शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

आडवाणी की सभा में भीड़ जुटना मुश्किल


आगामी 9 नवंबर को अजमेर के पटेल मैदान में होने जा रही पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की सभा में भीड़ जुटाना भाजपा की स्थानीय जिला इकाइयों के लिए टेड़ी खीर है। इसके अनेक कारण हैं, जिनको लेकर भाजपा नेताओं में चिंता साफ दिखाई दे रही है। यही वजह है कि प्रदेश हाईकमान ने स्थानीय नेताओं पर पूरा दबाव बना रखा है कि वे आपसी मतभेद भुला कर इस सभा को ऐतिहासिक बनाने की कोशिश करें।
आडवाणी की सभा को कामयाब करना पार्टी के लिए ज्यादा जरूरी इस कारण है क्योंकि वे अंतत्वोगत्वा प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में प्रस्तुत किए जाने हैं। आज भले ही विवाद से बचने के लिए उन्हें दावेदार कहने से बचा जा रहा है, लेकिन जिस प्रकार पूरी पार्टी ऊपर से नीचे तक जुटी हुई है, समझा जा सकता है कि पार्टी की मंशा क्या है।
असल में जिस दिन आडवाणी सभा करेंगे, उसके अगले ही दिन पुष्कर में कार्तिक स्नान है, जिसमें जिलेभर से हजारों लोग भाग लेने वाले हैं। जाहिर तौर पर वे उसकी तैयारी में जुटे हुए होंगे। ऐसे में उन्हें गांवों से लेकर आना बहुत मुश्किल है। एक बड़ी वजह ये भी है कि यदि केवल अजमेर में ही सभा होती तो पूरे जिले से भीड़ लाई जा सकती थी, लेकिन ऐसा है नहीं। जिले में आडवाणी की सभाएं तीन स्थानों पर हैं। दो तो एक ही दिन 9 नवंबर को अजमेर ब्यावर में हैं और एक अगले दिन 10 नवंबर को किशनगढ़ में। तीनों स्थानों पर सभाओं को कामयाब करने का दबाव है। जाहिर तौर पर तीनों स्थानों की सभाओं में तो लोग लाए नहीं जा सकते। तीनों स्थानों के आसपास के इलाकों से ही भीड़ लाई जाएगी।
अजमेर में अजमेर शहर, नसीराबाद पीसांगन से ही भीड़ को लाया जाना है। जहां तक अजमेर शहर का सवाल है, यहां कुल तीन सौ बूथों से प्रत्येक बूथ से पच्चीस श्रोता लाए जाने का लक्ष्य रखा गया है। अर्थात यदि कार्यकर्ता पूरी ताकत भी लगा दें तो शहर से साढ़े सात हजार से ज्यादा लोग नहीं लाए जा सकेंगे। इसी प्रकार आसपास के गांवों से भी लोग लाए जाएंगे। हालांकि पटेल मैदान काफी बड़ा है और उसे भरना कत्तई नामुमकिन है, इस कारण उसके एक भाग में ही सभा करने की योजना है। पार्टी नेताओं की कोशिश है कि वे तकरीबन दस हजार श्रोता तो ले ही आएं और उसी हिसाब से सभा स्थल रखा जाएगा। हालांकि दस हजार का लक्ष्य कोई बहुत बड़ा नहीं है, विशेष रूप से प्रधानमंत्री पद के दावेदार के कद के हिसाब से, लेकिन पार्टी नेताओं को इस लक्ष्य को हासिल करना कठिन प्रतीत हो रहा है।
जहां तक आडवाणी की अजमेर में हुई अब तक की सभाओं का सवाल है, वे आम तौर पर केसरगंज में ही हुई हैं, जहां पांच हजार श्रोता होने पर ही चौक भरा-भरा दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त आता-जाता नागरिक भी भीड़ में शामिल हो जाता है। इसके विपरीत पटेल मैदान में एक तो दस हजार की भीड़ भी नाकाफी है और दूसरा ये कि वहां आता-जाता नागरिक कम ही रुकने वाला है। रहा सवाल आडवाणी के व्यक्तित्व का तो, वे कोई कुशल वक्ता नहीं माने जाते। उनमें भीड़ पर अटल बिहारी वाजपेयी की तरह सम्मोहन करने की कला नहीं है। वाजपेयी का तो भाषण सुनने के लिए ही लोग जुटते थे। यहां तक कि कांग्रेस के कार्यकर्ता भी चाहते थे कि उनका भाषण सुनें। आडवाणी के साथ ऐसी बात नहीं है। वे बातें तो बड़ी समझदारी की करते हैं, मगर उनमें वह लच्छा नहीं होता, जिसे सुन कर श्रोता बंधा रहे। यही वजह है कि एक बार जब उनकी सभा सुभाष उद्यान में हुई तो एक तो भीड़ तीन हजार को भी पार नहीं कर पाई और दूसरा उनका भाषण पूरा हुआ ही नहीं कि भीड़ उठ कर चल दी। उन्हें मजबूरी में अपना भाषण बंद करना पड़ा। राम मंदिर मुद्दे की बात और थी। तब लोगों की धार्मिक भावनाएं उभार दी गई थीं, जबकि आज ऐसी स्थिति नहीं है। आज का मुद्दा है तो ज्वलंत, मगर उसे पहले अन्ना एंड कंपनी भुना चुकी है। कुल मिला कर आडवाणी की सभा को कामयाब करना स्थानीय भाजपा नेताओं के लिए बहुत मुश्किल काम है।
-tejwanig@gmail.com

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