सोमवार, 7 मई 2012

प्रदेश भाजपा में घमासान, अजमेर के नेता किंकर्तव्यविमूढ़

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के कोपभवन में बैठने से प्रदेश भाजपा में घमासान मचा हुआ है और उसकी धमक से दिल्ली हाइकमान भी हिला हुआ है, अजमेर के भाजपाई किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि क्या करें, क्या न करें, किधर जाएं, किधर नहीं?
असल में अजमेर भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ रहा है। अधिसंख्य नेता या तो संघ पृष्ठभूमि से हैं अथवा किसी न किसी रूप में संघ से जुड़े हुए हैं। कुछ एक नेताओं को छोड़ कर सीधे तौर पर उनका जुड़ाव वसुंधरा राजे से नहीं है। बड़े नेताओं में अकेले पूर्व जलदाय मंत्री प्रो. सांवरलाल जाट हैं, जो कि मुखर हो कर सामने आए हैं और उन्होंने बाकायदा किसान मोर्चा के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है। यहां उल्लेखनीय है कि जाट संघ पृष्ठभूमि से नहीं हैं और उनकी गिनती वसुंधरा राजे के खास सिपहसालारों में होती है। रहा सवाल विधायकों का तो अजमेर जिले में तीन भाजपा विधायक हैं। सर्वविदित है कि प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल संघ पृष्ठभूमि से हैं, इस कारण उनके खुल कर वसुंधरा राजे के साथ आने की उम्मीद भी नहीं है। हालांकि कुछ समाचार पत्रों में यह जानकारी आई है कि अनिता भदेल व शंकर सिंह रावत इस्तीफा सौंपने वालों में शामिल हैं, मगर इसकी पुष्टि नहीं हो पा रही। उलटे भाजपाई तो चौंक रहे हैं कि अनिता भदेल ने कैसे इस्तीफा दे दिया। देवनानी के बारे में भी कुछ पता नहीं है। जयपुर से आ रही साठ विधायकों के इस्तीफा देने की खबरों से अंदेशा होता है कि कदाचित वसुंधरा का पलड़ा भारी होने के चलते अजमेर के विधायकों ने भी गुपचुप साइन कर दिए हों, क्योंकि बाद में अगर वसुंधरा को फ्री हैंड मिल गया तो उनको टिकट लेने में दिक्कत आएगी। जहां तक ब्यावर के विधायक शंकरसिंह रावत का सवाल है, उनके यह कहने पर कि उनसे वसुंधरा जी ने इस्तीफा मांगा नहीं है, मांगेंगी तो दे देंगे, साफ है कि वे किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। अगर इस्तीफा दे भी दिया है तो खुल कर नहीं बोल रहे।
पार्टी नेताओं की बात करें तो प्रदेश उपाध्यक्ष औंकारसिंह लखावत प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी खेमे के माने जाते हैं, इस कारण उन्होंने चुप्पी साध ली है। शहर भाजपा अध्यक्ष प्रो. रासासिंह रावत की ढुलमुल नीति से सभी वाकिफ हैं। खुद का पल्लू झाडऩे के लिए उन्होंने यह कह दिया कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मंथन कर रहे हैं। अलबत्ता उन्होंने वसुंधरा की महत्ता को जरूर स्वीकार किया है, जो कि साबित करता है कि वे ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर वाली नीति पर चल रहे हैं। इसी प्रकार विहिप से जुड़े प्रदेश भाजपा शिक्षा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष प्रो. बी.पी. सारस्वत ने भले ही यह कह दिया हो कि वे मेडम के साथ खड़े हैं, मगर वे कितने साथ हैं, इसका अनुमान उनके यह कहने से लगता है कि पार्टी नेताओं को इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है। उधर देहात भाजपा अध्यक्ष नवीन शर्मा ने जरूर खुल कर कह दिया कि उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया है और पार्टी के अंदर समस्या का हल निकाला जा रहा है। ज्ञातव्य है कि उनका प्रो. जाट से छत्तीस का आंकड़ा है, इस कारण वसुंधरा के साथ जाने की संभावना बनती ही नहीं है। नगर निगम पार्षद व भाजयुमो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीरज जैन भी देवनानी के करीबी और संघ के निकट हैं, इस कारण उन्होंने भी यह कह कर कि वे राजस्थान से बाहर हैं, खुद को बचाने की कोशिश की है। मौजूदा संचार प्रचार युग में कोई यह कहे कि उन्हें कुछ पता नहीं है, अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कोई टिप्पणी करने से क्यों बच रहे हैं। निचले स्तर पर जरूर कुछ वसुंधरा के साथ तो कुछ संघ के साथ हैं, मगर वे किसी विवाद में नहीं पडऩा चाहते। पता नहीं ऊंट किस करवट बैठे या काहे को आइटेंटिफाइड हों, पार्टी के साथ तो हैं ही।
ताजा घमासान में उन नेताओं को परेशानी ज्यादा है, जो कि आगामी विधानसभा चुनाव में दावेदारी करना चाहते हैं। वे जानते हैं कि अगर किसी एक पक्ष के साथ रहे तो बाद में दिक्कत आएगी, इस कारण वे टकटकी लगा कर देख रहे हैं कि देखें क्या होता है। रहा आम कार्यकर्ता सवाल, तो वह बेहद दुखी है कि पार्टी में ये क्या हो रहा है? आम जनता से वोट मांगने तो उन्हें ही जाना पड़ता है, मतदाता को क्या मुंह दिखाएंगे? उन्हें तो पार्टी के साथ रहना है, फिर चाहे वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए या पार्टी के बैनर पर।

-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें