बुधवार, 19 जून 2013

मेयर-सीईओ की ये जंग कहां तक जाएगी?

अजमेर नगर निगम में अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के बीच एक बार फिर टकराव की नौबत आ गई है। पहले जिन सीईओ सी. आर. मीणा को खुद मेयर कमल बाकोलिया ले कर आए, उन्हीं से नहीं पटी। आखिरकार मीणा का तबादला जिला परिषद में किया गया। अब उनकी मौजूदा सीईओ विनीता श्रीवास्तव से भी नहीं पट रही है। दोनों के बीच टकराव अब खुली जंग का रूप ले चुका है। एक ओर जहां विनीता ने बाकोलिया के निर्देश को नियमों का हवाला दे कर मानने से इंकार कर दिया तो दूसरी ओर बाकोलिया ने भी जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया है।
असल में मेयर बाकोलिया ने सीईओ को धारा 49 का हवाला देते हुए निगम में आयुक्तों के कार्य के बंटवारे के आदेश को निरस्त करने के निर्देश दिये थे, इस पर सीईओ ने इस निर्देश को मानने से साफ इंकार करते हुए अपने फैसले को यथावत रखा। सीईओ ने साफ कह दिया कि मेयर ने बंटवारे को निरस्त करने के लिए कहा था, लेकिन आदेश नियमानुसार जारी किए गए हैं। इस वजह से निरस्त नहीं किए गए। एक्ट के अनुसार प्रशासनिक अधिकार सीईओ के पास हैं। इस मसले पर पहले तो बाकोलिया ने बाहर होने का बहाना बना कर कोई प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया, लेकिन दूसरे ही दिन कुछ पार्षदों ने उनमें हवा भर दी। इस पर उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों ने अधिकारियों की शिकायत की है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने सवाल खड़ा किया कि स्वायत्तशासी संस्था में अधिकारी अगर जनप्रतिनिधियों की शिकायतों का निवारण नहीं करेंगे, तो जनता को जवाब कौन देगा? उनकी बात में दम तो है, मगर जनप्रतिनिधियों की अपेक्षाएं कितनी वाजिब हैं, ये तो सरकारी प्रतिनिधि ही तय करेंगे, जो कि सीधे तौर पर नियमों की पालना करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसका ताजा तरीन मामला सबको पता है कि नो कंस्ट्रक्शन जोन वाले मामले में निगम के प्रस्ताव पारित करने के बावजूद सीईओ ने अपना स्टैंड साफ रखा, जिसे कि स्वायत्त शासन विभाग ने पूरा समर्थन किया। नतीजतन मेयर को यह कह कर खीज मिटानी पड़ी कि सरकार का निर्णय शिरोधार्य है।
खैर, बाकोलिया ताजा मामले में जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा को लेकर  कुछ संयत भाषा में बोल कर रह गए, मगर निगम में नेता प्रतिपक्ष नरेश सत्यावना ने तो खुल कर हमला ही बोल दिया। उन्होंने निगम प्रशासन के कुछ अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कहा कि महज रिश्वत के कारण अवैध भवनों का नियमन किया जा रहा है, जबकि जनप्रतिनिधियों की क्षेत्रीय समस्याओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा, जिससे नागरिकों में जनप्रनिधियों के खिलाफ  आक्रोश बढ़ गया है। समझा जा सकता है कि उन्होंने यह आरोप किस के इशारे पर लगाया है। यानि कि अब स्पष्ट है कि निगम में अधिकारियों और पार्षदों व मेयर के बीच जंग और तेज हो जाएगी। ये जंग कहां तक जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। अगर सरकार बाकोलिया पर अंकुश लगाने का मानस रखती होगी तो विनीता को यहीं पर तैनात रखेगी, वरना कहीं और रुखसत कर देगी।

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