गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

न्यास अध्यक्ष पद को लेकर उभरा खंडेलवाल का नाम

अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति का मामला काफी दिन से अटका हुआ है, इस कारण अब जब भी इसके बारे में कोई समाचार आता है तो यही लगता है कि अफवाह होगी, मगर ताजा जानकारी ये है कि इस पद को लेकर यकायक कवायद तेज हो गई है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि दावेदारों की भागदौड़ में यूं तो पूर्व विधायक डॉ. के. सी. चौधरी व पूर्व उपमंत्री ललित भाटी का नाम चल रहा बताया, मगर हाल ही शहर के प्रमुख समाजसेवी व व्यवसायी कालीचरण खंडेलवाल का नाम इन दोनों से आगे आ गया बताया। इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि वे पिछले काफी दिन से अजमेर के सांसद व केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट के संपर्क में हैं और दूसरा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी पसंद बन गए हैं, क्योंकि उनके खासमखास पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती भी उनका समर्थन कर रहे हैं। जानकारी ये भी है कि इस पद से वंचित और उसके एवज में शहर कांग्रेस अध्यक्ष बने महेन्द्र सिंह रलावता भी उनकी पैरवी कर रहे हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि कोई दस 0िदन पहले तक यह सूचना थी कि सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद डॉ. चौधरी व भाटी के नामों का पैनल बनाया था। उनमें से किसे इस पद से नवाजा जाएगा, इस पर मुहर सचिन पायलट को लगानी थी। जैसी की जानकारी है, पायलट का झुकाव चौधरी की ओर था। उसकी अहम वजह ये रही कि वे भाटी की तुलना में उनके ज्यादा करीब हैं। मगर अजमेर के वैश्य समाज के प्रमुख नेताओं के सक्रिय होने के बाद अचानक खंडेलवाल का नाम उभर आया है।
विश्लेषकों का मानना है कि डॉ. चौधरी के नाम इस कारण सामने था आया, क्योंकि किसी सिंधी अथवा वैश्य को बनाए जाने के फार्मूले में वैश्य को सरकार ज्यादा मुफीद समझती है। हालांकि सिंधी समाज के नेता नरेन शहाणी भगत की प्रबल दावेदारी रही है, वैश्य समुदाय ने यह तर्क दिया बताया कि अभी सिंधी समुदाय को खुश करने के लिए भले ही किसी सिंधी नेता को अध्यक्ष बना दिया जाए, मगर विधानसभा चुनाव में फिर किसी सिंधी को ही टिकट दिए जाने की बात सामने आएगी। वैश्य समुदाय की यह सोच इस कारण भी बनी है कि पिछले चुनाव में वैश्य समुदाय के एकजुट होने और भाजपा के परंपरागत वोटों में सेंध मारने के बाद भी उनके प्रत्याशी डॉ. श्रीगोपाल बाहेती हार गए, इस कारण अगली बार कांग्रेस सिंधी समाज की दावेदारी को काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी। यही वजह है कि उसने दबाव बनाया कि न्यास अध्यक्ष व विधायक की टिकट, दोनों में एक उसके लिए तय की जाए। अभी किसी सिंधी को अध्यक्ष बनाया जाता है तो विधानसभा की टिकट उनके लिए तय कर दी जाए। और अगर अभी वैश्य को मौका दिया जाता है तो वह विधानसभा चुनाव की दावेदारी छोड़ देगा। माना ये जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान भी विधानसभा चुनाव में दुबारा सिंधी समाज को नाराज करने के मूड में नहीं है। ऐसे में किसी वैश्य को ही बनाने की जोड़तोड़ चल रही है। वैश्य समुदाय से यूं तो सबसे तगड़े दावेदार डॉ. श्रीगोपाल बाहेती हैं, मगर पायलट उनके लिए तैयार नहीं हो रहे। यही वजह है कि किसी और वैश्य के नाम पर चर्चा शुरू हो गई। डॉ. चौधरी राजनीति के खिलाड़ी हैं, इस कारण उन्होंने पूरा जोर लगा दिया और एक बार तो लगा कि वे ही घोषित होने वाले हैं, मगर यकायक खंडलेवाल का नाम सामने आ गया है। चौधरी के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क ये दिया जा रहा है कि वे मूलत: किशनगढ़ और बाद में ब्यावर के रहे हैं। कदाचित स्थानीय वैश्य समुदाय भी चौधरी की बजाय खंडेलवाल का समर्थन कर रहा है। चूंकि चुनाव में खंडेलवाल ने डॉ. बाहेती का साथ दिया था, इस कारण डॉ. बाहेती भी उनका साथ दे रहे हैं।
यूं ललित भाटी ने भी पूरा जोर लगा दिया है और तर्क ये है कि कभी कांग्रेस के लिए पक्की रही सीट अजमेर दक्षिण (जो पहले अजमेर पूर्व थी) को फिर कब्जे में लेने के लिए इस कोली बहुल इलाके में कांग्रेस को फिर मजबूत करना है तो भाटी को अहमियत देनी होगी। मगर भाटी के खिलाफ सबसे बड़ा रोड़ा ये आ रहा है कि अन्य जाति वर्ग उनकी नियुक्ति को उचित नहीं मानते। उनका तर्क ये है कि पहले से अजमेर शहर की एक सीट विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इसके अतिरिक्त मेयर भी अनुसूचित जाति से है। ऐसे में शहर की एक और महत्वपूर्ण सीट भी अनुसूचित जाति के नेता को देना अन्य जातियों के साथ अन्याय होगा।
कुल मिला कर लगता यही है कि वैश्य समुदाय में से ही किसी को मौका मिलेगा, जिसमें फिलहाल खंडलेवाल का नाम सबसे ऊपर आ गया है।

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