शनिवार, 22 जून 2013

दावेदार भले ही और भी हों, मगर टिकट तो रघु को ही मिलेगा

आगामी विधानसभा चुनाव में केकड़ी से टिकट लेने के लिए हालांकि मौजूदा विधायक व सरकार के मुख्य सचेतक डॉ. रघु शर्मा के अतिरिक्त तीन और की दावेदारी पेश हुई है, मगर समझा जाता है कि रघु शर्मा का टिकट पक्का है। ज्ञातव्य है कि हाल ही कांग्रेस पर्यवेक्षक राजेश खैरा के सामने जिला परिषद सदस्य व पूर्व प्रधान सीमा चौधरी, अजमेर जिला देहात कमेटी अन्य पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष गोकुल चन्द साहू तथा राकेश पारीक ने खुली दावेदारी पेश की। फीडबैक के दौरान ही रघु का पलड़ा काफी भारी नजर आया। अन्य दावेदारों के समर्थकों की मौजूदगी के बाद भी उपप्रधान छोटूराम गुजराल ने उपस्थित कार्यकर्ताओं से अपने हाथ उठा कर वर्तमान विधायक रघु शर्मा को ही टिकट देने के पक्ष में समर्थन मांगने की हिमाकत की। वो तो अन्य दावेदारों के समर्थकों ने इस पर ऐतराज किया, तब जा कर पर्यवेक्षक ने एक कमरे में बैठ कर सभी कार्यकर्ताओं से अलग-अलग रायशुमारी की।
दरअसल रघु शर्मा का टिकट पक्का होने के कई आधार हैं। एक तो वे प्रदेश स्तर पर काफी प्रभावशाली नेता हैं, इस कारण उनका टिकट काटना आसान काम नहीं है। अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय सचिव सी. पी. जोशी की खटपट नहीं होती तो वे शुरू में ही काबीना मंत्री बन जाते। इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लगातार दबाव बना कर मुख्य सचेतक का पद हासिल कर ही लिया। असल में अपने कद के अनुरूप पद हासिल करने में उन्हें दिक्कत आई ही इसलिए कि उन्होंने पाला बदल कर जोशी खेमा ज्वाइन कर लिया था, वरना कभी वे गहलोत के खास सिपहसालार हुआ करते थे। उन्हीं का वरदहस्त होने के कारण भिनाय से हारने के बाद भी जयपुर लोकसभा सीट की टिकट हासिल कर ली थी। यह बात अलग है कि यहां भी उन्हें हार का ही मुंह देखना पड़ा। मगर वे कितने प्रभावशाली हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि फिर भी वे केकड़ी का टिकट ले ही आए। उनकी गिनती भाजपाइयों से खुल कर भिड़ंत लेने वाले नेताओं में भी होती है। इसी के चलते एक बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे से भी टकरा गए थे। खुद अपनी सरकार को भी कभी-कभी घेरने की वजह से भी कई बार विवादित हो जाते हैं।
रघु की मजबूती का दूसरा आधार ये है कि उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में जम कर काम करवाए हैं और इसी आधार पर ये तक माना जाता है कि वे इस बार भी आसानी से चुनाव जीत जाएंगे। वे पहले विधायक हैं, जिन्होंने केकड़ी को जिला बनाने की पैरवी की। इसके अतिरिक्त बड़े सरकारी अस्पताल की स्थापना में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। हालांकि सिक्के का दूसरा पहलु ये है कि पूरे साढ़े चार साल तक उन्हें हिंदूवादी संगठनों की सक्रियता से परेशानी का सामना करना पड़ा। सरवाड़ प्रकरण में तो उनकी नाकामी साफ नजर आई। लेकिन साथ ही इससे उन्होंने अल्पसंख्यकों के वोट तो पक्के कर लिए। सच ये भी है कि उन्होंने केकड़ी सीट पर कब्जा बरकरार रखने के प्रयास शुरू से ही आरंभ कर दिए, क्योंकि इससे पहले वे भिनाय विधानसभा सीट और जयपुर लोकसभा सीट पर हार चुके थे।
इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले चुनाव में उनका परफोरमेंस काफी अच्छा रहा था। उल्लेखनीय है कि   उन्होंने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा की रिंकू कंवर को 12 हजार 659 मतों से हराया था। रघु को 47 हजार 173 व रिंकू कंवर को 34 हजार 514 मत मिले । अगर कांगे्रस के बागी पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारियां, जिन्होंने कि 22 हजार 123 वोट हासिल किए, मैदान नहीं होते तो रघु की जीत और अधिक मतों से होती। हालांकि इसमें एक फैक्टर ये भी है कि भाजपा में दो फाड़ हो रखी थी। भाजपा के बागी भूपेन्द्र सिंह 17 हजार 801 वोटों का झटका दिया था। यदि कांग्रेस व भाजपा के अधिकृत प्रत्याशियों के वोटों में बागियों के भी वोट जोड़ दिए जाएं, तब भी रघु काफी बेहतर स्थिति में होते।
-तेजवानी गिरधर

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