शनिवार, 28 दिसंबर 2024

जन्नती दरवाजे से मुतल्लिक हुआ था दिलचस्प वाकया

झंडे की रस्म के साथ षनिवार को ख्वाजा साहब का सालाना उर्स आरंभ हो गया। इस मौके पर दरगाह षरीफ स्थित जन्नती दरवाजे के मुतल्लिक एक दिलचस्प वाकया ख्याल में आ गया।

हुआ यूं कि जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत दौरे पर थे और उनका आगरा के बाद अजमेर आने का कार्यक्रम था तो एक खबर ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थी। वो यह कि मुशर्रफ के आने पर उनके स्वागत में दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। उन दिनों दोनों देशों के बीच संबंध भी कुछ गड़बड़ चल रहे थे, इस कारण इस खबर का अर्थ ये निकाला गया था कि मुशर्रफ के प्रति असम्मान के चलते ही जन्नती दरवाजा नहीं खोलने का निर्णय किया गया है। हालांकि तब उनका अजमेर दौरा रद्द हो गया था और वे आगरा से ही लौट गए थे। उनके अजमेर न आ पाने को इस अर्थ में लिया गया कि ख्वाजा साहब के यहां उनकी हाजिरी मंजूर नहीं थी। तभी तो कहते हैं कि वहीं अजमेर आते हैं, जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं।

असल में उनके प्रति असम्मान जैसा कुछ नहीं था। हुआ यूं कि मुशर्रफ के आगमन पर पत्रकार अंजुमन पदाधिकारियों से तैयारियों बाबत जानकारी हासिल कर रहे थे। हिंदुस्तान टाइम्स के तत्कालीन अजमेर ब्यूरो चीफ एस एल तलवार, जिन्हें कि दरगाह की रसूमात के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं थी, उन्होंने यह सवाल दाग दिया कि क्या मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा खोला जाएगा। इस पर अंजुमन पदाधिकारियों ने कहा कि नहीं। नतीजा ये हुआ कि यह एक खबर बन गई और विशेष रूप से दिल्ली के अखबारों में प्रमुखता से छपी कि मुशर्रफ के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाएगा। दरअसल अंजुमन पदाधिकारियों ने सवाल का जवाब देते वक्त केवल नहीं शब्द का इस्तेमाल किया। वे अगर कहते कि किसी भी वीवीआईपी के आने पर जन्नती दरवाजा नहीं खोला जाता है तो यह वाकया नहीं होता। यहां ज्ञातव्य है कि यह साल में चार बार खोला जाता है, उर्स हजरत ख्वाजा गरीब नवाज पर यानि 29 जमादिस्सानी से छह रजब तक, हजरत गरीब नवाज के पीर-ओ-मुर्शद के उर्स की तारीख पर यानि छह शबाकुल मुकर्रम पर और ईद उल फितर यानि मीठी ईद व ईद उल जोहा यानी बकरा ईद के दिन।


शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

क्या कांग्रेस को पुष्कर के लिए संभावित प्रत्याशी मिल गया?

अजमेर जिला बार एसोसिएशन के वार्षिक चुनाव में अशोक सिंह रावत को अध्यक्ष चुना जाना भले ही वकील जमात का मसला हो, मगर इसने एक राजनीतिक संभावना को जन्म दिया है। इसके लिए रावत की पृश्ठभूमि को देखना होगा। रावत ने गत विधानसभा का चुनाव आरएलपी के चुनाव चिन्ह पर पुष्कर से भाजपा उम्मीदवार सुरेश सिंह रावत के सामने लड़ा था। उन्हें 16 हजार से भी ज्यादा वोट प्राप्त हुए थे। वे पूर्व में पीसांगन पंचायत समिति के प्रधान भी रह चुके हैं। यानि राजनीति का भरपूर अनुभव है। पिछले चुनाव में भले ही उन्होंने किन्हीं समीकरणों के तहत आरएलपी का दामन थामा हो, मगर आगामी चुनाव में कांग्रेस उन पर विचार कर सकती है। उसकी एक वजह यह भी है कि रावत को कांग्रेस विचारधारा वाले वकीलों का साथ मिला है। वैसे भी पुश्कर में श्रीमती नसीम अख्तर इंसाफ के लगातार तीसरी बार हारने के बाद एक वैक्यूम उत्पन्न हो गया है। हालांकि कांग्रेस यहां मुस्लिम को प्राथमिकता देती रही है, मगर उसे अगर मसूदा में कोई उपयुक्त मुस्लिम उम्मीदवार मिल जाए तो वह पुश्कर में रावत पर दाव खेल सकती है। चूंकि पिछले चुनाव में उन्हें समाज के नेता डॉ. शैतान सिंह रावत और कपालेश्वर मंदिर के महंत सेवानंद गिरी का साथ मिला था, अतः प्रयोग के बतौर उन्हें ब्यावर में भी आजमाया जा सकता है। वैसे इतना पक्का माना जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कोई मौका नहीं छोडेंगे।


गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

सिख समाज की पहचान थे स्वर्गीय श्री जोगेन्द्र सिंह दुआ

पूर्व कांग्रेस पार्षद स्वर्गीय श्री जोगेन्द्र सिंह दुआ अजमेर में सिख समाज के जाने-माने समाजसेवक थे। असल में वे सिख समाज की पहचान थे। जब भी सर्व धर्म सम्मेलन अथवा बैठक होती थी तो उनको जरूर बुलाया जाता था। वे अत्यंत सरल व सहज स्वभाव के मालिक थे। उनका जन्म 1 जनवरी 1939 को श्री मेला सिंह उर्फ मानसिंह दुआ के घर हुआ। उन्होंने दसवीं कक्षा तक अध्ययन किया और व्यवसाय के रूप में भवन निर्माण सामग्री बेचने का काम शुरू किया। वे फर्शी पट्टी विक्रेता एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व संरक्षक, श्री गुरु सिंह सभा, अजमेर के सचिव, राज्य खालसा पंथ के सदस्य,  पहाडग़ंज श्री गुरु तेग बहादुर स्कूल के अध्यक्ष, नशा मुक्त अजमेर एसोसिएशन के अध्यक्ष, दक्षिण ब्लाक  कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अजमेर जिला भ्रष्टाचार निरोधक बोर्ड के पूर्व सदस्य और जिला स्थाई लोक अदालत के पूर्व सदस्य थे।

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शोक सभाओं का दुर्भाग्यपूर्ण आयोजन

प्रमुख समाजसेवी व भारतीय सिंधु सभा के उपाध्यक्ष श्री महेन्द्र कुमार तीर्थाणी ने एक विचारणीय पोस्ट भेजी है। आप भी पढियेः- शोक सभाएं आजकल दुःख बांटने और मृतक के परिवार को सांत्वना देने के अपने मूल उद्देश्य से भटक गईं हैं। आजकल शोक सभाओं के आयोजन के लिए विशाल मंडप लगाए जा रहे हैं। सफेद पर्दे और कालीन बिछाई जाती है या किसी बड़े बैंक्वेट हाल में भव्य सभा का आयोजन किया जाता है, जिससे यह लगता है कि कोई उत्सव हो रहा है। इसमें शोक की भावना कम और प्रदर्शन की प्रवृत्ति ज्यादा दिखाई देती है। मृतक का बड़ा फोटो सजा कर भव्यता के माहौल में स्टेज पर रखा जाता है। यहां तक कि मृतक के परिवार के सदस्य भी अच्छी तरह सज-संवर कर आते हैं। उनका आचरण और पहनावा किसी दुःख का संकेत ही नहीं देता।

समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने की होड़ में अब शोक सभा भी शामिल हो गई है। सभा में कितने लोग आए, कितनी कारें आईं, कितने नेता पहुंचे, कितने अफसर आए, इसकी चर्चा भी खूब होती है। ये सब परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार बन गए हैं। उच्च वर्ग को तो छोड़िए, छोटे और मध्यमवर्गीय परिवार भी इस अवांछित दिखावे की चपेट में आ गए हैं। शोक सभा का आयोजन अब आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। कई परिवार इस बोझ को उठाने में कठिनाई महसूस करते हैं पर देखा-देखी की होड़ में वे न चाह कर भी इसे करने के लिए मजबूर होते हैं।

इस आयोजन में खाना, चाय, कॉफी, मिनरल वाटर, जैसी चीजों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। पूरी सभा अब शोक सभा की बजाय एक भव्य आयोजन का रूप ले रही है। यह उचित नहीं है। शोक सभाओं को अत्यंत सादगीपूर्ण ही हो होना चाहिए।


बुधवार, 18 दिसंबर 2024

लोकप्रिय गायक व लेखक थे स्व. श्री मिरचूमल सोनी

स्व. श्री मिरचूमल सोनी अपने जमाने के विलक्षण गायक कलाकार व लेखक थे। भूतपूर्व भाजपा पार्षद स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी के साथ उनकी जोडी बहुत लोकप्रिय थी। वे एक दूसरे पर्याय थे। 

स्वर्गीय श्री सोनी का जन्म नवम्बर, 1933 में मांझन्द, जिला दादू सिन्ध प्रान्त में हुआ था। उन्होंने सिन्धी फाइनल तथा शास्त्रीय संगीत में विशारद की शिक्षा अर्जित की। पेशे से स्वर्णकार होने के साथ ही उनको गीत, संगीत, नाटक, साहित्य एवं लेखन में महारत हासिल थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थीं, जिनमें प्रमुख हैं मुहिन्जो मुल्क मलीर, रुह जा रोशनदान, मोतियन जो महिराण। उनको अनेक सम्मान हासिल हुए। उनको राजस्थान सिन्धी अकादमी की और से ‘रुह जा रोशनदान‘ पुस्तक लिखने पर अवार्ड दे कर सम्मानित किया गया था। उनके कई कार्यक्रम आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी प्रसारित हुए। उन्होंने कई स्टेज कार्यक्रमों का मंचन भारत के विभिन्न शहरों में एवं विदेशों में खास कर हांगकांग में स्वर्गीय श्री सेवकराम सोनी के साथ गोरधन भारती के सान्निध्य में किया। वे बडड़िया सिन्धी स्वर्णकार समाज में सलाहकार व सम्मानित सदस्य थे। भोलेश्वर मण्डल, वैशाली नगर के अध्यक्ष भी थे। वैशाली सिन्धी सेवा समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य थे। शहर की विभिन्न समितियों में सक्रिय योगदान एवं भागीदारी रखते थे।

वे बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिज्ञत स्वयंसेवक थे। भारतीय सिन्धु सभा, अजमेर के स्थापना के समय से ही सक्रिय सदस्य रहे। भारतीय सिन्धु सभा द्वारा आयोजित सिन्धी कार्यशाला में उन्होंने सिन्धी गीत संगीत का ज्ञान भावी पीढ़ी को दिया। उनका स्वर्गवास 18 दिसम्बर 2011 को हुआ।

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

केकडी बार अध्यक्ष मनोज आहूजा में छिपी है राजनीतिक संभावना

राज्य में सरकार बदलने के साथ केकडी जिले के अस्तित्व पर संषय उत्पन्न हो गया है। पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ रघु षर्मा सहित अन्य जागरूक नेता केकडी को पिछली सरकार में हासिल जिले का दर्जा बरबरार रखने की मुहिम छेडे हुए हैं। इस मुहिम को एक और ताकत मिल गई है। केकड़ी जिला बार एसोसिएशन के हाल ही चुने गए अध्यक्ष मनोज आहूजा ने मन्तव्य जाहिर कर दिया है कि वे केकडी को हासिल जिला मुख्यालय का दर्जा कायम रखने का पूरा प्रयास करेंगे।

वे बहुत जुझारू, बहुआयामी, मुखर व जागरूक वकील हैं। राजनीति में भी उनकी गहरी दिलचस्पी है, जो किसी से छिपी नहीं है। किसी समय विधायक ब्रह्मदेव कुमावत के सारथी थे। वकालत के अतिरिक्त जन समस्याओं के निराकरण के लिए भी सतत प्रयत्नषील रहते हैं। पत्रकारिता में भी दखल रखते हैं। खुद का वीडियो चैनल चलाते हैं। जाति से सिंधी आहूजा का केकडी में भले ही सषक्त जातिगत आधार न हो, मगर जिस तरह से वे केकडी बार के अध्यक्ष चुने गए हैं, उससे साबित होता है कि उनकी क्षेत्र में खासी लोकप्रियता है। वकालत के कारण उनकी अजमेर में आवाजाही रहती है। उन्होंने यहां अपना फ्रेंड सर्किल भी बना रखा है। पिछले चुनाव में पार्शद ज्ञान सारस्वत को समर्थन देकर उन्होंने अजमेर की सरजमीं अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी। इतना ही नहीं, वासुदेव देवनानी के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस की। जरूर वे किसी भावी ताने बाने का बीजारोपण करने अजमेर आए थे, वरना केकडी से यहां आने का क्या मकसद हो सकता है। मूलतः कांग्रेस विचारधारा से जुडे हैं, ऐसे में कांग्रेस अजमेर उत्तर के लिए विचार कर सकती है। कदाचित दूरदृश्टि के तहत ही उन्होंने बहुत पहले अजमेर में मकान बनवाया हो। हालांकि यह बात दूर की कौडी है, मगर राजनीति संभावनाओं खेल है, जिसमें कुछ भी संभव है।


शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

हिंदी व संस्कृत की प्रकांड विदुषी श्रीमती ज्योत्सना

पिछले दिनों अजमेर के पत्रकारों व साहित्कारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक शृंखला आरंभ की थी। उस कडी में हिंदी व संस्कृत की गहन जानकार श्रीमती ज्योत्सना का जिक्र यदि नहीं किया जाए तो बात अधूरी रह जाएगी। आर्य समाज के सचिव स्वर्गीय श्री धर्मवीर शास्त्री की धर्मपत्नी श्रीमती ज्योत्सना दैनिक भास्कर में कॉपी डेस्क पर रहीं। कॉपी डेस्ट का यह कन्सैप्ट भास्कर प्रबंधन का अनूठा प्रयोग था। प्रबंधन का मानना था कि आम तौर पर पत्रकारों की हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ नहीं होती। इस कारण संपादन करने के दौरान संपादक का सारा ध्यान गलतियां सुधारने पर चला जाता है और खबर को और उन्नत नहीं बनाया जा पाता। अतः संपादक तक खबर आने से पहले उसमें वर्तनी व व्याकरण संबंधी गलतियां दुरुस्त होनी चाहिए। साथ ही भाषा का स्तर पर भी सुधार किया जाना चाहिए। समझा जा सकता है कि कॉपी डेस्क पर काम करने वाले कितने सिद्धहस्त होते होंगे। श्रीमती ज्योत्सना उनमें से एक थीं। उनके अतिरिक्त शिक्षाविद् नवलकिशोर भाभड़ा, विनोद शर्मा व केदार जी माडसाब भी थे। श्रीमती ज्योत्सना के बारे में एक बेहद रोचक जानकारी देना प्रासंगिक होगा कि उनके परिवार के सभी सदस्य आपस में संस्कृत में ही बात किया करते हैं। संभवतः वह अजमेर का एक मात्र परिवार है। ज्ञातव्य है कि स्वर्गीय श्री धर्मवीर शास्त्री संस्कृत व वेदों के ज्ञाता थे।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

जब शिवचरण माथुर कुली को तलाश रहे थे

राजनीति का अजब खेल है। वह आदमी को कभी अर्श पर बैठा देती है, तो कभी फर्श पर लेटा देती है। वक्त बदलते ही आदमी के नाचीज होने में देर नहीं लगती। इसके अनेकानेक उदाहरण हैं। इसका ख्याल मुझे अरसे से रहा, मगर एक घटना से इसका फलसफा मुझे ठीक से समझ आया। हुआ यूं कि कोई 41 साल पहले मैं नागौर में रहता था। पत्रकारिता का शैशव काल। एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को कवर करने गया। उनके इर्द गिर्द सुरक्षा धेरे को देख दंग रह गया। कितने नेता व कार्यकर्ता उनकी मिजाज पुर्सी में लगे थे। स्वागत करने वालों में होड मची थी। कितने प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी तैनात थे। चाक चौबंद थे। अहसास हुआ कि मुख्यमंत्री कितना बडा आदमी होता है। खैर, बाद में मैं माइग्रेट हो कर अजमेर आ गया। यहां दैनिक न्याय में काम करता था। रोज रात को काम से फारिग हो कर कुछ पत्रकार साथियों के साथ रेलवे स्टैशन पर चाय पीने जाया करते था। एक बार मेरे साथ स्वर्गीय श्री सुनिल शर्मा व स्वर्गीय श्री राजू मोहन सिंह थे। हम प्लेट फार्म पर टहल रहे थे। एक टेन आई। यकायक देखा कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर जैसे दिखने वाले कोई सज्जन दोनों हाथों में अटैचियां उठाए उतरे और कुली को तलाशने लगे। सहसा यकीन नहीं हुआ। थोडा नजदीक जा कर देखा तो पाया कि वे माथुर साहब ही थे। चूंकि तब वे मुख्यमंत्री नहीं थे, इस कारण पुलिस के लवाजमे की उम्मीद तो बेमानी थी, मगर कोई कार्यकर्ता भी उन्हें रिसीव करने नहीं आया था। उस दौर में पूर्व जिला प्रमुख सत्यकिशोर सक्सैना उनके करीबी हुआ करते थे। कदाचित माथुर साहब गोपनीय यात्रा पर आए थे, इसलिए अपने अजीज सक्सैना साहब को भी सूचित नहीं किया। हम उनसे इसलिए नहीं मिले कि वे जिस स्थिति में पहचाने गए हैं, तो उन्हें असहज महसूस होगा। हम तो वहां से चले गए, हो सकता है कि बाद में उन्हें कोई लेने आया हो। खैर, माथुर साहब को देख कर यकायक 41 साल पहले का मंजर फिल्म की माफिक मस्तिष्क में घूमने लगा। ख्याल आया कि राजनीति भी क्या चीज है, खास को भी आम बना देती है। जब तक आदमी पद पर रहता है, उसके साथ कई चीजें होती हैं और पद से हटने पर बहुत कुछ खो जाता है।

अजमेर में पैसा पानी की तरह बह जाता है

अजमेर का पानी से गहरा नाता रहा है। यह एक कटु सत्य है कि पानी की कमी के चलते अजमेर राजधानी बनने से रह गया। एक ओर भारी बरसात के कारण पानी निचली बस्तियों में तबाही मचा देता है, तो दूसरी ओर जीवनदायिनी बीसलपुर परियोजना के पानी से अजमेर की प्यास अभी तक नहीं बुझ पायी है।

वैसे एक बात है। तीर्थराज पुश्कर व दरगाह ख्वाजा साहब को अपने आंचल में समेटे अजमेर की अंतर राश्टीय क्षितिज पर खास पहचान है। इसी कारण विकास के लिए कई बार केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से विषेश राषि आती रही है, मगर दुर्भाग्य से पैसा पानी की तरह बह जाता है। 

आपको ख्याल होगा कि 786वें उर्स में बडी संख्या में जायरीन की आवक के मद्देनजर वीवीआईपी के लिए नागफणी से अंदर कोट तक संपर्क सडक बनाई गई थी। हालांकि उसकी जरूरत नहीं पडी। बाद में उसका उपयोग ही नहीं किया गया। चट्टानें गिरने से सडक की दुर्दषा होती रही। पहाडी पर अनेक अतिक्रमण हो गए। कुल जमा इस सडक पर लगाया गया पैसा बेकार चला गया।

इसी प्रकार दरगाह से सेंट फ्रांसिस तक सीवरेज लाइन डाली गई, मगर उसका उपयोग हो ही नहीं पाया। बाद में पूरे नगर के लिए सीवरेज लाइन डाली गई, मगर उसकी जो हालत है, वह किसी से छिपी नहीं है। 

भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय षिवचरण माथुर ने तारागढ के आसपास की पहाडी पर हैलीकॉप्टर से बीज बिखेरने की पहल की, ताकि नाग पहाड पर हरियाली हो, मगर उसका फॉलोअप नहीं हुआ। ऐसे में इसी प्रकार बरसाती पानी के व्यर्थ बह जाने को रोकने के लिए पुश्कर घाटी में जापान के सहयोग से छोटे छोटे एनीकट बनाए गए, मगर बाद में रखरखाव न होने के कारण पैसा पानी की तरह बह गया। सीवरेज टीटमेंट प्लांट की हालत किसी से छिपी नहीं है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से अजमेर वासियों को बहुत उम्मीदें थीं, मगर आज जब वह प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है, उसमें पैसा पानी की तरह बहाए जाने के आरोप लगाए जाने लगे हैं। बहुप्रतीक्षित एलिवेटेड रोड बन तो गई, लेकिन उसमें रही खामियों पर चर्चा करते हुए सिर्फ अफसोस ही किया जा सकता है। अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेष जैन ने पर्यटकों को लुभाने के लिए पुश्कर घाटी पर सांझी छत बनाई। 

बहुत बेहतरीन कन्सैप्ट था, मगर बाद में उसकी किसी ने सुध नहीं ली, नतीजतन वहां बंदरों की पंचायत लगती है।

ऐसे ही अनेक उदाहरण मुंह चिढा रहे हैं। 


मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

इबादत और आरती का संगम: दरगाह बाबा बादामशाह

अजमेर के सोमलपुर गांव के निकट बाबा बादामशाह की दरगाह स्थित है। भारत में सूफी उवैसिया सिलसिले की यह आठवीं दरगाह है। शेष पांच रामपुर में और दो झांसी में हैं। श्वेत संगमरमर से निर्मित यह दरगाह दूर से ताजमहल जैसी लगती है। बाबा बादामशाह की दरगाह में साधनारत जाने-माने लेखक व इतिहासविद् शिव शर्मा बताते हैं कि सामान्य जायरीन के लिए यह आस्था का पर्यटन धाम है। साधकों के लिए रूहानियत का शक्ति केन्द्र है और अध्यात्म विद् यहां विश्व चेतना के संघनित आलोक में प्रणाम करते हैं। इस दरगाह में बाबा साहेब का अतिशय शान्तिदायी मजार है, जहां बैठने पर अलौकिक सुकून मिलता है। पास में ही महफिलखाना है। दालान में एक मस्जिद है। दूसरे कोने में शिव मंदिर है। इस तरह यहां दरगाह में इबादत और आरती का संगम है। इस सर्वधर्म-भाव चेतना का ही असर है कि यहां आने वाले जायरीन में नब्बे फीसदी हिन्दू होते हैं। धर्मान्ध लोगों के लिए यहां पहला आश्चर्य यह है कि यहां गुरु पद पर ब्राह्मण प्रतिष्ठित है। दूसरा अचरज यह है कि दरगाह में शिव मंदिर और तीसरा विस्मय यह कि यहां आने वाले अधिकतर जायरीन हिन्दू समाज के होते हैं। शिवलिंग की पिण्डी स्वयं बाबा बादामशाह साहब लाए थे। 

बाबा बादाम शाह मूलतः उत्तर प्रदेश के गालब गांव (मैनपुरी जिला) के निवासी थे। प्रारब्ध की दिशा और गुरु के आदेश से वे यहां आए। आठ वर्ष तक नागपहाड़ में घोर तपस्या की। फिर फरीदा की बगीची और गढ़ी मालियान में थोड़े-थोड़े समय ठहरकर सोमलपुर आ गए। बाबा साहब 1946 से लेकर फना (देह त्याग) होने तक यानी 1965 तक यहीं रहे। तपस्यारत, ध्यानमग्न, भाव मग्न, परमात्म-प्रेम में निमग्न, जनसेवा में लीन और दीन-हीन के साथी बन कर उन्होंने ही गुरु कृपा से एक सामान्य सांसारिक मनुष्य हरप्रसाद मिश्राजी पर शक्तिपात किया। फलतः मिश्राजी ने गुरुद्वार के दर्शन किए तथा उस रास्ते को जान लिया जो परमात्मा तक जाती है। वे बाबा साहब के खादिम हो गए और गुरुकृपा से उस भक्ति भाव में डूबते चले गए जो जीवात्मा को परमात्मा से मिलाती है। बाबा के खास खादिम हजरत हरप्रसाद मिश्रा उवैसी भारतीय उवैसिया शाखा के नौवें गुरु थे। प्रेम के पथ पर गुरु के ध्यान में मग्न रहने वाले मिश्रा ही बादामशाह उवैसी कलन्दर के उत्तराधिकारी हुए और इस ईदगाह में वे खिदमत कर रहे थे। 

यह दरगाह सूफी चेतना की सादगी का मूर्तरूप है। पहाड़ी शृंखला की अनन्य शातिदायी गोद में बनी हुई यह दरगाह वर्षाकाल में ऐसे लगती है मानो भक्ति-मग्न मेघों से बहते आंसुओं में भीग रही हो और गुरु पूर्णिमा को रात में यहां ऐसा प्रतीत होता है जैसे गुरु का आशीर्वाद चांदनी बनकर यहां जर्रे-जर्रे पर टपक रहका हो। वैसे प्रतिवर्ष रज्जब माह की 29 या 30 तारीख और एक शब्बान को इनका उर्स मनाया जाता है। 26 नवम्बर 1965 शुक्रवार को बाबा साहब फना हुए थे (देहान्त हुआ था)। इस सालाना उर्स में अजमेर के सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। उन दिनों यहां भक्ति-भाव, आस्था, कव्वाली, भजन आदि का जो मिलाजुला मंजर बनता है, उसमें डूबने वालों पर मानो खुदा की रहमत का नूर बरसता है।

ऐसा बताया जाता है कि इस सिलसिले के प्रथम सूफी संत का पूरा नाम हजरत उवैस करणी रदीयल्लाह अनही है। बचपन में मां इन्हें उसैस कहती थी और यमन में करण नायक गांव में इनका जन्म हुआ था। इस तरह ये हजरत उवैस करणी नाम से विख्यात हुए। इनके नाम उवैस को अमर रखने के लिए ही इनके सिलसिले का नाम उवैसी रखा गया। इस तरह कुल मिलाकर अजमेर स्थित बाबा बादामशाह उवैसी कलन्दर (कलन्दर यानी वह जो समरस रहता है, स्वयं को व संसार की चिन्ता त्याग कर खुदा की इबादत में लीन रहता है।

दरगाह का निर्माण कार्य अप्रैल 1996 से 1999 तक तीन वर्ष में पूरा हुआ। इसके बाद सन 2005 ई. में महफिलखाने व दरगाह का सौन्दर्यीकरण किया गया। उद्यान विकसित किया गया। सन 2008 में एप्रोच रोड को चौड़ा एवं उसका फिर से डामरीकरण किया गया। दरगाह के मुख्य द्वार से पहले पार्किंग स्थल को भी चौड़ा कराया गया।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

सर्द मौसम में अजमेर शहर की कांग्रेस गर्म

राजस्थान विधानसभा चुनाव हुए एक साल बीत गया। चुनावी सरगरमी थम चुकी है। मौसम भी सर्द है। बावजूद इसके अजमेर की कांग्रेस में व्याप्त गरमाहट साफ महसूस की जा सकती है। एक ओर जहां राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड ने हलचल मचा रखी है, वहीं वरिश्ठ कांग्रेस नेता महेन्द्र सिंह रलावता भी अपना वजूद कायम रखने कवायद जारी रखे हुए हैं। षहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष की अपेक्षित नियुक्ति के इंतजार में दावेदार भी हाथ पैर मार रहे हैं। नैपथ्य में आगामी नगर निगम चुनाव का ताना बाना बुना जा रहा है। देखिये, यह रिपोर्टः-

राजस्थान पर्यटन विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड को भले ही पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट न मिला हो, मगर वे कत्तई निराष या हतोत्साहित नहीं हैं। वे जमीन पर षनैः षनैः पकड मजबूत करने में लगे हुए हैं। आए दिन अजमेर आते हैं और छोटे छोटे कार्यक्रमों में षिकरत कर रहे हैं। किसी के यहां षोक संवेदना व्यक्त करने को पहुंच रहे हैं तो किसी के यहां षिश्टाचार भेंट करते हुए मेल मिलाप बढा रहे हैं। यहां तक कि भवन निर्माण के लिए हो रहे भूमि पूजन कार्यक्रम तक को अटैंड रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस पार्शदों के धरना कार्यक्रम में भी उनकी अहम भूमिका थी। साफ दिखाई दे रहा है कि वे आगामी चुनाव की चादर बिछा रहे हैं। विषेश रूप से अजमेर उत्तर में महेन्द्र सिंह रलावता के लगातार दो बार हारने के कारण उन्हें वैक्यूम नजर आ रहा है। सौभाग्य से अजमेर उत्तर की दोनों ब्लॉक इकाइयों पर उनकी पकड हैं। दक्षिण की ब्लॉक इकाइयां भी पिछला चुनाव लड चुकी सुश्री दोपदी कोली के जरिए उनके अनुकूल हैं। उनकी जयपुर दिल्ली में पकड इसी बात से साबित होती है कि पिछले दिनों जब राहुल गांधी जयपुर आए तो उनकी अगुवानी करने वाले चंद नेताओं में वे भी षामिल थे।

राजनीति के पंडित समझ रहे हैं कि वे आगामी नगर निगम चुनाव में भी अपना पूरा दखल रखेंगे। हालांकि यह इस पर निर्भर करेगा कि नया षहर अध्यक्ष कौन बनेगा? वह जल्द ही क्लीयर हो जाएगा।

दूसरी ओर पिछला चुनाव हारे महेन्द्र सिंह रलावता ने भी अपनी जमीन नहीं छोडी है। वे भी अपना ऑफिस नियमित रूप से खोल रहे हैं और स्थानीय ज्वलंत मसलों पर मुखर हैं। हाल ही दरगाह मंदिर विवाद पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। फिर उर्स की व्यवस्थाओं को लेकर जिला कलेक्टर से मिले। कार्यकर्ताओं के पारीवारिक कार्यक्रमों में गर्मजोषी से षिकरत कर रहे हैं। मोटे तौर पर भले ही यह समझा जाए कि उन्हें तीसरी बार टिकट नहीं मिल पाएगा, मगर राजनीति में कुछ भी संभव है। इसकी नजीर भी है। यह कहना कि उन्हें फिर मौका मिलना नामुमकिन है, उचित नहीं होगा। वजह यह कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पिछले चुनाव में मतातंर कम करने में कामयाब रहे। उनकी अतिरिक्त सक्रियता पर्दे के पीछे का सच बयां कर रही है कि वे अपने छोटे भाई पार्शद गजेन्द्र सिंह रलावता व पुत्र षक्ति सिंह रलावता का राजनीतिक भविश्य भी सुरक्षित रखना चाहते होंगे।

कुल जमा कांग्रेस की सक्रियता तब परवान पर होगी, जब षहर जिला अध्यक्ष की नियुक्ति हो जाएगी। 


बुधवार, 4 दिसंबर 2024

कौन थे दीवान रायबहादुर हरबिलास शारदा?

इन दिनों दीवान राय बहादुर हरबिलास शारदा का नाम चर्चा में है। इसलिए कि उनकी पुस्तक में लिखी बात को आधार बना कर दरगाह के नीचे शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। उन्होंने अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक Ajmer: Historical and Descriptive पुस्तक लिखी। इसी के कुछ अंश को बतौर सबूत पेश किया गया है।

कानून से उनका गहरा नाता था। वे रजिस्ट्रार, सब जज व अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में सेवा से निवृत्त हुए। उन्होंने बाल विवाह प्रथा रोकने के लिए कानून बनाया, जिसे शारदा एक्ट के नाम से जाना जाता है। दिलचस्प बात ये है कि वे खुद बाल विवाह की चपेट में आए थे। इतिहास में दर्ज यह तथ्य कई साल पहले दैनिक भास्कर में वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेश कासलीवाल ने उजागर किया था। अपनी स्टोरी में उन्होंने खुलासा किया था कि शारदा की पहली शादी मात्र साढ़े नौ साल की उम्र में 16 नवंबर 1876 को श्री लालचंद की पुत्री काजीबाई के साथ हुई थी। कम उम्र में ही काजीबाई का निधन हो गया। इस पर उन्होंने 1889 में दूसरी शादी की, मगर दूसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद निधन हो गया। इस पर उन्होंने 1901 में तीसरी शादी की। उन्होंने अपनी पुस्तक री कलेक्शंस एंड रेमीनीसेंसेज में लिखा कि कम उम्र में ही शादी हो जाने के कारण लड़कियों की कम उम्र में ही मृत्यु हो जाती है क्यों कि वे शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं हो पातीं।

कुछ वर्ष पहले राजस्थान पत्रिका ने इस विषय पर काम किया और वे शारदा के प्रपौत्र की बहू ममता शारदा का साक्षात्कार लेने में कामयाब हो गया। ममता शारदा ने बताया कि हरबिलास शारदा की पत्नी पार्वती गांव की थी। इसलिए उनका गांव में आना-जाना लगा रहता था। गांव में बालक बालिकाओं की कम उम्र में शादी को देखते हुए उन्होंने कुछ करने की ठान ली। उन्होंने कई पुस्तकों का अध्ययन कर वैज्ञानिक आधार पर शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्वता की उम्र के अनुसार विवाह का एक प्रस्ताव बनाया। वे इसे लेकर तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारियों के पास गए। ब्रिटिश अधिकारियों को वह प्रस्ताव बहुत पसंद आया। तत्कालीन ब्रिटिश भारत में 1 अक्टूबर 1929 को को शारदा एक्ट पारित किया गया। एक अप्रैल 1930 को यह कानून लागू हो गया। इसके बाद बाल विवाह एक अपराध की श्रेणी में आ गया। इसके बाद लड़की की 18 वर्ष एवं लड़के के विवाह की आयु 21 वर्ष रखी गई। हरविलास शारदा ने अभियान चलाकर बाल विवाह का विरोध किया। समाज सुधार के विशेष प्रयास के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दीवान राय बहादुर की उपाधि प्रदान की। हरविलास शारदा का जन्म 3 जून, 1867 को राजस्थान के अजमेर शहर में हुआ था। उनके पिता धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, जिसका प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। उन्होंने आगरा कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के बाद वे अदालत में अनुवादक के पद पर कार्य करने लगे। वे राजस्थान में जैसलमेर के राजा के अभिभावक रहे और 1902 में अमजेर के कमिश्नर के कार्यालय में वर्नाक्यूलर सुपरिटेंडेट के पद पर कार्य किया। रजिस्ट्रार, सब जज और अजमेर-मारवाड़ के स्थानापन्न जज के रूप में काम करने के बाद 1924 में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।

वर्ष 1924 में हरबिलास शारदा अजमेर-मेरवाडा से केंद्रीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वे पुनः इस क्षेत्र से 1930 में निर्वाचित हुए थे। उनका 20 जनवरी, 1952 को निधन हो गया।

रविवार, 1 दिसंबर 2024

अजमेर में अमन को भंग नहीं किया जा सकेगा

सबके हित जुड़े होने के कारण है अजमेर में सांप्रदायिक सौहार्द्र

महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का सालाना उर्स एक माह बाद ही है। इस बीच दरगाह शरीफ में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए कोर्ट में अर्जी पेश होने के कारण पूरा देश उद्वेलित है। सारे न्यूज चैनल्स पर गरमागरम बहस हो रही है। आशंका के बादल छाये हुए हैं। मगर जानकार मानते हैं कि बहस-मुबाहिसा कितना भी हो, यहां के अमन-चौन को भंग नहीं किया जा सकेगा। 

वस्तुतः दरगाह पूरी दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है। जाहिर तौर पर उसमें ख्वाजा साहब की शिक्षाओं की भूमिका है। साथ ही हिंदुओं की उदारता, कि वे अपने धर्म के प्रति कट्टर नहीं और अन्य धर्मों के प्रति भी पूरा सम्मान भाव रखते हैं। यदि वजह है कि इस दरगाह में साल भर में आने वाले जायरीन में हिंदुओं की तादाद भी काफी है। ऐसे में यह संदेश जाना स्वाभाविक है कि यह मरकज सांप्रदायिक सौहार्द्र का समंदर है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ये है कि जब जब भी देश भर में किसी वजह से सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ा और दंगे हुए, अजमेर शांत ही बना रहा।

असल में सुकून की बड़ी वजह है, सभी धर्मों व वर्गों के लोगों का हित साधन। उर्स मेले में आने वाले लाखों जायरीन यहां के अर्थ तंत्र की धुरि हैं। मेला ही क्यों, अब तो साल भर यहां जायरीन का तांता लगा रहता है। भरपूर खरीददारी के कारण आम दुकानदार की अच्छी कमाई होती है। सैकड़ों होटलों का साल भर का खर्चा अकेले उर्स मेले के दौरान निकल जाता है। छोटी छोटी मजदूरी करने वाले भी इस दौरान खूब कमाते हैं। रहा सवाल खादिमों का तो वे सूफी मत को मानने वाले होने के कारण उदार प्रवृत्ति के हैं, मगर साथ ही उनकी आजीविका ही जायरीन पर टिकी हुई है। हालांकि अब खादिम भी अन्य व्यवसाय करने लगे हैं, फिर भी उनकी मुख्य आजीविका का जरिया खिदमत से होने वाली अच्छी आय ही है। स्वाभाविक रूप से जब वे दिल खोल कर खर्च करते हैं तो उसका लाभ आम दुकानदार को होता है। दरगाह शरीफ में लाखों रुपए का गुलाब चढ़ता है, जिसकी खेती पुष्कर में अधिसंख्य हिंदू करते हैं। समझा जा सकता है कि जिस शहर में जायरीन या पर्यटक कह लीजिए, के आगमन से अर्थ चक्र घूमता हो, वहां स्वाभाविक रूप से सभी का हित इसमें जुड़ा हुआ है कि यहां शांति कायम रहे। यहां शांति रहेगी तो बाहर से आने वाला भी बेखौफ आएगा। इसका यहां हर वर्ग को ख्याल रहता है। जब भी कोई छुटपुट घटना होती है तो सभी की कोशिश रहती है कि विवाद जल्द निपटा लिया जाए।

इन सबके बावजूद अजमेर को सांप्रदायिक तौर पर संवेदनशील माना जाता है, उसकी वजह है अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर का आंतकवाद। इसी कारण दरगाह की अतिरिक्त सुरक्षा की जाती है। एक बार तो दरगाह में बम ब्लास्ट भी हो चुका है, जिसके आरोपियों को हाल ही सजा सुनाई गई है। इस घटना के बाद अब यहां सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। उससे आभास ये होता है कि यहां खतरा है, मगर सच्चाई ये है कि अजमेर का नागरिक आम तौर पर शांति पसंद है। वह किसी उद्वेग में नहीं बहता। शहर के ऐसे शांत मिजाज के कारण एक बार अजमेर आ चुके अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद अजमेर में ही बसना पसंद करते हैं।

बहरहाल, चाहे जिस वजह से अजमेर सुकून भरी जगह हो, मगर इसी वजह से यह सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल बना हुआ है।

शनिवार, 30 नवंबर 2024

कौन होगा एडीए अध्यक्ष?

राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव में सफलता से उत्साहित भाजपा में सरकारी राजनीतिक नियुक्तियों की कवायद आरंभ हो गई है। कुछ नियुक्तियां बजट सत्र से पहले हो सकती हैं। कानाफूसी है कि अजमेर विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष के लिए दावेदारों ने एक्सरसाइज तेज कर दी है। समझा जाता है कि अजमेर में अनुसूचित जाति की एक विधायक श्रीमती अनिता भदेल व सिंधी समुदाय से दूसरे विधायक वासुदेव देवनानी के रहते सामान्य वर्ग के वेश्य, ब्राह्मण व राजपूत का तरजीह मिलेगी। वणिक वर्ग में पूर्व जिला प्रमुख पुखराज पहाडिया का नाम सबसे उपर है। उन्होंने नागौर जिले के खींवसर विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने पूरी गंभीरता से एडी चोटी का जोर लगा दिया। सफलता के श्रेय उनके खाते में भी दर्ज हो गया है। उन्हें लंबे समय से राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाया है, इस कारण इस बार मौका मिल सकता है। वे साधन संपन्न भी हैं, जिसकी प्राधिकरण अध्यक्ष बनने में बहुत जरूरी है। दूसरे हैं पूर्व संघ महानगर प्रमुख सुनिल दत्त जैन। तीसरे हैं, प्रवीण जैन, जिन पर केन्द्रीय राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी का वरद हस्त है। कुछ लोग अजमेर नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष धर्मेश जैन का नाम भी ले रहे हैं। पिछला अधूरा कार्यकाल उन्हें आज तक सालता है। आरएसएस पदाधिकारियों से उनके अच्छे संबंध हैं। विकल्प के रूप में वे अपने पुत्र अमित जैन का नाम आगे कर सकते हैं। इसी प्रकार नगर निगम के पूर्व मेयर धमेन्द्र गहलोत भी प्रबल दावेदार है, मगर देवनानी से ताजा नाइत्तफाकी बाधा बन सकती है।

राजपूत वर्ग में अजमेर नगर परिषद के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत का नाम चल रहा है, जो ताजा बदले समीकरण में विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के नजदीक जा चुके हैं। ब्राह्मण समुदाय में भाजपा छोड चुके पार्षद ज्ञान सारस्वत की गिनती है, मगर पिछले विधानसभा चुनाव में बगावत करने के कारण बडी बाधा बनी हुई है। संघ का एक धडा आगामी निगम चुनाव से पहले उनकी पार्टी में दमदार वापसी चाहता है। केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव के करीबी जे के शर्मा भी लाइन में हैं, मगर वे पार्टी से निलंबित हैं। आरएसएस पृष्ठभूमि के वकील जगदीश राणा के नाम पर भी विचार चल रहा है। हालांकि किसी सिंधी के प्राधिकरण का अध्यक्ष बनने की बहुत कम संभावना है, मगर कोई साधन संपन्नता के दम पर बाजी मार भी सकता है। अजमेरशहर भाजपा अध्यक्ष रमेश सोनी की लॉटरी लग सकती है। महिलाओं में डॉ कमला गोखरू व भारती श्रीवास्तव के नाम हैं। जो भी बने, मगर उसमें देवनानी की स्वीकृति जरूर ली जाएगी।

 

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

आजादी के बाद अजमेर के पहले कांग्रेस अध्यक्ष थे स्व श्री जीतमल लूनिया

अजमेर में 15 नवम्बर, 1905 को जन्मे श्री जीतमल लूनिया ने एम.ए. तक शिक्षा अर्जित की। वे सन् 1914 में इंदौर गए और स्वर्गीय श्री हरिभाऊ उपाध्याय के साथ मिल कर मालवा मयूर नामक मासिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। सन् 1916 में हिंदी साहित्य मंदिर की स्थापना की। सन् 1922 में उसका कार्यालय बनारस स्थानांतरित हो गया। इसके बाद स्व. श्री अर्जुन लाल सेठी के सुझाव पर सन् 1925 में अजमेर आ गए। यहां सस्ता साहित्य मंडल के नाम से प्रकाशन कार्य शुरू किया। उन्होंने अहसहयोग आंदोलन में भाग लिया और कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। सरकार ने उसे गैर कानूनी घोषित कर दिया और उन्हें एक साल तक कारावास में रखा गया। इसके बाद पत्नी श्रीमती सरदार बाई के साथ सत्याग्रह में भाग लिया और छह-छह माह तक कारावास भोगा। सन् 1933 में अजमेर सेवा भवन नामक संस्था की स्थापना की और अछूतोद्धार व राष्ट्रोत्थान के कामों में लग गए। सन् 1940 में फिर सत्याग्रह में भाग लिया और 1942 में फिर एक साल का कारावास भोगा। सन् 1947 में शहर कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और 15 अगस्त को देश की आजादी पर नया बाजार स्थित राजकीय संग्रहालय पर तिरंगा झंडा फहराया। वे 1948 में नगर परिषद के अध्यक्ष चुने गए। सन् 1970 में दिल्ली में स्वतंत्रता सेनानी प्रशस्ति एवं ताम्रपत्र से सम्मानित किए गए। सन् 1973 में शराबबंदी सत्याग्रह में भाग लिया और जेल गए।

अजमेर एट ए ग्लांस से साभार


नाम पहले भी बदले जाते रहे हैं

आज जब विधानसभा अध्यक्ष श्री वासुदेव देवनानी के निर्देश पर खादिम टूरिस्ट बैंग्लो का नाम अजयमेरू के नाम पर कर दिया गया है, फॉय सागर का नाम वरूण सागर किया जा रहा है, किंग एडवर्ड मेमोरियल का नाम ऋषि दयानंद के नाम पर करने की कवायद हो रही है तो ख्याल आता है, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी कई स्थानों के नाम बदले हैं। 

आज जिसे हम तारागढ के रूप में जानते हैं, प्रारंभ में उसका नाम अजयमेरू दुर्ग था। सन् 1505 में मेवाड़ के राजकुमार पृथ्वीराज ने इस पर अधिकार किया तथा अपनी रानी ताराबाई के नाम से दुर्ग का नाम तारागढ़ रख दिया।

कुछ और उदाहरण लीजिए-

अजमेर के प्रबुद्ध नागरिक ऐतेजाद अहमद खान ने कुछ साल पहले फेसबुक पर एक फोटो शाया की थी, जो कि यह प्रमाणित करती है कि हम जिसे केसरगंज (Kesar) इलाके के नाम से जानते हैं, वह असल में (Qaiser) गंज है, जिसकी स्थापना 1883 में हुई थी। इसका अपभ्रंश होते हुए वह केसरगंज हो गया और ये ही आजकल प्रयोग में आ रहा है। 

शहर के अन्य कई स्थान भी पहले किसी और नाम से थे, जो कि बाद में बदल गए। इनकी बानगी देखिए- जिसे हम आज रामगंज कहते हैं, वह कभी रसूल गंज हुआ करता था। इसका प्रमाण ये है कि पुलिस चौकी वाली गली में उसकी नामपट्टिका लगी हुई है। इसी प्रकार आज जिस पर्यटन स्थल को हम ढ़ाई दिन का झौंपड़ा कहते हैं, वह कभी सरस्वती कंठाभरण संस्कृत विद्यालय हुआ करता था। इसी प्रकार अजमेर शहर के केन्द्र में नया बाजार के पास स्थित अकबर के किले का निर्माण अकबर ने 1571 से 1574 ईस्वी में राजपूतों से होने वाले युद्धों का संचालन करने और ख्वाजा साहब के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए करवाया था। बाद में इसे राजपूताना संग्रहालय और मैगजीन के नाम से भी जाना जाने लगा। अब नाम राजकीय संग्रहालय कर दिया गया है।

यह सब जानते हैं कि ईसाई समुदाय के लोग जिस स्थान पर रहा करते थे, उसे क्रिश्चियनगंज कहा जाता है, मगर आज कई लोग उसे कृष्णगंज के नाम से पुकारना पसंद करते हैं और कुछ संस्थाओं के नाम इसी नाम पर हैं। हालांकि क्षेत्र के पुलिस थाने का नाम क्रिश्चियनगंज गंज थाना है। इसी प्रकार अंदरकोट को आज कई लोग इंद्रकोट कहना पसंद करते हैं, जब कि इसका अर्थ था परकोटे के अंदर का हिस्सा। इसी प्रकार आपको ख्याल होगा कि जवाहरलाल नेहरू अस्पताल को आज भी कई पुराने लोग विक्टोरिया अस्पताल के नाम से जानते हैं, जिसका नाम आजादी के बाद नेहरू जी के नाम से कर दिया गया। इसी प्रकार इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के शासन की रजत जयंती के मौके पर रेलवे स्टेशन के सामने विक्टोरिया क्लॉक टावर निर्माण करवाया गया, जिसे आज हम केवल क्लॉक टावर या घंटाघर के नाम से जानते हैं और उसी के नाम पर क्लॉक टावर पुलिस थाने का नाम है। लंबे समय तक राजकीय महाविद्यालय के नाम से जाना जाने वाले ब्रिटिशकालीन कॉलेज का नाम कुछ साल पहले की सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय कर दिया गया। उसके मुख्य द्वार को भगवा रंग से रंग दिया गया है। इसी प्रकार अजमेर विश्वविद्यालय का नाम महर्षि दयानंद सरस्वती के नाम कर दिया गया। ऐसे ही जयपुर रोड पर तत्कालीन यूआईटी चेयरमेन डॉ श्रीगोपाल बाहेती ने शायद तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मिजाजपुर्सी में अशोक उद्यान बनाया, जिसे बाद में भाजपा सरकार में सम्राट अशोक उद्यान कर दिया गया। 

आपको ख्याल में होगा कि कुछ साल पहले अजमेर रेलवे स्टेशन को अजमेर शरीफ किया जा रहा था, मगर विरोध के चलते उसे रोक दिया गया। 

वस्तुतः कालचक्र में जब भी जो प्रभावशाली हुआ, उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर नाम बदल दिए। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें उद्वेलित होने जैसी कोई बात नहीं है।

बुधवार, 27 नवंबर 2024

जब नरसिंह राव को काले झंडे दिखाने को आमादा थे पत्रकार

अजमेर के पत्रकार जागरूक व तेज तर्रार रहे हैं। कई मामलों में ज्वलंत विषयों पर खोजपूर्ण पत्रकारिता इनकी पहचान रही है। लंबी फेहरिश्त है। अजमेर दुनिया में सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है। यहां आए दिन दरगाह शरीफ व तीर्थराज पुष्कर में वीवीआई का आगमन होता है। उसका कवरेज पूरी गंभीरता से करते हैं। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहराव का अजमेर आगमन हुआ। उनका दरगाह जियारत का कार्यक्रम था। पत्रकार चाहते थे कि उनसे बातचीत हो जाए, मगर एसपीजी सुरक्षा कारणों से इसके लिए तैयार नहीं थी। यहां तक कि पत्रकारों को कवरेज के लिए दरगाह में प्रवेश नहीं दिया गया। इससे पत्रकार नाराज हो गए और राव से मिलने को अड गए। दरगाह के सामने वाला रोड देहली गेट तक खाली करवा लिया गया था। सारे पत्रकार ईगल स्टूडियो में जा कर बैठ गए। योजना बनी कि विरोध स्वरूप राव को काले झंडे दिखाए जाएं। जैसे ही प्रशासन को पता लगा, वह हरकत में आ गया। कलेक्टर एसपी के तो हाथ पांव फूल गए। व्यवस्था ये दी गई कि हेलीपेड पर बात करवा दी जाएगी। सारे पत्रकार हेलीपेड पहुंच गए। राव जब वहां पहुंचे तो सब अलर्ट हो गए कि अब बात हो जाएगी। तय यही हुआ कि सभी लाइन से खडे हो जाएं, एक एक से बात करवाई जाएगी। राव आए। धीरे धीरे चलते गए। पत्रकारों ने सवाल दागना शुरू कर दिए। मौनी बाबा राव मुस्कराते हुए आगे बढते गए। सवाल सुने, मगर एक का भी जवाब नहीं दिया। पत्रकारों को बडी निराशा हुई, मगर क्या किया जा सकता था। प्रशासन ने तो अपना मिलवाने का वादा निभा दिया, मगर जवाब देने वाला जवाब न देना चाहे तो उसका कोई उपाय नहीं।


मंगलवार, 26 नवंबर 2024

अदिति मेहता पर था शेखावत का वरदहस्त

अजमेर में अब तक के कलेक्टर्स में श्रीमती अदिति मेहता की गिनती सर्वाधिक बिंदास व एनर्जेटिक अफसरों में होती है। उन्हीं के कार्यकाल में अजमेर जिला पूरे उत्तर भारत में अकेला संपूर्ण साक्षर जिला घोषित हुआ। जैसे आज शहर में अतिक्रमण व अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त रवैये के लिए विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ख्याति प्राप्त कर रहे हैं, वैसे ही श्रीमती मेहता ने उस जमाने में अतिक्रमण हटाओ अभियान चला कर शहर की तस्वीर ही बदल दी थी। संकडी गलियां बन चुके डिग्गी बाजार व नला बाजार बाकायदा बाजार नजर आने लगे थे। यहां तक कि विरोध और पत्थरबाजी के बावजूद दरगाह की सीढियों पर खुद बैठ कर आसपास के इलाके का अतिक्रमण सख्ती से हटवा दिया था। इस लिहाज से उन्हें आज भी याद किया जाता है। असल में दोनों स्थितियां सत्ता की ताकत से निर्मित हुई हैं। देवनानी आज पावर में हैं, वैसे ही अदिति मेहता इसी कारण कामयाब कलेक्टर के रूप में गिनी गईं क्योंकि उन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत का वरदहस्त था। एक छोटी सी घटना याद आती है। अदिति मेहता के अतिक्रमण हटाओ अभियान के बाद शेखावत अजमेर आए तो दरगाह के बाहर व्यापारियों ने उन्हें घेर लिया। बडा आक्रोष था। उनकी शिकायत थी कि वे वर्षाें से भाजपा के साथ जुडे हुए हैं, तो प्रशासन उनके साथ सख्ती क्यों कर रहा है? इस पर शेखावत ने विनोदपूर्ण मुद्रा में एक व्यापारी के मोटे पेट पर हाथ फेरते हुए कहा कि सेठ जी, आपने सरकार की जमीन पर कई साल तक जम कर कमाया है, अब तो इसे छोडिये, यह कह कर अदिति मेहता के विरोध को दरकिनार कर दिया। उससे संदेश यही गया कि अदिति मेहता को शेखावत का आशीर्वाद हासिल है।


सोमवार, 25 नवंबर 2024

अजमेर जिले में एक ही कलेक्टर नाकाफी

किसी भी जिले में एक ही कलेक्टर होता है, प्रशासन का मुखिया, मगर अनुभव बताता है कि अजमेर में एक ही कलेक्टर नाकाफी है। असल में अजमेर के कलेक्टर पर काम का बोझ इतना अधिक है कि अमूमन वह दायित्वों की कसौटी पर पूरा खरा नहीं उतर पाता। वह अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाता। अजमेर में ख्वाजा साहब के उर्स, मिनी उर्स व पुष्कर मेले के इंतजामात के अतिरिक्त वीआईपी के आगमन पर प्रोटोकोल में हाजिर रहने के कारण कलेक्टर सामान्य विकास कार्यों पर ध्यान देने और ज्वलंत समस्याओं से निपटने पर उतना फोकस नहीं पाता, जितना जरूरी है। इसके अतिरिक्त उस पर अजमेर विकास प्राधिकरण की अतिरिक्त जिम्मेदारी है, मगर काम की अधिकता इतनी अधिक है कि उसे उस ओर पूरा ध्यान देने का समय ही नहीं मिल पाता। बेशक अतिरिक्त जिला कलेक्टर्स उसके सहयोग के लिए तैनात हैं, मगर उनकी स्वतंत्र हैसियत नहीं है। वे अंततः कलेक्टर पर ही निर्भर होते हैं। आप देखिये न, हाल ही पुष्कर मेले में बदइंतजामी होने पर जिला कलेक्टर से मुख्य सचिव ने स्पष्टीकरण मांग लिया। वजह साफ है, काम का बोझ अधिक होने के कारण वे मेले में ग्राउंड लेवल पर सार्थक कमांड नहीं रख पाए। ऐसे में ख्याल आता है कि क्या जिले की सामान्य व्यवस्थाओं के अतिरिक्त जितने भी काम हैं, उसके लिए एक अतिरिक्त कलेक्टर अलग से तैनात किया जाना चाहिए?


रविवार, 24 नवंबर 2024

अजमेर में अग्रणी ब्लॉगर हैं डॉ राजेन्द्र तेला

अजमेर में टच स्क्रीन मोबाइल फोन के चलन के बाद अनेक पत्रकार ब्लॉगिंग कर रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपने ब्लॉग साझा कर रहे हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब ब्लॉग पीसी पर ही देखे जा सकते थे। बात 2010 के आसपास की है। अजमेर के जाने-माने दंत चिकित्सक डॉ राजेन्द्र तेला ने उससे भी पहले ब्लॉगिंग आरंभ कर दी थी। संभवतः वे अजमेर के पहले ब्लॉगर थे, जो अपनी कविताओं को प्रकाशित किया करते थे। कदाचित कोई और भी ब्लॉगर रहा हो, मगर उसकी जानकारी नहीं। मैने 2010 में अपने ब्लॉग आरंभ किए थे। तेजवानी गिरधर, अजमेरनामा, तीसरी आंख, दखल व साझा मंच के नाम से। इस लिहाज से मैं न्यूज बेस्ड ब्लॉग नियमित लिखने वाला पहला ब्लॉगर हूं। साझा मंच में डॉ तेला की अनेक रचनाएं प्रकाशित हुईं। वर्तमान ब्लॉगर्स ने तो बहुत बाद में जाना कि ब्लॉग होता क्या है? हिंदी फोंट को यूनिकोड में कन्वर्ट करने की जानकारी गिनती के लोगों को ही थी। अब तो मोबाइल फोन पर ही यूनिकोड में लिखना आसान हो गया है। गौरतलब तथ्य यह भी है कि कुछ ब्लॉगर ही ऐसे हैं, जिन्होंने बाकायदा ब्लॉग स्पॉट पर ब्लॉग बनाया है, बाकी टैक्स्ट सीधा वाट्सऐप व फेसबुक पर पोस्ट कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो ब्लॉग में सीधे खबर ही साझा कर रहे हैं।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

शख्सियत: सर्वश्रेष्ठ जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं श्री प्यारे मोहन त्रिपाठी

अखबारों में पत्रकारिता से अपना कैरियर शुरू कर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के संयुक्त निदेशक पद सेवानिवृत्त हुए श्री प्यारे मोहन त्रिपाठी ने सर्वश्रेष्ठ जनसंपर्क अधिकारी के रूप में पूरे प्रदेश में नाम कमाया है। वे अपने मधुर व्यवहार व सहयोगी प्रवृत्ति के कारण लोकप्रिय रहे और योग्यता के दम पर कांग्रेस व भाजपा, दोनों की सरकारों में प्रभावशाली अधिकारी के रूप में जाने जाते रहे। उल्लेखनीय है कि 31 दिसंबर 2015 उनकी सेवानिवृत्ति पर सूचना केन्द्र, अजमेर में हुआ समारोह पूरे राजस्थान के लिये मिसाल बन गया। उसमें केन्द्रीय मंत्री, राजस्थान के मंत्रीगण, मेयर व अन्य जनप्रतिनिधि, संभागीय आयुक्त व जिला कलक्टर सहित मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार व अधिकारी व सभी पारीवारिक सदस्य मौजूद थे। 

उनका जन्म 1 जनवरी, 1956 को हुआ। उन्होंने बी.कॉम., एम. कॉम. (वित्तीय प्रबंध) और एम.ए. हिंदी की डिग्रियां हासिल कीं। उन्होंने सरकारी सेवा सहायक जनसंपर्क अधिकारी के रूप में शुरू की और चूरू, बीकानेर, भीलवाड़ा व अजमेर में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में काम किया। इसी प्रकार राजस्थान आवासन मंडल, जयपुर के जनसंपर्क अधिकारी भी रहे। अक्टूबर 1996 से अक्टूबर 1997 तक महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर के उप कुल सचिव भी रहे। वे इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर और कोटा खुला विश्वविद्यालय, कोटा के काउंसलर भी रहे हैं। 

वे उपराष्ट्रपति स्व. श्री भैरोंसिंह शेखावत के हाथों 15 सितंबर, 2003 को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हुए। इसी प्रकार 15 अगस्त, 1996 को उन्हें राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त 30 मई, 1999 को यूनेस्को फेडरेशन अवार्ड और 2000 में प्रतिष्ठित माणक अवार्ड भी हासिल कर चुके हैं। वे चार बार जिला स्तर पर भी सम्मानित हुए और दो बार पुष्कर व उर्स मेले में राज्य स्तर पर राज्यस्तरीय प्रदर्शनी पुरस्कार हासिल किया। दोनों मेलों को दुनिया में पहचान दिलाने में उनकी अहम भूमिका है। अनेक बार दूरदर्शन और आकाशवाणी में परिचर्चाओं में भाग ले चुके हैं और उनके एक हजार से भी ज्यादा लेख-फीचर देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

सेवानिवृत्ति के बाद राजस्थान लोक सेवा आयोग में मीडिया एडवाइजर व एक्सपर्ट के रूप में सेवाएं दे चुके हैं। इसके अतिरिक्त राजस्थान आईएलडी स्किल यूनिवर्सिटी के सीई भी रहे हैं।

रविवार, 17 नवंबर 2024

मौजूदा सृष्टि की रचना से पहले भी पुष्कर मौजूद था?

हाल ही ब्रह्माजी के बारे में अजमेरनामा डॉट कॉम में प्रकाशित जानकारी पर अजमेर के सुपरिचित बुद्धिजीवी श्री रमेश टेहलानी ने प्रतिक्रिया में कुछ सवाल उठाए। उनका कहना है कि अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना पुष्कर में की, तो यह प्रश्न उठता है कि पुष्कर क्या सृष्टि से पहले मौजूद था? अगर पुष्कर पहले से था, तो फिर ब्रह्मा जी ने किस चीज की रचना की? इसका उत्तर स्पष्ट रूप से पुराणों में नहीं मिलता, और यह एक विरोधाभास पैदा करता है। पद्म पुराण की कथा के अनुसार, राक्षस वज्रनाभ का वध ब्रह्मा जी ने किया। अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो क्या उन्होंने ही राक्षसों की भी रचना की? यदि हां, तो फिर उन्होंने वज्रनाभ का वध क्यों किया? अगर राक्षस पहले से थे, तो यह मानना होगा कि सृष्टि पहले से अस्तित्व में थी, जो एक और विरोधाभास है। 

यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सृष्टि की रचना के संदर्भ में ब्रह्मा जी का जो स्थान बताया गया है, वह इन कथाओं में स्पष्ट नहीं हो पाता। वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो रचनात्मकता की पूरी प्रक्रिया को इस तरह नहीं समझा जा सकता कि पहले से कोई स्थान या प्राणी मौजूद थे।


इस पर राजस्थान सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार व दार्शनिक श्री गोविंद देव व्यास ने बहुत सटीक व विहंगम दृश्टि डाली है। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि यदि आप गीता पढ़ें, उससे पहले लिखे हुए पुराण पढ़ें, यह सुस्पष्ट है कि इस पृथ्वी पर कई बार सृष्टि की रचना हुई। प्रलय आए। सृष्टि समाप्त हुई और बहुत पहले यदि पीपल के पत्ते पर पैर का अंगूठा लिए हुए भगवान कृष्ण को देखा हो तो वह प्रलय के समय की फोटो है। ऐसा पुराणों में अंकित है। यदि जल प्रलय होता है तो पृथ्वी का अधिकांश भाग जलमग्न हो जाता है। उस समय जीव नहीं होते हैं। हिंदू धर्म के कई मतावलंबियों के अनुसार सृष्टि की जब भी पुनः रचना हुई हैं, हर युग आए हैं, सत से कलयुग तक। भारतीय दर्शन के महान विद्वान ने कहा है कई चीजें अनिवरचनीय होती हैं, इन्हें मानव बुद्धि से समझा नहीं जा सकता। गीता में भगवान ने यही कहा है कि हे अर्जुन, पहले भी मेरे कई जन्म हुए और इसके बाद भी होंगे। कुछ तथ्य विश्वास के होते हैं। अविश्वास पर तो हम अपनों को भी नहीं मानते। कुछ लोग तो हमारे पूर्वजों के होने और नहीं होने या काल्पनिक होने पर भी सवाल उठाते हैं। हां, हमारे दर्शन की एक विधा यह भी कहती है की ब्रह्मा, विष्णु, महेश के या अन्य देवताओं के सांकेतिक अर्थ भी हैं। हमारे यहां तो यह भी कहा गया है कि एक ही बात को विद्वान अलग-अलग व्यक्त करते हैं। यह धरती युगों युगों से है। कितनी बार प्रलय के बाद सृष्टि की फिर रचना हुई है। 

हिंदू फिलोसोफी के अनुसार, कल्प ब्रह्मांड के समय-चक्र cosmic time cycle की एक इकाई है, जिसे ब्रह्मा के एक दिन (जिसे ब्रह्मा का एक काल भी कहते हैं) के रूप में वर्णित किया गया है।

कल्प का विवरण

1. ब्रह्मा का एक दिन

ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहा जाता है।

एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं, और प्रत्येक मन्वंतर में 71 चतुर्युग (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग का चक्र) होते हैं।

ब्रह्मा का एक दिन = 4.32 अरब मानव वर्ष।

रचनाकार का नाम ब्रह्मा हो सकता है या कोई और यह धरती पुष्कर की हो सकती है या कहीं ओर। कहीं ना कहीं। कोई जीव पहली बार ही आया होगा और विषय विश्वास का है। शायद हमारे धर्म ने ईश्वर से विश्वास करना इसलिए सिखाया कि हम अपनों पर विश्वास कर सकें और फिर अन्य पर विश्वास कर सकें। यह मेरे बहुत निजी विचार हैं। तेजवानी साहब का विषयों को उठाना उन पर चर्चा करना निष्कर्ष निकालना या निकलवाना, यह स्तुत्य है।

श्री व्यास ने जिन बिंदुओं को रेखांकित किया है, उनमें महत्वपूर्ण बात यह है कि यह धरती युगों युगों से है। कितनी बार प्रलय के बाद सृष्टि की फिर रचना हुई है। ऐसे में संभव है, मौजूद सृष्टि की रचना ब्रह्माजी ने पुष्कर में की हो, जो कि पहले से मौजूद रहा हो।

शनिवार, 16 नवंबर 2024

जगतपिता ब्रह्माजी के कई मंदिर हैं

शास्त्रानुसार अब तक स्थापित तथ्य यह है कि जगतपिता ब्रह्माजी का एक ही मंदिर तीर्थराज पुष्कर में स्थित है। ऐसा सावित्री माता के श्राप के कारण है। इस सिलसिले में अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल में एक आलेख साझा करने पर अनेक प्रतिक्रियाएं आई हैं, जिनसे यह ज्ञात होता है कि कई अन्य जगहों पर भी मंदिर बने हैं। पहली प्रतिक्रिया ने सुपरिचित बुद्धिजीवी डॉ प्रवीण बहल ने दी कि यूएसए में भी एक मंदिर है। 

इंटरनेट के चैटजीपीटी प्लेटफार्म पर खोज की तो पता लगा कि कई स्थानों पर ब्रह्माजी के मंदिर हैं। ब्रह्माजी का एक मंदिर केरल के थालायोलपरंबु में स्थित है। यह मंदिर कम प्रसिद्ध है, लेकिन स्थानीय भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है। तमिलनाडु के कुंभकोणम में ब्रह्मा मंदिर स्थित है। यह मंदिर ब्रह्माजी के सीमित पूजन स्थलों में से एक है।इंडोनेशिया के प्रंबनन में ब्रह्माजी का मंदिर एक विशाल मंदिर परिसर का हिस्सा है।यह दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित सबसे बड़े हिंदू मंदिर परिसरों में से एक है। थाईलैंड में एरावन श्राइन में भगवान ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। यह पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है। 

वरिष्ठ पत्रकार श्री गहेन्द्र बोहरा ने प्रतिक्रिया दी है कि ब्रह्मा जी का एक मंदिर बालोतरा से 14 किमी दूर सिवाना रोड पर है। इसे खेता राम जी महाराज ने बनवाया था। इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा चल रही थी, उसी दौरान उन्होने शरीर छोड़ दिया। प्रति दिन लाखों की संख्या में भक्त दर्शनार्थ आते है। गत 15 नवंबर 2024 को मंदिर परिसर में भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। उस कार्यक्रम का हिस्सा बनने का मुझे भी अवसर मिला। यहां की सारी व्यवस्था राज पुरोहित समाज द्वारा की जाती है। अधिक जानकारी के लिए संपर्क कर सकते है।

श्री नितिन माहेश्वरी ने प्रतिक्रिया दी है कि जब शास्त्र में कहा गया है कि पुष्कर के अलावा ब्रह्माजी की कहीं भी पूजा नहीं होगी, यहां तक कि घर में मंदिर में भी नहीं, तो फिर अन्यत्र कहीं भी मंदिर बनाओ, वह तर्कसंगत ही सही होना चाहिए। श्री गुलाब जिंदल में कहा है कि राजस्थान में ही दो और हैं। श्री नरेश चीता का कहना है कि बांसवाड़ा में छींच में है। वरिष्ठ पत्रकार श्री अनुराग जैन ने बताया कि हरियाणा में भी कहीं ब्रह्माजी का मंदिर बनाया गया है ।


शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

सृष्टि की रचना से पहले पुष्कर?

हाल ही ब्रह्माजी के बारे में अजमेरनामा डॉट कॉम में प्रकाशित जानकारी पर अजमेर के सुपरिचित बुद्धिजीवी श्री रमेश टेहलानी ने प्रतिक्रिया में कुछ सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना पुष्कर में की, तो यह प्रश्न उठता है कि पुष्कर क्या सृष्टि से पहले मौजूद था? अगर पुष्कर पहले से था, तो फिर ब्रह्मा जी ने किस चीज की रचना की? इसका उत्तर स्पष्ट रूप से पुराणों में नहीं मिलता, और यह एक विरोधाभास पैदा करता है।

’राक्षसों का अस्तित्व’ 

पद्म पुराण की कथा के अनुसार, राक्षस वज्रनाभ का वध ब्रह्मा जी ने किया। अगर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो क्या उन्होंने ही राक्षसों की भी रचना की? यदि हां, तो फिर उन्होंने वज्रनाभ का वध क्यों किया? अगर राक्षस पहले से थे, तो यह मानना होगा कि सृष्टि पहले से अस्तित्व में थी, जो एक और विरोधाभास है।

यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सृष्टि की रचना के संदर्भ में ब्रह्मा जी का जो स्थान बताया गया है, वह इन कथाओं में स्पष्ट नहीं हो पाता। वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से देखें तो रचनात्मकता की पूरी प्रक्रिया को इस तरह नहीं समझा जा सकता कि पहले से कोई स्थान या प्राणी मौजूद थे।

ब्रह्माजी का एक और मंदिर यूएसए में

यह सर्वविदित है कि ब्रह्माजी का एक मात्र मंदिर तीर्थराज पुष्कर में है। ऐसा देवी सावित्री के श्राप की वजह से बताया जाता है। शास्त्रों में इसका उल्लेख है। अब तक कहीं और ब्रह्माजी का कोई मंदिर होने की जानकारी भी नहीं है। इस सिलसिले में हाल ही एक पोस्ट अजमेरनामा डॉट कॉम न्यूज पोर्टल पर प्रकाशित की गई थी। इस पर अजमेर के जाने माने बुद्धिजीवी डॉ प्रवीण बहल ने प्रतिक्रिया स्वरूप एक फोटो साझा की है, जिसके अनुसार यूएसए में ब्रह्मा शिवम मंदिर है। फोटो में वे स्वयं मंदिर में दिखाई दे रहे हैं।

गुरुवार, 14 नवंबर 2024

ब्रह्माजी का एक ही मंदिर क्यों?

सनातन धर्म में तीन मुख्य देवता माने गए हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, जिन्हें त्रिदेव कहा जाता है। ब्रह्मा जी जगत के रचनाकार, विष्णु पालनकर्ता और महेश अर्थात शंकर संहारक माने जाते हैं। कौतुहलपूर्ण तथ्य ये है कि जहां विष्णु और महेश सहित सभी देवी-देवताओं के अनगिनत मंदिर हैं, जबकि ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है, जो कि तीर्थराज पुष्कर में स्थित है। ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर होने की वजह ये है कि उन्हें उनकी पत्नी सावित्री ने श्राप दिया था।

पद्म पुराण के अनुसार धरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने बहुत उत्पात मचा रखा था। ऋशि मुनियों व आम जन पर उसके बढ़ते अत्याचारों से क्रोधित हो ब्रह्मा जी ने उसका वध कर दिया था। वध करते समय उनके हाथों से कमल का फूल छिटक कर तीन जगहों पर गिरा। इन तीन जगहों पर तीन झीलें बन गई। 

इन्हें ज्येष्ठ पुष्कर अथवा ब्रह्म पुष्कर, मध्य पुष्कर अथवा विष्णु पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर अथवा रुद्र पुष्कर जिसे बूढ़ा पुष्कर भी कहते हैं। बूढ़ा पुष्कर जयपुर बाईपास पर पुष्कर कस्बे से लगभग 4 किलोमीटर दूर कानस ग्राम में स्थित हैं। ज्येष्ठ पुष्कर ही मौजूदा पुष्कर सरोवर है। मध्य पुष्कर विलुप्त हो चुका है। मुख्य विषय पर आते हैं। ब्रह्मा जी ने संसार की भलाई के लिए पुश्कर में एक यज्ञ करने का फैसला किया। ब्रह्मा जी नियत समय पर यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंच गए लेकिन उनकी पत्नी देवी सावित्री समय पर नहीं पहुंच सकीं। चूंकि यज्ञ के विधान के अनुसार साथ में पत्नी का होना जरूरी था, लेकिन देवी सावित्री जी के नहीं पहुंचने की वजह से ब्रह्मा जी ने गुर्जर समुदाय की स्थानीय एक कन्या गायत्री से विवाह करके इस यज्ञ को आरंभ किया। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा की बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी कभी भी पूजा नहीं होगी। देवी सावित्री के इस भयानक रूप को देखकर सभी देवता डर गए। सभी ने देवी सावित्री अपना श्राप वापस लेने की विनती की। लेकिन उन्होंने किसी का आग्रह नहीं माना। बाद में जब गुस्सा ठंडा होने पर देवी सावित्री श्राप में तनिक शिथिलता करते हुए कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही आपकी पूजा होगी। यहां के अतिरिक्त कोई भी आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा। चूंकि भगवान विष्णु ने भी गायत्री से विवाह करवाने में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी सावित्री ने विष्णु जी को भी श्राप दिया कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। यही वजह थी कि भगवान विष्णु को राम के रूप में अवतार लेना पडा और 14 साल के वनवास के दौरान सीता जी से अलग रहना पड़ा।

ब्रह्मा जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ व किसने किया इसके बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन बताते हैं कि करीब एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक राजा को स्वप्न आया कि पुष्कर में एक जीर्ण मंदिर है, जिसके उद्धार की जरूरत है। उस राजा ने मंदिर के पुराने ढांचे को ठीक करवाया।

पुष्कर में देवी सावित्री का भी मंदिर है जो ब्रह्मा जी के मंदिर के पीछे पहाड़ी पर स्थित है बताते हैं कि देवी सावित्री रूठ कर इसी पहाडी पर जा कर विराजमान हो गई थीं। मंदिर तक पहुंचने का मार्ग बहुत दुर्गम है और सैकड़ों सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

श्री नानकराम जयसिंघानी का निधन अपूरणीय क्षति

स्वर्गीय श्री नानकराम जयसिंघानी का इस दुनिया से जाना वाकई में अजमेर के सिंधी समाज के लिए एक बड़ी क्षति है। उनका समर्पण और कर्मठता, साथ ही उनका सुमधुर और बेकाकी से भरा व्यक्तित्व समाज के लिए एक प्रेरणा था। सुंदर मेडिकल से जुड़ा उनका नाम और उनकी प्रतिष्ठा न केवल उनके व्यवसाय में बल्कि समाज सेवा में भी अमिट छाप छोड़ गए। उनके द्वारा किए गए योगदान को लोग हमेशा याद करेंगे और उनके जाने से जो स्थान खाली हुआ है, उसकी भरपाई करना वाकई कठिन होगा। वे अपने पीछे भरापूरा परिवार छोड गए हैं। समाजसेवक के अतिरिक्त वे एक अच्छे बुद्धिजीवी थे और राजनीतिक मसलों पर उनकी अच्छी पकड थी। हालांकि वे किसी परिचय के मोहताज नहीं थे, मगर लोग इस वजह से भी उनको जानते थे कि राजस्थान सूचना आयुक्त श्री एम डी कोरानी उनके बहनोई हैं। ज्ञातव्य है कि श्री कोरानी के पुत्र श्री शशांक कोरानी को अजमेर उत्तर से कांग्रेस टिकट का प्रबल दावेदार माना जाता है। स्वर्गीय श्री जयसिंधानी के सुुपत्र श्री अंशुल जयसिंघानी का भी राजनीति में दखल है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनके निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

बिंदास कांग्रेस नेत्री थीं शकुंतला शर्मा पंडिताइन

अजमेर में ऐसे कई किरदार रहे हैं, जिनकी अजमेर की बहबूदी में अहम भूमिका रही है, मगर उनकी पहचान अतीत में खो गई है। कदाचित मौजूदा पीढी तो उनके नाम तक से वाकिफ नहीं होगी। उनमें से एक हैं स्वर्गीया श्रीमती शकुंतला शर्मा। पंडिताइन के नाम से प्रसिद्ध इस कांग्रेस नेत्री अपने जमाने में कांग्रेस के अग्रणी नेताओं में शुमार थीं। बिंदास व्यक्तित्व के कारण बहुत लोकप्रिय थीं। 12 फरवरी 1943 को जन्मी पंडिताइन ने बारहवीं कक्षा पास की और संस्कृत और एडवांस अंग्रेजी में डिप्लोमा किया। उन्होंने 1970 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और समाज सेवा की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने 1975 की बाढ़ में तन-मन-धन से जनता की सेवा की। 1976 में शहर जिला कांग्रेस कार्यकारिणी की सदस्य बनाई गईं। 1984 में कांग्रेस महिला प्रकोष्ठ की संयुक्त सचिव के पद पर रहते हुए उन्होंने महिला सशक्तिकरण और दहेज प्रथा व अत्याचारों के विरुद्ध महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे कांग्रेस के हर कार्यक्रम में अग्रणी रहीं और टूटे-फूटे नालों, गंदगी, बिजली व्यवस्था, पानी की सप्लाई जैसे मुद्दों पर सक्रिय रहीं। शकुंतला शर्मा ने 1980 में प्रौढ़ शिक्षा के तहत 280 महिलाओं को साक्षर किया और बाल साक्षरता में योगदान देने का संकल्प लिया। परिवार कल्याण और प्राकृतिक परिवार नियोजन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
1983 में रोटरी क्लब द्वारा नेत्र शिविर में महिलाओं और पुरुषों की सेवा की। लोकसभा चुनाव 1984 में विष्णु मोदी के प्रचार में प्रमुख भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त उन्होंने 1984 में सैकड़ों महिलाओं के साथ मिल कर रक्तदान किया और बाढ़ पीड़ित अनुसूचित जनजाति के लोगों को राशन सामग्री पहुंचाई।
शकुंतला शर्मा ने महिला कांग्रेस के साथ मिल कर जेल भरो आंदोलन में भाग लिया और इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी के समय भी जेल में रहने का साहसिक कदम उठाया। उनके नेतृत्व में अजमेर महिला कांग्रेस ने संघर्ष किए, जैसे सिंचाई विभाग का स्थानांतरण रोकना।
1988 में वे प्रदेश महिला कांग्रेस की संयुक्त सचिव और 1990 में कांग्रेस टिकट पर कुंदन नगर से नगर परिषद चुनाव की प्रत्याशी बनीं। इंटेक्स कांग्रेस और सेवादल महिला संगठन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही।
उन्होंने 1998 में डॉ श्रीमती प्रभा ठाकुर के समर्थन में 140 महिलाओं को लेकर प्रचार किया। इस चुनाव में श्रीमती ठाकुर ने जीत हासिल की। अंतिम समय तक कांग्रेस की सेवा करते हुए, 1 अगस्त 2012 को उनका निधन हृदयघात से हो गया। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। उनके एक पुत्र श्री लोकेश शर्मा कांग्रेस संगठन में सक्रिय हैं और दूसरे पुत्र श्री राजीव शर्मा स्वामी न्यूज चैनल में एंकर व रिपोर्टर के रूप में कार्यरत हैं। ज्योतिष पर भी उनकी पकड है।

डॉ सतीश वर्मा शिक्षाविद भी थे

डॉ सतीश वर्मा शिक्षाविद भी थे। वे DAV College, अजमेर में Botany के बहुत ही अच्छे लेक्चरार हुआ करते थे । BSc में पढ़ाई के दौरान मैं उनके इसी बंगले में Botany Subject से Related Problem पूछने जाया करता था तो वे मुझे पूरा Time देकर Notes दिया करते थे। डॉ सतीश वर्मा जी इसी अलवर गेट होम्योपैथी हॉस्पिटल में निवास करते थे और अपने बंगले एक छोटे से हिस्से से होम्योपैथी हॉस्पिटल Start करी। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से इसे एक विशाल वृक्ष का रूप दे दिया जो आज सेवा मन्दिर के नाम से जाना पहचाना जाता है।

वास्तव में उनके जाने से अजमेर के लिए एक अत्यन्त दुखद समाचार है।

<strong>अजित पमनानी</strong>
 

बुधवार, 13 नवंबर 2024

पुष्कर की कहावत इस बार भी चरितार्थ नहीं हुई

कार्तिक एकादषी से धार्मिक पुश्कर मेला आरंभ हो गया, मगर पिछले कुछ सालों की तरह इस बार भी, वह कहावत चरितार्थ नहीं हुई कि पुश्कर सरोवर का पाली हिलने पर कडाके की ठंड षुरू हो जाती है। ज्ञातव्य है कि श्रद्धालुओं के कार्तिक स्नान से पुश्कर के पानी में हलचल होती है, और इसी के साथ सर्दी भी तेज हो जाया करती है। कडाके की सर्दी। ठिठुराने वाली। यह सिलसिला कई साल जारी रहा और कहावत बन गई। लेकिन पिछले कुछ सालों से ऋतु चक्र में बदलाव के कारण पुश्कर का पानी हिलने पर भी ठंड नहीं बढ रही। इसकी एक वजह यह भी मानी जाती है कि नाग पहाड पर अब पहले जैसा जंगल नहीं रहा। वृक्षों की कटाई से पर्यावरण संतुलन बिगड गया है, जिससे यहां का तापमान बढ गया है। नागौर में पसरा रेगिस्तान अजमेर की सीमाओं को छूने लगा है।

जहां तक कहावत का सवाल है तो सर्दी बढने के पीछे कुछ जानकार वैज्ञानिक पहलू मानते हैं। उनके अनुसार पुष्कर का पानी अपने खनिज गुणों के कारण ठंडक को लंबे समय तक बनाए रखता है, और जब हवा में ठंडक बढ़ती है या झील में हलचल होती है, तो इसके पानी की शीतलता और बढ़ जाती है, जिससे वातावरण में ठंडक बढती है। लेकिन अब वायुमंडल का तापमान अधिक है, इसलिए ठंड का असर नहीं दिखाई दे रहा। मात्र गुलाबी ठंड है, वो भी रात में।


मंगलवार, 12 नवंबर 2024

तीन नंबर से अजमेर का बहुत पुराना नाता

शुरू से ही तीन के आंकड़े का अजमेर से काफी पुराना रिश्ता-नाता रहा है। यह तथ्य जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियंता व व्यंग्य लेखक ई. शिव शंकर गोयल की खोजबीन से सामने आया है। उनका कहना है कि पृथ्वीराज चौहान के नाना महाराजा अजयपाल द्वारा बसाई गई और भोगौलिक रूप से राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन, तीनों ही दृष्टियों से बहुत ही अहम है। मुगलों के समय से ही यहां तीन के अंक का बड़ा महत्व रहा है। उस समय यहां तीन प्रसिद्ध स्थान थे, 1. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह, 2. ढ़ाई दिन का झौंपड़ा और 3. अकबर का किला। यही वह ऐतिहासिक स्थान है, जहां ईस्ट इंडिया कम्पनी के सर टॉमस रो ने मुगल सम्राट जहांगीर को अपने प्रमाण-पत्र सौंप कर हिन्दुस्तान में व्यापार करने की इजाजत मांगी थी।

अजमेर की भौगोलिक बसावट तिकोनी है, जो तीन तरफ पहाड़ों 1. नाग पहाड़, 2. मदार पहाड़ और 3. तारागढ से घिरा हुआ है। यहां तीन ही झीलें हैं- 1. आनासागर, 2. फॉयसागर और पुष्कर। जहांगीर-शाहजहां के समय ही यहां आनासागर के किनारे बारहदरी एवं खामखां के तीन दरवाजों का निर्माण हुआ। यह तीन दरवाजे ख्वामख्वाह ही बनाये गये हैं या किसी खामेखां नामक मुगल सरदार के नाम पर बने हैं, यह खोज का विषय है, परन्तु दरवाजे तीन ही हैं, कोई भी देख सकता है। जिले के ब्यावर के पास ही खरवा नामक जगह है। वहां के ठाकुर गोपाल सिंहजी प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। उन्ही के राज में मोरसिंह नामक डाकू हुआ, जिनके लिए प्रसिद्ध था कि वह भी सिर्फ तीन कौमों 1. बनिया, 2.सुनार और 3.कलाल को ही लूटता था।

अजमेर को इस बात का गौरव है कि ब्रिटिश समय में यहां तीन प्रसिद्ध क्रांतिकारी 1.स्वामी कुमारानन्द 2. बिजौलिया किसान आन्दोलन के नेता विजयसिंह पथिक एवं 3.अर्जुनलाल सेठी हुए, जिन्होंने अंग्रेज सरकार की नाक में दम कर दिया था।

यूं तो हिंदी पत्रकारिता के लिए अजमेर राजस्थान का अग्रणी स्थान है, लेकिन शुरू में मुख्य रूप से तीन साप्ताहिक थे, 1. पं. विश्वदेव शर्मा का न्याय 2. कैलाश वर्णवाल का राष्ट्रवाणी और गोपाल भैया का भभक। बाद में न्याय दैनिक हो गया और साप्ताहिक में घीसूलाल जी का आजाद जुड़ गया। उस समय यहां हिन्दी के तीन ही प्रमुख दैनिक पढे जाते थे, 1. कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरीजी का दैनिक नवज्योति 2. न्याय और 3. हजारीलाल शर्मा, जयपुर का राष्ट्दूत।

आजादी के बाद पहले राजपुताना एवं फिर राजस्थान के निर्माण के समय अजमेर को सी स्टेट यानि तीसरी श्रेणी का राज्य बनाया गया, जिसके प्रथम कमिश्नर ए.डी. पंडित थे। प्रथम आम चुनाव, 1952 के समय यहां तीन प्रमुख राजनीतिक दल 1. कांग्रेस, 2. हिन्दू महासभा और 3. साम्यवादी थे। चुनाव के बाद इस राज्य के प्रथम कांग्रेसी मंत्रीमंडल में तीन ही मंत्री थे, 1. मुख्यमंत्री श्री हरीभाऊ उपाध्याय 2. गृहमंत्री श्री बालकृष्ण कौल एवं 3. शिक्षा मंत्री बृजमोहन लाल शर्मा। उस समय इस राज्य में तीन ही मुख्य शहर थे, 1. अजमेर 2. ब्यावर एवं 3. किशनगढ। नसीराबाद तो छावनी, बिजयनगर कस्बा और पुष्कर धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता था। नवम्बर 1956 में राजस्थान में विलय के समय ऐतिहासिक, धार्मिक एवं राजनीतिक तीनों का महत्व था, लेकिन फिर भी इसे राजस्थान की राजधानी नहीं बनाया गया और मजे की बात देखिये कि उस समय भी इसे तीन संस्थान 1.रेवन्यू बोर्ड, 2.राजस्थान लोक सेवा आयोग एवं 3. शिक्षा बोर्ड देकर बहला दिया गया। यहां से तीन तरफ रेलवे लाइनें जाती थीं, जो पहले बीबी एंड सीआई एवं बाद में पश्चिम रेलवे के अंर्तगत होती थी। यहां रेलवे के तीन बड़े कारखाने 1. लोको 2. कैरिज तथा 3. सिगनल्स हुआ करते थे। दिलचस्प बात यह है कि उस समय यहां से तीन ओर ही मुख्य मुख्य सडकें जाती थी, 1.जयपुर-दिल्ली, 2.ब्यावर-अहमदाबाद और 3.नसीराबाद-रतलाम-इंदौर। उस समय अजमेर में तीन मुख्य कॉलेज थे, 1. मेयो कॉलेज 2. गर्वनमेंट कॉलेज और 3. डीएवी कॉलेज। शहर में मुख्य रूप से तीन व्यापारिक स्थल थे, 1. नया बाजार 2. मदारगेट और 3. केसरगंज। नगर में तीन जगह से पानी आता था, 1. गनाहेड़ा 2. फॉयसागर और 3. भांवता। मजे की बात देखिये कि शहर में तीन ही सिनेमा हॉल थे, 1. न्यू मैजिस्टिक 2. प्लाजा और 3. प्रभात और तीन ही नाटक-थियेटर इत्यादि के स्थल थे, 1. रेलवे बिसिट 2. रेलवे का ही कैरिज स्पोर्ट्स क्लब और 3. डिग्गी बाजार में रामायण मंडल। अजमेर शहर धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यहां हिन्दुओं, मुसलमानों एवं जैनियों के पूजनीय स्थल तो हैं ही इसके अतिरिक्त पारसियों, सिक्खों एवं ईसाइयों के पूजा स्थल भी हैं। हिन्दुओं के देवी- देवताओं के पहाडियों पर तीन प्रमुख मन्दिर 1. चामुन्डा माता, 2. बजरंगगढ एवं 3. बाबूगढ हैं। उस जमाने में यहां तीन ही चिकित्सालय, 1. विक्टोरिया अस्पताल, 2. कस्तूरबा अस्पताल और 3. लौंगिया अस्पताल थे। तीन ही सब्जी मंडियां, 1. ईदगाह 2. रामगंज और 3. आगरागेट थीं। अजमेर शहर का दिलचस्प इतिहास सबसे पहले हमें उर्दू में लिखित मीर मुश्ताक अली की डायरी, जिसे फुलेरा के मनसब ने हिन्दी में अनुवाद किया और जिसका कुछ अंश राजस्थान पत्रिका ने छापा था, में मिलता है। लेकिन अजमेर पर ही एक ऐतिहासिक पुस्तक कर्नल टॉड ने लिखी, दूसरी श्री हरविलास शारदा ने और अब तीसरी पुस्तक ‘अजमेर एट ए ग्लांस’ नाम से अजमेर के ही तीन व्यक्तियों, प्रसिद्ध पत्रकार श्री गिरधर तेजवानी एवं अन्य दो विद्वानों डा. सुरेश गर्ग एवं कंवल प्रकाश के संयुक्त प्रयास से प्रकाशित हुई। 

इससे स्पष्ट है कि राजस्थान की राजधानी का मामला हो, कमजोर राजनीतिक नेतृत्व का मसला हो या रेलवे का इतना महत्वपूर्ण कार्यस्थल होने के बावजूद उसको पीछे ढकेल दिया गया हो, यहां जनता का कोई वर्ग तीन तेरह नहीं करता और जैसा मिला, जितना मिला है, सन्तुष्ट रहता है।

अजमेर में होम्योपैथी के भीष्म पितामह डॉ. सतीश वर्मा नहीं रहे

होम्योपैथी जगत के एक प्रमुख स्तंभ डॉ. सतीश वर्मा अब हमारे बीच नहीं हैं। हाल ही उनका देहावसान हो गया। उनकी उम्र 91 वर्ष थी। अलवर गेट स्थित सेवा मंदिर हॉस्पिटल मल्टीस्पेशलिटी एंड रिसर्च सेंटर के संस्थापक डॉ. वर्मा का होम्यापैथी चिकित्सा पद्धति के प्रति जनमानस में विश्वास कायम करने में अविस्मरीय योगदान है। उनकी सेवाओं से लाखों बीमार लाभान्वित हुए हैं। होम्योपैथी की गहन जानकारी के लिहाज से डॉ. होम व डॉ. भगत को भी उनके समकक्ष माना जाता है, लेकिन डॉ. वर्मा ने होम्योपैथी का जो प्रचार-प्रसार किया, वह एक बडी उपलब्धि के रूप में गिना जाता है। 

होम्योपैथी में उनकी विशेषज्ञता का एक प्रसंग मेरे ख्याल में आता है। प्रदेश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार श्री अनिल लोढा के पिताश्री लीवर की बीमारी से ग्रस्त थे। एलोपैथी से खूब इलाज करवाया, मगर एक अवस्था ऐसी आई कि दवाई ने काम करना बंद कर दिया। उन्होंने प्रसिद्ध आयुर्वेदविद् चंद्रकांत चतुर्वेदी से मश्विरा किया। उन्होंने बताया कि लीवर के लिए एक रामबाण औषधि पुनर्नवा की जड है, मगर दिक्कत यह है कि उसकी गोली लेने से कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि उसे पचा कर रक्त में भेजने में लीवर असमर्थ है। अगर पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर मिल जाए या बनाया जा सके तो वह कामयाब हो सकती है, क्योंकि वह तो जीभ पर रखने मात्र से काम करेगी। लेकिन मार्केट में पुनर्नवा की जड का मदर टिंचर उपलब्ध नहीं है। इस पर उन्हें ख्याल आया कि डॉ. सतीश वर्मा से संपर्क किया जाए। जब उनसे मिले तो उन्होंने कहा कि है तो कठिन व श्रमसाध्य, मगर ऐसा करना संभव है। वे मदर टिंचर बनाने के लिए राजी हो गए। मैं भी साथ था। बाद में क्या हुआ, इसकी जानकारी नहीं है, मगर इससे यह स्पष्ट हो गया कि किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का मदर टिंचर बनाया जा सकता है। और आयुर्वेद व होम्यापैथी के सहयोग से अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है। 

डॉ. वर्मा का निधन अजमेर के लिए अपूरणीय क्षति है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनको हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

सोमवार, 11 नवंबर 2024

एडीए बोर्ड का गठन न होने से अटका विकास

राज्य में नई सरकार के गठन को एक साल होने को है, मगर अब तक अजमेर विकास प्राधिकरण के बोर्ड का गठन नहीं किया गया है। चाहे इसके लिए सत्तारूढ़ भाजपा की भीतरी राजनीति जिम्मेदार हो या फिर सरकार का कोई असमंजस, मगर यह अजमेर शहर पर तो भारी ही पड़ रहा है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में मनोनयन से भाजपाई अब तक वंचित हैं और उनमें असंतोष बढ़ रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि भाजपा के दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।

यह सर्वविदित ही है कि पहले यूआईटी हो या अब एडीए, शहर के विकास के नए आयाम स्थानीय राजनीतिक व्यक्ति के अध्यक्ष के रहने पर स्थापित हुए हैं। जब भी प्रशासनिक अधिकारी के हाथों में कमान रही है, विकास की गति धीमी रही है। इसके अनेक उदाहरण हैं। उसकी वजह ये है कि जिला कलेक्टर या संभागीय आयुक्त के पास अध्यक्ष का भी चार्ज होने के कारण वे सीधे तौर पर कामकाज पर ध्यान नहीं दे पाते। वैसे भी उनकी कोई रुचि नहीं होती। वे तो महज औपचारिक रूप से नौकरी को अंजाम देते हैं। उनके पास अपना मूल दायित्व ही इतना महत्वपूर्ण होता है कि वे टाइम ही नहीं निकाल पाते। निचले स्तर के अधिकारी ही सारा कामकाज देखते हैं। इसके विपरीत राजनीतिक व्यक्ति के पास अध्यक्ष का कार्यभार होने पर विकास के रास्ते सहज निकल आते हैं। एक तो उसको स्थानीय जरूरतों का ठीक से ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त जनता के बीच रहने के कारण यहां की समस्याओं से भी भलीभांति परिचित होता है। वह किसी भी विकास के कार्य को बेहतर अंजाम दे पाता है। प्रशासनिक अधिकारी व जनता के प्रतिनिधि का आम जन के प्रति रवैये में कितना अंतर होता है, यह सहज ही समझा जा सकता है। राजनीतिक व्यक्ति इस वजह से भी विकास में रुचि लेता है, क्योंकि एक तो उसकी स्थानीय कामों में दिलचस्पी होती है, दूसरा उसकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी होती है। उनका प्रयास ये रहता है कि ऐसे काम करके जाएं ताकि लोग उन्हें वर्षों तक याद रखें और उनकी राजनीतिक कैरियर भी और उज्ज्वल हो। आपको ख्याल होगा कि राजनीतिक व्यक्तियों के अध्यक्ष रहने पर विकसित कॉलोनियां और बने पृथ्वीराज स्मारक, सिंधुपति महाराजा दाहरसेन स्मारक, लवकुश उद्यान, झलकारी बाई स्मारक, वैकल्पिक ऋषि घाटी मार्ग, अशोक उद्यान, गौरव पथ, महाराणा प्रताप स्मारक, सांझा छत इत्यादि आज भी सराहे जाते हैं। कुल मिला कर बेहतर यही है कि प्राधिकरण का अध्यक्ष कोई राजनीतिक व्यक्ति ही हो।

मसला केवल विकास का ही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का भी है। अफसरशाही  हावी है और उस पर भ्रष्टाचार के आरोप खुले आम लग रहे हैं। पिछले दिनों अजमेर दक्षिण की भाजपा विधायक श्रीमती अनिता भदेल ने तो जनसुनवाई के दौरान नगरीय विकास व स्वायत्त शासन मंत्री हरलाल सिंह खर्रा के सामने एक उपायुक्त पर भ्रष्टाचार का खुला आरोप लगाया, जिसके चलते उनको अन्य स्थान पर लगाना पडा।

बताते हैं कि नियुक्ति की कवायद अंदरखाने तो हो रही है, मगर वह धरातल पर विधानसभा उपचुनाव के बाद ही उतर पाएगी। बहरहाल, इसका परिणाम ये है कि वह सब ठप्प पड़ा है, जिसकी प्राधिकरण से उम्मीद की जाती है।


शनिवार, 9 नवंबर 2024

आजादी से पहले अजमेर नगर पालिका के अध्यक्ष

1866-68: मेजर डेविडसन

1868-73: केप्टन एच. एम. रिप्टन

1876र: मिस्टर जेम्स व्हाइट

1883: मिस्टर जे. आर. फिटजाल्ट

1883-84: मिस्टर जे. ई. किट्स

1884: कैप्टन डब्ल्यू.एच.सी. विल्ल

1884-91: रेविड डॉ. जे. हजबैंड

1891: लेफ्टिनेंट कर्नल न्यूमैन

1891-94:मिस्टर एफ.एल. राइड

1894: मिस्टर एच. क्लोस्टन

1895-1900: रेविड डॉ. जे. हजबैंड

1900-02: लेफ्टिनेंट कर्नल विलियम लॉंच

1903-07: मिस्टर सी. डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1907-08: मिस्टर डब्ल्यू. टी. वेन सोमगन

1908-09: मेजर आर. आई. हेमिटन

1909: कैप्टन टी.एच.आर.एन. प्रिचर्ड

1909: मिस्टर डब्ल्यू.सी. ह्युस्टन

1909: मिस्टर एस.बी. पीटरसन

1909-11: मिस्टर सी.डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1911: मिस्टर बी.जे. गेलेंसी

1911-13: सी.डब्ल्यू. वेडिंग्टन

1913-1918: मिस्टर आर.जी. रॉबसन

1919-20: मिस्टर एस.एफ.मदीन

1920-23: मिस्टर जी.के. खांडेलकर

1926-31: मिस्टर एस.एफ. मदीन

1931-32: लेफ्टिनेंट कर्नल जी. हेवसन

1932-33: सर हेमचंद सोगानी

1933-34: मिस्टर एच.डब्ल्यू. फीथ

1934: सर हेमचंद सोगानी

1934: मिस्टर जी.एल. बेथम

1934: कैप्टन आई.अगरालब्रेथ

1934: मेजर डेला फोर्ग्यु

1934: मिस्टर सी.एच. गिदानी

1934-35: कैप्टन एल.ए.जी. फिनी

1935-39: मिस्टर टी. बेर्ट

1939-40: मिस्टर एम.के. कोल

1942-46: राजबहादुर सर सेठ भागचंद सोनी

1946-47: मिस्टर जीतमल लूनिया

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

ऐसा था स्वतंत्र राज्य अजमेर: भाग दो

सन् 1946 से 1952 तक अजमेर राज्य के संचालन के लिए चीफ कमिश्नर को राय देने के लिए सलाहकार परिषद् बनी हुई थी। इस में सर्वश्री बालकृष्ण कौल, किशनलाल लामरोर व मिर्जा अब्दुल कादिर बेग, जिला बोर्ड व अजमेर राज्य की नगरपालिकाओं के सदस्यों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि, संसद सदस्य मुकुट बिहारी लाल भार्गव, कृष्ण गोपाल गर्ग, मास्टर वजीर सिंह और पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि के रूप में सूर्यमल मौर्य मनोनीत किया गया था। 

भारत विभाजन के बाद कादिर बेग पाकिस्तान चले गए व उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को नियुक्त किया गया। चीफ कमिश्नर के रूप में श्री शंकर प्रसाद, सी. बी. नागरकर, के. एल. मेहता, ए. डी. पंडित व एम. के. कृपलानी रहे। सन् 1952 में प्रथम आम चुनाव के साथ ही यहां लोकप्रिय शासन की स्थापना हुई। 

अजमेर विधानसभा को धारा सभा के नाम से जाना जाता था। इसके तीस सदस्यों में से इक्कीस कांग्रेस, पांच जनसंघ (दो पुरुषार्थी पंचायत) और चार निर्दलीय सदस्य थे। मुख्यमंत्री के रूप में श्री हरिभाऊ उपाध्याय चुने गए। गृह एवं वित्त मंत्री श्री बालकृष्ण कौल, राजस्व व शिक्षा मंत्री ब्यावर निवासी श्री बृजमोहन लाल शर्मा थे। मंत्रीमंडल ने 24 मार्च, 1952 को शपथ ली। विधानसभा का उद्घाटन 22 मई, 1952 को केन्द्रीय गृह मंत्री डॉ. कैलाश नाथ नायडू ने किया। विधानसभा के पहले अध्यक्ष श्री भागीरथ सिंह व उपाध्यक्ष श्री रमेशचंद भार्गव चुने गए। बाद में श्री भार्गव को अध्यक्ष बनाया गया और उनके स्थान पर सैयद अब्बास अली को उपाध्यक्ष बनाया गया। विरोधी दल के नेता डॉ. अम्बालाल थे। विधानसभा प्रशासन संचालित करने के लिए 19 कानून बनाए। सरकार के कामकाज में मदद के लिए  विकास कमेटी, विकास सलाहकार बोर्ड, औद्योगिक सलाहकार बोर्ड, आर्थिक जांच बोर्ड, हथकरघा सलाहकार बोर्ड, खादी व ग्रामोद्योग बोर्ड, पाठ्यपुस्तक राष्ट्रीयकरण सलाहकार बोर्ड, पिछड़ी जाति कल्याण बोर्ड, बेकारी कमेटी, खान सलाहकार कमेटी, विक्टोरिया अस्पताल कमेटी, स्वतंत्रता आंदोलन इतिहास कमेटी और नव सुरक्षित वन जांच कमेटी का गठन किया गया, जिनमें सरकारी व गैर सरकारी व्यक्तियों को शामिल किया गया। 

राजस्थान में विलय से पहले अजमेर राज्य से लोकसभा के लिए व राज्यसभा के लिए एक सदस्य चुने जाने की व्यवस्था थी। लोकसभा के लिए अजमेर व नसीराबाद क्षेत्र से श्री ज्वाला प्रसाद शर्मा और केकड़ी व ब्यावर क्षेत्र से श्री मुकुट बिहारी लाल भार्गव और राज्यसभा के लिए श्री अब्दुल शकूर चुने गए। सन् 1953 में अजमेर राज्य से राज्यसभा के लिए कोई सदस्य नहीं था, जबकि 1954 में श्री करुम्बया चुने गए। अजमेर राज्य के राजस्थान में विलय के साथ ही मंत्रीमंडल व सभी समितियों का अस्तित्व समाप्त हो गया। राजस्व व शिक्षा मंत्री श्री बृजमोहन लाल शर्मा को राजस्थान मंत्रीमंडल में लिया गया।

यहां उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के नीतिगत निर्णय के तहत 11 जून 1956 को श्री सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित राजस्थान केपिटल इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिश पर अजमेर के महत्व को बरकरार रखते हुए 1 नवंबर, 1956 को राजस्थान लोक सेवा आयोग का मुख्यालय अजमेर में खोला गया। 4 दिसम्बर 1957 को पारित शिक्षा अधिनियम के तहत माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय अजमेर रखा गया। 22 जुलाई, 1958 को राजस्व मंडल का अजमेर हस्तांतरण किया गया। अजमेर एट ए ग्लांस से साभार।

तीर्थराज पुष्कर की पवित्रता कैसे कायम रहेगी?

विश्व प्रसिद्ध तीर्थराज पुष्कर के रखरखाव और विकास पर यद्यपि सरकार अपनी ओर से पूरा ध्यान दे रही है, बावजूद इसके यहां अनेकानेक समस्याएं सालों से कब्जा जमाए बैठी हैं, जिसके कारण यहां दूर-दराज से आने वाले तीर्थ यात्रियों को तो दिक्कत होती ही है, इसकी छवि भी खराब होती है। विशेष रूप से इसकी पवित्रता का खंडित होना सर्वाधिक चिंता का विषय है।

यह सही है कि पर्यटन महकमे की ओर किए जाने वाले प्रचार-प्रसार के कारण यहां विदेशी पर्यटक भी खूब आकर्षित हुए हैं और सरकार की आमदनी बढ़ी है, मगर विदेशी पर्यटकों की वजह से यहां की पवित्रता पर भी संकट आया है। असल में पुष्कर की पवित्रता उसके देहाती स्वरूप में है, मगर यहां आ कर विदेशी पर्यटकों ने हमारी संस्कृति पर आक्रमण किया है। होना तो यह चाहिए कि विदेशी पर्यटकों को यहां आने से पहले अपने पहनावे पर ध्यान देने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए। जैसे मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारे में जाने से पहले सिर ढ़कने और जूते उतारने के नियम हैं, वैसे ही पुष्कर में भ्रमण के भी अपने कायदे होने चाहिए। यद्यपि इसके लिए कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया सकता, मगर इतना तो किया ही जा सकता है कि पर्यटकों को सख्त हिदायत हो कि वे अर्द्ध नग्न अवस्था में पुष्कर की गलियों या घाटों पर नहीं घूम सकते। होटल के अंदर कमरे में वे भले ही चाहे जैसे रहें, मगर सार्वजनिक रूप से अंग प्रदर्शन नहीं करने देना चाहिए। इसके विपरीत हालत ये है कि अंग प्रदर्शन तो दूर विदेशी युगल सार्वजनिक स्थानों पर आलिंगन और चुंबन करने से नहीं चूकते, जो कि हमारी संस्कृति के सर्वथा विपरीत है। कई बार तो वे ऐसी मुद्रा में होते हैं कि देखने वाले को ही शर्म आ जाए। यह ठीक है कि उनके देश में वे जैसे भी रहते हों, उसमें हमें कोई ऐतराज नहीं, मगर जब वे हमारे देश में आते हैं तो कम से कम यहां मर्यादाओं का तो ख्याल रखें। विशेष रूप तीर्थ स्थल पर तो गरिमा में रह ही सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के बेहूदा कपड़ों में घूमने से यहां आने वाले देशी तीर्थ यात्रियों की मानसिकता पर बुरा असर पड़ता है। वे जिस मकसद से तीर्थ यात्रा को आए हैं और जो आध्यात्मिक भावना उनके मन में है, वह खंडित होती है। जिस स्थान पर आ कर मनुष्य को अपनी काम-वासना का परित्याग करना चाहिए, यदि उसी स्थान पर विदेशी पर्यटकों की हरकतें देख कर तीर्थ यात्री का मन विचलित होता है तो यह बेहद आपत्तिजनक और शर्मनाक है। विदेशी पर्यटकों की हालत तो ये है कि वे जानबूझ कर अर्द्ध नग्न अवस्था में निकलते हैं, ताकि स्थानीय लोग उनकी ओर आकर्षित हों। जब स्थानीय लोग उन्हें घूर-घूर कर देखते हैं, तो उन्हें बड़ा रस आता है। जाहिर तौर पर जब दर्शक को ऐसे अश्लील दृश्य आसानी से सुलभ हो तो वे भला क्यों मौका गंवाना चाहेंगे? स्थिति तब और विकट हो जाती है जब कोई तीर्थ यात्री अपने परिवार के साथ आता है। आंख मूंद लेने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं रह जाता।

यह भी एक कड़वा सत्य है कि विदेशी पर्यटकों की वजह से ही पुष्कर मादक पदार्थों की मंडी बन गया है, जिससे हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद होती जा रही है। इस इलाके एड्स के मामले भी इसी वजह से सामने आते रहे हैं।

यह सही है कि तीर्थ पुरोहितों ने पुष्कर की पवित्रता को लेकर अनेक बार आंदोलन किए हैं, मगर कामयाबी अब तक हासिल नहीं हो पाई है। तीर्थ पुरोहित पुष्कर में प्रभावी भूमिका में हैं। वे चाहें तो सरकार पर दबाव बना कर यहां का माहौल सुधार सकते हैं। यह न केवल उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुकूल होगा, अपितु तीर्थराज के प्रति लोगों की अगाध आस्था का संरक्षण करने के लिए भी जरूरी है।