बुधवार, 12 जनवरी 2011

बिना वीजा के कैसे चले आते हैं पाकिस्तानी?

अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह की जियारत के नाम पर बिना वीजा के पाकिस्तानियों के आने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। गत रविवार की देर रात एक और पाकिस्तानी उन्नीस वर्षीय रजमान खां पकड़ा गया और जैसा कि उसने बताया है उसका एक साथी बिलाल आया तो उसके साथ था, लेकिन जयपुर आ कर उनका साथ छूट गया। हालांकि अभी वह पुलिस को तरह-तरह की कहानियां बता कर घुमा रहा है और जांच के बाद ही साफ हो पाएगा कि असलियत क्या है, मगर यह तो साफ ही है कि लाख कोशिशों के बाद भी घुसपैठियों को रोका नहीं जा पा रहा है। पाकिस्तान को ही हम सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं और उसी से लगती सीमा को पार करके घुसपैठिये भारत आ रहे हैं। इतना ही नहीं, वे लंबा रास्ता पार कर दरगाह जियारत के बहाने अजमेर तक आ जाते हैं और खुफिया एजेंसियों को हवा तक नहीं लगती।
कितने अफसोस की बात है कि एक ओर बम विस्फोट के बाद दरगाह को और अधिक संवेदनशील माना जा रहा है और सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के दावे किए जा रहे हैं, दूसरी ओर पाकिस्तानी घुसपैठिये बड़ी आसानी से यहां चले आते हैं। रविवार की रात पकड़ा गया रमजान भी सीआईडी या पुलिस की मुस्तैदी की वजह नहीं, बल्कि लोगों के बताने पर ही शिकंजे में आया। कदाचित वह निजाम गेट पर दहाड़ मार कर नहीं रोता और लोग पुलिस को सूचित नहीं करते तो पता ही नहीं लगता कि वह बिना वीजा-पासपोर्ट के अजमेर चला आया है। यह घटना अपने आप में सबसे ज्वलंत उदाहरण है कि हमारी सीआईडी का तंत्र कितना मुस्तैद है। यह इस बात का भी सबूत है कि दावे चाहे जो किए जाएं, मगर न तो हमने दरगाह बम विस्फोट से सबक लिया है और न ही मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड व देश में आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचने के आरोप में अमेरिका में गिरफ्तार डेविड कॉलमेन हेडली के सीआईडी की आंख में सुरमा डालने से कुछ सीखा है। बिना वीजा-पासपोर्ट के अजमेर आने वालों का सिलसिला काफी लंबा है। अब तक अनेक पाकिस्तानी व बांग्लादेशी पकड़े जा चुके हैं, मगर इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला जा सका है। पकड़े गए घुसपैठिये तो रिकार्ड पर हैं, पर जो नहीं पकड़े जा सके हैं, उनका तो अनुमान ही लगाना कठिन है। ज्यादा चौंकाने वाली बात तो ये है कि अपराधी किस्म के या मकसद विशेष के लिए अजमेर आने वाले तो चलो शातिर हैं, मगर केवल जियारत के मकसद से भी यहां बड़ी आसानी से पहुंच रहे हैं। स्पष्ट है कि न तो सीमा पर पूरी चौकसी बरती जा रही है और न ही अजमेर जैसे संवेदनशील स्थान के बारे में पुलिस गंभीर है। रहा सवाल सरकार का तो वह भी सख्त नजर नहीं आती है। जरूर इस प्रकार बिना वीजा-पासपोर्ट के पाकिस्तान या बांग्लादेश से आने वालों पर अंकुश लगाने के लिए प्रावधान लचीले हैं, तभी तो घुसपैठियों में कोई खौफ नहीं है।
बहरहाल, इस प्रकार लगातार बढ़ती जा रही धुसपैठ की घटनाओं से अंदेशा यही है कि अजमेर में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। कोई आतंकी भी इस प्रकार बिना पासपोर्ट व वीजा के अजमेर या पुष्कर पहुंच जाएगा और वह कोई हरकत कर गायब हो जाएगा और पुलिस हाथ ही मलती रह जाएगी।
चरम पर पहुंच चुका है यूआईटी सदर का मामला
अजमेर यूआईटी सदर पद पर नियुक्ति का मामला पूरी तरह से गरमा गया है। ऐसा माना जा रहा है कि चंद दिनों में ही नए सदर की नियुक्ति होने ही जा रही है। अनुमान है कि मकर संक्रांति पर मलमास की समाप्ति के साथ ही नए सदर को नियुक्त कर दिया जाएगा। यही वजह है कि जितने भी दावेदार पिछले दो साल से प्रयासरत थे, वे यकायक फिर से सक्रिय हो गए हैं और जयपुर, दिल्ली के सारे संपर्कों के दरवाजे खडख़ड़ा रहे हैं।
कांग्रेसी खेमे में यह चर्चा है कि संभवत: सरकार सिद्धांतत: यह तय कर चुकी है कि चाहे जो भी सदर बनाया जाए, मगर जातिगत दृष्टि से सिंधी समाज को खुश करने के लिए किसी सिंधी को ही मौका दिया जाएगा। अन्य समाजों के प्रमुख दावेदारों डॉ.श्रीगोपाल बाहेती, महेन्द्र सिंह रलावता, डॉ. सुरेश गर्ग आदि को स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकार विधानसभा चुनाव से नाराज चले आ रहे सिंधी समाज को पटाना चाहती है। जहां तक सिंधी दावेदारों का सवाल है, निश्चित रूप से नरेन शहाणी भगत पहले नंबर पर ही हैं। अर्थात यदि भगत की नियुक्ति होती है तो वह कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं कही जाएगी। आश्चर्यजनक घटना ये कही जाएगी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के दोस्त दीपक हासानी को सदर बना दिया जाए। बताया जाता है कि उन्होंने काफी कुछ मैनेज भी कर लिया है। यहां तक कि खुद की नियुक्ति न होने की संभावना के मद्देनजर और भगत को लंगी मारने के लिए डॉ. बाहेती ने हासानी के नाम पर सहमति दे दी है। उन्हें आईएएस लॉबी भी सपोर्ट कर रही है। हासानी का नाम तो फिर भी उजागर हो चुका है कि वे दावेदारी कर रहे हैं, मगर अब राजस्थान सिंधी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व डिप्टी सीएमएचओ डॉ. लाल थदानी का नाम भी उभर आया है। फिलहाल डॉ. थदानी के सदर बनने की संभावनाएं बहुत ज्यादा तो नहीं हैं, लेकिन जैसी की उनकी जलजला करने की फितरत है, वे मीडिया से दोस्ती के कारण अपना नाम चलाने में कामयाब तो हो ही गए हैं। तस्वीर बदले न बदले, हंगामा करना उनका मकसद होता है, सो वे करने में कामयाब हो गए हैं। इससे कम से कम भगत व हासानी की नींद तो हराम हो ही गई कि आखिर थदानी ने कौन सी गोटी फिट की है। बहरहाल, चंद दिनों में ही यह खुलासा हो जाएगा कि तकदीर की टोपी किसे मिलती है।

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