शिक्षा मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल ने जिस तरह अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी के राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के विखंडन के आरोपों की गिल्लियां उड़ाते हुए पलटवार किया है, उसे देखते हुए तो यह साफ हो चुका है कि सरकार जो निर्णय कर चुकी है, उससे एक कदम भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। उन्होंने जयपुर स्थित शिक्षा संकुल में बनाए जाने वाले बोर्ड के भवन को बड़ी चतुराई से विस्तार की संज्ञा तो दी ही है, साथ ही उलटे देवनानी पर ही सवाल दाग दिया कि शायद उन्हें सरकार की ओर से किए जा रहे विकास कार्य पच नहीं रहे हैं। वे देवनानी पर लगभग बरसते हुए बोले कि आपने शिक्षा मंत्री रहते ऐसे विकास कार्य क्यों नहीं करवाए।
असल में इस प्रकरण यही हश्र होना था। अव्वल तो इसको लेकर शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ चूं तक नहीं कर रहा। उसकी चुप्पी साबित करती है कि वह सरकार के इस निर्णय से सहमत है। रहा सवाल समय-समय पर अजमेर के हित की बात करने वाले कांग्रेसी विधायकों व नेताओं का, तो वे इस कारण बोलने वाले नहीं हैं कि वे अपने आकाओं को नाराज नहीं करना चाहते। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती से जरूर जनता को उम्मीद थी, क्यों कि वे गाहे-बगाहे अजमेर के हित की बात करते रहते हैं, मगर वे भी शायद इसी कारण चुप हैं कि उनके आका मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वयं उस भवन का 12 दिसम्बर को शिलान्यास करने जा रहे हैं। पूर्व विधायक ललित भाटी भी बोलने में कम नहीं पड़ते, मगर वे अभी तो बिखरी हुई को समेटने में व्यस्त हैं। बाकी बचे भाजपाई, जिन पर विपक्ष में रहते हुए जनता के हितों का ध्यान रखने की जिम्मेदारी है, उन्हें भी सांप सूंघा हुआ ही लग रहा है। अकेले देवनानी ही अपनी पूंपाड़ी बजा रहे हैं। अन्य मौकों पर बढ़-चढ़ कर बोलने वाली अजमेर शहर की दूसरी भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने भी चुप्पी साध रखी है। कदाचित वे इस कारण नहीं बोल रहीं कि मुद्दा देवनानी ने जो उठाया है। वे भला उनकी बात का समर्थन कैसे कर सकती हैं। बाकी बचा शहर भाजपा संगठन, वह तो वैसे भी नए अध्यक्ष इंतजार में मृतप्राय: सा पड़ा है। वैसे भी उसकी और अन्य भाजपा नेताओं की देवनानी से नाइत्तफाकी सर्वविदित ही है। जब अधिसंख्य भाजपा नेता देवनानी को निपटाने की कोशिश में जुटे हुए हों, तो भला उनकी बात को समर्थन करने कौन आएगा, भले ही वे शहर हित की बात कर रहे हों। कम से कम अभी तो कर ही रहे हैं, आईआईटी के मामले में भले ही उदयपुर जा कर उनकी जबान फिसल चुकी हो। जाहिर है ऐसे में देवनानी की आवाज नक्कारखाने में तूती की माफिक साबित हो रही है।
अब अगर मीडिया की बात करें तो वह पहले ही चोट खा चुका है। आईआईटी के मामले में स्थानीय दैनिक नवज्योति के मालिक दीनबंधु चौधरी ने अगुवाई की थी, मगर शेरनी की माफिक तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की नाराजगी होने पर एक तो सरकारी विज्ञापनों में कटौती का डर और दूसरा आम जनता की बेरुखी, दोनों कारणों से चुप हो कर बैठ गए। जनता का तो हम सब को पता ही है। हमारी बला से तो पूरा बोर्ड ही जयपुर ले जाएं तो हमें क्या फर्क पड़ता है। हमें तो पांच-पांच दिन के अंतराल से पानी सप्लाई किए जाने से ही फर्क नहीं पड़ता, बोर्ड तो चीज ही क्या है? यानि कुल मिला कर तय है कि बोर्ड विखंडन का मुद्दा टांय टांय फिस्स होता दिख रहा है।
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