वाली गली में उसकी नामपट्टिका लगी हुई है। इसी प्रकार आज जिस पर्यटन स्थल को हम ढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं, वह कभी सरस्वती कंठाभरण संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। इसी प्रकार अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित अकबर के किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। बाद में इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाने लगा। अब नाम राजकीय संग्रहालय कर दिया गया है।

यह सब जानते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहा करते थे, उसे क्रिश्चियनगंज कहा जाता है, मगर आज कई लोग उसे कृष्णगंज के नाम से पुकारना पसंद करते हैं और कुछ संस्थाओं के नाम इसी नाम पर हैं। हालांकि क्षेत्र के पुलिस थाने का नाम क्रिश्चियनगंज गंज थाना है। इसी प्रकार अंदरकोट को आज कई लोग इंद्रकोट कहना पसंद करते हैं, जब कि इसका अर्थ था परकोटे के अंदर का हिस्सा। इसी प्रकार आपको ख्याल होगा कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को आज भी कई पुराने लोग विक्टोरिया अस्पताल के नाम से जानते हैं, जिसका नाम आजादी के बाद नेहरू जी के नाम से कर दिया गया। इसी प्रकार इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की रजत जयंती के मौके पर रेलवे स्टेशन के सामने विक्टोरिया क्लॉक टावर निर्माण करवाया गया, जिसे आज हम केवल क्लॉक टावर या घंटाघर के नाम से जानते हैं और उसी के नाम पर क्लॉक टावर पुलिस थाने का नाम है। लंबे समय तक राजकीय महाविद्यालय के नाम से जाना जाने वाले ब्रिटिशकालीन कॉलेज का नाम कुछ साल पहले की सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय कर दिया गया। उसके मुख्य द्वार को भगवा रंग से रंग दिया गया है। इसी प्रकार अजमेर विश्वविद्यालय का नाम महर्षि दयानंद सरस्वती के नाम कर दिया गया। ऐसे ही जयपुर रोड पर तत्कालीन यूआईटी चेयरमेन डॉ श्रीगोपाल बाहेती ने शायद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मिजाजपुर्सी में अशोक उद्यान बनाया, जिसे बाद में भाजपा सरकार में सम्राट अशोक उद्यान कर दिया गया। 

आपको ख्याल में होगा कि कुछ साल पहले अजमेर रेलवे स्टेशन को अजमेर शरीफ किया जा रहा था, मगर विरोध के चलते उसे रोक दिया गया। 

वस्तुतः कालचक्र में जब भी जो प्रभावशाली हुआ, उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नाम बदल दिए। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें उद्वेलित होने जैसी कोई बात नहीं है।

बुधवार, 27 नवंबर 2024

जब नरसिंह राव को काले झंडे दिखाने को आमादा थे पत्रकार

अजमेर के पत्रकार जागरूक व तेज तर्रार रहे हैं। कई मामलों में ज्वलंत विषयों पर खोजपूर्ण पत्रकारिता इनकी पहचान रही है। लंबी फेहरिश्त है। अजमेर दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है। यहां आए दिन दरगाह शरीफ व तीर्थराज पुष्कर में वीवीआई का आगमन होता है। उसका कवरेज पूरी गंभीरता से करते हैं। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव का अजमेर आगमन हुआ। उनका दरगाह जियारत का कार्यक्रम था। पत्रकार चाहते थे कि उनसे बातचीत हो जाए, मगर एसपीजी सुरक्षा कारणों से इसके लिए तैयार नहीं थी। यहां तक कि पत्रकारों को कवरेज के लिए दरगाह में प्रवेश नहीं दिया गया। इससे पत्रकार नाराज हो गए और राव से मिलने को अड गए। दरगाह के सामने वाला रोड देहली गेट तक खाली करवा लिया गया था। सारे पत्रकार ईगल स्टूडियो में जा कर बैठ गए। योजना बनी कि विरोध स्वरूप राव को काले झंडे दिखाए जाएं। जैसे ही प्रशासन को पता लगा, वह हरकत में आ गया। कलेक्टर एसपी के तो हाथ पांव फूल गए। व्यवस्था ये दी गई कि हेलीपेड पर बात करवा दी जाएगी। सारे पत्रकार हेलीपेड पहुंच गए। राव जब वहां पहुंचे तो सब अलर्ट हो गए कि अब बात हो जाएगी। तय यही हुआ कि सभी लाइन से खडे हो जाएं, एक एक से बात करवाई जाएगी। राव आए। धीरे धीरे चलते गए। पत्रकारों ने सवाल दागना शुरू कर दिए। मौनी बाबा राव मुस्कराते हुए आगे बढते गए। सवाल सुने, मगर एक का भी जवाब नहीं दिया। पत्रकारों को बडी निराशा हुई, मगर क्या किया जा सकता था। प्रशासन ने तो अपना मिलवाने का वादा निभा दिया, मगर जवाब देने वाला जवाब न देना चाहे तो उसका कोई उपाय नहीं।


मंगलवार, 26 नवंबर 2024

अदिति मेहता पर था शेखावत का वरदहस्त

अजमेर में अब तक के कलेक्टर्स में श्रीमती अदिति मेहता की गिनती सर्वाधिक बिंदास व एनर्जेटिक अफसरों में होती है। उन्हीं के कार्यकाल में अजमेर जिला पूरे उत्तर भारत में अकेला संपूर्ण साक्षर जिला घोषित हुआ। जैसे आज शहर में अतिक्रमण व अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त रवैये के लिए विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ख्याति प्राप्त कर रहे हैं, वैसे ही श्रीमती मेहता ने उस जमाने में अतिक्रमण हटाओ अभियान चला कर शहर की तस्वीर ही बदल दी थी। संकडी गलियां बन चुके डिग्गी बाजार व नला बाजार बाकायदा बाजार नजर आने लगे थे। यहां तक कि विरोध और पत्थरबाजी के बावजूद दरगाह की सीढियों पर खुद बैठ कर आसपास के इलाके का अतिक्रमण सख्ती से हटवा दिया था। इस लिहाज से उन्हें आज भी याद किया जाता है। असल में दोनों स्थितियां सत्ता की ताकत से निर्मित हुई हैं। देवनानी आज पावर में हैं, वैसे ही अदिति मेहता इसी कारण कामयाब कलेक्टर के रूप में गिनी गईं क्योंकि उन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत का वरदहस्त था। एक छोटी सी घटना याद आती है। अदिति मेहता के अतिक्रमण हटाओ अभियान के बाद शेखावत अजमेर आए तो दरगाह के बाहर व्यापारियों ने उन्हें घेर लिया। बडा आक्रोष था। उनकी शिकायत थी कि वे वर्षाें से भाजपा के साथ जुडे हुए हैं, तो प्रशासन उनके साथ सख्ती क्यों कर रहा है? इस पर शेखावत ने विनोदपूर्ण मुद्रा में एक व्यापारी के मोटे पेट पर हाथ फेरते हुए कहा कि सेठ जी, आपने सरकार की जमीन पर कई साल तक जम कर कमाया है, अब तो इसे छोडिये, यह कह कर अदिति मेहता के विरोध को दरकिनार कर दिया। उससे संदेश यही गया कि अदिति मेहता को शेखावत का आशीर्वाद हासिल है।


सोमवार, 25 नवंबर 2024

अजमेर जिले में एक ही कलेक्टर नाकाफी

किसी भी जिले में एक ही कलेक्टर होता है, प्रशासन का मुखिया, मगर अनुभव बताता है कि अजमेर में एक ही कलेक्टर नाकाफी है। असल में अजमेर के कलेक्टर पर काम का बोझ इतना अधिक है कि अमूमन वह दायित्वों की कसौटी पर पूरा खरा नहीं उतर पाता। वह अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाता। अजमेर में ख्वाजा साहब के उर्स, मिनी उर्स व पुष्कर मेले के इंतजामात के अतिरिक्त वीआईपी के आगमन पर प्रोटोकोल में हाजिर रहने के कारण कलेक्टर सामान्य विकास कार्यों पर ध्यान देने और ज्वलंत समस्याओं से निपटने पर उतना फोकस नहीं पाता, जितना जरूरी है। इसके अतिरिक्त उस पर अजमेर विकास प्राधिकरण की अतिरिक्त जिम्मेदारी है, मगर काम की अधिकता इतनी अधिक है कि उसे उस ओर पूरा ध्यान देने का समय ही नहीं मिल पाता। बेशक अतिरिक्त जिला कलेक्टर्स उसके सहयोग के लिए तैनात हैं, मगर उनकी स्वतंत्र हैसियत नहीं है। वे अंततः कलेक्टर पर ही निर्भर होते हैं। आप देखिये न, हाल ही पुष्कर मेले में बदइंतजामी होने पर जिला कलेक्टर से मुख्य सचिव ने स्पष्टीकरण मांग लिया। वजह साफ है, काम का बोझ अधिक होने के कारण वे मेले में ग्राउंड लेवल पर सार्थक कमांड नहीं रख पाए। ऐसे में ख्याल आता है कि क्या जिले की सामान्य व्यवस्थाओं के अतिरिक्त जितने भी काम हैं, उसके लिए एक अतिरिक्त कलेक्टर अलग से तैनात किया जाना चाहिए?


रविवार, 24 नवंबर 2024

अजमेर में अग्रणी ब्लॉगर हैं डॉ राजेन्द्र तेला

अजमेर में टच स्क्रीन मोबाइल फोन के चलन के बाद अनेक पत्रकार ब्लॉगिंग कर रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपने ब्लॉग साझा कर रहे हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब ब्लॉग पीसी पर ही देखे जा सकते थे। बात 2010 के आसपास की है। अजमेर के जाने-माने दंत चिकित्सक डॉ राजेन्द्र तेला ने उससे भी पहले ब्लॉगिंग आरंभ कर दी थी। संभवतः वे अजमेर के पहले ब्लॉगर थे, जो अपनी कविताओं को प्रकाशित किया करते थे। कदाचित कोई और भी ब्लॉगर रहा हो, मगर उसकी जानकारी नहीं। मैने 2010 में अपने ब्लॉग आरंभ किए थे। तेजवानी गिरधर, अजमेरनामा, तीसरी आंख, दखल व साझा मंच के नाम से। इस लिहाज से मैं न्यूज बेस्ड ब्लॉग नियमित लिखने वाला पहला ब्लॉगर हूं। साझा मंच में डॉ तेला की अनेक रचनाएं प्रकाशित हुईं। वर्तमान ब्लॉगर्स ने तो बहुत बाद में जाना कि ब्लॉग होता क्या है? हिंदी फोंट को यूनिकोड में कन्वर्ट करने की जानकारी गिनती के लोगों को ही थी। अब तो मोबाइल फोन पर ही यूनिकोड में लिखना आसान हो गया है। गौरतलब तथ्य यह भी है कि कुछ ब्लॉगर ही ऐसे हैं, जिन्होंने बाकायदा ब्लॉग स्पॉट पर ब्लॉग बनाया है, बाकी टैक्स्ट सीधा वाट्सऐप व फेसबुक पर पोस्ट कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो ब्लॉग में सीधे खबर ही साझा कर रहे हैं।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

शख्सियत: सर्वश्रेष्ठ जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं श्री प्यारे मोहन त्रिपाठी

अखबारों में पत्रकारिता से अपना कैरियर शुरू कर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के संयुक्त निदेशक पद सेवानिवृत्त हुए श्री प्यारे मोहन त्रिपाठी ने सर्वश्रेष्ठ जनसंपर्क अधिकारी के रूप में पूरे प्रदेश में नाम कमाया है। वे अपने मधुर व्यवहार व सहयोगी प्रवृत्ति के कारण लोकप्रिय रहे और योग्यता के दम पर कांग्रेस व भाजपा, दोनों की सरकारों में प्रभावशाली अधिकारी के रूप में जाने जाते रहे। उल्लेखनीय है कि 31 दिसंबर 2015 उनकी सेवानिवृत्ति पर सूचना केन्द्र, अजमेर में हुआ समारोह पूरे राजस्थान के लिये मिसाल बन गया। उसमें केन्द्रीय मंत्री, राजस्थान के मंत्रीगण, मेयर व अन्य जनप्रतिनिधि, संभागीय आयुक्त व जिला कलक्टर सहित मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार व अधिकारी व सभी पारीवारिक सदस्य मौजूद थे। 

उनका जन्म 1 जनवरी, 1956 को हुआ। उन्होंने बी.कॉम., एम. कॉम. (वित्तीय प्रबंध) और एम.ए. हिंदी की डिग्रियां हासिल कीं। उन्होंने सरकारी सेवा सहायक जनसंपर्क अधिकारी के रूप में शुरू की और चूरू, बीकानेर, भीलवाड़ा व अजमेर में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में काम किया। इसी प्रकार राजस्थान आवासन मंडल, जयपुर के जनसंपर्क अधिकारी भी रहे। अक्टूबर 1996 से अक्टूबर 1997 तक महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के उप कुल सचिव भी रहे। वे इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर और कोटा खुला विश्वविद्यालय, कोटा के काउंसलर भी रहे हैं। 

वे उपराष्ट्रपति स्व. श्री भैरोंसिंह शेखावत के हाथों 15 सितंबर, 2003 को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हुए। इसी प्रकार 15 अगस्त, 1996 को उन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त 30 मई, 1999 को यूनेस्को फेडरेशन अवार्ड और 2000 में प्रतिष्ठित माणक अवार्ड भी हासिल कर चुके हैं। वे चार बार जिला स्तर पर भी सम्मानित हुए और दो बार पुष्कर व उर्स मेले में राज्य स्तर पर राज्यस्तरीय प्रदर्शनी पुरस्कार हासिल किया। दोनों मेलों को दुनिया में पहचान दिलाने में उनकी अहम भूमिका है। अनेक बार दूरदर्शन और आकाशवाणी में परिचर्चाओं में भाग ले चुके हैं और उनके एक हजार से भी ज्यादा लेख-फीचर देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

सेवानिवृत्ति के बाद राजस्थान लोक सेवा आयोग में मीडिया एडवाइजर व एक्सपर्ट के रूप में सेवाएं दे चुके हैं। इसके अतिरिक्त राजस्थान आईएलडी स्किल यूनिवर्सिटी के सीई भी रहे हैं।

रविवार, 17 नवंबर 2024

मौजूदा सृष्टि की रचना से पहले भी पुष्कर मौजूद था?

हाल ही ब्रह्माजी के बारे में अजमेरनामा डॉट कॉम में प्रकाशित जानकारी पर अजमेर के सुपरिचित बुद्धिजीवी श्री रमेश टेहलानी ने प्रतिक्रिया में कुछ सवाल उठाए। उनका कहना है कि अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना पुष्कर में की, तो यह प्रश्न उठता है कि पुष्कर क्या सृष्टि से पहले मौजूद था? अगर पुष्कर पहले से था, तो फिर ब्रह्मा जी ने किस चीज की रचना की? इसका उत्तर स्पष्ट रूप से पुराणों में नहीं मिलता, और यह एक विरोधाभास पैदा करता है। पद्म पुराण की कथा के अनुसार, राक्षस वज्रनाभ का वध ब्रह्मा जी ने किया। अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो क्या उन्होंने ही राक्षसों की भी रचना की? यदि हां, तो फिर उन्होंने वज्रनाभ का वध क्यों किया? अगर राक्षस पहले से थे, तो यह मानना होगा कि सृष्टि पहले से अस्तित्व में थी, जो एक और विरोधाभास है। 

यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सृष्टि की रचना के संदर्भ में ब्रह्मा जी का जो स्थान बताया गया है, वह इन कथाओं में स्पष्ट नहीं हो पाता। वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो रचनात्मकता की पूरी प्रक्रिया को इस तरह नहीं समझा जा सकता कि पहले से कोई स्थान या प्राणी मौजूद थे।


इस पर राजस्थान सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार व दार्शनिक श्री गोविंद देव व्यास ने बहुत सटीक व विहंगम दृश्टि डाली है। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि यदि आप गीता पढ़ें, उससे पहले लिखे हुए पुराण पढ़ें, यह सुस्पष्ट है कि इस पृथ्वी पर कई बार सृष्टि की रचना हुई। प्रलय आए। सृष्टि समाप्त हुई और बहुत पहले यदि पीपल के पत्ते पर पैर का अंगूठा लिए हुए भगवान कृष्ण को देखा हो तो वह प्रलय के समय की फोटो है। ऐसा पुराणों में अंकित है। यदि जल प्रलय होता है तो पृथ्वी का अधिकांश भाग जलमग्न हो जाता है। उस समय जीव नहीं होते हैं। हिंदू धर्म के कई मतावलंबियों के अनुसार सृष्टि की जब भी पुनः रचना हुई हैं, हर युग आए हैं, सत से कलयुग तक। भारतीय दर्शन के महान विद्वान ने कहा है कई चीजें अनिवरचनीय होती हैं, इन्हें मानव बुद्धि से समझा नहीं जा सकता। गीता में भगवान ने यही कहा है कि हे अर्जुन, पहले भी मेरे कई जन्म हुए और इसके बाद भी होंगे। कुछ तथ्य विश्वास के होते हैं। अविश्वास पर तो हम अपनों को भी नहीं मानते। कुछ लोग तो हमारे पूर्वजों के होने और नहीं होने या काल्पनिक होने पर भी सवाल उठाते हैं। हां, हमारे दर्शन की एक विधा यह भी कहती है की ब्रह्मा, विष्णु, महेश के या अन्य देवताओं के सांकेतिक अर्थ भी हैं। हमारे यहां तो यह भी कहा गया है कि एक ही बात को विद्वान अलग-अलग व्यक्त करते हैं। यह धरती युगों युगों से है। कितनी बार प्रलय के बाद सृष्टि की फिर रचना हुई है। 

हिंदू फिलोसोफी के अनुसार, कल्प ब्रह्मांड के समय-चक्र cosmic time cycle की एक इकाई है, जिसे ब्रह्मा के एक दिन (जिसे ब्रह्मा का एक काल भी कहते हैं) के रूप में वर्णित किया गया है।

कल्प का विवरण

1. ब्रह्मा का एक दिन

ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहा जाता है।

एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं, और प्रत्येक मन्वंतर में 71 चतुर्युग (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग का चक्र) होते हैं।

ब्रह्मा का एक दिन = 4.32 अरब मानव वर्ष।

रचनाकार का नाम ब्रह्मा हो सकता है या कोई और यह धरती पुष्कर की हो सकती है या कहीं ओर। कहीं ना कहीं। कोई जीव पहली बार ही आया होगा और विषय विश्वास का है। शायद हमारे धर्म ने ईश्वर से विश्वास करना इसलिए सिखाया कि हम अपनों पर विश्वास कर सकें और फिर अन्य पर विश्वास कर सकें। यह मेरे बहुत निजी विचार हैं। तेजवानी साहब का विषयों को उठाना उन पर चर्चा करना निष्कर्ष निकालना या निकलवाना, यह स्तुत्य है।

श्री व्यास ने जिन बिंदुओं को रेखांकित किया है, उनमें महत्वपूर्ण बात यह है कि यह धरती युगों युगों से है। कितनी बार प्रलय के बाद सृष्टि की फिर रचना हुई है। ऐसे में संभव है, मौजूद सृष्टि की रचना ब्रह्माजी ने पुष्कर में की हो, जो कि पहले से मौजूद रहा हो।

शनिवार, 16 नवंबर 2024

जगतपिता ब्रह्माजी के कई मंदिर हैं

शास्त्रानुसार अब तक स्थापित तथ्य यह है कि जगतपिता ब्रह्माजी का एक ही मंदिर तीर्थराज पुष्कर में स्थित है। ऐसा सावित्री माता के श्राप के कारण है। इस सिलसिले में अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल में एक आलेख साझा करने पर अनेक प्रतिक्रियाएं आई हैं, जिनसे यह ज्ञात होता है कि कई अन्य जगहों पर भी मंदिर बने हैं। पहली प्रतिक्रिया ने सुपरिचित बुद्धिजीवी डॉ प्रवीण बहल ने दी कि यूएसए में भी एक मंदिर है। 

इंटरनेट के चैटजीपीटी प्लेटफार्म पर खोज की तो पता लगा कि कई स्थानों पर ब्रह्माजी के मंदिर हैं। ब्रह्माजी का एक मंदिर केरल के थालायोलपरंबु में स्थित है। यह मंदिर कम प्रसिद्ध है, लेकिन स्थानीय भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। तमिलनाडु के कुंभकोणम में ब्रह्मा मंदिर स्थित है। यह मंदिर ब्रह्माजी के सीमित पूजन स्थलों में से एक है।इंडोनेशिया के प्रंबनन में ब्रह्माजी का मंदिर एक विशाल मंदिर परिसर का हिस्सा है।यह दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित सबसे बड़े हिंदू मंदिर परिसरों में से एक है। थाईलैंड में एरावन श्राइन में भगवान ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। यह पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है। 

वरिष्ठ पत्रकार श्री गहेन्द्र बोहरा ने प्रतिक्रिया दी है कि ब्रह्मा जी का एक मंदिर बालोतरा से 14 किमी दूर सिवाना रोड पर है। इसे खेता राम जी महाराज ने बनवाया था। इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा चल रही थी, उसी दौरान उन्होने शरीर छोड़ दिया। प्रति दिन लाखों की संख्या में भक्त दर्शनार्थ आते है। गत 15 नवंबर 2024 को मंदिर परिसर में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। उस कार्यक्रम का हिस्सा बनने का मुझे भी अवसर मिला। यहां की सारी व्यवस्था राज पुरोहित समाज द्वारा की जाती है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क कर सकते है।

श्री नितिन माहेश्वरी ने प्रतिक्रिया दी है कि जब शास्त्र में कहा गया है कि पुष्कर के अलावा ब्रह्माजी की कहीं भी पूजा नहीं होगी, यहां तक कि घर में मंदिर में भी नहीं, तो फिर अन्यत्र कहीं भी मंदिर बनाओ, वह तर्कसंगत ही सही होना चाहिए। श्री गुलाब जिंदल में कहा है कि राजस्थान में ही दो और हैं। श्री नरेश चीता का कहना है कि बांसवाड़ा में छींच में है। वरिष्ठ पत्रकार श्री अनुराग जैन ने बताया कि हरियाणा में भी कहीं ब्रह्माजी का मंदिर बनाया गया है ।


शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

सृष्टि की रचना से पहले पुष्कर?

हाल ही ब्रह्माजी के बारे में अजमेरनामा डॉट कॉम में प्रकाशित जानकारी पर अजमेर के सुपरिचित बुद्धिजीवी श्री रमेश टेहलानी ने प्रतिक्रिया में कुछ सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना पुष्कर में की, तो यह प्रश्न उठता है कि पुष्कर क्या सृष्टि से पहले मौजूद था? अगर पुष्कर पहले से था, तो फिर ब्रह्मा जी ने किस चीज की रचना की? इसका उत्तर स्पष्ट रूप से पुराणों में नहीं मिलता, और यह एक विरोधाभास पैदा करता है।

’राक्षसों का अस्तित्व’ 

पद्म पुराण की कथा के अनुसार, राक्षस वज्रनाभ का वध ब्रह्मा जी ने किया। अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो क्या उन्होंने ही राक्षसों की भी रचना की? यदि हां, तो फिर उन्होंने वज्रनाभ का वध क्यों किया? अगर राक्षस पहले से थे, तो यह मानना होगा कि सृष्टि पहले से अस्तित्व में थी, जो एक और विरोधाभास है।

यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सृष्टि की रचना के संदर्भ में ब्रह्मा जी का जो स्थान बताया गया है, वह इन कथाओं में स्पष्ट नहीं हो पाता। वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो रचनात्मकता की पूरी प्रक्रिया को इस तरह नहीं समझा जा सकता कि पहले से कोई स्थान या प्राणी मौजूद थे।

ब्रह्माजी का एक और मंदिर यूएसए में

यह सर्वविदित है कि ब्रह्माजी का एक मात्र मंदिर तीर्थराज पुष्कर में है। ऐसा देवी सावित्री के श्राप की वजह से बताया जाता है। शास्त्रों में इसका उल्लेख है। अब तक कहीं और ब्रह्माजी का कोई मंदिर होने की जानकारी भी नहीं है। इस सिलसिले में हाल ही एक पोस्ट अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल पर प्रकाशित की गई थी। इस पर अजमेर के जाने माने बुद्धिजीवी डॉ प्रवीण बहल ने प्रतिक्रिया स्वरूप एक फोटो साझा की है, जिसके अनुसार यूएसए में ब्रह्मा शिवम मंदिर है। फोटो में वे स्वयं मंदिर में दिखाई दे रहे हैं।

गुरुवार, 14 नवंबर 2024

ब्रह्माजी का एक ही मंदिर क्यों?

सनातन धर्म में तीन मुख्य देवता माने गए हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, जिन्हें त्रिदेव कहा जाता है। ब्रह्मा जी जगत के रचनाकार, विष्णु पालनकर्ता और महेश अर्थात शंकर संहारक माने जाते हैं। कौतुहलपूर्ण तथ्य ये है कि जहां विष्णु और महेश सहित सभी देवी-देवताओं के अनगिनत मंदिर हैं, जबकि ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है, जो कि तीर्थराज पुष्कर में स्थित है। ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर होने की वजह ये है कि उन्हें उनकी पत्नी सावित्री ने श्राप दिया था।

पद्म पुराण के अनुसार धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था। ऋशि मुनियों व आम जन पर उसके बढ़ते अत्याचारों से क्रोधित हो ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया था। वध करते समय उनके हाथों से कमल का फूल छिटक कर तीन जगहों पर गिरा। इन तीन जगहों पर तीन झीलें बन गई। 

इन्हें ज्येष्ठ पुष्कर अथवा ब्रह्म पुष्कर, मध्य पुष्कर अथवा विष्णु पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर अथवा रुद्र पुष्कर जिसे बूढ़ा पुष्कर भी कहते हैं। बूढ़ा पुष्कर जयपुर बाईपास पर पुष्कर कस्बे से लगभग 4 किलोमीटर दूर कानस ग्राम में स्थित हैं। ज्येष्ठ पुष्कर ही मौजूदा पुष्कर सरोवर है। मध्य पुष्कर विलुप्त हो चुका है। मुख्य विषय पर आते हैं। ब्रह्मा जी ने संसार की भलाई के लिए पुश्कर में एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्मा जी नियत समय पर यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंच गए लेकिन उनकी पत्नी देवी सावित्री समय पर नहीं पहुंच सकीं। चूंकि यज्ञ के विधान के अनुसार साथ में पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन देवी सावित्री जी के नहीं पहुंचने की वजह से ब्रह्मा जी ने गुर्जर समुदाय की स्थानीय एक कन्या गायत्री से विवाह करके इस यज्ञ को आरंभ किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा की बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी कभी भी पूजा नहीं होगी। देवी सावित्री के इस भयानक रूप को देखकर सभी देवता डर गए। सभी ने देवी सावित्री अपना श्राप वापस लेने की विनती की। लेकिन उन्होंने किसी का आग्रह नहीं माना। बाद में जब गुस्सा ठंडा होने पर देवी सावित्री श्राप में तनिक शिथिलता करते हुए कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही आपकी पूजा होगी। यहां के अतिरिक्त कोई भी आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा। चूंकि भगवान विष्णु ने भी गायत्री से विवाह करवाने में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी सावित्री ने विष्णु जी को भी श्राप दिया कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। यही वजह थी कि भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पडा और 14 साल के वनवास के दौरान सीता जी से अलग रहना पड़ा।

ब्रह्मा जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ व किसने किया इसके बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन बताते हैं कि करीब एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक राजा को स्वप्न आया कि पुष्कर में एक जीर्ण मंदिर है, जिसके उद्धार की जरूरत है। उस राजा ने मंदिर के पुराने ढांचे को ठीक करवाया।

पुष्कर में देवी सावित्री का भी मंदिर है जो ब्रह्मा जी के मंदिर के पीछे पहाड़ी पर स्थित है बताते हैं कि देवी सावित्री रूठ कर इसी पहाडी पर जा कर विराजमान हो गई थीं। मंदिर तक पहुंचने का मार्ग बहुत दुर्गम है और सैकड़ों सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

श्री नानकराम जयसिंघानी का निधन अपूरणीय क्षति

स्वर्गीय श्री नानकराम जयसिंघानी का इस दुनिया से जाना वाकई में अजमेर के सिंधी समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। उनका समर्पण और कर्मठता, साथ ही उनका सुमधुर और बेकाकी से भरा व्यक्तित्व समाज के लिए एक प्रेरणा था। सुंदर मेडिकल से जुड़ा उनका नाम और उनकी प्रतिष्ठा न केवल उनके व्यवसाय में बल्कि समाज सेवा में भी अमिट छाप छोड़ गए। उनके द्वारा किए गए योगदान को लोग हमेशा याद करेंगे और उनके जाने से जो स्थान खाली हुआ है, उसकी भरपाई करना वाकई कठिन होगा। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड गए हैं। समाजसेवक के अतिरिक्त वे एक अच्छे बुद्धिजीवी थे और राजनीतिक मसलों पर उनकी अच्छी पकड थी। हालांकि वे किसी परिचय के मोहताज नहीं थे, मगर लोग इस वजह से भी उनको जानते थे कि राजस्थान सूचना आयुक्त श्री एम डी कोरानी उनके बहनोई हैं। ज्ञातव्य है कि श्री कोरानी के पुत्र श्री शशांक कोरानी को अजमेर उत्तर से कांग्रेस टिकट का प्रबल दावेदार माना जाता है। स्वर्गीय श्री जयसिंधानी के सुुपत्र श्री अंशुल जयसिंघानी का भी राजनीति में दखल है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनके निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

बिंदास कांग्रेस नेत्री थीं शकुंतला शर्मा पंडिताइन

अजमेर में ऐसे कई किरदार रहे हैं, जिनकी अजमेर की बहबूदी में अहम भूमिका रही है, मगर उनकी पहचान अतीत में खो गई है। कदाचित मौजूदा पीढी तो उनके नाम तक से वाकिफ नहीं होगी। उनमें से एक हैं स्वर्गीया श्रीमती शकुंतला शर्मा। पंडिताइन के नाम से प्रसिद्ध इस कांग्रेस नेत्री अपने जमाने में कांग्रेस के अग्रणी नेताओं में शुमार थीं। बिंदास व्यक्तित्व के कारण बहुत लोकप्रिय थीं। 12 फरवरी 1943 को जन्मी पंडिताइन ने बारहवीं कक्षा पास की और संस्कृत और एडवांस अंग्रेजी में डिप्लोमा किया। उन्होंने 1970 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और समाज सेवा की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने 1975 की बाढ़ में तन-मन-धन से जनता की सेवा की। 1976 में शहर जिला कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य बनाई गईं। 1984 में कांग्रेस महिला प्रकोष्ठ की संयुक्त सचिव के पद पर रहते हुए उन्होंने महिला सशक्तिकरण और दहेज प्रथा व अत्याचारों के विरुद्ध महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कांग्रेस के हर कार्यक्रम में अग्रणी रहीं और टूटे-फूटे नालों, गंदगी, बिजली व्यवस्था, पानी की सप्लाई जैसे मुद्दों पर सक्रिय रहीं। शकुंतला शर्मा ने 1980 में प्रौढ़ शिक्षा के तहत 280 महिलाओं को साक्षर किया और बाल साक्षरता में योगदान देने का संकल्प लिया। परिवार कल्याण और प्राकृतिक परिवार नियोजन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
1983 में रोटरी क्लब द्वारा नेत्र शिविर में महिलाओं और पुरुषों की सेवा की। लोकसभा चुनाव 1984 में विष्णु मोदी के प्रचार में प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने 1984 में सैकड़ों महिलाओं के साथ मिल कर रक्तदान किया और बाढ़ पीड़ित अनुसूचित जनजाति के लोगों को राशन सामग्री पहुंचाई।
शकुंतला शर्मा ने महिला कांग्रेस के साथ मिल कर जेल भरो आंदोलन में भाग लिया और इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के समय भी जेल में रहने का साहसिक कदम उठाया। उनके नेतृत्व में अजमेर महिला कांग्रेस ने संघर्ष किए, जैसे सिंचाई विभाग का स्थानांतरण रोकना।
1988 में वे प्रदेश महिला कांग्रेस की संयुक्त सचिव और 1990 में कांग्रेस टिकट पर कुंदन नगर से नगर परिषद चुनाव की प्रत्याशी बनीं। इंटेक्स कांग्रेस और सेवादल महिला संगठन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही।
उन्होंने 1998 में डॉ श्रीमती प्रभा ठाकुर के समर्थन में 140 महिलाओं को लेकर प्रचार किया। इस चुनाव में श्रीमती ठाकुर ने जीत हासिल की। अंतिम समय तक कांग्रेस की सेवा करते हुए, 1 अगस्त 2012 को उनका निधन हृदयघात से हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनके एक पुत्र श्री लोकेश शर्मा कांग्रेस संगठन में सक्रिय हैं और दूसरे पुत्र श्री राजीव शर्मा स्वामी न्यूज चैनल में एंकर व रिपोर्टर के रूप में कार्यरत हैं। ज्योतिष पर भी उनकी पकड है।

डॉ सतीश वर्मा शिक्षाविद भी थे

डॉ सतीश वर्मा शिक्षाविद भी थे। वे DAV College, अजमेर में Botany के बहुत ही अच्छे लेक्चरार हुआ करते थे । BSc में पढ़ाई के दौरान मैं उनके इसी बंगले में Botany Subject से Related Problem पूछने जाया करता था तो वे मुझे पूरा Time देकर Notes दिया करते थे। डॉ सतीश वर्मा जी इसी अलवर गेट होम्योपैथी हॉस्पिटल में निवास करते थे और अपने बंगले एक छोटे से हिस्से से होम्योपैथी हॉस्पिटल Start करी। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से इसे एक विशाल वृक्ष का रूप दे दिया जो आज सेवा मन्दिर के नाम से जाना पहचाना जाता है।

वास्तव में उनके जाने से अजमेर के लिए एक अत्यन्त दुखद समाचार है।

<strong>अजित पमनानी</strong>
 

बुधवार, 13 नवंबर 2024

पुष्कर की कहावत इस बार भी चरितार्थ नहीं हुई

कार्तिक एकादषी से धार्मिक पुश्कर मेला आरंभ हो गया, मगर पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी, वह कहावत चरितार्थ नहीं हुई कि पुश्कर सरोवर का पाली हिलने पर कडाके की ठंड षुरू हो जाती है। ज्ञातव्य है कि श्रद्धालुओं के कार्तिक स्नान से पुश्कर के पानी में हलचल होती है, और इसी के साथ सर्दी भी तेज हो जाया करती है। कडाके की सर्दी। ठिठुराने वाली। यह सिलसिला कई साल जारी रहा और कहावत बन गई। लेकिन पिछले कुछ सालों से ऋतु चक्र में बदलाव के कारण पुश्कर का पानी हिलने पर भी ठंड नहीं बढ रही। इसकी एक वजह यह भी मानी जाती है कि नाग पहाड पर अब पहले जैसा जंगल नहीं रहा। वृक्षों की कटाई से पर्यावरण संतुलन बिगड गया है, जिससे यहां का तापमान बढ गया है। नागौर में पसरा रेगिस्तान अजमेर की सीमाओं को छूने लगा है।

जहां तक कहावत का सवाल है तो सर्दी बढने के पीछे कुछ जानकार वैज्ञानिक पहलू मानते हैं। उनके अनुसार पुष्कर का पानी अपने खनिज गुणों के कारण ठंडक को लंबे समय तक बनाए रखता है, और जब हवा में ठंडक बढ़ती है या झील में हलचल होती है, तो इसके पानी की शीतलता और बढ़ जाती है, जिससे वातावरण में ठंडक बढती है। लेकिन अब वायुमंडल का तापमान अधिक है, इसलिए ठंड का असर नहीं दिखाई दे रहा। मात्र गुलाबी ठंड है, वो भी रात में।


मंगलवार, 12 नवंबर 2024

तीन नंबर से अजमेर का बहुत पुराना नाता

शुरू से ही तीन के आंकड़े का अजमेर से काफी पुराना रिश्ता-नाता रहा है। यह तथ्य जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियंता व व्यंग्य लेखक ई. शिव शंकर गोयल की खोजबीन से सामने आया है। उनका कहना है कि पृथ्वीराज चौहान के नाना महाराजा अजयपाल द्वारा बसाई गई और भोगौलिक रूप से राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन, तीनों ही दृष्टियों से बहुत ही अहम है। मुगलों के समय से ही यहां तीन के अंक का बड़ा महत्व रहा है। उस समय यहां तीन प्रसिद्ध स्थान थे, 1. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, 2. ढ़ाई दिन का झौंपड़ा और 3. अकबर का किला। यही वह ऐतिहासिक स्थान है, जहां ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर टॉमस रो ने मुगल सम्राट जहांगीर को अपने प्रमाण-पत्र सौंप कर हिन्दुस्तान में व्यापार करने की इजाजत मांगी थी।

अजमेर की भौगोलिक बसावट तिकोनी है, जो तीन तरफ पहाड़ों 1. नाग पहाड़, 2. मदार पहाड़ और 3. तारागढ से घिरा हुआ है। यहां तीन ही झीलें हैं- 1. आनासागर, 2. फॉयसागर और पुष्कर। जहांगीर-शाहजहां के समय ही यहां आनासागर के किनारे बारहदरी एवं खामखां के तीन दरवाजों का निर्माण हुआ। यह तीन दरवाजे ख्वामख्वाह ही बनाये गये हैं या किसी खामेखां नामक मुगल सरदार के नाम पर बने हैं, यह खोज का विषय है, परन्तु दरवाजे तीन ही हैं, कोई भी देख सकता है। जिले के ब्यावर के पास ही खरवा नामक जगह है। वहां के ठाकुर गोपाल सिंहजी प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। उन्ही के राज में मोरसिंह नामक डाकू हुआ, जिनके लिए प्रसिद्ध था कि वह भी सिर्फ तीन कौमों 1. बनिया, 2.सुनार और 3.कलाल को ही लूटता था।

अजमेर को इस बात का गौरव है कि ब्रिटिश समय में यहां तीन प्रसिद्ध क्रांतिकारी 1.स्वामी कुमारानन्द 2. बिजौलिया किसान आन्दोलन के नेता विजयसिंह पथिक एवं 3.अर्जुनलाल सेठी हुए, जिन्होंने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया था।

यूं तो हिंदी पत्रकारिता के लिए अजमेर राजस्थान का अग्रणी स्थान है, लेकिन शुरू में मुख्य रूप से तीन साप्ताहिक थे, 1. पं. विश्वदेव शर्मा का न्याय 2. कैलाश वर्णवाल का राष्ट्रवाणी और गोपाल भैया का भभक। बाद में न्याय दैनिक हो गया और साप्ताहिक में घीसूलाल जी का आजाद जुड़ गया। उस समय यहां हिन्दी के तीन ही प्रमुख दैनिक पढे जाते थे, 1. कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरीजी का दैनिक नवज्योति 2. न्याय और 3. हजारीलाल शर्मा, जयपुर का राष्ट्दूत।

आजादी के बाद पहले राजपुताना एवं फिर राजस्थान के निर्माण के समय अजमेर को सी स्टेट यानि तीसरी श्रेणी का राज्य बनाया गया, जिसके प्रथम कमिश्नर ए.डी. पंडित थे। प्रथम आम चुनाव, 1952 के समय यहां तीन प्रमुख राजनीतिक दल 1. कांग्रेस, 2. हिन्दू महासभा और 3. साम्यवादी थे। चुनाव के बाद इस राज्य के प्रथम कांग्रेसी मंत्रीमंडल में तीन ही मंत्री थे, 1. मुख्यमंत्री श्री हरीभाऊ उपाध्याय 2. गृहमंत्री श्री बालकृष्ण कौल एवं 3. शिक्षा मंत्री बृजमोहन लाल शर्मा। उस समय इस राज्य में तीन ही मुख्य शहर थे, 1. अजमेर 2. ब्यावर एवं 3. किशनगढ। नसीराबाद तो छावनी, बिजयनगर कस्बा और पुष्कर धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता था। नवम्बर 1956 में राजस्थान में विलय के समय ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनीतिक तीनों का महत्व था, लेकिन फिर भी इसे राजस्थान की राजधानी नहीं बनाया गया और मजे की बात देखिये कि उस समय भी इसे तीन संस्थान 1.रेवन्यू बोर्ड, 2.राजस्थान लोक सेवा आयोग एवं 3. शिक्षा बोर्ड देकर बहला दिया गया। यहां से तीन तरफ रेलवे लाइनें जाती थीं, जो पहले बीबी एंड सीआई एवं बाद में पश्चिम रेलवे के अंर्तगत होती थी। यहां रेलवे के तीन बड़े कारखाने 1. लोको 2. कैरिज तथा 3. सिगनल्स हुआ करते थे। दिलचस्प बात यह है कि उस समय यहां से तीन ओर ही मुख्य मुख्य सडकें जाती थी, 1.जयपुर-दिल्ली, 2.ब्यावर-अहमदाबाद और 3.नसीराबाद-रतलाम-इंदौर। उस समय अजमेर में तीन मुख्य कॉलेज थे, 1. मेयो कॉलेज 2. गर्वनमेंट कॉलेज और 3. डीएवी कॉलेज। शहर में मुख्य रूप से तीन व्यापारिक स्थल थे, 1. नया बाजार 2. मदारगेट और 3. केसरगंज। नगर में तीन जगह से पानी आता था, 1. गनाहेड़ा 2. फॉयसागर और 3. भांवता। मजे की बात देखिये कि शहर में तीन ही सिनेमा हॉल थे, 1. न्यू मैजिस्टिक 2. प्लाजा और 3. प्रभात और तीन ही नाटक-थियेटर इत्यादि के स्थल थे, 1. रेलवे बिसिट 2. रेलवे का ही कैरिज स्पोर्ट्स क्लब और 3. डिग्गी बाजार में रामायण मंडल। अजमेर शहर धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां हिन्दुओं, मुसलमानों एवं जैनियों के पूजनीय स्थल तो हैं ही इसके अतिरिक्त पारसियों, सिक्खों एवं ईसाइयों के पूजा स्थल भी हैं। हिन्दुओं के देवी- देवताओं के पहाडियों पर तीन प्रमुख मन्दिर 1. चामुन्डा माता, 2. बजरंगगढ एवं 3. बाबूगढ हैं। उस जमाने में यहां तीन ही चिकित्सालय, 1. विक्टोरिया अस्पताल, 2. कस्तूरबा अस्पताल और 3. लौंगिया अस्पताल थे। तीन ही सब्जी मंडियां, 1. ईदगाह 2. रामगंज और 3. आगरागेट थीं। अजमेर शहर का दिलचस्प इतिहास सबसे पहले हमें उर्दू में लिखित मीर मुश्ताक अली की डायरी, जिसे फुलेरा के मनसब ने हिन्दी में अनुवाद किया और जिसका कुछ अंश राजस्थान पत्रिका ने छापा था, में मिलता है। लेकिन अजमेर पर ही एक ऐतिहासिक पुस्तक कर्नल टॉड ने लिखी, दूसरी श्री हरविलास शारदा ने और अब तीसरी पुस्तक ‘अजमेर एट ए ग्लांस’ नाम से अजमेर के ही तीन व्यक्तियों, प्रसिद्ध पत्रकार श्री गिरधर तेजवानी एवं अन्य दो विद्वानों डा. सुरेश गर्ग एवं कंवल प्रकाश के संयुक्त प्रयास से प्रकाशित हुई। 

इससे स्पष्ट है कि राजस्थान की राजधानी का मामला हो, कमजोर राजनीतिक नेतृत्व का मसला हो या रेलवे का इतना महत्वपूर्ण कार्यस्थल होने के बावजूद उसको पीछे ढकेल दिया गया हो, यहां जनता का कोई वर्ग तीन तेरह नहीं करता और जैसा मिला, जितना मिला है, सन्तुष्ट रहता है।

अजमेर में होम्योपैथी के भीष्म पितामह डॉ. सतीश वर्मा नहीं रहे

होम्योपैथी जगत के एक प्रमुख स्तंभ डॉ. सतीश वर्मा अब हमारे बीच नहीं हैं। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उनकी उम्र 91 वर्ष थी। अलवर गेट स्थित सेवा मंदिर हॉस्पिटल मल्टीस्पेशलिटी एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक डॉ. वर्मा का होम्यापैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति जनमानस में विश्वास कायम करने में अविस्मरीय योगदान है। उनकी सेवाओं से लाखों बीमार लाभान्वित हुए हैं। होम्योपैथी की गहन जानकारी के लिहाज से डॉ. होम व डॉ. भगत को भी उनके समकक्ष माना जाता है, लेकिन डॉ. वर्मा ने होम्योपैथी का जो प्रचार-प्रसार किया, वह एक बडी उपलब्धि के रूप में गिना जाता है। 

होम्योपैथी में उनकी विशेषज्ञता का एक प्रसंग मेरे ख्याल में आता है। प्रदेश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल लोढा के पिताश्री लीवर की बीमारी से ग्रस्त थे। एलोपैथी से खूब इलाज करवाया, मगर एक अवस्था ऐसी आई कि दवाई ने काम करना बंद कर दिया। उन्होंने प्रसिद्ध आयुर्वेदविद् चंद्रकांत चतुर्वेदी से मश्विरा किया। उन्होंने बताया कि लीवर के लिए एक रामबाण औषधि पुनर्नवा की जड है, मगर दिक्कत यह है कि उसकी गोली लेने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि उसे पचा कर रक्त में भेजने में लीवर असमर्थ है। अगर पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर मिल जाए या बनाया जा सके तो वह कामयाब हो सकती है, क्योंकि वह तो जीभ पर रखने मात्र से काम करेगी। लेकिन मार्केट में पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर उपलब्ध नहीं है। इस पर उन्हें ख्याल आया कि डॉ. सतीश वर्मा से संपर्क किया जाए। जब उनसे मिले तो उन्होंने कहा कि है तो कठिन व श्रमसाध्य, मगर ऐसा करना संभव है। वे मदर टिंचर बनाने के लिए राजी हो गए। मैं भी साथ था। बाद में क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है, मगर इससे यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का मदर टिंचर बनाया जा सकता है। और आयुर्वेद व होम्यापैथी के सहयोग से अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है। 

डॉ. वर्मा का निधन अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

सोमवार, 11 नवंबर 2024

एडीए बोर्ड का गठन न होने से अटका विकास

राज्य में नई सरकार के गठन को एक साल होने को है, मगर अब तक अजमेर विकास प्राधिकरण के बोर्ड का गठन नहीं किया गया है। चाहे इसके लिए सत्तारूढ़ भाजपा की भीतरी राजनीति जिम्मेदार हो या फिर सरकार का कोई असमंजस, मगर यह अजमेर शहर पर तो भारी ही पड़ रहा है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में मनोनयन से भाजपाई अब तक वंचित हैं और उनमें असंतोष बढ़ रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि भाजपा के दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।

यह सर्वविदित ही है कि पहले यूआईटी हो या अब एडीए, शहर के विकास के नए आयाम स्थानीय राजनीतिक व्यक्ति के अध्यक्ष के रहने पर स्थापित हुए हैं। जब भी प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान रही है, विकास की गति धीमी रही है। इसके अनेक उदाहरण हैं। उसकी वजह ये है कि जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्त के पास अध्यक्ष का भी चार्ज होने के कारण वे सीधे तौर पर कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते। वैसे भी उनकी कोई रुचि नहीं होती। वे तो महज औपचारिक रूप से नौकरी को अंजाम देते हैं। उनके पास अपना मूल दायित्व ही इतना महत्वपूर्ण होता है कि वे टाइम ही नहीं निकाल पाते। निचले स्तर के अधिकारी ही सारा कामकाज देखते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक व्यक्ति के पास अध्यक्ष का कार्यभार होने पर विकास के रास्ते सहज निकल आते हैं। एक तो उसको स्थानीय जरूरतों का ठीक से ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त जनता के बीच रहने के कारण यहां की समस्याओं से भी भलीभांति परिचित होता है। वह किसी भी विकास के कार्य को बेहतर अंजाम दे पाता है। प्रशासनिक अधिकारी व जनता के प्रतिनिधि का आम जन के प्रति रवैये में कितना अंतर होता है, यह सहज ही समझा जा सकता है। राजनीतिक व्यक्ति इस वजह से भी विकास में रुचि लेता है, क्योंकि एक तो उसकी स्थानीय कामों में दिलचस्पी होती है, दूसरा उसकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। उनका प्रयास ये रहता है कि ऐसे काम करके जाएं ताकि लोग उन्हें वर्षों तक याद रखें और उनकी राजनीतिक कैरियर भी और उज्ज्वल हो। आपको ख्याल होगा कि राजनीतिक व्यक्तियों के अध्यक्ष रहने पर विकसित कॉलोनियां और बने पृथ्वीराज स्मारक, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक, लवकुश उद्यान, झलकारी बाई स्मारक, वैकल्पिक ऋषि घाटी मार्ग, अशोक उद्यान, गौरव पथ, महाराणा प्रताप स्मारक, सांझा छत इत्यादि आज भी सराहे जाते हैं। कुल मिला कर बेहतर यही है कि प्राधिकरण का अध्यक्ष कोई राजनीतिक व्यक्ति ही हो।

मसला केवल विकास का ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का भी है। अफसरशाही  हावी है और उस पर भ्रष्टाचार के आरोप खुले आम लग रहे हैं। पिछले दिनों अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने तो जनसुनवाई के दौरान नगरीय विकास व स्वायत्त शासन मंत्री हरलाल सिंह खर्रा के सामने एक उपायुक्त पर भ्रष्टाचार का खुला आरोप लगाया, जिसके चलते उनको अन्य स्थान पर लगाना पडा।

बताते हैं कि नियुक्ति की कवायद अंदरखाने तो हो रही है, मगर वह धरातल पर विधानसभा उपचुनाव के बाद ही उतर पाएगी। बहरहाल, इसका परिणाम ये है कि वह सब ठप्प पड़ा है, जिसकी प्राधिकरण से उम्मीद की जाती है।


शनिवार, 9 नवंबर 2024

आजादी से पहले अजमेर नगर पालिका के अध्यक्ष

1866-68: मेजर डेविडसन

1868-73: केप्टन एच. एम. रिप्टन

1876र: मिस्टर जेम्स व्हाइट

1883: मिस्टर जे. आर. फिटजाल्ट

1883-84: मिस्टर जे. ई. किट्स

1884: कैप्टन डब्ल्यू.एच.सी. विल्ल

1884-91: रेविड डॉ. जे. हजबैंड

1891: लेफ्टिनेंट कर्नल न्यूमैन

1891-94:मिस्टर एफ.एल. राइड

1894: मिस्टर एच. क्लोस्टन

1895-1900: रेविड डॉ. जे. हजबैंड

1900-02: लेफ्टिनेंट कर्नल विलियम लॉंच

1903-07: मिस्टर सी. डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1907-08: मिस्टर डब्ल्यू. टी. वेन सोमगन

1908-09: मेजर आर. आई. हेमिटन

1909: कैप्टन टी.एच.आर.एन. प्रिचर्ड

1909: मिस्टर डब्ल्यू.सी. ह्युस्टन

1909: मिस्टर एस.बी. पीटरसन

1909-11: मिस्टर सी.डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1911: मिस्टर बी.जे. गेलेंसी

1911-13: सी.डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1913-1918: मिस्टर आर.जी. रॉबसन

1919-20: मिस्टर एस.एफ.मदीन

1920-23: मिस्टर जी.के. खांडेलकर

1926-31: मिस्टर एस.एफ. मदीन

1931-32: लेफ्टिनेंट कर्नल जी. हेवसन

1932-33: सर हेमचंद सोगानी

1933-34: मिस्टर एच.डब्ल्यू. फीथ

1934: सर हेमचंद सोगानी

1934: मिस्टर जी.एल. बेथम

1934: कैप्टन आई.अगरालब्रेथ

1934: मेजर डेला फोर्ग्यु

1934: मिस्टर सी.एच. गिदानी

1934-35: कैप्टन एल.ए.जी. फिनी

1935-39: मिस्टर टी. बेर्ट

1939-40: मिस्टर एम.के. कोल

1942-46: राजबहादुर सर सेठ भागचंद सोनी

1946-47: मिस्टर जीतमल लूनिया

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

ऐसा था स्वतंत्र राज्य अजमेर: भाग दो

सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। इस में सर्वश्री बालकृष्ण कौल, किशनलाल लामरोर व मिर्जा अब्दुल कादिर बेग, जिला बोर्ड व अजमेर राज्य की नगरपालिकाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि, संसद सदस्य मुकुट बिहारी लाल भार्गव, कृष्ण गोपाल गर्ग, मास्टर वजीर सिंह और पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि के रूप में सूर्यमल मौर्य मनोनीत किया गया था। 

भारत विभाजन के बाद कादिर बेग पाकिस्तान चले गए व उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को नियुक्त किया गया। चीफ कमिश्नर के रूप में श्री शंकर प्रसाद, सी. बी. नागरकर, के. एल. मेहता, ए. डी. पंडित व एम. के. कृपलानी रहे। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई। 

अजमेर विधानसभा को धारा सभा के नाम से जाना जाता था। इसके तीस सदस्यों में से इक्कीस कांग्रेस, पांच जनसंघ (दो पुरुषार्थी पंचायत) और चार निर्दलीय सदस्य थे। मुख्यमंत्री के रूप में श्री हरिभाऊ उपाध्याय चुने गए। गृह एवं वित्त मंत्री श्री बालकृष्ण कौल, राजस्व व शिक्षा मंत्री ब्यावर निवासी श्री बृजमोहन लाल शर्मा थे। मंत्रीमंडल ने 24 मार्च, 1952 को शपथ ली। विधानसभा का उद्घाटन 22 मई, 1952 को केन्द्रीय गृह मंत्री डॉ. कैलाश नाथ नायडू ने किया। विधानसभा के पहले अध्यक्ष श्री भागीरथ सिंह व उपाध्यक्ष श्री रमेशचंद भार्गव चुने गए। बाद में श्री भार्गव को अध्यक्ष बनाया गया और उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को उपाध्यक्ष बनाया गया। विरोधी दल के नेता डॉ. अम्बालाल थे। विधानसभा प्रशासन संचालित करने के लिए 19 कानून बनाए। सरकार के कामकाज में मदद के लिए  विकास कमेटी, विकास सलाहकार बोर्ड, औद्योगिक सलाहकार बोर्ड, आर्थिक जांच बोर्ड, हथकरघा सलाहकार बोर्ड, खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड, पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीयकरण सलाहकार बोर्ड, पिछड़ी जाति कल्याण बोर्ड, बेकारी कमेटी, खान सलाहकार कमेटी, विक्टोरिया अस्पताल कमेटी, स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास कमेटी और नव सुरक्षित वन जांच कमेटी का गठन किया गया, जिनमें सरकारी व गैर सरकारी व्यक्तियों को शामिल किया गया। 

राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया।

यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया। अजमेर एट ए ग्लांस से साभार।

तीर्थराज पुष्कर की पवित्रता कैसे कायम रहेगी?

विश्व प्रसिद्ध तीर्थराज पुष्कर के रखरखाव और विकास पर यद्यपि सरकार अपनी ओर से पूरा ध्यान दे रही है, बावजूद इसके यहां अनेकानेक समस्याएं सालों से कब्जा जमाए बैठी हैं, जिसके कारण यहां दूर-दराज से आने वाले तीर्थ यात्रियों को तो दिक्कत होती ही है, इसकी छवि भी खराब होती है। विशेष रूप से इसकी पवित्रता का खंडित होना सर्वाधिक चिंता का विषय है।

यह सही है कि पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक भी खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां की पवित्रता पर भी संकट आया है। असल में पुष्कर की पवित्रता उसके देहाती स्वरूप में है, मगर यहां आ कर विदेशी पर्यटकों ने हमारी संस्कृति पर आक्रमण किया है। होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे पर ध्यान देने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अर्द्ध नग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। यह ठीक है कि उनके देश में वे जैसे भी रहते हों, उसमें हमें कोई ऐतराज नहीं, मगर जब वे हमारे देश में आते हैं तो कम से कम यहां मर्यादाओं का तो ख्याल रखें। विशेष रूप तीर्थ स्थल पर तो गरिमा में रह ही सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के बेहूदा कपड़ों में घूमने से यहां आने वाले देशी तीर्थ यात्रियों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है। वे जिस मकसद से तीर्थ यात्रा को आए हैं और जो आध्यात्मिक भावना उनके मन में है, वह खंडित होती है। जिस स्थान पर आ कर मनुष्य को अपनी काम-वासना का परित्याग करना चाहिए, यदि उसी स्थान पर विदेशी पर्यटकों की हरकतें देख कर तीर्थ यात्री का मन विचलित होता है तो यह बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक है। विदेशी पर्यटकों की हालत तो ये है कि वे जानबूझ कर अर्द्ध नग्न अवस्था में निकलते हैं, ताकि स्थानीय लोग उनकी ओर आकर्षित हों। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हैं, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे? स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।

यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं।

यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, मगर कामयाबी अब तक हासिल नहीं हो पाई है। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है।

पार्षद बन कर पछताए थे स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी

नगर निगम चुनाव को लेकर कितनी मारामारी मचती है, सब जानते हैं। हर छोटा-मोटा नेता चाहता है कि उसे पार्टी टिकट दे दे। उसके लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाता है। येन-केन-प्रकारेण टिकट चाहिए ही। आखिर क्यों? क्या सेवा का भाव उछाल मार रहा होता है? या वर्चस्व की चाह गहरी हो जाती है? या फिर कमाई का जरिया बनने का आकर्षण है? जो कुछ भी हो, मगर आप पाते हैं कि अदद पार्षद बनना भी बडा लक्ष्य हो जाता है। और पार्षद बनने के बाद जो आनंद मिलता है, उसकी कल्पना आम आदमी नहीं कर सकता। ऐसे में अगर कोई पार्षद बन कर खुश न हो, यहां तक कि पछताए तो आप क्या कहेंगे? कहे कि कहां आ कर फंस गया, तो आप क्या सोचेंगे? यही न कि यह आदमी मौजूदा आर्थिक आपाधापी के युग में मिसफिट है। जी हां, मैं एक ऐसे भूतपूर्व, और एक अर्थ में अभूतपूर्व पार्षद को जानता हूं, जानता क्या, बाकायदा मिला हूुं, जिन्होंने एक बार कहा कि पार्षद बन कर बहुत पछता रहा हूं। जनता की सेवा तो ठीक, मगर नगर परिषद की दुनिया में दम घुटता बहुत है। अंदर जो मंजर है, उसमें जीना मुश्किल है। झूठ, फरेब, स्वार्थ, मक्कारी, चालाकी, मुझ से तो नहीं होगी। वार्ड वासियों की सेवा का तो अच्छा अवसर है, वह ठीक है, मगर कमीशन का शिष्टाचार मेरे लिए तो संभव नहीं है। वे मिसफिट पार्षद थे, स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी। नया बाजार के जाने-माने व्यवसायी थे। संपन्न, समर्थ, मगर अत्यंत धार्मिक। सादा जीवन। सहज सुलभ। जाने-माने सिंधी गायक कलाकार थे। बालसखा स्वर्गीय श्री मिर्चूमल सोनी के साथ उनकी जोडी प्रसिद्ध थी। आकाशवाणी पर इस जोडी ने कई कार्यक्रम दिए। वेदांत के गहन जानकार। वैशाली नगर के शिव मंदिर में प्रतिदिन प्रातः प्रवचन दिया करते थे। अध्यात्म के जगत में इतना कदीमी मुकाम हासिल कर लिया था कि वेदांत केसरी ब्रह्मलोकवासी स्वामी श्री मनोहरानंद सागर जी महाराज ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनने का प्रस्ताव रखा, मगर उन्होंने अपनी पारीवारिक जिम्मेदारी को अधिक अहमियत दी। तब स्वर्गीय स्वामी श्री अद्वैतानंद सागर जी ने गद्दी संभाली थी। असल में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए आरएसएस ने उनको भाजपा के टिकट पर निगम का चुनाव लडवाया था, हालांकि उनकी खुद की कोई दिलचस्पी नहीं थी। कहां धार्मिक व्यक्तित्व और कहां पार्षद की भूमिका। कोई मेल नहीं। मगर यह सोच कर कि पार्षद बनने पर सेवा का बेहतर अवसर मिलेगा। वे जीत गए। निस्वार्थ भाव से सेवा भी खूब की। वार्ड में दिन-रात सक्रिय रहे। मगर निगम परिसर में जाना उनको अच्छा नहीं लगता था। वहां के माहौल को देख कर। एक बार साधारण सभा में बहुत हंगामा, गरमागरमी, आरोप-प्रत्यारोप, छीना-झपटी देख कर बोले पार्षद बन कर पछता रहा हूं। बात तकरीबन पच्चीस साल पुरानी है। तब से लेकर अब तक गंगा का पानी बहुत बह चुका। कल्पना की जा सकती है कि आज कैसे हालात होंगे। प्रसंगवश बताना उचित होगा कि बाद में उनकी पुत्र वधु श्रीमती रीना सोनी धर्मपत्नी श्री मनोहर सोनी भी पार्षद बनी थीं।

बुधवार, 6 नवंबर 2024

ऐसा था स्वतंत्र राज्य अजमेर: भाग एक

राजस्थान प्रदेश में विलय से पहले अजमेर एक स्वतंत्र राज्य था। केन्द्र सरकार की ओर से इसे सी स्टेट के रूप में मान्यता मिली हुई थी। सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई।

अजमेर राज्य 2 हजार 417 वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ था और सन् 1951 में इसकी जनसंख्या 6 लाख 93 हजार 372 थी। केकड़ी को छोड़ कर राज्य का दो तिहाई हिस्सा जागीरदारों व इस्तमुरारदारों (ठिकानेदार) के पास था, जबकि केकड़ी का पूरा इलाका इस्तमुरारदारों के कब्जे में था। सरकारी कब्जे वाली खालसा जमीन नाम मात्र को थी। पूर्व में ये ठिकाने जागीरों के रूप में थी और इन्हें सैनिक सेवाओं के उपलक्ष्य में दिया गया था। इन ठिकानों के कुल 277 गांवों में से 198 गावों से फौज खर्च वसूल किया जाता था। ब्रिटिशकाल से पहले सामन्तशाही के दौरान यहां सत्तर बड़े इस्तमुरारदार और चार छोटे इस्तमुरारदार थे। ये ठिकाने विभिन्न समुदायों में बंटे हुए थे। कुल 64 ठिकाने राठौड़ समुदाय के, 4 चीता समुदायों और 1-1 सिसोदिया व गौड़ के पास थे। इनको भी राजपूत रियासतों के जागीरदारों के बराबर विशेष अधिकार हासिल थे। सन् 1872 में ठिकानेदारों को सनद दी गई और 1877 में अजमेर भू राजस्व भूमि विनियम के तहत इनका नियमन किया गया।

इस्तमुरारदारों को तीन श्रेणी की ताजीरें प्रदान की हुई थीं। जब कभी किसी ठिकाने के इस श्रेणी के निर्धारण संबंधी विवाद होते थे तो चीफ कमिश्रर की रिपोर्ट के आधार पर वायसराय उसका समाधान निकालते थे। ब्रिटिश काल में जब कभी कोई इस्तमुरारदार दरबार में भाग लेता था तो चीफ कमिश्नर की ओर से उसका सम्मान किया जाता था। हालांकि इस्तमुरारदार राजाओं की श्रेणी में नहीं आते थे, लेकिन इन्हें विशेष अधिकार हासिल थे।  

अजमेर राज्य में कुल नौ परगने शाहपुरा, खरवा, पीसांगन, मसूदा, सावर, गोविंदगढ़, भिनाय, देवगढ़ व केकड़ी थे। केकड़ी जूनिया का अंग था। जूनिया, भिनाय, सावर, मसूदा व पीसांगन के इस्तमुरारदार मुगल शासकों के मंसबदार थे। भिनाय की सर्वाधिक प्रतिष्ठा थी तथा इसके इस्तमुरारदार राजा जोधा वंश के थे। प्रतिष्ठा की दृष्टि से दूसरे परगने सावर के इस्तमुरारदार ठाकुर सिसोदिया वशीं शक्तावत राजपूत थे। इसी क्रम में तीसरे जूनिया के इस्तमुरारदार राठौड़ वंशी थे। पीसांगन के जोधावत वंशी राठौड़ राजपूत व मसूदा के मेड़तिया वंशी राठौड़ थे। अजमेर राज्य में जागीरदारी व माफीदार व्यवस्था भी थी। धार्मिक व परमार्थ के कार्यों के लिए दी गई जमीन को जागीर कहा जाता था। इसी प्रकार माफी की जमीन भौम के रूप में दी जाती थी। भौम चार तरह के होते थे। पहले वे जिनकी संपत्ति वंश परम्परा के तहत थी और राज्य की ओर से स्वामित्व दिया जाता था। दूसरे वे जिनकी संपत्ति अपराध के कारण दंड स्वरूप राज्य जब्त कर लेता था, तीसरे वे जिनकी संपत्ति जब्त करने के अतिरिक्त राजस्व के अधिकार छीन लिए जाते थे और चौथे वे जिन पर दंड स्वरूप जुर्माना किया जाता था। इस्तमुरारदार ब्रिटिश शासन को भू राजस्व की तय राशि वार्षिक लगान के रूप में देते थे। जागीरदार अपने इलाके का भू राजस्व सरकार को नहीं देते थे। आजादी के बाद शनैरू शनैरू जागीरदारी व्यवस्था समाप्त की जाती रही। 1 अगस्त, 1955 को अजमेर एबोलिएशन ऑफ इंटरमीडियरी एक्ट के तहत इस्तमुरारदार खत्म किये गये। इसी प्रकार दस अक्टूबर, 1955 में जागीरदार व छोटे ठिकानेदारों को खत्म किया गया। इसके बाद 1958 में भौम व माफीदारी की व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया। राज्य के पुनर्गठन के संबंध में 1 नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम प्रभाव में आया और अजमेर एकीकृत हुआ और राजस्थान में शामिल कर लिया गया। 1 दिसम्बर, 1956 को जयपुर जिले का हिस्सा किशनगढ़ अजमेर में शामिल कर दिया गया। किशनगढ़ में उस वक्त चार तहसीलें किशनगढ़, रूपनगढ़, अरांई व सरवाड़ थी। 15 जून, 1958 से राजस्थान का भूमि राजस्व अधिनियम 1950, खातेदारी अधिनियम 1955 अजमेर पर लागू कर दिए गए। 1959-60 में तहसीलों का पुनर्गठन किया गया और अरांई व रूपनगढ़ तहसील समाप्त कर जिले में पांच तहसीलें अजमेर, किशनगढ़, ब्यावर, केकड़ी व सरवाड़ बना दी गई। केकड़ी तहसील का हिस्सा देवली अलग कर टोंक जिले में मिला दिया गया। अजमेर एट ए ग्लांस से साभार। क्रमशः

मंगलवार, 5 नवंबर 2024

ओ बीजेपी कुण है?

क्या यह संभव है कि कोई पार्षद निवार्चित हो जाए और उसे यह पता न हो कि वह किस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर विजयी हुआ है? जी हां, ऐसा एक वाकया हुआ है तत्कालीन अजमेर नगर परिषद के चुनाव में। परिणाम वाले दिन भाजपा का विजय जुलूस निकल रहा था। जाहिर तौर पर बीजेपी जिंदाबाद के नारे लग रहे थे। जुलूस में शामिल वैशाली नगर माकडवाली इलाके के एक पार्षद नारे सुन कर असमंजस में थे। वे अपने साथियों से पूछने लगे कि ओ बीजेपी कुण है। उनके साथी आश्चर्यमिश्रित हास्य से सराबोर हो गए। उन्होंने जब पार्षद महोदय को समझाया की आप जिस पार्टी से जीते हैं, उसका नाम है बीजेपी, तब जा कर उनका असंजस दूर हो पाया। असल में उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी और न ही चुनाव लडने का मानस। उन्हें तो जातीय समीकरण के तहत भाजपा ने मैदान में उतारा गया था। उन्हें ख्याल ही नही था कि वे किस पार्टी की ओर से चुनाव लड रहे हैं। उन्हें इतना भर पता था कि चुनाव लड रहे हैं। है न दिलचस्प वाकया।

मेरी फितरत में जीहुज़ूर ना था, वरना साहब मेरा कुछ कसूर ना था

अजमेर के पत्रकार साथियों के कृतिव एवं व्यक्तित्व के बारे एक सीरीज लिखी तो मेरे पत्रकार साथी श्री अमित टंडन ने आग्रह किया कि अपने बारे में भी तो कुछ लिखिए। भला मैं अपने बारे में कैसे लिख सकता था? इस पर उन्होंने कहा कि वे यह जिम्मेदारी निभाना चाहते हैं। उनके आग्रह को मैं टाल नहीं सका। उन्होंने जो कुछ लिखा, हूबहू पेश हैः-

अजमेर में पत्रकारिता के स्वर्णिम युग का आकलन यूं तो पुराने पत्रकार उस दौर के फ़्लैश बैक में जाकर करते हैं, जब बड़े अखबार के नाम पर दैनिक नवज्योति एक मात्र अखबार था, जो अजमेर से प्रकाशित होकर पूरे राज्य में वितरित होता था। मगर तब छोटे अखबारों, अर्थात राष्ट्रदूत, न्याय, रोज़मेल या आधुनिक राजस्थान जैसे मझोले (या शायद लघु) अखबार भी उतना ही दम रखते थे, जितनी ताकत राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के अखबारों की मानी जाती थी। 

इस वजह से तब अजमेर में हर छोटे बड़े अखबार के पत्रकार का अपना एक कद और पहचान होती थी।

आप और हम जिस अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल पर अजमेर के पत्रकार व साहित्यकारों की सीरीज़ में जिन-जिन महानुभावों की जीवनी और कृतित्व के बारे में पढ़ रहे हैं, वो तो यकीनन अपनी छाप और पहचान के साथ एक इतिहास लिख रहे हैं। मगर, इस न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से आपको ये तमाम जानकारियां देने वाले इस पोर्टल के मुख्य संपादक श्री गिरधर तेजवानी स्वयं अजमेर की पत्रकारिता की तीसरी पीढ़ी के दिग्गज कलमकारों में से एक हैं। 

तीसरी पीढ़ी के इसलिए, क्योंकि प्रथम पीढ़ी में नवज्योति के संस्थापक कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी और उनके समकालीन पत्रकार रहे, दूसरी पीढ़ी में श्री नरेन्द्र चौहान व श्याम जी आदि रहे। श्री तेजवानी की पीढी ने तीसरे नंबर पर वो मशाल सम्भाली, और उस हिसाब से मैं चौथी पीढ़ी में शुमार हो गया। 

रिपोर्टिंग, संपादन लेखन आदि तो श्री तेजवानी का एक महत्वपूर्ण और अनेक उपलब्धि वाला क्षेत्र है ही, मगर श्री तेजवानी की सबसे बड़ी खासियत जो निजी तौर पर मुझे लगी, वो थी राजनीतिक टिपणियां और विश्लेषण। 

6 अप्रैल, 1997 को अजमेर में दैनिक भास्कर का पदार्पण हुआ और हम सब एक-एक करके उसमें जुड़ते चले गए और वहीं मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई और साथ काम करने का अवसर मिला। आज उस बात को 28 साल हो गए। 

अमित टंडन

इस 28 साला सफर में मैंने निजी तौर पर एक धीर गंभीर समाचार विश्लेषक और राजनीतिक विचारक के रूप में श्री तेजवानी के ज्ञान की कई ऊंचाइयां देखीं। कोई भी चुनाव हो, स्थानीय निकाय से लेकर विधानसभा, लोकसभा या फिर किसी भी सहकारी समिति, जिला परिषद या छात्र संघ के चुनाव में उनके कयास, उनके आकलन, उनकी विशेष टिप्पणियां आज भी नज़ीर हैं।

डेस्क पर एक प्रभारी के रूप में उनके अधीन क्योंकि मैंने काम किया, तो समाचार की कसावट, सम्पादन की बारीकियां, शब्दों का चयन और हेडलाइंस लगाने का हुनर देख कर बहुत कुछ सीखा।

मुझे याद आता है कि जब भास्कर में संपादकीय साथियों को ऑनलाइन करके पेपरलेस पत्रकार बनाने की मुहिम चल रही थी, तब कंप्यूटर सिखाने की जिम्मदारी मुझ पर ही थी, और श्री तेजवानी ने उस दो माह के कोर्स के बाद ली गई परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे। ये सीखने की उनकी ललक और इच्छाशक्ति का उदाहरण है, जिसका मैं प्रत्यक्ष गवाह रहा। क्योंकि सतत सीखते रहने की उनकी प्रवृत्ति उनका सकरात्मक पहलु थी। 

आज भी वे पत्रकारिता की सेवा कर रहे हैं। आज भी पत्रकारिता को एक पेशे या महज़ काम न समझ कर एक मिशन और एक क्रांति मानते हैं और उसी जोश से लिखते हैं जैसा मैंने उन्हें 28 साल पहले देखा था। 

मगर, एक बात जरूर कहना चाहूंगा, कि ईमानदार कलम अक्सर असल मुकाम पाने से पहले तोड़ दी जाती है। हालांकि इस कलम को तोडऩे के भी प्रयास हुए, मगर इस कलम की नोक इतनी तीखी और मजबूत है कि न ये टूटी औऱ न रुकी। आज भी शब्दों के बाण इस कलम से असत्य, अनाचार और अत्याचार पर वार कर रहे हैं, आज भी लेखनी जवान है। मगर अफसोस है तो इस बात का कि श्री गिरधर तेजवानी को किसी उच्च पद का जो हक़ किसी बड़े मीडिया हाउस में मिलना चाहिए था, वो न मिला। शायद पेशेवर पत्रकारिता के दौर में जवान हुई श्री तेजवानी की कलम की कद्र बड़े अखबारों ने नहीं जानी। खरी खरी और सच कह देने की उनकी आदत और मेरी आदत एक सी है। 

मुझे याद आता है हमारे एक वरिष्ठ पत्रकार व आला गज़लगो भ्राता श्री सुरेंद्र चतुर्वेदी ने एक बार मुझसे ये कहा था- अमित तुम और तेजवानी कड़वे लोग हो। अर्थात तुम लोग सच को सच कह कर खरी खरी सुना देते हो और अपने सेठ, बॉस या कंपनी को कहीं न कहीं नाराज़ कर देते हो, और आज के ज़माने में सच्चाई को तरक्की नहीं मिलती। श्री चतुर्वेदी हमारी इस साफगोई से खुश भी थे और गर्वित भी, मगर हमारी तरक्की के अवरोधों से दुखी भी थे। 

मगर, एक शेर याद आता है जो तेजवानी जी पर एकदम सटीक है-

मेरी फितरत में जीहुज़ूर ना था

वरना साहब मेरा कुछ कसूर ना था 

शख्सियत: स्वाधीनता सेनानी स्वर्गीया श्रीमती क्रांतिदेवी शर्मा

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा की धर्मपत्नी स्वर्गीया श्रीमती क्रांतिदेवी ने आजादी के आंदोलन में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर भाग लिया। स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल झा के घर जन्मी श्रीमती क्रांतिदेवी ने एम.ए. हिंदी तक शिक्षा अर्जित की है और लेखन कार्य करती थीं। वे आजादी के आंदोलन के दौरान जन प्रबल प्रचार समिति की अध्यक्ष रहीं। वे प्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संघ महिला विंग की अध्यक्ष थीं। श्री ज्वाला प्रसाद के निधन के बाद आजाद भारत में वे समाजसेवा के लिए सतत कार्य करती रहीं। उनकी पुण्य स्मृति में गोष्ठियां किया करती थीं। उनकी सुपुत्री श्रीमती नीलिमा शर्मा भिनाय से कांग्रेस विधायक रहीं। कांग्रेस के दिल्ली दरबार में उनकी गहरी पकड थी।

शनिवार, 2 नवंबर 2024

अजमेर में कांग्रेस के स्तम्भ एडवोकेट जसराज जयपाल

अजमेर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे एडवोकेट जसराज जयपाल अपने आप में एक संस्था हैं। आजादी के बाद अजमेर की राजनीति में उनके परिवार का खासा वर्चस्व बना हुआ है। उनका जन्म 13 मई 1930 को ब्यावर इलाके के छोटे से गांव झाक में हुआ। उनके पिता स्वर्गीय श्री केशवराम ब्यावर स्थित कपड़ा मिल में मुकद्दम के पद कार्यरत रहे और ब्यावर नगर पालिका के छह बार पार्षद बने। श्री जयपाल ने बी. कॉम., एम. ए. व एल.एल.बी. की डिग्रियां राजकीय महाविद्यालय, अजमेर में पढ़ते हुए हासिल कीं। वकालत ही उनका पेशा है, मगर राजनीति में भी पूरा दखल रखते हैं। वे सन् 1967 से 1972 तक अजमेर जिले की भिनाय सीट से विधायक रहे और मंत्री भी बने। उन्होंने अनुसूचित जातीय जनजातीय समाज की अनेक संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभाई है। उन्होंने सहकारिता के क्षेत्र में विशेष कार्य किया और अनेक पुस्तकें भी लिखीं। अजमेर सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक के संचालक मंडल के सदस्य व राजस्थान उपभोक्ता समिति के अध्यक्ष पद के रूप में राज्य सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की, जिसे सरकार ने यथावत स्वीकार कर लिया। उनकी धर्मपत्नी स्वर्गीया श्रीमती भगवती देवी 1972 व 1980 के चुनाव में भिनाय विधानसभा सीट से विजयी हुई थीं। उनके सुपुत्र डॉ राजकुमार जयपाल 1985 में अजमेर पूर्व सीट से विधायक चुने गए थे। वे अजमेर क्लब के अध्यक्ष हैं।

हाल ही अजमेर जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रभान सिंह राठौड़ ने श्री जसराज जयपाल का उनके 95 वें जन्म दिन के अवसर पर नागरिक अभिनंदन किया। इस अवसर पर गुलाब सिंह राजावत, लोक अभियोजक विवेक पाराशर, अरविंद मीणा, अभय वर्मा, इंदर चंद मण्डूसिया, महेंद्र मेड़ता, राकेश मेहरा, महेश काला, पूर्व विधायक डॉ राजकुमार जयपाल, अशोक दायमा, कर्मचारी नेता रतन कोमल सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

अजमेर ने खो दिया समाजसेवी श्री श्यामसुंदर छापरवाल को

अजमेर ने हाल ही प्रमुख समाजसेवी श्री श्यामसुंदर छापरवाल को खो दिया। वे न केवल प्रतिष्ठित व्यवसायी थे, अपितु आध्यात्मिक नगर अजमेर में आयोजित विशाल धार्मिक आयोजनों में उनकी अहम भूमिका रही। श्रद्धेय श्री डोंगरे जी महाराज, कथा वाचक श्री मुरारी बापू, श्री रामसुखदास जी महाराज जैसे बडे संतों के प्रवचनों व कथाओं में उन्होंने बढ-चढ कर भाग लिया। ज्ञातव्य है कि ऐसे आयोजनों में धर्मप्राण समाजसेवियों स्वर्गीय श्री मणिलाल गर्ग, शंकर लाल बंसल, कालीचरण खंडेलवाल, रामेश्वर लाल फतेहपुरिया, सीताराम मंत्री आदि का भी अविस्मरणीय योगदान रहा है। श्री छापरवाल के भ्राता सर्वश्री भीमकरण, सत्यनारायण व गोपाल कृष्ण भी व्यवसाय के अतिरिक्त धार्मिक कार्यक्रमों में साथ देते थे। ऐसे कार्यक्रमों का मीडिया प्रबंधन जाने-माने पत्रकार स्वर्गीय श्री आर डी कुवेरा किया करते थे। श्री छापरवाल अर्थ संपन्न होने के बावजूद सादा जीवन जीते थे। उनका स्वर्गवास अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। अजमेरनामा उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

हरदिल अजीज शख्सियत: डॉ. सुरेश गर्ग

डॉ. सुरेश गर्ग का नाम परिचय का मोहताज नहीं। शहर का शायद ही कोई ऐसा जागरूक व्यक्ति होगा, जो उनको न जानता हो, या जिसने इस हरदिल अजीज शख्सियत का नाम न सुना हो। असल में इसकी एक मात्र वजह ये है कि एक तो वे आम जनता से जुड़ी नगर पालिका सेवा में रहे, दूसरा ये कि उन्होंने केवल नौकरी ही नहीं की, बल्कि सदैव अजमेर से जुड़े हर राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दे से हर वक्त जुड़े रहे। सेवानिवृत्ति के बाद तो वे पूरी तरह अजमेर के लिए समर्पित हो गए हैं और अजमेर के हित से जुड़े हर मुद्दे पर अपना किरदार निभाने की कोशिश कर रहे हैं। वे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की गहन जानकारी की वजह से भी लोकप्रिय हैं। सेवाभाव की वजह से लागत मूल्य पर ही आयुर्वेद की दवाई दे देते हैं। यदि कोई निर्धन आ जाए तो उसे मुफ्त में ही दवा दे कर स्वयं को भाग्यवान समझते हैं। इस कार्य में उनकी पत्नी श्रीमती इन्द्र प्रभा गर्ग भी हाथ बंटाती हैं।

स्वर्गीय श्री किशन स्वरूप जी गर्ग के घर 13 फरवरी 1948 को जन्मे डॉ. गर्ग ने एमए व एलएलबी तक अध्ययन किया है और बायोकेमिस्ट व आयुर्वेद रत्न की शिक्षा भी अर्जित की है। उन्होंने 14 साल तक जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में सेवाएं दीं और उसके बाद 28 साल तक राजस्थान नगरपालिका सेवा में रहे और 16 साल पहलेअधिशाषी अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में आप आयुर्वेद व होम्योपैथी की प्राइवेट पै्रक्टिस कर रहे हैं। सरकारी सेवा के दौरान कर्मचारी संगठनों की गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। सहकारी क्षेत्र में भागीदारी निभाते हुए दी अजमेर जलदाय कर्मचारी बचत व साख सहकारी समिति के निदेशक रहे। समाजसेवा के क्षेत्र में भी आपकी सक्रियता रही और 1970 से 78 तक स्वयंसेवी संस्था इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वूमन आर्गेनाइजेशन में निदेशक रहे। सेवारत अग्रवाल कल्याण परिषद के आजीवन संरक्षक, अग्रवंशज संस्थान के निदेशक, अग्रवाल वैवाहिक परिचय एवं सामूहिक सम्मेलन में उपाध्यक्ष व संयोजक और अग्रबंधु निर्देशिका के संपादक रहे। उन्होंने संत श्री मोरारी बापू की नौ दिवसीय कथा के आयोजन के संयोजन का जिम्मा निभाया। उन्होंने नगर पालिका कानून की पांच पुस्तकें, व्यंग्य व स्वास्थ्य पर पुस्तकें लिखीं। उन्होंने स्थानीय निकाय के बढ़ते कदम पत्रिका का संपादन किया है और अनेक स्मारिकाओं का प्रकाशन करवाया है। वर्तमान में आंखन देखी पाक्षिक व रिमझिम साप्ताहिक में संपादन का कार्य कर रहे हैं। रिमझिम प्रकाशन ने अजमेर के इतिहास, वर्तमान व भविष्य पर रचित पुस्तक अजमेर एट ए ग्लांस का प्रकाशन  किया है। स्वाभाविक रूप से पुस्तक के प्रकाशन में उनकी अहम भूमिका रही है। वे सन् 2001 से 2005 तक अजयमेरू प्रेस क्लब में  निदेशक रह चुके हैं। सन् 1970 से 1980 तक सामाजिक संस्था में प्रगतिशील युवक संघ में महामंत्री रहे व वर्तमान में उसके अध्यक्ष हैं। राजनीतिक से आपका शुरू से जुड़ाव रहा। लोकसभा व विधानसभा चुनाव में कांग्रेसी प्रत्याशियों के खुल कर काम करने की वजह से भाजपा शासनकालों में अजमेर से स्थानांतरित हो कर बाहर रहना पड़ा। केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री श्री सचिन पायलट से नजदीकी की बदौलत शहर कांग्रेस के उपाध्यक्ष के पद पर आसीन हैं। उनकी पत्नी श्रीमती इन्द्र प्रभा गर्ग सन् 1982 से 90 तक शहर महिला कांग्रेस की महामंत्री रही हैं।