गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

यूआईटी का गठन न होने से अटका विकास

ढ़ाई साल से भी ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी प्रदेश की सरकार ने अब तक नगर सुधार न्यास का गठन नहीं किया है। चाहे इसके लिए सत्तारूढ़ कांग्रेस की भीतरी राजनीति जिम्मेदार हो या फिर सरकार का कोई असमंजस, मगर यह अजमेर शहर पर तो भारी ही पड़ रहा है। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि अध्यक्ष और सदस्यों के रूप में मनोनयन से कांग्रेसी अब तक वंचित हैं और उनमें असंतोष बढ़ रहा है, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि शहर के विकास में अहम भूमिका अदा कर सकने वाली इस विशेष संस्था की निष्क्रियता से शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। ये उतना महत्वपूर्ण नहीं है कि कांग्रेस के दावेदारों की अपेक्षा पूरी हो, बल्कि जरूरी ये है कि अजमेर वासियों की अपेक्षाएं पूरी हों।
ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कभी साफ मना किया है कि वे न्यास अध्यक्ष की नियुक्ति करेंगे ही नहीं और न ही इसके प्रति अरुचि दिखाई है। हर बार यही कहा कि जल्द ही होगी। मगर अब तक नियुक्ति न करने से खुद उनकी ही पार्टी के नेता और कार्यकर्ता समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर उनके मन में है क्या? अफसोसनाक बात तो ये है कि नियुक्ति को लेकर अनेक बार कवायद करने के बावजूद वे चुप बैठे हैं। बताते हैं कि नाम तक लगभग तय है और घोषणा भर की देरी है। लेकिन घोषणा न होने से अब तो यह समझा जाने लगा है कि वे नियुक्ति करने के मूड में ही नहीं हैं। कदाचित वे नियुक्ति के बाद होने वाली उठापटक से बचना चाहते हैं। कई बार तो उन्हें नियुक्ति के आदेश जारी न करने के बहाने भी उन्हें मिले हैं। कभी बजट सत्र तो कभी संगठन चुनाव। कभी लोकसभा चुनाव तो कभी स्थानीय निकाय व पंचायतीराज का चुनाव। हर बार उन्हें नियुक्ति टालने का मौका मिला है। अंंतत: निष्कर्ष ये निकाला गया कि वे किसी भी विवाद से बचने केलिए नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक कोई कदम नहीं उठाना चाहते। उन्होंने ऐसा किया भी। जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष पद पर डॉ. चंद्रभान की नियुक्ति हुई, ये आशा जगी कि अब तो कुछ होगा। नियुक्ति की संभावना इस कारण भी कायम हुई क्योंकि गहलोत के साथ डॉ. चंद्रभान ने भी यही कहा कि जल्द ही नियुक्ति हो जाएगी। मगर इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ।
बहरहाल, इसका परिणाम ये है कि वह सब ठप्प पड़ा है, जिसकी न्यास से उम्मीद की जाती है। असल में इस बात के प्रमाण हैं कि जब भी न्यास के अध्यक्ष पद पर कोई राजनीतिक प्रतिनिधि बैठा है, शहर का विकास हुआ है। चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की। हर न्यास अध्यक्ष ने चाहे शहर के विकास के लिए चाहे अपनी वाहवाही के लिए, काम जरूर करवाया है। पृथ्वीराज चौहान स्मारक, महाराजा दाहरसेन स्मारक, विवेकानंद स्मारक, अशोक उद्यान, राजीव उद्यान सहित अनेक आवासीय योजनाएं उसका साक्षात प्रमाण हैं। जब भी सरकारी अधिकारियों ने न्यास का कामकाज संभाला है, उन्होंने महज नौकरी की बजाई है, विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया है। पत्रकार कॉलोनी के लिए अरसे लंबित आवेदन उसका ज्वलंत उदाहरण हैं। दुर्भाग्य से सरकार की अरुचि के कारण नगर सुधार न्यास पिछले तकरीबन साढ़े चार साल से प्रशासनिक अधिकारियों भरोसे ही चल रहा है। ऐसे में विकास तो दूर रोजमर्रा के कामों की हालत भी ये है कि जरूरतमंद लोग चक्कर लगा रहे हैं और किसी को कोई चिंता नहीं। नियमन और नक्शों के सैंकड़ों काम अटके पड़े हैं। पिछले सात साल से लोग न्यास के चक्कर लगा रहे हैं, मगर नियमन के मामले नहीं निपटाए जा रहे। इसका परिणाम ये है कि अपना मकान बनाने का सपना मात्र पूरा होता नहीं दिखाई देता। स्पष्ट है कि विकास अवरुद्ध हुआ है।
असल में न्यास के पदेन अध्यक्ष जिला कलैक्टर को तो न्यास की ओर झांकने की ही फुरसत नहीं है। वे वीआईपी विजिट, जरूरी बैठकों आदि में व्यस्त रहते हैं। कभी उर्स मेले में तो कभी पुष्कर मेले की व्यवस्था में खो जाते हैं। न्यास से जुड़ी अनेक योजनाएं जस की तस पड़ी हैं। कुल मिला कर जब तक न्यास के सदर पद पर किसी राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति नहीं होती, तब तक अजमेर का विकास यूं ही ठप पड़ा रहेगा।

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