समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने की होड़ में अब शोक सभा भी शामिल हो गई है। सभा में कितने लोग आए, कितनी कारें आईं, कितने नेता पहुंचे, कितने अफसर आए, इसकी चर्चा भी खूब होती है। ये सब परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार बन गए हैं। उच्च वर्ग को तो छोड़िए, छोटे और मध्यमवर्गीय परिवार भी इस अवांछित दिखावे की चपेट में आ गए हैं। शोक सभा का आयोजन अब आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। कई परिवार इस बोझ को उठाने में कठिनाई महसूस करते हैं पर देखा-देखी की होड़ में वे न चाह कर भी इसे करने के लिए मजबूर होते हैं।
इस आयोजन में खाना, चाय, कॉफी, मिनरल वाटर, जैसी चीजों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। पूरी सभा अब शोक सभा की बजाय एक भव्य आयोजन का रूप ले रही है। यह उचित नहीं है। शोक सभाओं को अत्यंत सादगीपूर्ण ही हो होना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें