मंगलवार, 18 जून 2013

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की गोपनीयता पर उठ रहे सवाल

मनोज गिदवानी
अजमेर जिले के पुलिस कप्तान राजेश मीणा सहित अन्य पुलिस अधिकारियों पर सफलतापूर्वक हाथ डालने के अतिरिक्त लगातार बड़े-बड़े मामले पकडऩे वाला एंटी करप्शन ब्यूरो जब पहली बार अजमेर नगर सुधार न्यास के मामले में विफल हुआ तो सभी को अचरज हुआ। अन्य मामलों में तो फिर भी सरकारी अधिकारी लिप्त थे, मगर न्यास के मामले में तो सीधे-सीधे कांग्रेस सरकार की ओर से राजनीतिक आधार पर नियुक्त किए गए अध्यक्ष नरेन शहाणी भगत पर आरोप था, जिन पर कि हाथ डालने से पहले पूरी सावधानी बरती गई होगी और संभव है कि ऊपर से परमीशन भी ली गई हो। इसके बावजूद एसीबी के जाल से न्यास अधिकारी व कथित दलाल मनोज गिदवानी तक भी फिसल गए। एक अर्थ में देखा जाए तो यह बेहद महत्वपूर्व मामला था, जिसमें कि एंटी करप्शन ब्यूरो के जांच अधिकारी भीम सिंह बीका की विफलता ने ब्यूरो की कार्यप्रणाली और गोपनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस वजह से सीधे-सीधे बीका को उच्चाधिकारियों के सामने नीचा देखना पड़ा होगा, भले ही उनकी टीम के किसी सदस्य ने लापरवाही बरती हो।
चूंकि यह राजनीतिक मामला है, इस कारण भगत की नियुक्ति के साथ ही इस बाते के कयास लगाए जा रहे थे कि उन पर न केवल प्रतिद्वंद्वी कांग्रेसी, बल्कि विपक्षी भाजपाई भी नजर गडा कर रखेंगे। न्यास में जो गोरखधंधा होता है, उसका सबको पता है। काजल की इस कोठरी से साफ-सुथरा निकल कर आना बहुत मुश्किल होता है। कितना भी सावधानी से काम करो, मगर कहीं न कहीं न चूक की गुंजाइश रहती ही है। भले ही इन सब आधारों की वजह से ही, मगर यह चर्चा तो थी कि ब्यूरो की नजर न्यास पर है। यह आम चर्चा थी कि ब्यूरो न्यास के मामले में सक्रिय है। यहां तक संबंधित लोगों तक को अनुमान था, बताया कि न्यास उन पर नजर रख रहा है, तभी तो वे ब्यूरो की ट्रेप की कार्यवाही के चक्कर में नहीं आए। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ट्रेप की कार्यवाही विफल करने में किसका हाथ है। हालांकि ब्यूरो का कहना है कि न्यास के उप नगर नियोजक साहिब राम जोशी को स्वतंत्र गवाह बनाने का उनका फैसला गलत था, मगर लगता है कि अकेली यही वजह नहीं है कार्यवाही लीक होने की। चर्चा तो यह भी थी कि ब्यूरो विशेष रूप से जोशी पर ही शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है, जिन्हें कि उसने बाद में सरकारी गवाह बनाने की कोशिश की।
खाली हाथ लौटती एसीबी की टीम
लगता ये है कि चूंकि इस मामले में लंबे समय से जांच प्रक्रिया चल रही थी, इस कारण संबंधित लोगों को पहले से शक हो गया, बस उनसे चूक ये हुई कि वे अपने मोबाइल फोन सर्विलांस पर होने के बाद भी लेन-देन की बातें कर बैठे। चर्चा ये भी है कि यह साजिशन हुआ, जैसा कि भगत भी कह रहे हैं, इससे लगता है कि भले ही इसमें किसी ने साजिश न भी रची हो, मगर उसकी ब्यूरो की कार्यवाही में रुचि थी। ब्यूरो का यह भी देखना होगा कि जिस शिकायतकर्ता की शिकायत पर वह जांच कार्यवाही आगे चला रही थी, कहीं उसके रिश्ते ऐसे लोगों से तो नहीं थे, जो कि न्यास के मामलों में रुचि रखते हों और उसके मुंह से कुछ हिंट निकल हो गया हो। जो भी हो, जितना न्यास में भ्रष्टाचार का मामला गंभीर है, उससे भी ज्यादा गंभीर है ब्यूरो का फेल हो जाना। ब्यूरो को इस मामले में छानबीन करनी ही चाहिए कि उससे कहां चूक हुई। वो इस कारण कि पुलिस कप्तान राजेश मीणा तक को शिकंजे में लेने का तमगा लगाने वाली एसीबी के लिए ताजा प्रकरण शर्मनाक है और अकेले इस मामले ने ब्यूरो की गोपनीयता व कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
-तेजवानी गिरधर

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