गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

300 करोड़ की दरगाह विकास योजना में लीपापोती की आशंका

सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 800 वें सालाना उर्स के मौके पर दरगाह परिसर व अजमेर शहर के विकास के लिए सरकार की ओर से बनाई गई तीन सौ करोड़ की महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन के लिए जितना समय बचा है, उससे साफ जाहिर है कि प्रशासन चाहे भी तो समय पूरे कार्य संपन्न नहीं कर सकता। ऐसे में आशंका इस बात की है कि कहीं लीपापोती ही हो कर न रह जाए।
यहां उल्लेखनीय है कि इस परियोजना के अन्तर्गत विभिन्न मार्गों के विकास, नालियों के निर्माण, सीवरेज, विद्युत सप्लाई उपकरण, सुरक्षा, पार्किंग, शौचालय, कोरिडोर, दरगाह शरीफ के प्रवेश द्वारों की चौड़ाई बढाना, अग्नि शमन, विश्राम स्थलियों का विकास, ईदगाह के विकास के साथ-साथ अजमेर शहर की कई बड़ी सड़कों के निर्माण एवं विकास का प्रावधान रखा गया है। ऐसी बड़ी योजना यदि पूरी तरह से लागू हो जाए और उस पर पूरी ईमानदारी के साथ काम हो तो शहर की काया ही पलट जाएगी। मगर समय के अभाव में संदेह ये होता है कि कहीं काम पूरे होने से पहले ही उर्स सर पर न आ जाए और बिखरी हुई निर्माण सामग्री व खुदे हुए गड्ढे वरदान की बजाय अभिशाप बन जाएं।
हालांकि यह समस्या प्रशासन भी अच्छी तरह से समझ रहा है, लेकिन उसने अभी तक कोई कार्य योजना नहीं बनाई है। होना दरअसल ये चाहिए कि काम दु्रत गति से निपटें, इसके लिए उच्च कोटि के प्रोजेक्ट प्रबंधन की व्यवस्था की जााए। क्रियान्वयन के लिए चुनिंदा विशेषज्ञों की इकाई का गठन किया जाए, जो समयबद्ध तरीके से कार्यों का प्रबंधन व मोनिटरिंग करे। समय पर कार्य पूरे कराने के लिए सभी कार्य रात्रि के समय भी कराने जरूरी होंगे। शहर के संकरे एवं दुर्गम मार्गों पर रात्रि के समय कार्य कराने से यातायात बाधित होने से भी बचाया जा सकता है।
आम तौर पर पाया गया है कि विकास योजनाओं में जनता और जनप्रतिनिधियों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता। अमूमन तो जनता उसमें बाधा ही डालती है, क्योंकि उसे कुछ समय के लिए परेशानी होती है। ऐसे में बेहतर यह होगा कि जिस क्षेत्र में भी कार्य आरम्भ किया जाना है, उस क्षेत्र के सभी वर्गों को साथ लिया जाये। न सिर्फ कार्यों के चयन, प्राथमिकताओं के निर्णय निर्माण में सहयोग एवं रखरखाव के लिये इनकी राय ली जाये, बल्कि जनसहयोग प्राप्त करने के लिए जन सम्पर्क की एक विशेष इकाई भी बनाई जाये, जो होने वाले लाभों से लोगों को पहले से अवगत कराए।
एक अहम समस्या विभिन्न विभागों के बीच तालमेल नहीं होने की भी रहती है। इस कारण कई बार एक ओर तो सार्वजनिक निर्माण विभाग या नगर निगम व न्यास की देखरेख में सड़क बन जाती है और दूसरी जलदाय विभाग, बिजली विभाग व टेलीफोन महकमे के देखरेख में सड़क की खुदाई कर दी जाती है। इससे धन व समय का अपव्यय होता हो। अत: जरूरी है कि एक समन्वय इकाई हो, जो सभी विभागों के बीच तालमेल रखे।
यहां उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ख्वाजा साहब के 786वें उर्स में विशेष पैकेज आया था, मगर समय के अभाव में लीपापोती हुई और बाद में लंबे समय तक उसकी जांच होती रही। अत: बेहतर ये होगा कि योजना की समीक्षा भी इसी मौके पर हो जाए, ताकि एक तो यह जाना जा सके कि पहले क्या गलतियां हुईं, जिनसे अब बचा जा सके। दूसरे यह पता भी चले कि जिन कार्यों पर पहले पैसा खर्च हुआ बताया गया उनका अब वजूद भी हैं अथवा नहीं।

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