इसमें कोई दोराय नहीं कि हाल ही जिला परिषद के सीईओ बने सी आर मीणा एक सुलझे हुए आरएएस अधिकारी माने जाते हैं और अतिरिक्त जिला कलेक्टर पद पर रहते उनकी कार्यशैली की खूब तारीफ हो चुकी है, मगर कचरा प्रबंधन की प्रमुख एजेंसी नगर निगम का सीईओ बनने पर उनका जो कचरा हुआ, उसकी उन्हें कभी कल्पना तक नहीं होगी। हालांकि नगर निगम से विदाई के वक्त भी क्या कांग्रेस और क्या भाजपा, दोनों के ही नेताओं ने ही उनकी कार्यशैली के जम कर कशीदे काढ़े, मगर जिस तरह से समारोह में बैंड बाजों व ढ़ोल-ढ़माकों के बीच पार्षद थिरके, उसमें उनकी विदाई से दुखी होने की बजाय खुशी ही ज्यादा नजर आई कि चलो बला टली। मीडिया ने भी स्वीकार किया कि नगर निगम के इतिहास में पहली बार किसी अधिकारी को इस तरह की भावभीनी विदाई दी गई, मगर इस विदाई में कहीं भी ये नहीं झलक रहा था कि उनके जाने से एक भी नेता दुखी हुआ हो, अकेली पार्षद नीता केन के, जिनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।
आपको याद होगा कि जब मेयर कमल बाकोलिया उन्हें ससम्मान सीईओ बनवा कर लाए तो लगा था कि दोनों के बीच अच्छी ट्यूनिंग रहेगी और इसका फायदा दोनों को मिलेगा। राजनीति के नए खिलाड़ी बाकोलिया को सीईओ की समझदारी काम आएगी और मीणा को भी राजनीतिक संरक्षण मिलने पर काम करने में सुविधा रहेगी। मगर हुआ ठीक इसका उलटा। नई नवेली दुल्हन नौ दिन की, खींचतान करके तेरह दिन की वाली कहावत चरितार्थ हो गई। जल्द ही दोनों के बीच ट्यूनिंग बिगड़ गई। दुर्भाग्य से बाकोलिया को भी ऐसे पार्षदों की टीम मिली जो उनके कहने में नहीं थी, नतीजतन अतिक्रमण हटाने को लेकर आए दिन पार्षदों व निगम कर्मचारियों के बीच तनातनी होती रही। मीणा की परेशानी ये होती थी कि वे जिला प्रशासन के कहने पर अतिक्रमण के खिलाफ सख्ती से पेश आते तो एक ओर पार्षदों से खींचतान होती और दूसरी ओर कर्मचारी अपने काम में बाधा आने की वजह से लामबंद हो जाते। उन्हें अनेक बार नेताओं की आपसी खींचतान के कारण बार जलालत से गुजरना पड़ा। न तो उनकी मेयर कमल बाकोलिया से पटी और न ही पार्षदों ने उन्हें अपेक्षित सम्मान दिया। कुल मिला कर मीणा बुरी तरह से घिर गए। यही वजह थी उनके बारे में यह जुमला आम हो गया था कि कहां फंसे सीईओ बन कर।
पृष्ठभूमि में राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव और पुलिस के असहयोग के चलते उनकी जो दुर्गति हुई, उसकी पराकाष्ठा तब देखने को मिली जब दरगाह बाजार की लंगरखाना गली में दरगाह कमेटी की शिकायत पर अतिक्रमण तोडऩे जाने पर सांप्रदायिक माहौल खराब होने की धमकी दी गई तो उनके मुंह से यकायक निकल गया कि ज्यादा से ज्यादा मार दोगे, इससे अधिक क्या होगा? ऐसी नौकरी से तो मौत अच्छी है। अपुन ने तब भी कहा था कि वह कथन प्रशासनिक लाचारी की इंतहा था। असल में वह कथन नहीं क्रंदन था। तब यह सवाल उठा था कि एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी आखिर इतना लाचार कैसे हो गया? मीणा की हालत ये थी कि वे चाह कर भी रो नहीं पाए और पुलिस का असहयोग होने बाबत मीडिया द्वारा सवाल पूछे जाने पर यह कह कर कि पुलिस ने असहयोग भी तो नहीं किया, सच्चाई को छिपाने की कोशिश की। दरगाह इलाके के प्रभावशाली लोगों से पोषित पुलिस की कमजोरी का प्रमाण तभी मिल गया था पार्षद योगेश शर्मा एक अतिक्रमी से झगड़ा होने पर जब वे मुकदमा दर्ज कराने के लिए दरगाह थाने गए तो सीआई भाटी ने पार्षदों से कहा था कि निगम में दम है तो दरगाह बाजार में अतिक्रमण तोड़ कर दिखाए। ऐसे में वे दिन याद आना स्वाभाविक हैं, जब तत्कालीन जिला कलैक्टर अदिति मेहता पत्थरबाजी के चलते भी डटी रहीं और अतिक्रमण को हटा कर ही दम लिया। बेशक उन पर सरकार अर्थात राजनीति का हाथ था, तभी वे ऐसा कर पाईं। दुर्भाग्य से ऐसा सपोर्ट न पूर्व कलेक्टर श्रीमती मंजू राजपाल को मिला और न ही मीणा को।
खैर, जहां तक विदाई के वक्त सराहना होने का सवाल है, यह एक लोकाचार ही है। भला जो अधिकारी रुखसत हो रहा हो, उसको जाते-जाते तो भला बुरा नहीं कहा जाता। सो मेयर कमल बाकोलिया, शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता व भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी ने उनकी जम कर सराहना की। उनकी कार्यशैली की तारीफ की। जिन मेयर बाकोलिया से उनका पूरे कार्यकाल के दौरान छत्तीस का आंकड़ा रहा, वे अगर तारीफ करते हैं तो समझा जा सकता है कि उसमें रस्म अदायगी का कितना पुट है। चलो मेयर बाकोलिया तो फिर भी सत्तारूढ़ दल से हैं, सो वे कभी मीणा के खिलाफ खुल कर नहीं बोले, मगर विपक्षी पार्टी भाजपा के विधायक के नाते प्रो. वासुदेव देननानी के निशाने पर तो मीणा सदैव ही रहे। वे भी तारीफों के पुल बांधें तो चौंकना स्वाभाविक है। सवाल ये उठता है कि यदि मीणा की कार्यशैली इतनी ही अच्छी थी तो क्यों नहीं नगर निगम बेहतर परफोरमैंस दे पाई? यानि कि उनकी शैली तो अच्छी थी मगर कहीं न कहीं जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली में कुछ गड़बड़ थी, तभी तो निगम जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है।
आज जब कि मीणा विदाई ले चुके हैं तो पिछला घटनाक्रम यकायक याद आ ही जाता है। जिन हालत में मीणा की रवानगी हुई है वह स्थिति शहर के लिए तो अच्छी नहीं कही जा सकती। जब मीणा जैसे सुलझे हुए अधिकारी की ही पार नहीं पड़ रही तो निगम का भगवान ही मालिक है। देखना होगा कि नई सीईओ विनिता श्रीवास्तव क्या कर पाती हैं?
बहरहाल, अब जब कि मीणा का कथित नरक निगम से पिंड छूट ही गया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि वे नए पद पर अपनी योग्यता का बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब होंगे, जहां कि मौजूदा जिला प्रमुख श्रीमती सुशीली कंवर पलाड़ा के राज में भ्रष्टाचार नाम की चिडिय़ा जिला परिषद भवन पर बैठने से कतराती है।
-गिरधर तेजवानी
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