
बकौल ठाकरे देशभक्ति की भावना और देश प्रेम से उन्होंने यह दिखा दिया है कि वे देश के सच्चे रत्न हैं। इतना ही नहीं उन्होंने तुलना करते हुए भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद को उनकी ओर से अशरफ का भव्य स्वागत करने पर उन्हें लानत दी है। ठाकरे ने जियारत कर चले जाने के बाद अजमेर में अशरफ के गुजरने वाले रास्तों की धुलाई करने वालों की भी तारीफ की है।
आइये, इस मौके पर दरगाह दीवान की निजी जिंदगी के बारे में भी जान लें। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार वे ख्वाजा साहब की वंश परंपरा में निकटतम उत्तराधिकारी हैं, हालांकि दरगाह के खादिम इसे स्वीकार नहीं करते और उन्हें एक मुलाजिम मानते हैं।
दरगाह दीवान का सैयद जेनुल आबेदीन अली खान जन्म 24 दिसम्बर, 1951 को हुआ। उन्होंने इतिहास, उर्दू व परशियन में बी.ए. और एल.एल.बी. की शिक्षा अर्जित की है। वे हिंदी व अंग्रेजी के अतरिक्त उर्दू व परशियन भाषा के अच्छे जानकारी हैं। उनके वशंजों को मुगल बादशाह अकबर महान की ओर से दीवान व मुगल बादशाह शाहजहां की ओर से अली खान की पदवी प्रदान की गई थी। सन् 1877 को ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की ओर से शेख-उल-मशायख की उपाधि दी गई। वे ख्वाजा साहब के उर्स में महफिलखाने में छह दिन होने वाली महफिल, हर गुरुवार को अहाता-ए-नूर में होने वाली महफिल, हर माह की छठी शरीफ की महफिल, हर माह की चांद की 14 तारीख को कुतुब साहब के चिल्ले पर होने वाल महफिल और मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर 11 रबी उल अव्वल को होने वाली महफिल की सदारत करते हैं। वे उर्स के दौरान छहों दिन ख्वाजा साहब के मजार शरीफ को गुसल देने रस्म में शरीक होते हैं। वे 27 व 28 अगस्त 2000 को संयुक्त राष्ट्र संघ के असेम्बली हॉल में मिलेनियम वल्र्ड पीस सम्मिट में आतंकवाद व मुस्लिम जगत के बारे में भाषण दे चुके हैं।
-तेजवानी गिरधर
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