मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

एक-एक करके सारे अधिकारी रुखसत

दीप दर्शन सोसायटी के नाम से नगर सुधार न्यास द्वारा पंचशील क्षेत्र में कथित रूप से अवैध तरीके से आवंटित 63 बीघा जमीन के मामले में एक-एक करके सारे अधिकारियों को अजमेर से रुखसत कर दिया गया है। जिला कलेक्टर राजेश यादव पर सार्वजनिक रूप से आरोप लगता, इससे पहले ही उन्हें सीएमओ में बुला लिया गया। कोई इसे सजा मान रहा है तो कोई संरक्षण, मगर कानाफूसी छोड़ कर उन पर सीधे अंगूली तो नहीं उठाई जा सकी।
पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल व अन्य कांग्रेसियों का ज्यादा गुस्सा न्यास सचिव अश्फाक हुसैन पर था, क्योंकि उन्होंने उचित तवज्जो नहीं दी, तो उन्हें भी यहां से हटा कर जयपुर बुला लिया गया। बाकी बचे कथित आरोपी न्यास के ओएसडी-लैंड अनुराग भार्गव को भी बारां रवाना कर दिया गया है। ऐसे में अब कांग्रेसी यह आरोप नहीं लगा पाएंगे कि कथित घोटाले में शामिल अधिकारी कागजों में हेराफेरी कर सकते हैं। जाहिर है अब कांग्रेसियों के कलेजे की आग शांत हो गई है। अब वे मूंछ तान कर कह सकते हैं कि जो हमसे टकराएगा, अजमेर में नहीं रह पाएगा।
रहा सवाल झगड़े की जड़ जमीन घोटाले का तो सरकार ने जिस तरीके से एकतरफा निर्णय करते हुए आवंटन व लीज रद्द करने के आदेश दिए थे, उस पर न्यायालय का स्थगनादेश आना ही था। मामला न्यायालय में न चला जाए, इसके लिए आरोप लगाने वाले सरकार पर केवियट लगाने का दबाव बनाते, इससे पहले ही स्थगनादेश आ गया। असल में इस मामले में सरकार ने दीप दर्शन सोसायटी का पक्ष सुना ही नहीं। कदाचित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस खामी को जानते रहे होंगे, मगर उन्होंने एकपक्षीय कार्यवाही कर खुद का दामन तो दागदार होने से बचा ही लिया। इस पर सोसायटी के अधिकृत प्रतिनिधि कमल शर्मा की यह शिकायत वाजिब ही थी कि उनका पक्ष सुने बिना एकतरफा फैसला कैसे कर दिया गया। सीधी सी बात है कि जो जमीन न्यास ने खुद आवंटित की थी, उसका बेचान करके जब नियमानुसार लीज करवा ली गई तो जिन लोगों ने उसे खरीदा, उनका कोई दोष नहीं है। उन्होंने कोई अतिक्रमण तो किया नहीं था। बहरहाल, फैसला तो न्यायालय ही करेगा, मगर जैसे रंगढंग हैं, नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही होता नजर आता है, भले ही उसमें वक्त लग जाए।

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