शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

मजबूत तो हैं, मगर मजबूर भी कम नहीं संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा


एक ओर जहां अजमेर का यह सौभाग्य है कि मौजूदा संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा अजमेर के ही रहने वाले हैं और वे अजमेर के लिए कुछ करना चाहते हैं, मगर साथ ही दुर्भाग्य ये भी है कि वे कई बार मजबूत होने के बाद भी राजनीतिक कारणों से मजबूर साबित हुए हैं। मौजूदा जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल की भी अजमेर में कुछ कर दिखाने की मानसिकता है। यह एक आदर्श स्थिति है, मगर फिर भी संभागीय आयुक्त कमजोर साबित हो गए हैं। हालत ये है कि अब वे उनसे मिलने जाने वालों के सामने राजनीतिज्ञों व आम जनता का सहयोग न मिलने का रोना रोते दिखाई देते हैं। उन्हें बड़ा अफसोस है कि वे अपने पद का पूरा उपयोग करते हुए अजमेर का विकास करना चाहते हैं, मगर जैसा चाहते हैं, वैसा कर नहीं पाते।
असल में यह शहर वर्षों से अतिक्रमण और यातायात अव्यवस्था से बेहद पीडि़त है। पिछले पच्चीस साल के कालखंड में अकेले पूर्व कलेक्टर श्रीमती अदिति मेहता को ही यह श्रेय जाता है कि उन्होंने मजबूत इरादे के साथ अतिक्रमण हटा कर शहर का कायाकल्प कर दिया था। वे भी जब संभागीय आयुक्त बनीं तो उनके तेवर ढ़ीले पड़ गए। और जो भी कलेक्टर आए वे मात्र नौकरी करके चले गए। उन्होंने कभी शहर की हालत सुधारने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इसकी एक मात्र वजह ये है कि यहां राजनीतिक दखलंदाजी बहुत अधिक है, इस कारण प्रशासनिक अधिकारी कुछ करने की बजाय शांति से नौकरी करना पसंद करते हैं।
यह सही है कि जैसा वरदहस्त अदिति मेहता को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत का मिला हुआ था, वैसा मौजूदा संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल पर नजर नहीं आता। बावजूद इसके उन्होंने मिल कर कुछ करना चाहा, मगर राजनीति आड़े गई।
आपको याद होगा कि कुछ अरसे पहले संभागीय आयुक्त शर्मा के विशेष प्रयासों से शहर को आवारा जानवरों से मुक्त करने का अभियान शुरू हुआ, मगर चूंकि राजनीति में असर रखने वालों ने केन्द्रीय राज्य मंत्री सचिन पायलट का दबाव डलवा दिया, इस कारण वह अभियान टांय टांय फिस्स हो गया। नगर निगम के मेयर कमल बाकोलिया तेज तर्रार सीईओ सी. आर. मीणा तक को मन मसोस कर रह जाना पड़ा। वे दोनों भी कोई कीर्तिमान स्थापित करने के चक्कर में थे, मगर पार्षदों की आए दिन की सिर फुटव्वल के कारण अब हिम्मत हार कर बैठे हैं।
अतिक्रमण के मामले को ही लें। यह अजमेर शहर का दुर्भाग्य ही है कि जब भी प्रशासन अजमेर शहर की बिगड़ती यातायात व्यवस्था को सुधारने के उपाय शुरू करता है, अतिक्रमण हटाता है, शहर वासियों के दम पर नेतागिरी करने वाले लोग राजनीति शुरू कर देते हैं। शहर के हित में प्रशासन को साथ देना तो दूर, उलटे उसमें रोड़े अटकाना शुरू कर देते हैं। यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए वन-वे करने के निर्णय उसी राजनीति की भेंट चढ़ गया। वे अड़े तो बहुत, मगर जब ऊपर डंडा पड़ा तो व्यापारियों से समझौता कर लिया।
एक प्रकरण देखिए। पिछले दिनों संभागीय आयुक्त शर्मा और जिला कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल के प्रयासों से टे्रफिक मैनेजमेंट कमेटी की अनुशंसा पर यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए जवाहर रंगमंच के बाहर बनी गुमटियों को दस साल ही लीज समाप्त होने के बाद हटाया गया तो शहर के नेता यकायक जाग गए। जहां कुछ कांग्रेसी पार्षदों ने वोटों की राजनीति की खातिर गरीबों का रोजगार छीनने का मुद्दा बनाते हुए जेसीबी मशीन के आगे तांडव नृत्य कर बाधा डालने की कोशिश की, वहीं भाजपा दूसरे दिन जागी और कांग्रेसी पार्षदों पर घडिय़ाली आंसू बहाने का आरोप लगाते हुए प्रशासन को निरंकुश करार दे दिया। गुमटियां तोडऩे पर इस प्रकार उद्वेलित हो कर नेताओं ने यह साबित करने की कोशिश की कि प्रशासन तो जन-विरोधी है, जबकि वे स्वयं गरीबों के सच्चे हितैषी। विरोध करने वालों को इतनी भी शर्म नहीं आई कि अगर वे इस प्रकार करेंगे तो प्रशासनिक अधिकारी शहर के विकास में रुचि क्यों लेंगे। केवल नौकरी ही करेंगे न। बहरहाल, विरोध का परिणाम ये रहा कि प्रशासन को केवल गुमटी धारकों को अन्यत्र गुमटियां देनी पड़ीं, अपितु यातायात में बाधा बनी अन्य गुमटियों को हटाने का निर्णय भी लटक गया।
इसी प्रकार शहर की यातायात व्यवस्था को सुधारने के लिए संभागीय आयुक्त अतुल शर्मा की अध्यक्षता में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय तो हुए, पर उन पर कितना अमल हुआ, ये पूरा शहर जानता हैं। उनकी लाचारी इससे ज्यादा क्या होगी कि जिस कचहरी रोड और नेहरू अस्पताल के बाहर उन्होंने सख्ती दिखाते हुए ठेले और केबिने हटाई थीं, वहां फिर पहले जैसे हालात हो गए हैं और शर्मा चुप बैठे हैं।
शर्मा ने पशु पालन की डेयरियों को अजमेर से बाहर ले जाने की कार्यवाही शुरू करने का ऐलान किया, मगर आज भी स्थिति जस की तस है। बड़े-बड़े गोदाम शहर से बाहर निर्धारित स्थल पर स्थानांतरित करने की व्यवस्था करने का निर्णय किया गया, मगर आज तक कुछ नहीं हुआ। रोडवेज बस स्टैंड के सामने रोडवेज की बसों को खड़ा करके यात्रियों को बैठाने पर पांबदी लगाई गई, मगर उस पर सख्ती से अमल नहीं हो पा रहा। शहर के प्रमुख चौराहों को चौड़ा करने का निर्णय भी धरा रह गया। खाईलैंड में नगर निगम की खाली पड़ी जमीन पर बहुमंजिला पार्किंग स्थल बनाने की योजना खटाई में पड़ी हुई है।
-tejwanig@gmail.com

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