मंगलवार, 25 जून 2013

क्या वजह है कांग्रेस पार्षद बैरवा की अचानक गिरफ्तारी की?

रविवार को कोटड़ा के सावन पब्लिक स्कूल में वार्ड संख्या एक के पार्षद कमल बैरवा व पर्यवेक्षक राजेश खेरा के बीच नोक-झोंक होती है और सोमवार को राजकाज में बाधा के पुराने मामले में बैरवा की गिरफ्तारी हो जाती है। क्या इन दोनों घटनाओं के बीच कोई संबंध है? संबंध न भी हो तो भी राजनीति में रुचि रखने वालों में चर्चा यही है कि बैरवा को झटका देने की खातिर ही उनकी गिरफ्तारी हुई है।
ज्ञातव्य है कि ब्लॉक की बैठक में न बुलाने पर बैरवा ने बैठक में पहुंच कर नाराजगी जताई कि उनके क्षेत्र में बैठक होने के बावजूद उन्हें दरकिनार किया गया। इस पर पर्यवेक्षक ने कहा कि बैठक में केवल ब्लॉक के पदाधिकारियों व सदस्यों को ही बुलाया गया है, आप सदस्य नहीं हो, इस कारण नहीं बुलाया गया। बात आई गई हो गई। मगर दूसरे ही दिन राजकार्य में बाधा पहुंचाने और पुलिस दल पर पथराव करने के मामले में पुलिस ने पार्षद कमल बैरवा सहित तीन जनों को गिरफ्तार कर कोर्ट के आदेश से जेल भेज दिया। मामला ये था कि कोटड़ा क्षेत्र में मकानों के ऊपर से निकल रही विद्युत लाइन का इलाके के लोग विरोध कर रहे थे। विद्युत वितरण निगम के एक्सईएन सहित अन्य अधिकारी व कर्मचारी मौके पर पहुंचे थे। जहां कस्बेवासियों ने पार्षद के नेतृत्व में जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। गुस्साए लोगों ने विद्युत विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों के साथ मारपीट कर पथराव किया और उनके सामान छीनकर उन्हें भगा दिया था। विद्युत विभाग के अधिकारियों की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज किया था। फरवरी 2012 में पार्षद सहित अन्य आरोपियों को गिरफ्तार करने पहुंचे पुलिस दल पर कस्बेवासियों ने पथराव किया और पुलिस की जीप को क्षतिग्रस्त कर दिया था। पुलिस ने पार्षद सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ राजकार्य में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज किया।  बैरवा ने अग्रिम जमानत के लिये डीजे कोर्ट में प्रार्थना पत्र पेश किया था, जहां से अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज हो गई थी।
असल में इस वारदात के बाद जन अभियोग एवं सतर्कता समिति के प्रयासों से समझौता भी हुआ। बावजूद इसके डेढ़ साल पुराने इस मामले में अचानक गिरफ्तारियां हुईं तो इसका संबंध लोगों ने एक दिन पहले हुई घटना से जोड़ दिया। जनअभियोग एवं सर्तकता समिति अजमेर के सदस्य नरेश राघानी ने तो बाकायदा पुलिस की इस कार्यवाही को दमनात्मक बताया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखे पत्र में कहा गया है कि समिति की पहल पर विद्युत विभाग कर्मियों व ग्राम वासियों के बीच बड़े ही सौहार्दपूर्ण माहौल में समझौता हुआ और विद्युत लाइन का काम सुचारू रूप से पूरा कराया गया था। मुख्यमंत्री को मुकदमे राजकीय अनुशंसा से वापिस लेने का आग्रह किया गया था, जिस पर मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा पुलिस प्रशासन से इस मामले की तत्थात्मक रिपोर्ट भी मंगवाई गई थी। जिसका जवाब पुलिस अधिक्षक अजमेर द्वारा प्रेषित किया गया था। इन सब बातों से साफ है की सरकार उक्त प्रकरण को समझौते के बाद समाप्त करने की दिशा में प्रभावी कदम ले रही है, बावजूद इसके पुलिस ने दमनात्मक कार्यवाही कर दी। इससे आमजन में सरकार का गलत संदेश जा रहा है।
बहरहाल, समझौते के बाद भी पुलिस ने अचानक गिरफ्तारियां की तो स्वाभाविक रूप से लोगों ने इसे कांग्रेस पर्यवेक्षक से माथा लगाने के मामले से जोड़ कर देखना शुरू कर दिया।
-तेजवानी गिरधर

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