रविवार, 16 दिसंबर 2012

क्या केवल पशुओं को छुड़ाने की जिम्मेदारी है?


गायों व अन्य पशुओं को कत्लखाने से जाने से रोकना बेशक महान काम है, मगर सवाल ये है कि क्या पशुओं को छुड़वा देने से ही कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है? यह सवाल इस कारण उठा है और मौजूं है कि रेलवे स्टेशन से पिछले दिनों झारखंड के लिए ले जाते छुड़ाए गए 64 बैल ऋषि उद्यान गोशाला के लिए बोझ बन गए। जीआरपी ने बैलों को मुक्त कराने के बाद ऋषि उद्यान गोशाला को सौंपा था, लेकिन गोशाला संचालकों के लिए बैलों की देखरेख और खर्च वहन करना भारी पड़ गया।
गोरक्षा दल के अध्यक्ष और ऋषि उद्यान गोशाला के संचालक यतीन्द्र शास्त्री का कहना है कि रेलवे पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों ने जब्त किए गए बैलों को यह कहते हुए दो दिन के लिए उन्हें सौंपा था कि दो दिन बाद इनकी व्यवस्था कर दी जाएगी, लेकिन पुलिस जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है। नतीजतन बैलों को रखना उन पर भारी पड़ रहा है। बैलों पर प्रतिदिन 8 से 10 हजार रुपए का खर्च किया जा रहा है। उनका कहना है कि रेलवे पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर बैलों को जब्त किया था। इसलिए इनके रखरखाव की जिम्मेदारी भी पुलिस की है। दूसरी ओर रेलवे पुलिस का तर्क है कि बैलों को गोशाला संचालकों के सहमति से ही सुपुर्दगीनामे पर सौंपे जाने पर सुपुर्दगी लेने वाले पर ही इनकी देखरेख की जिम्मेदारी है। इसका मतलब तो ये हुआ कि शास्त्री ने चाहे इंसानियत के नाते, चाहे वाहवाही के लिए, अनजाने में बैलों की सुपुर्दगी ले ली, मगर वह उनके गले पड़ गई।

खैर, जब इसका कोई हल नहीं निकला तो गोशाला संचालकों की मांग पर जिला प्रशासन को बैलों को पीसांगन और अन्य दूसरी गोशाला में शिफ्ट करने के आदेश जारी करने पड़े। ऐसे में बैलों को अन्य गोशालाओं तक पहुंचाने के खर्च का सवाल भी खड़ा हो गया है।
पर अहम सवाल ये है कि वे लोग, जिन्होंने धर्म के नाम पर बैलों को कत्लखाने जाने से रोक कर वाहवाही ली, उन्होंने पलट कर यह भी नहीं देखा कि उन बैलों का क्या हुआ और बैल शास्त्री के गले पड़ गए। यदि ऐसा होता रहा तो भविष्य में कोई काहे को इस प्रकार सुपुर्दगी लेगा?
बेशक कानूनन इस प्रकार छुड़वाए गए पशुओं की जिम्मेदारी प्रशासन और सरकार की ही है, मगर मुद्दा ये है कि गाय-बैलों को मुक्त करवाने वाले धर्म और नैतिकता के नाते उनके चारे-पानी की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते? जब धर्म के नाम पर अन्य कार्यों पर लाखों-करोड़ों रुपए खर्च होते हैं तो जानवरों की परवरिश क्यों नहीं की जाती?
-तेजवानी गिरधर

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